Saturday 9 July 2022

संझा के पानी बिहनिया के झगरा* *- दुर्गा प्रसाद पारकर*


*संझा के पानी बिहनिया के झगरा*

*- दुर्गा प्रसाद पारकर*


                        

तुलसी चंवरा बिना घर ह घर कस नइ लागे। काबर कि देवी-देवता के संगे संग तुलसी के पूजा बिना चोला ह भरे कस नइ लागे। सबो घर कस मोरो घर म  हे तुलसी के बिरवा। फेर ओहू माटी के  चँवरा ल बरसात के पानी ह ओला खलखल ले ओदार देथे । साल के साल देवारी माटी संग चंवरा ल घलो चिकनाए ल परथे। बच्छर पुट के पिचकाट ले बांचे खातिर सीमेंट के गारा उपर ईंटा रचवायेंव तुलसी चंवरा खातिर एक जुवरिया संझौती मिस्त्री के रेंदा ह तुलसी चंवरा ल पलस्तर का करत रिहिस बादर ह देखमरी मरगे। तभे तो पानी ह छनके बर धर लिस। गुरूमाला ह चिकनाए ल धरय त मसाला भेसक देत रिहिस। गिल्ला हो गेय रिहिस तइसे लागय। उपराहा म पानी के जीव ल बगियावत रिहिस। मने मन बिनती करंव कम से कम घंटा भर तो उबास दे महराज। झूरा जतिस ताहन दोंगरत राह। मनमाड़े सोसन भर फेर बादर जानय कहां आदर करे बर ओहा तो ओड़ा ल दे दे रिहिस मिहनत के पइसा ल पानी करे बर | पानी के सीटिर-सीटिर करई ल देख के मोर बक्का ह फूटू कस छतरागे-ए पानी ह एको कनी दम नइ धरही तइसे लागथे मिस्त्री। सुन के मिस्त्री कथे-संझा के पानी बिहनिया के झगरा ग नइ छोड़ही जल्दी तइसे महूं ल लागथे। गीर दे महराज गीर दे तोरे ले भरोसा हे।

सियान मन कथे-जे साल दू ठन जेठ परथे ओ साल दूकाल के सकल ल देखे बर परथे।कहूं कोनो फसल नइ होही त हमर कोठी तो उन्ना हो जही। जब भरे कोठी म बैरी मन के आंखी सइहारत हे त फेर उन्ना कोठी के का होही। अब कोठी भरे बर बने पानी के जरूरत हे। बने रझरीझ रझरीझ पानी दमोर दे महराज चाहे मोर सीमेंट के तुलसी चंवरा ओदर जय। डोली म बने पानी बकबकाही तभे तो बांवत, रोपा अउ बियासी ल कर पाबो। रोपा खातिर खेत ल मता पाबो। भले हमला पनकप्पड़, खुमरी अऊ मोरा फेर बिसाय बर पर जय फेर नांगर बइला के बोरत ले पानी दमोर। एसो तो कम से कम हमर मन के गोठ ल सुन ले अऊ धन धान ले भारत महतारी ल पूरा संसार भर के गउटनीन बना दे।

वर्षा रितु के सुवागत तो झीमीर झीमीर झड़ी ले होय हे। जेती देखबे तेती तता ओहो ह सुनावत हे। बनी वाले बनी म त ठेका वाले मन ठेका म कमावत हे। पानी कांजी के कमइया मन करा घड़ी कहां ले अउ मान ले काकरो करा घड़ी हे त बांधही कामे। अइसन समे म कतको मन बीच म नइ खा के चरबज्जी एकट्ठा छुट्टी पाथे। अब इन ल टेम के पता चलय कइसे के अभी चार बज गे हे। पटरी तीर वाले मन तो कोनो गाड़ी के अवई ल समे ले मिला ले रथे जइसे पसिन्जर ह चार बजे आही ताहन तो छुकछुक छुकछुक सुनते भार पाथ ल पहुंचाए बर घलो छोड़ देथे।

कतको गांव म लइका मन के पूरा छुट्टी के ठीन - ठीन , ठीन - ठीन घंटी ल चरबज्जी मान लेथे। कतको करा मिल मन के सीटी ले अंदाज मिल जाथे। ए बात ह सब बादर आये ले हरे। कोनो बियान कर दिस ताहन फेर कोनो इसारा के जरूरत नइ परय  अपने अपन आकब हो जथे। जइसे अपन छाव ह अपन पांव मिलत हे मने बारा बजे हे। लइकोरी मन के दुसरइया पियाए के बेरा होगे या बनी वाले बनिहार मन के बासी खाए के बेरा होगे।

आज जतके कीरा आवत हे ओतके दवई आथे उन ल काटे बर। सबले सजा के बात ए आय के कीरा मन कस महंगाई ह दिनो दिन बाढ़त जात हे। कीरा ह तो समे पूरे ले या दवई परे ले मर जथे फेर महंगाई ह एक घाव बाढ़गे तेहा उतरे के नाव नइ लेवय। भगवान भरोसा किसानी म त कतको तकलीफ। समे के मुताबिक पानी नइ गिरना। कतको घांव धान भता जथे। बांवत के बखत त कतको घांव बियासी ह लटलटा जथे अइसन म बन (घास फूस ) मनमाने बाढ़ जथे। अब काला बनिहार ल देबे त काला किसान पाबे।

अरे भई बनिहार तो एक घांव चैन के नींद सुत जथे फेर किसान ल कहां ले नींद आही काबर ओला सबो के चिंता रथे। चिंता ले उबरे बर हर सरकार ल चाही कि जघा जघा बांध, स्टाप डेम बांध के   किसान मन के चिंता ल दूर कर देवय | जउन दिन किसान मन के चिंता दूर हो जही ओ दिन कृषि प्रधान भारत देश विश्व के धनी देश हो जही। एकर खातिर भारत के हर सपूत ल जागरूक रेहे बर बरही 


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