Thursday 28 July 2022

आलेख-*लोक परब हरेली*


 

आलेख-*लोक परब हरेली*


सावन महीना के अमौसी के दिन मनाय जाने वाला ये लोक परब हरेली छत्तीसगढ़िया किसान  मजदूर मन के दूसरइया बड़का तिहार आय। छत्तीसगढ़ के किसानी तिहार अक्ती के बाद हरेली ह खेती-बाड़ी मा रमे किसान मन के जिनगी म उमंग-उल्लास भरे के काम करथे। ये तिहार ह चिखला-माटी के काम-कारज मा चिभके कमइया मन बर थोकिन सुस्ताय के उदीम घलव आय। तइहा जमाना ले बैला-भैंसा के उपयोग नाॅंगर जोतई , माल ढुलई अउ आवागमन बर होते आवत हे। मवेशी मन के मल-मूत्र अउ बन-कचरा (कृषि अपशिष्ट) ले जैविक खातू बनाय के परम्परा निच्चट जुन्ना बात आय।

    किसानी काम बर खातू- बीजा मजदूर-बनिहार (मानव श्रम) नाॅंगर-दतारी, रापा- कुदारी (कृषि उपकरण) गाय -बैला (पशुधन) अउ पानी-बरसात जइसन चीज-बस (संसाधन) के होना जरूरी रहिथे। एकरे भरोसा मा किसान हा अपन खेत मा फसल उपजारे के काम ल कर पाथे। किसान ह अन्न के उपजइया आय तेकर सेती ये सबो चीज-बस (श्रम संसाधन) बर भारी चिंता फिकर घलव करथे।

जोताई-बोवाई अउ बिआसी जइसन किसानी बूता के उरके के पाछू जब भाठा-टिकरा, खेत-खार, मेड़-पार, परिया-कछार हरियर-हरियर दिखन लगथे, तरिया-डबरी, नरवा-ढोड़गा, नंदिया-बॅंधिया डबडबाके छलछलाय ला धरथे तब किसान भाई मन इही श्रम संसाधन मन के आभार व्यक्त करे बर हरेली तिहार ल मनाथे।

हम सब जानथन कि खेती किसानी के काम में अवइया श्रम सहायक समान चाहे वोहा सजीव होय या निर्जीव, सबके देखभाल बर किसान ह चोबीस-घंटा सजग रहिथे। किसानी संस्कृति के इही प्रमुख तिहार म अगर कोनो धरम नाम के चीज हे त वोहा आय किसानी धरम जिहाॅं माल-मवेशी अउ कृषि औजार मन ह ही ओकर देवता आय।

     गाॅंंव-गॅंवई म  चलागन (लोक मान्यता) हे कि बीते रातकुन ह बहिरी हवा के सक्रिय होय के बेरा आय। बाहरी-हवा के पोषक मन कहुं डहर सुन्ना जगा म जाके सिरजन के उलट जादू-टोना ( कारू-नारू) सीखे के शुरवात इही दिन ले करथे।

          गांव म ठउका इही दिन जादू-टोना जइसे बाहरी हवा ल जड़मूल ले खतम करे बर तंत्र मंत्र विद्या के गुरूवारी पाठशाला के शुरुआत होथे। गुरूवारी पाठशाला ह सावन अमौसी रतिहा ले भादो महिना के रिषि पंचमी तक सरलग पैंतीस दिन तक चलथे ।

          इही दिन माल-मवेशी मन ल नवा चारा ले होवइया रोग-राई ले बचाय बर औषधीय गुण ले भरे दशमूल कांदा, डोडो-कांदा अउ बन गोंदली जइसन जड़ी बूटी ल खवाय जाथे। तिहार के दिन बड़े बिहनिया राऊत घर ले ये जड़ी-बूटी ल लान के सबो मवेशी मन ल खवाय जाथे। साथे साथ गहूं पिसान के लोंदी मा नमक डाल के घलव खवाय जाथे। येकर ले गाय-गरू ल जरूरी खनिज लवण मिलथे अउ मौसमी बीमारी ले लड़े बर प्रतिरोधक क्षमता घलव बाढ़थे।

     जड़ी-बूटी के एवज म किसान मन राऊत ल धान-पान (शेर-चाऊर ) नइते पैसा देके ओकर कीमत चुकाथे।

     तिहार के दिन येती बेर उईस कि ओती  किसान मन अपन घर के नांगर ,जुड़ा, रापा-कुदारी, भंवारी ,रोखनी बिन्धना-बसूला, पटासी हॅंसिया,पैसूल, सब्बल, छीनी घन अउ टंगिया सबके साफ सफाई में भीड़ जाथे। अपन घर के अंगना मुरूम के आसन बिछा के सब औजार मन ल रखथे।

      ओ दिन घरोघर तेल-तेलई ले नाना प्रकार के पकवान बनाय जाथे। बरा,सोंहारी, चौसेला ,भजिया अउ चीला जइसन मनपसंद रोटी राॅंधे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ ह धान के उपजइया प्रदेश आय तेकर सेती इहा के पकवान म चाउर पिसान के जादा उपयोग होथे। मुरूम के आसन म माढ़े कृषि औजार म दीया-बाती,हूम -धूप अउ उदबत्ती जलाके,चाऊर पिसान के घोल ल छिड़के जाथे नइते हाथा लगाय जाथे। अउ गुड़ ले बने गुरहा चीला के भोग लगाय जाथे। किसान के धान-चाऊर ह कतक पवित्र हे तेला ये नेंग मन प्रमाणित करथे। ये साल कस अवइया साल म घलव खेती किसानी म अइसने साथ मिले कहिके घर के जम्मो सदस्य मन किसानी औजार के पूजा-पष्ट करत ओकर योगदान बर आभार व्यक्त करथें। किसान मन डहर ले सजीव (मवेशी) अउ निर्जीव (किसानी औजार) मन बर मान-सम्मान अउ कहूं नइ दिखे।

         पहिली गांव गॅंवई ह पेड़-पौधा, जंगल-झाड़ी, नदी-पहाड़ ले घिरे रहय। एकर कारण खूब बरसा होय अउ अंगना-दुवार गली-खोर, रवन-रस्ता मन चिखला के मारे गदपथ रहय। किसानी औजार मन ल इही चिखला-पानी ले बचाय खातिर मुरूम के आसन बिछाय जाय। आज पक्का घर-दुवार होय के बाद घलव मुरूम बिछाय के परम्परा ह चलत हे,जे बहुत खुशी के बात आय। किसानी समान ल सुरक्षित रखे के येहा किसान के अनुभव ले उपजे वैज्ञानिक सोच आय।


      खेती-किसानी ल बिन छेका-रोका के निपटाय बर गांव गॅंवई म पौनी-पसारी के बड़ सुग्घर वेवस्था होथे। जेमा राऊत,लोहार,नऊ, बरेठ, बैगा, कोटवार अउ रखवार मन ह प्रमुख होथे। हरेली के दिन राऊत अउ लोहार के काम रहिथे। राऊत ह घरोघर जाके कपाट (दरवाजा) म लीम के डारा खोंचथे त  लोहार ह उही कपाट के चौखट मा खीला ठोकथे। कीटनाशी, जीवाणुनाशी अउ शीतलता खातिर नीम के उपयोग अउ येती गरज-चमक ले बाचे बर लोहा के खीला के उपयोग हमर पौनी मन के वैज्ञानिक सोच के कहानी घलव बताथे।

     बड़े (किसान) ल मान अउ छोटे (पौनी) ल दुलार देय के ये तिहार ह मानवता अउ समरसता ले एकता के मजबूत डोरी म बंधे रहे के संदेश देथे।

कमती म गुजारा करे के आदत के सेती पहिली तीज तिहार के छोड़ घर मा कभू तेल-तेलई नइ चूरे। बीज ले तेल निकालना कोई सरल काम नइ रहिस ।किसान के रोज के जिनगी म तेल के कोई जगा नइ रहय,डबका साग ह उनकर भोजन के हिस्सा रहय। येकरे सेती तीज-तिहार म तेलहा रोटी खाॅंय अउ ओला पचाय बर भाठा कोति खेले-कूदे बर घलव जाॅंय।

कतको जगा म रोटी-पीठा खाय के बाद पान बीड़ा कस मुहुं ल लाल करे बर लइका मन कोदो पान,दतरेंगी जड़ अउ सेम्हर कांटा ल खाथें अउ खुशी मनाथे।

      ये परब म पौनी मन अपन ठाकुर ( किसान) मन के घर जोहार-भेंट करे बर जाथें। बलदा म किसान ह खुशी मनावत धान देके बिदा करथे। ओ पइॅंत बोवाई म कोठी के बीजहा धान के छबना च ह फूटे रहय तेकर सेती किसान ह उही बीजहा धान ल पौनी मन ल देंवय ,तेकर सेती ये प्रथा ल बीजकुटनी के नाम ले जाने जाथे।

गांव के चारों मुड़ा म चिखला माटी के कारण एक जगा ले दूसर जगा जाय म बड़ तकलीफ होय। हमर पुरखा-सियान मन ये समस्या ल दूर करे बर गेड़ी के खोज करिन। हरेली के दिन ले पोरा तिहार तक ये गेंड़ी ह आवागमन के काम आय अउ नारबोद के दिन बैगा के अगुवाई म विसर्जित कर दिए जाय। आजकल इही गेंड़ी ह खेल के रूप म जाने जाथे।

बुजुर्ग -सियान मन चौपाल म सकलाके आल्हा-उदल अउ पंडवानी जइसन किस्सा-कंथली सुनथें अउ तिहार के आनंद मनाथें।

       गांव-गांव म स्कूल, बिजली, सड़क,अस्पताल होय ले टोना-टोटका (बाहरी हवा) उपर अंखमुंदा विश्वास करइया मन के संख्या म कमी आय हे।जे मनखे समाज बर बड़ सुग्घर बात आय। फेर येकर साथ ट्रेक्टर, रीपर, थ्रेसर , हार्वेस्टर के आय ले नांगर अउ बैला-भैसा के उपयोग न के बराबर होवत हे। किसान डहर ले लोहार मन ल काम नइ मिलथे।जे  कृषि संस्कृति बर बने बात नोहे।आज आधुनिकीकरण के सेती बिखरत तीज-तिहार के महत्तम ल समोखे के जरवत हवय।


    जिनगी म मनखे के हाय-हफर करत कमई-खवई के बीच म सुख अउ खुशी खोजे के संघरा उदीमे ह तो लोक परब आय।

अउ नेक सोच (सकारात्मक उर्जा)  कोति ले गलत सोच (नकारात्मक ऊर्जा) के हर तिरपट चाल ल हर (खतम) लेना ही हरेली आय।

कुलमिलाके हम इही कहि सकथन खेत-खार, मेड़-पार, भाठा-परिया, जंगल-पहाड़, बारी-बखरी के संग चारो मुड़ा के हरियर-हरियर दिखई अउ ओकर सुघरई ह हरेली आय।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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