Saturday 9 July 2022

अपन रूचे भोजन अउ पर रुचे सिंगार* *- दुर्गा प्रसाद पारकर*


*अपन रूचे भोजन अउ पर रुचे सिंगार*

*- दुर्गा प्रसाद पारकर*

                        

कोनो भी जात के चिन्हारी उंकर रोजगार कराथे। जइसे तेली मन के तेल पेरई, कोष्टा मन के कपड़ा बुनई, धोबी मन के कपड़ा धोवई त केवट मन के कोतरी मरई अउ डोंगा चलई। देवार मन के सुरा पोसई, कतको मन के कुकरा पोसई। राऊत मन के गरुआ चरई, । कुम्हार मन के माटी के बरतन बनई, लोहार मन के लोहा पजई, सोनार मन के जेवर बनई, तमेर मन के बरतन बनई एमा के कतको मन के रोजगार ल सरकार नंगा ले हे या फेर बड़े-बड़े मोटहा रुपिया वाले मन। हां, जऊन काम ल रुपिया वाले मन नई कर सकय उहीच्च ल छोड़े हे। तहान बाचेच का हे?

तेली मन तेल निकाले बर बिसर डरे हे। अब तो घानी पूजा करे बर घलो देखे बर नइ मिलय। कहां गै तिली कहां गै सरसो अउ कहां गै मुंगफल्ली। जेकर तेल के तेल अउ उपराहा म खरी पावन। अब तो बस टेलीविजन ले विज्ञापन देखेन सौ प्रतिशत शुद्धता के अउ चलेन दुकान पइसा धर के। कोष्टा मन के मांगा ले दे के कोनो करा देखे बर मिलथे वोहू ह अब प्रदर्शनी भर के पुरतीन बांच गे हे। धोबी मन के हाल तो अउ बेहाल हे। पहिली तो हर गांव म एक ठन धोबी घठौंदा राहे। केवट मन के सिरीफ फांदा रहिगे हे काबर अब बड़े-बड़े तरिया नरवा ह तो ठेकादार मन के होगे हे। इन मन बनी भूती म मछरी ल मार के अपन मन ल मढ़वत हे।

देवार मन नाच गा के अउ सुरा पोस के अपन जिनगी ल चलावय त आजकाल उंकरो डेरा म सुरा ह दिखे बर नइ धरय कहूं इन ल सुरा ले बर सरकार ह रिन दे उहु देथे त कुटकी डिगरी बर तो घलो इंकर कर कुछ नई राहे, कुकरी कुकरा ल तो अब बारोह जात के मन पोंसे ल धर ले हे। कुकरी फारम बन गे हे। उद्योग कस चलत हे। त हमन काबर जिवका खातिर इन ल काबर नई अपना सकन? अभी भी हम जागे नइ हन।

हमर आंखी कब उघरही ते काबर दुरुग जिला के एक ठन गांव म बड़े जात के बेरोजगार लइका ह सुरा पोसई ल बेवसाय के रूप म अनपइस त ओकर समाज वाले मन ओला महासभा म जात बाहिर कर दे रिहिस। ए कहिके कि  सुरा पोसई ह हमर जात के बेवसाय नोेह कहिके । चलो मान लेथन कि उंकर समाज के धंधा नो हे त भई अउ कोनो रद्दा हे लइका मन के खातिर। जब बड़े समाज वाले मन बूट हाउस खोल सकथे त का डिगर मन जूता नइ बेंच सकय।  आज आर्थिक मंदी के दउर म हमला जीवन यापन बर रोजगार करे मा एतराज नइ हो चाही फेर ओ हा रुचे उपर बात हे। कतको केवट मन मछरी मारथे फेर मछरी नइ खावय  मोर संगवारी घर सब झिन मछरी खाथे फेर ओह नइ खावय । ए ह तो सब रुचे के बात आय । तभे तो सियान मन कहिथे अपन रुचे भोजन अउ पर रुचे सिंगार | अब पहिनावा ल ले ले। कतको मन जमे ते झन जमे कइसनो पहिर ओढ़ डरथे। ओइसे तो हम छत्तीगढ़िया मन ला पन्छा बड़ी अउ पगड़ी पहिरना चाही।

भंदई पहिरना चाही फेर सहर म दुसरा मन ल नइ रुचे | देखव तो रे भई अभी तक ले नइ सुधरे हे बिया मन। मने कि जघा के मुताबिक, पोसाक जघा के मुताबिक भासा बोलई ह हमला आगु बढ़ा सकथे।

सहर म माइलोगन मन ल रुपिया, सुता टोड़ा पहिरे बहुते कम पाबे इहां तो सोनहा चैन सोनहा नइ मिलही बेलटेक के नही ते सोना पांलिस वाले गाहना ल पहिर के झमझम ले निकलथे। तभे तो गाहना के संग रूप म घलो निखार आ जथे लाडू गोंदा अस | कतनो मन ल तो मेचिंग कलर पिहरे ले नइ आवय जइसे कारी माइलोगन ह करिया बलाउज अउ लुगरा पहिरही त चिरई जाम नइ दिखही | ओला तो संतरा कलर, किरीम कलर, सादा कपड़ा ह जादा फभही। कतको मन ल मौसम के मेचिंग गजब भाथे। जइसे चउमास म बादर कलर। बसंत ऋतु म टेसू कलर ह फबथे |अइसे करव जउन अपनो ल रुच जय अउ दूसरो ल रुच जय। तिही पाय के सियान मन कथे अपन रूचे भोजन अउ पर रूचे सिंगार |

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