Friday 8 July 2022

चौमासा के चार रंग**


 

**चौमासा के चार रंग**

  -------------------------------


     "चार महिना के चौमासा। चौमासा कहे ले- चार महिना। चार महिना तो ठंडी अऊ गर्मी के घलाव होथे; फेर, चौमासा, ये बरसात के समय ल ही कहे जाथे।   अषाढ़ ले लेके सावन-भादों- क्वाँर! ये चार महिना हर सबो मइनखे बर बिकट होथे। 

    बरसा हर जिनगी के अधार ये, पानी बिना खेत-खार सुन्ना, काम-धंधा ठप हे! नदिया-नरवा, ताल-तलइया, तरिया-पोखरी, सब सुखा जाथे। चार महिना पानी नइ गिरही त खेती-खार नइ होवय, अकाल पर जाथे। चारा बिना जानवर मन मर जाथें। जीव-जंतु बेहाल हो जाथें। देश - दुनिया के साधन संपन्नता हर ये चार महिना के अधार म रइथे। फेर, चार महिना के चार रंग। अषाढ़ के बरसा हर आन होथे, त सावन-भादों के बरसा हर आन रुप म होथे, क्वांर के महीना के बरसा के आन महत्व होथे। दिगर जगह म दिगर होथे, त दिगर जगह म दिगर। 

     साधु-संत -महात्‍मा मन बर चौमासा के अलग महत्व हे त घर गृहस्थी वाला मन बर अलग महत्व हे। किसान आदमी खेती-किसानी म मगन हो जाथें त काम-धंधा करइया मन के कामधंधा हर निहल हो जाथे। रोजी-मजदूरी वाला मन के तो जान दे काम धंधा बिना घर म फांका पर जाथे। जेकर घर म भरे-बोजाय ते तो झक्कर के मजा  उड़ावत तर माल खाथे, जेकर नइ हे, गरीब-गुरा हे तेकर चूल्हा म हांड़ी नइ चढ़य। कइसनो करके चउर-दार कर दारही त लकड़ी-छेना मार दारथे। आगी के सुलगत ले लईका मन भूख म  अलथी-कलथी देवत सूत भूलाथें।  आगी सुलगइया सुवासिन के मूड़कान पीरा जाथे। नानकन घर-दूरा; बइठे के ठउर नहीं, तभो ले घर भीतरी म लकरी-छेना ल घुसार दारे रथें। साँप-बिच्छी आ जाही तेहु ल नइ डरांय, काबर कि पेट भरना जरुरी ये। सावन के बरसा हर धरती के प्यास ल बुझा दिही फेर पेट के आग ल बुझाय के सामर्थ्य  नइ रखे। पेट बर तो दाना चाहिये। 

     गरीब आदमी ल अपन नोनी-बाबू के पेट के चिंता होथे, अपन घर-दूरा टूटे के चिंता होथे, अपन खपरा छानही चुहे के चिंता होथे। अपन टिन-टपरा ल बचाय के उपाय सोंचथे। बड़े आदमी मन  अपन बड़े-बड़े घर के बालकनी म बइठे बारिस के मजा लेवत किसिम-किसिम के पेंड़-पौधा लगाय के बारे म सोंचथें। गरीब अादमी अपन डेहरी म बइठ के काटथें त बड़े आदमी गाड़ी म बइठ के लॉग ड्राइव करे बर निकलथें। सिनेमा जाथें, चौपाटी जाथें, रंग-रंग के मजा उड़ाथें। नौकरी वाला मन के अलग ढंग। काहीं कछु के चिंता नइ रहय, येमन के एके ढंग रइथे येमन के मन हर ढेरियावत रइथे। कभू येमन सरोत्तर मन ले अपन काम म नइ जावंय, फेर का करबे नौकरी ये बाबू त करेच ल परही, येही सोंच के मनटुटहा चल देथें। बस ये ही हाल हे। गाँव म चिखल-काँदो मार देथे त शहर म घलाव जगह-जगह पानी भर जाथे, नाली-नाला के कचर-पचर, कती के पानी कती। गाँव म खेती-किसानी, निंदाई-कोड़ाई, बियासी, रोपाई के काम हर माते रथे त शहर म घलाव जइसे-तइसे काम-धंधा चलत रथे अउ घर-गृहस्थी के गाड़ी हर चलत रथे। सबले मुश्किल निम्न मध्यम वर्ग वाला मन के होथे जउन मन छोट-मोट काम-बूता कर नइ सकंय नहीं कोनो ढंग के काम-बूता रहय। 

    अब मुश्किल तो मुश्किल ये फेर तभो चार गर्मी ले बिट्टाय मइनखे हर अषाढ़ के पानी ल देख के जुड़ा जाथे। सावन-भादो कतको तकलीफ के होथे तभो ले आदमी गरज-बरस के बरसे बरखा के आनंद लेवत रइथे। भले कीचड़-कांदो कतको रहय फेर जम्मो कोती हरियर-हरियर देख के सब के मन हर आनंद होवत रथे। चउमास म जूड़-सर्दी ले लेके  किसम-किसम के बीमारी हर आथे जेमा आदमी हर परेशान हो जाथे। दूसर तरफ सब तीज-तिहार हर। छत्तीसगढ़ के बाते जान दे; हरेली ले शुरु त फेर हरेली, तीजा-पोरा,

खमरछठ,जन्माष्टमी, भोजली, गणेश, कतको अक तिहार मनाथें। चार महिना चहल-पहल बने रथे। सावन भर येती के मइनखे ओती जावत हे, ओती के मइनखे येती आवत हें। इहाँ के पानी उहाँ, उहाँ के पानी उहाँ ले के शंकर भगवान म चढ़ावत रथें फेर शंकर भगवान के पिंडी के पानी घर ले के जावत रथें। कोनो पहाड़-जंगल के सैर करे बर जावत हें त कोनो झरना-नदिया के पानी म नैन सुख पावत हें। साधु-संत मन कोनो एक पाँव म ठाढ़े तपस्या करत हें त कोनो बइठे कथा-भागवत करत हें। कोनो सुक्खा बितावत हें, त कोनो फल-फूल खा के। कोनो मन हलवा पूड़ी घलव खावत हें। जेकर-जेकर जइसन-जइसन मन हे; ओहर वइसन-वइसन चौमासा के चार महिना के समय ल बितावत हे।

     फेर दुःख तकलीफ चाहे कतको परे फेर; हर मइनखे चाहथे कि, पानी हर झमाझम के गिरे। बदरा जतके बरसथे, धान-पान हर ओतके पोट्ठ होथे। बादर के बरसे ले मन हर झूमर जाथे, आदमी गद् गद्  मन ले धान-पान तिंवरा- ओन्हारी के आस जगा लेथे अउ नाना प्रकार के सपना संजोय लगथे। येकर असर हर इहाँ के पूस पून्नी म मनाय जाने वाला "छेरछेरा" म दिखथे, जब किसान मन मगन होके नाचथें-गाथें अउ दूनों हाथ ले उलच-उलच के धन-धान लुटाथें।

    चौमासा हर मौज-मस्ती के तो महिना आय फेर जीवन ल दूभर घलव बना देथे, फेर तभो ले मइनखे येकर रस्ता देखथे तभे तो चौमासा के पहिली येकर तियारी कर लेथे। घर-दूरा ल साज-सँवार दारे रहिथें त खान-पान के घलव बेवस्था ल कर दारे रहिथें। आखिर चौमासा ले ही तो साल भर के आसा टिके रहिथे। 

     <<<<===>>>>>

         

   **अंजली शर्मा **

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


74709-89029

88895-29161.

anjalisharma160272@gmail.com

No comments:

Post a Comment