Saturday 23 July 2022

बराती समीक्षा अउ साहित्यिक मूल्यांकन

 बराती समीक्षा अउ साहित्यिक मूल्यांकन 

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       बुधियार लिखइया , पढ़इया मन चिटिक धीर धरके मोर विचार ल पढ़े के कृपा करिहव भाई ! रिसाये , बौछाए के मौका आपमन ल मिलही त अपन विचार ल लिखहव । आजकाल छत्तीसगढ़ी साहित्य मं बहुत अकन किताब के समीक्षा लिखावत हे त समीक्षा गोष्ठी घलाय आयोजित होवत  रहिथे काबर के किताब लिखइया तो दिनोंदिन बाढ़त जावत हें एहर बड़ खुशी के बात आय । गुने लाइक बात एहर आय के जौन किताब के विमोचन होथे या जेन किताब के परिचर्चा होथे या जेन विद्वान साहित्यकार के जन्मशती या कोनों के व्यक्तित्व अउ कृतित्व उपर चर्चा करे जाथे ओकर सम्पूर्ण समीक्षा होए पाथे का ? कमी बेशी उपर चर्चा होथे का ? समकालीन साहित्य संग चर्चित किताब अउ लेखक के तुलनात्मक चर्चा करे जाथे का ? 

नहीं .. जी ...सिरिफ गुणगान होथे चलव इहां तक भी ठीक हे मरन हो जाथे जब समीक्षा के गुण धर्म डहर समीक्षक ध्यान नइ दे पांवय । फरिया के कहिन त कविता हे त लक्ष्मण मस्तूरिया या शकुंतला शर्मा के बाद उही सर्वश्रेष्ठ हे , गद्यकार हे त डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा या नन्दकिशोर तिवारी ले कम नइये अरे भाई !समीक्षा के शिखर या समकक्ष के बीच भी तो लिखइया हंवय न ? कोनो प्रतिमान गढ़े ले जादा जरूरी हे हंस असन नीर क्षीर विवेकी होना जेला  कहि सकत हन समीक्षक द्वारा दूध के दूध पानी के पानी विवेचना । जब तक लेखक या साहित्यकार के कृतित्व के सम्यक समालोचना नइ होही खेत के खर पतवार के निंदाई कइसे होही ? पहिली कृतिकार के गुण दोष के मूल्यांकन होवत रहिस , फुटकर रचना मन के जांच सम्पादक मन करत रहिन त जेन रचना पाठक तक पंहुचाय ओहर दग दग ले धोवाए मंजाए रहय । पाठक मन भी श्रेष्ठ साहित्य अउ साधारण साहित्य के अंतर ल समझे पांवय फेर आजकाल साहित्यकार मन अइसन समीक्षा ल नइ भावयं तभे तो आलोचना ल आरोपण समझे जावत हे एकर खिलाफ़ कोनो समीक्षक गुन दोष लिखही या परिचर्चा मं बोलही त जनम भर बर आपसी मनभेद हो जाथे , हमन मतभेद ल मनभेद बना लेथन । श्रेष्ठ साहित्य रचना के रस्ता के बड़का बाधा इही सोच हर आय । धीरे धीरे आज के दिन मं प्रगतिशील अउ जनवादी विचारधारा मन समीक्षा के उपनिवेश बनाए धर लिहिन त दूसर डहर आज के समीक्षा मं कुलीनतावाद अउ जनवाद के भरत मिलाप घलाय देखे बर मिले लग गए हे । 

      साहित्य घलाय हर बाजारवाद के चपेट मं आ गए हे दूसर मरन के गम्भीर साहित्य के पढ़इया दिनोंदिन कमतियावत जात हें । मैं अकवि जरुर आंव फेर निछक कविता हर साहित्य के भंडार भरे मं सक्षम कभू नइ हो सकय ...गद्य हर सामाजिक , राजनैतिक , साहित्यिक , तात्कालिक परिवेश , परिस्थिति के दर्पण होथे ।समीक्षा विधा हर गद्य के सबले जरुरी विधा आय जेकर से कालजयी साहित्य के निर्धारण होथे । बराती समीक्षा माने तो इही होइस न के तैं मोर कृति के गुणगान कर मैं तोर प्रशंसा के शंखनाद करिहंव । एतरह के बराती समीक्षा के चलते साहित्यिक , सांस्कृतिक मूल्य अउ मूल्यांकन प्रक्रिया दूनों बाधित होही न ? एकरे बर कहत हंव के आज बाजारवादी समीक्षा ले बांहचे के जरुरत हे । समीक्षा बर प्रस्तुत कृति के संगे संग दूसर कृति या कहिन साहित्य के गहन अध्ययन जरुरी हे ,एकरो ले बड़े बात के जे समीक्षक हर जतके जादा आने भाषा के साहित्य ल पढ़े , गुने रहिही ओकर समीक्षा हर प्रस्तुत कृति के ओतके गम्भीर समीक्षा करे सकही । 

    सबले बड़े अउ जरुरी बात के समीक्षा  हर वैचारिक मतभेद आय एला मनभेद कभू झन बने देइ तभे हमर साहित्यिक समीक्षा हर बराती समीक्षा होए ले बांचही । किताब विमोचन अउ किताब परिचर्चा दूनों के अलग अलग आयोजन हर समीक्षा विधा ल फेर प्रतिष्ठित करही काबर के किताब विमोचन हर तो किताब के जन्मदिन समारोह आय जेमा हांसी खुशी मनाथन । 

आजकाल साहित्य परिषद मन के कमी तो है नहीं ...त इन साहित्य परिषद मन के घलाय तो जिम्मेदारी आय के बीच बीच मं निछक समीक्षा गोष्ठी के आयोजन करे जावय ...। 

     सरला शर्मा

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