Thursday 21 July 2022

छत्तीसगढ़ी कहानी -*घरघुंदिया*


 

छत्तीसगढ़ी कहानी -*घरघुंदिया*

*डॉ. तेजराम दिल्लीवार*



 साठ-सत्तर बच्छर पहिली के गोठ

 आय। तब गंगरेल जलाशय नवा-नवा बने राहय अउ ओखर रक्सहूं मुड़ा म कांड़-कोरई के जंगल बिक्कट लहलहावत राहय। एखर मतलब, अो बखत जंगल के उजाड़ नइ होय रिहिसे।

एक दिन, एक झिन सियनहा ह कोन जनी काखर खोज म   जंगल डाहर जावत रथे । बिहनिया ले रेंगत - रेंगत संझा हो जथे  फेर ओला कोनो नइ मिले। न मनखे न जंगली जानवर ।थके मांदे सियनहा  के बंद मुहूं ह घलो थक हार के ओ हो कहि डरथे -''अब तो दुख के गगरी ल धरके चलिस सुनसान जंगल म भूले-भटके जीव ह !’‘ संझा के समय, पांव म थकान के बेड़ी अउ आँखी म बुढ़ापा के धुमलाहापन। बिचारा थके हारे, लांघन भूखन जंगले - जंगल आगू डाहर रेंगे बर धरथे  |

''ए बटोही! आघू डाहर झन जा ! ओ तनी बहुत बड़े खाई हे।’‘

''ब-टो-ही!’‘  सियान आदमी अपन नवा नाव ल सुन के चौकथे। बाट रेंगइया बटोही नोहे त अउ का ए। एक युग बीत गे मोला बाट रेंगत। बटोही नाव ठीक हे फेर ... फेर ए नाव रखइया कोन ए? कहां ले आइस ए आवाज? सियान आदमी चारो मुड़ा घूम के देखथे त डेरी हाथ ले थोकिन दूरिहा म एक ठन बर पेड़ के खाल्हे म  नानकुन घरघुंदिया नजर आथे। हां! घरघुंदिया तो आय। चारो कोती माड़ी अतना ऊंच माटी के भाड़ी, चार ठन थुनही अउ ऊपर डारा-पतई के छाजन अउ घरघुंदिया के आघू म कोनो जानवर ना कोनो मनखे , जाने कोन ए...? सियान मनखे ह तीर म जाके देखथे, त सादा लुगरा पहिरे एक झिन सियनहीन ह धैर्य अउ तप के मूर्ति बने बइठे दिखिस। सियान मनखे ह ओखर नाव तापसी राखथे। पूछथे-''कस तापसी! तीर तखार म कोनो गांव नइहे का?’‘

तापसी कथे-''तीर तखार के गांव मन तो गंगरेल बांध म ऊबुक चूबुक होगे बटोही। एक-दु ठन गांव बांध के ओ पार मिल जही फेर देख, सांझ होगे हे। चिरई-चिरगुन अपन-अपन खोंधरा म आ गे हे। आज रात मोर घरघुंदिया म अराम कर ,ए मोर बिनती आय। बिहनिया होही ताहन अपन रद्दा बाट म चल देबे।’‘

आह कतेक मधुर आवाज हे। तन बूढ़ागे हे, फेर बोली बचन ह अभी घलो मंदरस कस मीठ हे । सियान मनखे ह ओखर बिनती ला मना नइ कर सकिस।

तापसी ह गोबर म दरपाए अंगना म पानी लानथे । पीढ़ा मढ़ाथे। बटोही के पांव धोके पीढ़ा म बइठारथे अउ जेवन म रूखा-सूखा जइसन बनाय हे, ओला खवाथे।

अब, सुते के बेरा होगे । घरघुंदिया के एक कोती बटोही सुतथे अउ दुसर कोती तापसी। सुते के कोशिश दुनो करथे, फेर नींद दुनो म कोनो ल नइ आय। दुनो झिन गुनत राहय त नींद कहां ले आय। तापसी करवट बदल के पूछथे -

''कइसे, सुत गेस बटोही?’‘

''अहं! का तहूं जागत हस तापसी?’‘

''नींद नइ आत हे, बटोही! एकाद ठन कहानी तो सुना’‘

''कहानी...?’‘

''हव, सुना न एकद ठन बने असन!’‘

''अइसे, त सुन!’‘

ताहन बटोही कहानी सुनाथे-''एक झिन भूले-भटके नवजवान राहय। उमर ओखर करीब अठारह-बीस बच्छर अउ नाव चंदन। ओह गीत बहुत बढ़िया गावय । भगवान ओला बिक्कट सुग्घर गला दे राहय। गंधर्व के कंठ अउ ओखर कंठ म कोनो अंतर नइ राहय। जे मेर खड़े होके, जइसे गीत गा दे, लइका सियान सब आके ओखर गर म बंधा जाय।’‘ कइसे सुनत हस तापसी?

तापसी-''हव, सुनत हवं बटोही! नाव बहुत खूबसूरत हे-चं-द-न! हां, ताहन आगू डाहर का होइस?’‘

बटोही कहानी ल आगू बढ़ाथे-हां, त! भूले भटके चंदन एक दिन शहर म पहुंचगे। शहर के एक छोर म एक ठन बड़े जन धरमशाला राहय | जेमे कोनो दुरिहा शहर के एक रईस घराना के बारात ह लहुटती खानी आ के रूके राहय, गाजा बाजा के संग।

बटोही कहानी आगे बढ़ाथे-हां, त! धरमशाला के बरामदा म मोहरी बजइया ह बराती मन के बीच म बइठ के कोनो स्वर साधत राहय अउ ओखर अगल-बगल  म तबला, मंजीरा, करतार वाले मन बइठे राहय । चंदन ले देख-सुन के रहे नइगे। दौड़ के ओ बराती मन के बीच पहुंचिस अउ मोहरी के आगू म बइठगे। मोहरी बजइया ह पारखी जीव राहय। मोहरी ला एक डाहर हटाके कथे-''बाबू! तोर हृदय म सरस्वती के वास हे। जरूर, गीत के दुनिया म तोर पहुंच हे। अरे त्यागी मन! सुना तो गीत।’‘

सुनके चंदन विभोर होगे। गवइया ला अउ का चाही-''बड़ाई के भंग अउ तबला-मंजीरा के संग।’‘ पहली, चंदन गला साधिस अउ एक बढ़िया लय म गाना शुरू करीस -

''मन-मंदिर म दीया जला के, गा-गा के तोर करँव सुमिरन।’‘

आह! एक पांत के बाद अंतराल अउ अंतराल के बाद फेर एक पद। गीत के बोल अइसे रिहिस-''जब मय गा-गा के तोला बलायेंव तब जइसे खेत म धान के बाली उमिहा उठथे। जिनगी मोर खेत ए अउ तोर एकक ठन गोठ-बात  के सुरता  ह एकक ठन धान के बाली आय। सुन मोर जिनगी के भुइयाँ ला स्वार्थ अउ लोभ के रेगिस्तान झन बना देबे। मया पिरित के वर्षा कर करिया करिया घपटे भादो के बादर कस । मंदिर म दीया जला के गा-गा के तोर करँव सुमिरन ।’‘

चंदन के गीत पवन-झकोरा बन के बराती मन के हृदय के पाना पतई ल हला देथे। कंठ अइसे गुरतुर जानो मानो चांदी के घंटी बजत हे। वाह-वाह! एक गीत अऊ गा भइया गा। सबके इच्छा चंदन ले एक अऊ गीत सुने के इच्छा होइस |  चंदन घलो गाय बर शुरू करत रिहिस कि ठउँका अोतके बेर एक झिन लोकड़हिन ह आके कथे-''ए नवजवान, तोला दुल्हन ह बुलावत हे।’‘

चंदन अवाक होगे। ''मोला काबर बलाही दुल्हन हा।’‘ मने मन बिचार के चिंता फिकर करे बर करे बर धर लिस |कोन जनी दुल्हन ह काबर बलावत होही |

दुल्हा बराती मन के बीच म बइठ के गीत के आनंद लेत राहय। वहू ल चंदन के गीत ह नीक लागत रिहिसे। किहिस-''जा दुल्हन ला घलो एक ठन  बढ़िया गीत सुना दे। सुनके मन ओखर घबरागे , दुल्हा किहिस जा भाई! ईनाम मिलही, जा!’‘

दुल्हन धरमशाला के एक साफ सुथरा कुरिया म राहय। ओखर संग एक झिन लोकड़हिन घलो रिहिस फेर कोन जनि चंदन ला बला के ओ कहां खिसकगे। चंदन दुल्हन के कुरिया के नजदीक पहुंचिस अउ झांक के एक नजर ओला देखिस घलो! चेहरा ह तो घूंघट म तोपाय राहय, कुछु समझ म नइ आवत रिहिस  फेर  ओखर सुंदर सलोना शरीर पींयर रंग के कोसाही लुगरा के बीच देवारी के दीया कस फबे राहय । पांव म माहुर अउ ऐड़ी म पैजन। चूड़ी के झनक अउ नारी तन के महक! आह! चंदन दरवाजा के आड़ म खड़े होके ''राम राम’‘ करिस। दुल्हन घलो जवाब म ''राम राम’‘ किहिस। कुछ देर चुप्पी के बाद दुल्हन कथे-''नवजवान! तोर गीत सुनके लागिस कि, तेंह वियोगी अस, तेंह काखरो सुरता म भटकत हस। सिरसोन बता ओ कोन ए, कइसे तोर जिनगी म ओह अइस?’‘

चंदन अजीब उलझन म परगे। ओह, ए सवाल ले समझगे कि दुल्हन पारखी जीव आय। फेर ओह अपन जिनगी के कथा ल बताए कइसे। कुछु तो नइ हे ओखर जिनगी म, सिरिफ विपत्ति के सिवाय। हो सकथे सही बात ल सुन के थू-थू करे।

अतेक केहे के बाद बटोही तापसी ले पूछथे-''कइसे, सुनत हस तापसी ! कहानी कइसे लागत हे ?’‘

तापसी का बताय। आँखी ओखर 

डबडबा गे राहय। कहानी के एक-एक शब्द अइसे लागत रिहिसे , जइसे कोनो फिल्म देखावत हे। तापसी ह आँसू पोछत कथे-''हां, त आगू का होइस? दुल्हन के पूछे ले चंदन का किहिस?’‘

बटोही कहानी के कड़ी ल आगू बढ़ाथे-''दुल्हन के पूछे ले चंदन किहिस-कि देवी, जेखर खोज म मय भटकत हवं, ओखर नाव कंचन हे। वहू आज तोर जइसे युवती होगे होही। गांव के फुरुर फुरूर पुरवाही म पले बढ़े केशर के फूल जइसे सुंदर कंचन ह कोन दिशा म निवास करत होही। आज ले दस साल पहिली हम दुनो के निवास गंगरेल गाँव म रिहिस। अब तो गंगरेल ह जलाशय बन गे हे। जलाशय, मने चारो कोती जल-ए-जल, जेमे जमीन के एक कण तक नइहे अउ जे पहिली एखर बीच के जमीन म निवास करत रिहिन, ओ मन जाने कहां फेंकागे। उखर दिशा तक के पता नइहे। दस साल पहिली गंगरेल 

 गांव म हमर अउ कंचन के घर ह एके तीर म रिहिस अउ हम्मन दुनो संगे-संग खेलेन कुदेन। हमर दुनो के घरू परिस्थिति म धरती अउ आसमान के अंतर रिहिस। मय एक किसान के बेटा -जमीन जायदाद के नाव म सिरिफ दु एकड़ ला तुलसी के बिरवा कस साज-संवार के राखे रिहिस। एखर अवेजी कंचन रईस बाप के इकलौती बेटी-सुख के सागर म पले बड़े , ओखर बाप पचास एकड़ जमीन के मालिक...गाड़ी घोड़ा, नौकर-चाकर सब ले संपन्न फेर अतेक अंतर के बाद घलो हमर दुनो के आत्मा अइसे एक होगे रिहिसे जइसे आँखी तो दू हे फेर नजर एक।’‘

''गांव के निकलती म नरवा तीर एक ठन बर पेड़ रिहिस। दुनिया के नजर म हमर घर भले अलग-अलग रिहिस होही फेर बर पेड़ के छइहां म हमर दुनो झिन के खेले कुदे बर एक ठन घरघुंदिया होगे रिहिस। बचपन हमर बर पेड़ के छइहां म बीतिस। मय एक गरीब किसान के लइका, घर के हर काम म महतारी के हाथ बटाए बर लगे। दाना-पानी, छेना लकड़ी, डोरी-डंगना सब लागथे किसानी म। ले दे के फुर्सत मिल पाय मोला। कभू देरी हो जाय ते कंचन रिसा जावय - ''जा तोर संग नइ खेलन’‘ अउ मुंहू ल फूलो के एकंगू कर देवय फेर थोरिक देर बाद खुद ओह तीर म आके कहाय-''चंदन ए चंदन! रिसा गे हस का? चल छुवउल खेलबो कि लुकउल खेलबो।’‘ एदे! अइसे रिहिस कंचन। तन ले सुंदर तो रहिबे करे रिहिस, फेर ओखर सरल, भोला भाला मन ओला अऊ सुंदर बनाए रिहिस। देवी ! कंचन के इही सुंदरता मोर गीत के जड़ आय, मोर गला के मिठास ए।’‘

''एक दिन बर पेड़ के छइहां म ओह एक ठन घरघुंदिया बनइस। सुग्घर-सुग्घर कुरिया, माटी के बर्तन भाड़ा , किसानी के साज-सिंगार, सब सजे-सजाए। जब मँय घर के काम-काज ले फुर्सत होके पहुंचेव त ओ मोर हाथ पकड़ के कथे-''चंदन! ए तोर हमर घर ए। ए तोर गाय बइला के कोठा ए। ए कुरिया म तोर खेती-बारी के सामान हे अउ ए मोर रंधनी खोली ए। देख! जब तँय खेत म काम बूता करत रबे तब तोर बर मँय पेज लेगहूं अउ तँय बबूल पेड़ के खाल्हे बइठ के खाबे। है, न।’‘

''कंचन के बात सुनके मोला हंसी आगे-पगली कहां ले तँय किसान नारी के बुध सीखगे। जिनगी ह सबर दिन खेले के नोहे। उझार दे ए माटी के घरघुंदिया ल। तँय रईस बाप के बेटी एक दिन बड़े घर तोर बिहाव हो जही । कोनो लाखो करोड़ो पूंजीपति ह तोर गोसइया होही। तोर करा बंगला अउ मोटर गाड़ी होही। उझार दे घरघुंदिया ल कंचन, तोला ए माटी के खेल नइ फबे।’‘

''मोर ए बात सुनके कंचन चोट खाए कस चिरई जइसे तड़प उठिस। आँखी म ओखर आंसू के झड़ी लगगे। मँय नइ जानत रेहेंव कि बात-बात म ओला अतेक दुख पहुंचही। ओ तड़त के कथे-''चंदन! का तहूं मोला रईस बाप के बेटी समझथस? देख चंदन, मोर शरीर जरूर रईस हे, फेर मोर मन गरीब हे। मोला मोटर-बंगला नइ चाही चंदन, मोला ए घरघुंदिया चाही। मोला लाखो के मालगुजार नइ चाही, मोला चाही सिरिफ तोर बाहुबल, तोर भुजा म हल चलाए के ताकत हे न! देख, तँय मोला स्वार्थ अउ लोभ के घेरा म बंधाय झन समझ। महूं तोर संग भुइयाँ म उगे लहलहावत फसल के संग हंसना मुस्काना चाहत हवं, अउ आजादी के जिनगी जीना चाहथँव।’‘

''देवी! कंचन म अइसन सुग्घर विचार हे। ओ बखत ओखर उमर नौ-दस साल ले जादा नइ रिहिस होही, फेर कइसे आईस होही ओखर मति म अइसन विचार? जरूर पहिली जनम के संस्कार ए। सिरतोन आय , कंचन भले रईस के घर जन्मे हे, फेर ओखर आत्मा गरीब हे।’‘

''आज दस साल होगे हम दुनो ला बिछुड़े। ए दस साल म मोर सब कुछ नाश होगे। दु एकड़ के मुआवजा होथे कतेक-गांव, घर के तलाश म खतम होगे। गरीबी के भार अउ महंगाई के मार। महतारी ला मोर भविष्य के चिंता होइस, फेर चिंता गरीबी के दवा तो नोहे। एक दिन महतारी घलो चिंता म गल-गल के खतम होगे। देवी अब मोर करा कुछू नइ रहि गे हे। सिरिफ कंचन के भाखा -ओखर मीठा बोली मोर जिनगी के आधार ए। मोला कंचन ले कुछ नइ चाही-चाही मोला ओखर ए बोल-जेला गीत के लहजा म गा-गा के घूमत हवं। जब बोल ह सुरता नइ आय बर धरे , तब फेर ओला गा के समेट लेथंव। मोर बर तो कंचन के बोली- बचन हा कंचन के सुरता ए।’‘

''कइसे तापसी! कहानी कइसे लागिस?’‘

बटोही कहानी के अंत करके तापसी ले पूछथे।

तापसी के मन तो कहानी म खोय रथे अउ ओ अब तक ए पाय के चुप रथे कि बटोही अउ आगे कुछ कही। पर जब बटोही कहानी के अंत कर देथे, तब ओ हड़बड़ा के उठथे अउ पूछथे-''चंदन के का होइस बटोही? धरमशाला के बाद कहां गिस?’‘

''काबर तापसी?’‘

''काबर के ओखर कंचन मँय अवं, बटोही!’‘

''का?-बटोही घलो हड़बड़ा के उठ के बइठथे-का ते कंचन अस तापसी।’‘

हां, बटोही! मंय ही ओ अभागिन कंचन अवं। गंगरेल गांव के उजड़े ले मोर मां-बाप एक अइसे नगर म जा बसिन, जे इहां ले सात समुंदर पार जइसे दुरिहा हे। सुन बटोही, चंदन के सुरता महूं ला रिहिस। गंगरेल गांव के फुरुर फुरुर पुरवाही , खेत-खलिहान के हरियाली, चंदन के गोरा गठीला तन अउ ओखर मगन मन, सब कुछ सुरता रिहिस पर मंय दूर देश के निवासी, ओला अपन आत्मा के छोड़ अउ का दे सकत रेहेंव? फेर चंदन मोला अपन मन मंदिर म बिठा चुके हे, ए बात मोला तब मालूम होईस जब ओ धरमशाला म बराती मन ला सुनात बेर अपन गीत म मोर गोठ-बात के राग गाइस। धरमशाला के ओ दुल्हन अउ कोई नही बटोही, ओ दुल्हन मँय आंव। मोर विवाह एक शहर के एक नामी व्यापारी के संग हो चुके हे। धरमशाला म चंदन के जिनगी के कथा ल मँय ए पाए के सुनना चाहेंव के ओ-मोला कहां तक समझ सके हे।

''जे आदमी के संग मोर बिहाव होय रिहिस, ओकर बर सिरिफ मँय शरीर रहेंव, ओह मोर आत्मा ला नइ समझ सकिस। व्यापार तो करे ओ दिन-रात बस हाय पइसा, हाय पइसा। सीधा सादा गरीब मन के खून चूसना अउ हराम के कमाई म गुलछर्रा उड़ाना, एह ओखर काम रहाय। फेर  ज्यादा दिन ओ जी नइ सकिस। दुनिया भर के व्यसन म शरीर कब तक ले टिके। ओला टी.वी. होगे। कम उम्र म मृत्यु के शिकार होगे। जब-जब मँय ओखर कुकृत्य ला देखव-सुनव, मोला चंदन के सुरता ज्यादा आय।’‘

''बटोही, मोर शरीर म सिरिफ मोर मां-बाप के हक रिहिस अउ उंखर आशा मान के मँय बिहाव करेंव फेर मोर आत्मा सिरिफ चंदन के रिहिस बटोही। बिहाव शरीर के होइस, आत्मा के तो नही। देख, गंगरेल के ए सियार म मोला आज चालीस-बियालीस बच्छर होगे हे। ए उही बर पेड़ के छइहां ए, जेखर नीचे चंदन अउ मोर बचपना बीते रिहिस। बर पेड़ के छइहां म घरघुंदिया बना के ओखर बाट देखत मोर आंखी ह पथरागे फेर ओ नइ आईस अउ अब का आही। तोर कहानी घलो आगू डाहर नइ बढ़ीस, कोन जाने ओ कहां हे।’‘

रात के दूसरा पहर रथे। घटाटोप अंधियार चारो कोती बगरे रथे फेर  कंचन ला पूरा जनम के दृश्य दिखाई देथे, गांव-घर, मां-बाप, चंदन सब कुछ। तन ले तो बूढ़ा हो चुके हे, पर मन अंधियारी रात म घलो चिरई-चिरगुन जइसे आकाश म उड़थे। ओ अपन थके शरीर ल उठाके बटोही ले कथे-''अच्छा बटोही! मँय चंदन के खोज म निकलथंव, तँय ह बिहनिया होही ताहन अपन रद्दा बाट म चल देबे ।’‘

बटोही ओखर हाथ पकड़ के कथे-''कंचन अब अऊ तोला कहूं जाए बर नइ लागे। मँय तोर घरघुंदिया म आगे हवं। मही तोर चंदन अंव कंचन मही तोर चंदन अंव।’‘

डॉ. तेजराम दिल्लीवार



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