Saturday, 26 July 2025

लघु कथा- " उत्तराधिकारी " -मुरारी लाल साव

 लघु कथा-


 " उत्तराधिकारी "

     -मुरारी लाल साव

घऱ के आघू म भीड़ जमा होवत गिस l एक झन कहिथे -" अपन करम के फल ला भोगत रहिस l बाई रहिस तेनो भगागे बीमरहा के कतेक दिन ले सेवा करत रहिबो l ओकर बेटा बहू कमाये खाये ले निकले रहिस मुख ला नइ देखाइस l

न डउकी संग दीस न बेटा संग दीस l"

दूसर आदमी बात ला काटत कहिस - " बने होगे अकेला रहिके,अकेल्ला मरगे l

डउकी ओकर हलाकान करत रहिस l बेटा तौन नालायक निकलगे l मरिस त चैन से l"

तीसर मइनखे कहिथे - "

भागमानी रहिस ओकर कोनो न आघू रोवय्या न पाछू रोवय्या l रहितिस त रोना गाना होतिस l जे आदमी ते ठन गोठ l

बुढ़वा सियान कहिस - " ऊपर वाले जनम देथे अउ मरन ला देथे l करम तो मइनखे करथे l

करम के दंड ला भोगे ला पड़थे l चलो बोहो अब काला देखना l न रिश्ता हे न नाता हे एखर l अपन रिश्ता ला ऊपर कोती बना लीस l'

आखिर म नाउ आथे कहिथे-

" अइसे झन कहव मैं ओकर दाढ़ी मेछा बनावत रहेंव l मुड़ी ला मैं मुड़वाहूँ,मोर धरम बनथे l

मैं आघू म कन्धा दुहूँ कहत लास  ल बोह लेथे l" ओला देख पहटिया आथे कहत " मैं रोज देवत रहेंव l" मोरो हक हे l

तीसर म खोरावत आइस l*अरे भाई चोंगी माखूर के संगवारी रहिस l मोला बुलाते रहय आये कर मनसुख कहय l "

फेर आखिर म किराना दुकान वाले आथे " सब समान घर म पहुँचा के देवत रहेंव l मोर बने गराहिक निकल गे l कुछु फिकर नइ रहिस ओला l 

"राम नाम सत्त हे सबके इही गत्त हे l' कहत सब झीन

लाई ग़ुलाल छिंचत मरघट लानिस l

चारो मिलके ओकर दाह संस्कार करिस l

     -कुम्हारी, जिला दुर्ग छ. ग.

हरेली परब पर विशेष लेख... ओमप्रकाश साहू अंकुर

 हरेली परब पर विशेष लेख... ओमप्रकाश साहू अंकुर



खेती किसानी ले जुड़े़ तिहार हरे हरेली



हमर छत्तीसगढ़ हा कृषि प्रधान राज्य हरे. हमर प्रदेश के किसान मन धान के खेती जादा करथे.एकर सेति  छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जथे. इहाँ के कतको तिहार बार हा खेती किसानी ले जुड़े हवय. अक्ती तिहार हा धान बोवाई के संकेत हरय ता हरेली परब हा धान के सुग्घर हरियरपन दिखे के प्रतीक हरय.

  हरेली तिहार हा सावन अमावस मा मनाय जथे. आषाढ़ मा किसान हा धान बोवाई के काम चालू कर देथे. जउन किसान मन के पास खुद के पास बोर, नदी, डेम ले पानी मिले के आसा नहिं रहय वोमन बोयता पद्धति ले धान बोथे. आज कल खेती किसानी मा बइला फंदाय नांगर के प्रयोग एकदम कम होगे हे. आज कल हर काम हा जल्दी मा होवत हवय. नांगर के जगह ला अब ट्रेक्टर हा ले डरे हवय. अब बहुत कम किसान मन हा बइला रखे हवय. खेत मा बइला अउ नांगर ला देखे बर आँखी तरस जथे. अइसे लगथे धीरे ले नांगर हा नंदा जही. पहिली बइला ला फांद के दंतारी अऊ पाटा चलाय जाय. अब ये सब ला ट्रेक्टर हा कर देथे.

   जउन किसान मन के पास हाथ मा पानी रहिथे. बोर, नदी, बांध ले पानी खींच के पलो डलथे. अइसन किसान मन हा परहा पद्धति ले धान बोथे. एकर बर पहिली ले खेत के कोनो भी जगह धान के थरहा लगा देय रहिथे. जब थरहा हा लगाय के लइक हो जथे ता खेत ला बढ़िया जोत - मंताके ,पाटा मा बरोबर करके परहा लगाया जथे. अभी ए काम ला बनिहार मन हा करत हवय. का पता कल जाके यहू काम ला घलो सिरिफ मशीन हा करे ला लग जही.

  आज कल आधुनिक तरीका ले खेती होवत हवय. पहिली गोबर खातू के उपयोग जादा करय. अब बहुत साल होगे हे रासायनिक खाद यूरिया, डीएपी, पोटास के गजब उपयोग करे जथे. बन ला मारे बर निंदानाशक दवा के छिड़काव करे जथे. बनिहार मन के काम हा कम होवत जावत हवय तभो ले बनिहार नहिं मिलय. खेती किसानी  करे मा बनिहार के समस्या हा गहरात जावत हवय. एक दू रुपया किलो चऊंर के सुविधा अउ खेती किसानी काम के प्रति लोगन मन के उदासीनता हा एकर प्रमुख कारण हरय.


  आवव अब हरेली तिहार के बात

करथन. ये तिहार हा अइसे समय मा मनाय जथे जब खेत मा धान के फसल हा लहलहाय ला लग जथे. बोयता पद्धति के धान के बियासी हो जथे. कुछ बचे घलो रहिथे. वइसने परहा पद्धति के धान हा घलो सुग्घर ढंग ले पोठ दिखे ला लगथे.

  ये तिहार ले किसान मन के संगे संग बइला -भईंसा के थके हरे जांगर ला सुसताय ला मिल जथे. खेती किसानी मा कट -कट काम करे ला पड़थे. खेती अपन सेती  कहे गेहे. ये तिहार मनाय से किसान, बनिहार मन ला कम से कम एक दिन आराम मिल जाथे.

ए समय खेती किसानी मा प्रयोग होने वाला अवजार नांगर -बख्खर, पाटा, दंंतारी, रापा, कुदारी, गैंती, टंगिया, बसुला, भंवारी, हंसिया, साबर, तुतारी अउ अब नवा जमाना मा ट्रेक्टर,अ टिपर, हार्वेस्टर के पूजा करे जथे. घर के दुवार मा सुग्घर ढंग ले मुरमी डाल के ये अवजार मन ला रखे जथे. अब दुवार मा घलो पथरा लग गेहे ता कतको मन मुरमी नहिं डोहारय. सुग्घर ढंग ले किसान परिवार हूम -धूप ,

फूल, दीया, अगरबत्ती के उपयोग कर पूजा करथे. पिसान के लेप बनाके जम्मो अवजार मा लगाथे.

चीला चढ़ाय जथे. पशु धन बइला, गाय, भईंसा के पूजा करे जथे.

ए दिन राउत मन गाय, बइला, भईंसा ला जड़ी बूटी से बने दवई खिलाथे. साथ मा किसान मन घलो आटा से बनाय लोंदी जउन में  नून घलो डलाय रहिथे. येला पशु धन ला खिलाथे. बरसात मा पशु धन के बीमार पड़े के संभावना जादा रहिथे. जड़ी बूटी अउ लोंदी हा हमर पशु धन के रोग प्रतिरोधक क्षमता ला बढ़ाथे अउ स्वस्थ रखथे. किसान मन राउत ला चांवल, दाल, नमक, मिर्च अउ जउन बन पड़े भेंट करथे.

हरेली तिहार के दिन लोगन मन मा गजब उछाह रहिथे. घरो घर चीला, बरा, सोहारी, भजिया, अरसा, कटवा रोटी चुरथे. अपन घर परिवार अउ अड़ोस पड़ोस ला खाय बर बुलाथे. एकर ले मेल मिलाप अउ आपस मा भाई चारा के भावना हा बढ़थे. लईका मन के संगे संग बड़का मन घलो गेंड़ी मा चढ़ के मजा लेथे . पहिली गाँव के गली मा गजब चिखला रहय. एकर से बचे बर गेड़ी हा काम आय. आज कल अब गली के क्रांकीटीकरण होगे हवय. अउ कतको जगह होना बाकी हवय. कतको जगह गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता होथे. अउ तरह तरह के ग्रामीण खेल कबड्डी, रस्सा खींच, मटका फोड़, फुगड़ी, बिल्लस, कुर्सी दौड़ के आयोजन होथे. ग्रामीण मन गाँव के मैदान मा सकलाके एक दूसर ले मिलथे जुलथे अउ सुख दुख के गोठ गोठियाथे. नवा नेवरनिन मन ला तीजा लाय के शुरुआत घलो हो जथे. अइसन सुग्घर ढंग ले हमर छत्तीसगढ़ मा हरेली तिहार मनाय जथे. 


        जय जोहार...


        ओमप्रकाश साहू "अंकुर "


      सुरगी, राजनांदगाँव

हरियर धरती के सुघरई ह आय हरेली*

 *हरियर धरती के सुघरई ह आय हरेली*


छत्तीसगढ़ के उर्वरा धरती मा सावन महीना के अमौसी के दिन मनाय जाने वाला ये लोक परब हरेली छत्तीसगढ़िया किसान, बनिहार, मजदूर मन के दूसरइया बड़का तिहार आय। छत्तीसगढ़ के किसानी तिहार अक्ती के बाद हरेली तिहार ह खेती-बाड़ी म रमे किसान मन के जिनगी म नवा उमंग-उल्लास ल अपन कोरा मा समोख के लाथे। ये तिहार ह चिखला-माटी के काम-कारज मा चिभके कमइया मन बर थोकिन सुस्ताय के उदीम घलव आय। तइहा जमाना ले बैला-भैंसा के उपयोग नाॅंगर जोतई , माल ढुलई अउ आवागमन बर होते आवत हे। किसान मन डहर ले मवेशी मन के मल-मूत्र अउ बन-कचरा (कृषि अपशिष्ट) ले जैविक खातू बनाय के परम्परा निच्चट जुन्ना बात आय।

    किसानी काम-बूता बर खातू- बीजा, मजदूर-बनिहार (मानव श्रम),नाॅंगर-दतारी, रापा- कुदारी (कृषि उपकरण) गाय -बैला (पशुधन) अउ पानी-बरसात जइसन चीज-बस (संसाधन) के होना बहुत जरूरी चीज होथे। येकरे भरोसा म किसान मन अपन खेत म थीरभाव ले फसल उपजारे के काम ल कर पाथें। किसान मन अन्न के उपजइया आँय तेकर सेती येमन ये सबो चीज-बस (श्रम संसाधन) बर भारी चिंता फिकर घलव करत रहिथें।

जोताई-बोवाई अउ बिआसी जइसन किसानी बूता के उरके के पाछू जब भाठा-टिकरा, खेत-खार, मेड़-पार, परिया-कछार मन हरियर-हरियर दिखन लगथे, तरिया-डबरी, नरवा-ढोड़गा, नंदिया-बॅंधिया डबडबाके छलछलाय ला धरथे तब किसान भाई मन इही श्रम संसाधन मन के आभार व्यक्त करे बर हरेली तिहार ल मनाथे।

हम सब जानथन कि खेती किसानी के काम में अवइया श्रम सहायक समान चाहे वोहा सजीव होय या निर्जीव, सबके देखभाल बर किसान ह चौबीस-घंटा सजग रहिथे। किसानी संस्कृति के इही प्रमुख तिहार म अगर कोनो धरम नाम के चीज हे त वोहा आय किसानी धरम जिहाॅं माल-मवेशी अउ कृषि औजार मन ह ही ओकर देवता-धामी आय।

     गाॅंंव-गॅंवई म  चलागन (लोक मान्यता) हे कि बीते रातकुन ह बहिरी हवा के सक्रिय होय के बेरा आय। बाहरी-हवा के पोषक मन कहुँ डहर सुन्ना जगा म जाके सिरजन के उलट जादू-टोना ( कारू-नारू) सीखे के शुरूवात इही दिन ले करथे।

          गाँव म ठउका इही दिन जादू-टोना जइसे बाहरी हवा ल जड़मूल ले खतम करे बर तंत्र-मंत्र विद्या के गुरूवारी पाठशाला के शुरुआत होथे। गुरूवारी पाठशाला ह सावन अमौसी रतिहा ले भादो महिना के रिषि पंचमी तक सरलग पैंतीस दिन तक चलथे।

          इही दिन माल-मवेशी मन ल नवा चारा ले होवइया रोग-राई ले बचाय बर औषधीय गुण ले भरे दशमूल कांदा, डोडो-कांदा अउ बन गोंदली जइसन जड़ी-बूटी ल खवाय जाथे। तिहार के दिन बड़े-बिहनिया राऊत-बरदिहा के घर ले ये जड़ी-बूटी ल लान के सबो मवेशी मन ल खवाय जाथे। साथे-साथ गहूँ पिसान के लोंदी बनाके ओमा नमक डार के घलव खवाय जाथे। येकर ले गाय-गरू ल जरूरी खनिज लवण मिलथे अउ मौसमी बीमारी ले लड़े बर प्रतिरोधक क्षमता घलव बाढ़थे।

     जड़ी-बूटी के एवज म किसान मन राऊत-बरदिहा ल धान-पान (शेर-चाऊर ) नइते पैसा देके ओकर कीमत अदा करथें।

     तिहार के दिन येती सुरुज के उत्ती होइस कि ओती किसान मन अपन घर के नाँगर ,जुड़ा, रापा-कुदारी, भवाँरी ,रोखनी बिन्धना-बसूला, पटासी हॅंसिया,पैसूल, सब्बल, छीनी घन अउ टंगिया जइसन किसानी औजार मनके साफ सफाई मा भीड़ जाथें। अपन घर के अँगना मा मुरूम के आसन बिछा के उही मा सब औजार मन ल रखे जाथे।

      ओ दिन घरोघर तेल-तेलई ले नाना प्रकार के पकवान बनाके किसान मन अपन परिवार अउ सगा-सजन समेत खुशी मनावत मिल बैठ के भोजन करथें। बरा,सोंहारी, चौसेला ,भजिया अउ चीला जइसन मनपसंद रोटी रँधई ले घर के वातावरण हा गमकन लगथे। हमर छत्तीसगढ़ ह धान के उपजइया प्रदेश आय तेकर सेती इहाँ के नेंग-जोग अउ पाक-पकवान मन म चाउँर पिसान के बहुते उपयोग घलव होथे। मुरूम के आसन म माढ़े कृषि औजार म दीया-बाती, हूम-धूप अउ उदबत्ती जलाके, चाऊर पिसान के घोल ल छिड़के जाथे नइते ओकर हाथा लगाय जाथे। अउ गुड़ ले बने गुरहा-चीला के भोग लगाय जाथे। किसान के धान-चाऊर ह कतक पावन-पवित्र हे तेला ये नेंग ह प्रमाणित घलव करथे। ये साल कस अवइया साल म घलव खेती किसानी के काम-बूता म इनकर अइसनेच साथ मिले कहिके घर के जम्मो सदस्य मन किसानी औजार के पूजा-पष्ट करत ओकर योगदान बर आभार व्यक्त करथें। किसान मन डहर ले सजीव (मवेशी) अउ निर्जीव (किसानी औजार) मन बर  मान-सम्मान के अइसन आदर भाव शायद आप मन ला दूसर डहर देखे बर नइ मिल पाही।

         पहिली गाँव-गॅंवई मन ह पेड़-पौधा, जंगल-झाड़ी, नदी-पहाड़ के हरियाली ले घिरे रहय। एकर कारण खूब बरसा होवय अउ अँगना-दुवार , गली-खोर, रवन-रस्ता मन चिखला के मारे गदपथ हो जाय रहय। किसानी औजार मन ल इही चिखला-पानी ले बचाय खातिर मुरूम के आसन बिछाय जाय। आज पक्का घर-दुवार होय के बाद घलव मुरूम बिछाय के परम्परा ह चलत हे, जे बहुत खुशी के बात आय। सही कहिबे ते येहा किसानी के काम म अवइया साजो-समान ल सुरक्षित रखे के किसान के अनुभव ले उपजे वैज्ञानिक सोच आय।

      इहाँ खेती-किसानी के काम-बूता ल बिना छेका-रोका के निपटाय बर गांव गॅंवई म पौनी-पसारी के बड़ सुग्घर वेवस्था घलव होथे। जेमा राऊत,लोहार,नऊ, बरेठ, बैगा, कोटवार अउ रखवार मन ह किसान के प्रमुख सहयोगी होथें। इनकर बिना किसानी के काम ह अधूरा हे।हरेली के दिन राऊत अउ लोहार मन के काम ह बड़ खास होथे। राऊत ह घरोघर जाके कपाट (दरवाजा) म लीम के डारा खोंचथे त  लोहार ह उही कपाट के चौखट मा खीला ठोक के अपन हिस्सा के बूता ल सीध करथे। कीटनाशी अउ जीवाणुनाशी मन ले बचे बर अउ शीतलता पाय खातिर नीम डारा के उपयोग अउ येती गरज-चमक जइसन बरसाती अलहन ले बाचे बर लोहा के खीला के उपयोग हमर पौनी मन के वैज्ञानिक सोच के कहानी घलव बताथे।

     बड़े (किसान) ल मान अउ छोटे (पौनी) ल दुलार देय के ये तिहार ह मानवता अउ समरसता ले एकता के मजबूत डोरी म बँधे रहे के संदेश देथे।

सियान मन बताथे कि कमती म गुजारा करे के आदत के सेती पहिली तीज तिहार के छोड़ घर मा कभू तेल-तेलई नइ चूरत रहिस। ओ बीते बेरा मा बीज ले तेल निकालना कोई सरल काम नइ रहय। तेकर सेती किसान के रोज के जिनगी म तेल-तेलई के कोई विशेष जगा नइ रहय, बिना तेल वाले डबका साग ह उनकर भोजन के हिस्सा रहय। येकरे सेती तीज-तिहार म तेलहा रोटी खाॅंय अउ ओला पचाय बर येमन भाठा-टिकरा कोति खेले-कूदे बर घलव जाॅंय।

कतको जगा म रोटी-पीठा खाय के बाद पान बीड़ा कस मुँहुँ ल लाल करे बर लइका मन कोदो पान,दतरेंगी जड़ अउ सेम्हर कांटा ल खावँय अउ खुशी मनावँय। सुदूर वनांचल डहर ये परंपरा ह अभी घलव देखे बर मिल जथे।

      ये परब म पौनी मन अपन ठाकुर ( किसान) मन के घर  मा जोहार-भेंट करे बर जाथें। बलदा म किसान मन खुशी मनावत उनला धान देके बिदा करथे। ओ पइॅंत बोंवाई म कोठी के बीजहा धान के छबनाच ह फूटे रहय तेकर सेती किसान ह उही बीजहा धान ल पौनी मन ल देंवय, तेकर सेती किसान मन डहर ले पौनी मन ल सम्मान के साथ देय जाने वाले ये प्रथा ल बीजकुटनी के नाम ले घलव जाने जाथे।

भरे बरसात म गाँव के चारों मुड़ा म चिखला माटी के कारण एक जगा ले दूसर जगा जाय म बड़ तकलीफ होवय। तेकर सेती हमर पुरखा-सियान मन ये समस्या ल दूर करे बर गेड़ी जइसे यंत्र के खोज करिन। हरेली के दिन ले पोरा तिहार तक ये गेंड़ी ह आवागमन के काम आय अउ नारबोद के दिन बैगा के अगुवाई म येला विसर्जित कर दिए जाय। आजकल इही गेंड़ी ल बड़ सम्मान के साथ खेल के रूप म स्वीकार कर ले गेहे।

हरेली के दिन गाँव के बुजुर्ग -सियान मन चौपाल म एक जगा सकला के आल्हा-उदल अउ पंडवानी जइसन किस्सा-कंथली मन ल सुनत-सुनावत ये तिहार के आनंद मनाथें।

       गाँव-गाँव म स्कूल, बिजली, सड़क,अस्पताल होय ले टोना-टोटका (बाहरी हवा) उपर अँखमुंदा विश्वास करइया मन के संख्या म कमी आय हे।जे मनखे समाज बर बड़ सुग्घर बात आय। फेर येकर साथ ट्रेक्टर, रीपर, थ्रेसर , हार्वेस्टर जइसन मशीन मन के आय ले नाँगर अउ बैला-भैसा के उपयोग अब न के बराबर होवत जात हे। ये मशीनीकरण के सेती किसान डहर ले लोहार मन ल काम नइ मिल पावत हे।जे पौनी-पसारी जइसन छत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति बर हाईटेक हमला घलव आय जो कि बने बात नोहे।आज आधुनिकीकरण के सेती बिखरत तीज-तिहार के महत्तम ल समोखे के जरवत  हवय।

     जिनगी म मनखे मनके हाय-हफर करत काम-कमई के बीच म अपन थके जाँगर ल सुख अउ खुशी देय बर लोक समाज ह सम्मिलात जेन अवकाश के उदीम करथे उही ह लोक परब हो जाथे। उही कड़ी म हरेली ह घलव एक ठन लोक परब आय। मने नेक सोच (सकारात्मक उर्जा) कोति ले गलत सोच (नकारात्मक ऊर्जा) के हर तिरपट चाल ल हर (खतम) लेना ही हरेली आय। कुलमिलाके हम इही कहि सकथन खेत-खार, मेड़-पार, भाठा-परिया, जंगल-पहाड़, बारी-बखरी के संग चारो मुड़ा धरती के हरियर-हरियर दिखई अउ ओकर सुघरई ह हरेली आय।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

Friday, 25 July 2025

करम के फर*(नानकुन किसा)

 *करम के फर*(नानकुन किसा)



सावन के महीना रहिस संगवारी अउ सावन के महीना मं भोलेनाथ ल पानी चढ़ाय के पुण्य भी अड़बड़ मिलथे,अइसे हमर सियान मन ह कहिथे.इही बिचार से सुखिया ह बड़े बहिनिया सुत-उठ के नहा-धो के पूजा- पाठ करय अउ मंदिर जा के शिवलिंग मं जल चढ़ावय.रोज के पहिली बुता इही राहय.फेर बाद मं घर-कुरिया के बुता ल करय.सुखिया ह मने-मन मं सोचय कि मय बहुतेच भक्तिन हरंव.मोर पूजा-पाठ ले भगवान ह बिक्कट खुस हो जवत होही.सुखिया के बसेरा मं कोनो भी मनखे आतिच त ओहर एक लोटा न पानी देवत रहिस,न चहा बनावत रहिस.सुखिया ह कंजूसनिन रहिस.ओकर घर मं आके मनखे मन  भूख-पियास मरत बिदा होवय.मनखे मन के आत्मा ह एक कप चहा बर तको तरस जवत रहिस.सुखिया ल कोनो फरक नइ पड़त रहिस कि ओकर घर ले कोनो मनखे ह दुखी हो के बिदा होवत रहिस.

    सतिया ह सुखिया के परोसी रहिस.सतिया ह न मंदिर जावत रहिस,न पूजा करत रहिस.अइसे नइ रहिस कि सतिया के मन मं भगवान नइ रहिस.असल मं सतिया ह मनखे मन मं भगवान के दरसन करत रहिस.मनखे के पीरा ल मिटाय के परयास करय अउ ओकर अंगना ले कोनो भी मनखे ह भूख-पियास मरत बिदा नइ होवत रहिस.सतिया के कुटिया ले कोनो भी मनखे ह दुखी होके बिदा नइ होवत रहिस.सतिया से मिलके सबो मनखे खुस हो जवत रहिस काबर कि सतिया के गोठ से ही मनखे के आधा दरद ह कमती हो जवत रहिस.

     सावन के महिना मं एक दिन संझा बेरा पानी ह बिक्कट गिरत रहिस,जइसे पानी गिरत रहिस,वइसे हवा करत रहिस,बिजली तको गरजत रहिस.एक झन मनखे ह अपन गोसइन दुनों सुखिया के गांव ले गुजरत रहिस.पानी गिरत मं फिंज जाबोन सोचके सुखिया के दुवारी मं गाड़ी ल खड़ा करीस फेर सुखिया करन कहिस,दाई हमन ल थोकिन तुहंर घर मं जगा दूहू का?सुखिया ह मन मं गुनिस कि कहूं पानी ह नइ थिरकही त येमन तुहंर घर रतिहा ल पहाबोन कइही,तेकर ले जगा नइ देवंव.सुखिया ह कहिस,मोर घर ह चोरोबोरो हे गा त जगा कहां ले दूहू.फेर दुनों परानी सतिया के घर मं जाके पूछिस कि थोकिन तुंहर घर जगा दूहू का?सतिया ह हव रूक जवव कहिस.सतिया ह रद्दा रेंगइया मन ल चहा-पानी दिस.सतिया ह कहिस कि पानी नइ छोड़ही त हमर कुटिया मं रतिहा ल पहा लेहू.पानी ह छोड़बे नइ करिस रतिहा होगे.सतिया ह भात-साग रांधिस अउ अपन गोसइया संग मं दुनों परानी ल भात-साग परोसिस.तहान अपन खइस.खा के खटिया ल बिछाइस.सबो झन सुख-दुख गोठियावत सुतगे.बिहनिया होइस त पानी ह नइ गिरत रहिस.दुनों परानी ल सतिया ह चहा-पानी दिस फेर दुनों परानी ह सतिया ल कहिथे कि दाई तय ह हमन ल भगवान सरीक मदद करे हस.भगवान ह तोला तोर करम के सुघ्घर फर देवव इही अशीष हे.अइसने कहिके दुनों परानी अपन गांव बर निकलगे.सुखिया ह मने मन खुस होइस कि बने करेंव मय ह येमन ल जगा नइ दे हंव त काबर कि पानी ह छोड़बे नइ करिस,मोला येमन ल रखे बर पड़ जतिच अउ मोला इंकर मन बर साग-भात रांधे बर पड़तिच.

    एक दिन सुखिया अउ सतिया के टिकट ह धरती ले कटगे.दुनों परानी ह यमराज के दरबार मं हाजिर होइस.यमराज ह कहिस कि सुखिया ल नरक मिलही अउ सतिया ल सरग मिलही.अतका गोठ ल सुनके सुखिया के जीव ह चिहर के कहिस कि अइसे कइसे हिसाब करत हव यमराज महराज,मय कतका पूजा-पाठ करे हंव,कतका पानी रिकोय हंव भोलेनाथ मं.ये सतिया ह कभू मंदिर नइ गे हे.कभू पूजा नइ करे हे.त ये ल कइसे सरग अउ मोला नरक देवत हव.यमराज ह कहिस कि दाई तय हर पूजा करत रहेस ओकर पुण्य तो मिलही जरूर फेर जेन तय पाप करे हस ओमा काटे के बाद तोर पाप जादा होवत हे काबर कि कोनो मनखे ल भूख-पियास मं मारे हच, ओहर पाप मं गिनाथे.काबर कि कोनो जीव ल तरसाना बहुतेच बड़े पाप हरे.सतिया ह भले पूजा नइ करिस फेर कोनो भी जीव ल भूखन-पियासन नइ रखिस.सबो जीव ल तृप्त करिस.नेक करम ह पूजा हरय अउ ओकर फर भी जादा मिलथे.सुखिया ल समझ मं आगे रहिस कि सबो जीव मं शिव हे अउ शिव ल खुस करना हे त जीव के  सेवा करे से भगवान ह खुस होथे.फेर चिरई ह तो खेत ल चुग गे रहिस.पछताय से कोनो मतलब नइ रहिस.


सदानंदनी वर्मा

ग्राम-रिंगनी(सिमगा)

जिला-बलौदाबाजार(छ.ग.)

Friday, 18 July 2025

पनही तोला प्रणाम* 🙏🏻 बियंग (टेचरही)

 *पनही तोला प्रणाम* 🙏🏻

                             बियंग (टेचरही) 


          पनही उपर निबंध लिखे के प्रतियोगिता मा सबले कम नंबर मोला मिलिस। कारण ये होगे कि मँय ओकर जनम विकासक्रम अउ मजबूती उपर विस्तार दे पारेँव। असल मा ओकर चलन चलागन कहां कहां कइसे होथे वोला लिखना रिहिस। पनही पाँव सँग दुनिया दुनिया घूम  के आथे तेकर कोनो भाव नइ देवय। इही पनही जब संसद मा चलथे, ब्यवस्था के अधकपारी मा चलथे तब परिया के रेंगइया पैडगरी के रसता धरथे। तब पनही के मान अउ भाव दू गुना हो जाथे। माने सस्ता दाम वाले कथा वाचक जादा उँचहा ज्ञान पोरसथे वो भूमिका मा पनही रथे। तब तो पनही के प्रणाम पैलगी  आदमी ले जादा करना चाही। कतको झन ये चरणदास ला अइसे फेंक के राखथे जइसे सरकारी दफ्तर के बाबू फाइल मन ला फेंकथे। अइसन आचरण ले अचरज नइ होवय काबर कि ये दफ्तर के मरियादा आय। फेर चरित्तर मा बिचित्तरपना अगास छूथे तब चरण के पनही चेथी तक ले जाना ही चाही। काबर कि पनही ही एक अइसन सेवादार हे जे कपार चढ़के बोलथे । अइसन शुभ समाचार के विज्ञप्ति अखबार मा आथे तब मनखे के सँग पनही के घलो पैलगी करे के मन होथे।

            सौ डेड़ सौ के कंटोप ला सिराना मे चपक के सुतना अउ डेड़ हजारी पनही ला हारे निर्दली उम्मीदवार असन मोहाटी के बाजू मा रखना कहां के न्याय हे। आज हमर संस्कार के नवाचार आय कि जरुरत के समान सँग रँधनी खोली तक पनही जावत हे। एक मँय हवँ कि असामाजिक जीव जिनावर ला भगाए बर ठेंगा के जगा पनही राखे रथँव। नवा जमाना के नवा पहिनावा ले भदई चघऊ के इन्तकाल होगे। भदई ला श्रद्धांजलि देय बर पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा सकेलाय रेहेँन। भीड़ अतका बाढ़िस कि बरसो बरस के इतिहास पोटारे टुटहा भदई के चोरी घलो होगे। सोन चाँदी चोराय मा वो सुख अउ आनंद नइ मिले जतका पनही चोराय मा मिलथे। अइसन काम बर मंदिर के मोहाटी अउ बरतिया के जेवनास ला उत्तम माने गेय हे।

            हमर जमाना मा बाप ला पनही लेय बर एकर सेती नइ पदोएन कि मोर जनम पत्री बनवात ले वोकर कतको पनही के तला खियागे। अफसर अधिकारी मन ला मोर बाप के पनही घिसाय से का लेना देना। जेकर लेन देन होथे वोकर लेना देना करे रहितिस तो पनही के पइसा बाँच जातिस। हम जानत हावन एक जोड़ी पनही हिमालय अउ चाँद के यात्रा करके आ जाथे फेर दफ्तर मा अरजी फँसाय बर कतको तला रोज फेंकावत रथे। वोइसे कहे जाथे पनही से मनखे के असली पहचान होथे। तभे तो परसाई जी प्रेम चंद के फटहा जूता उपर निबंध लिख डारिस। पनही मान बढाए अउ घटाए दूनो के काम करथे। फूल माला सँग रुपिया गुँथके पहिरा अउ पनही के हार पहिरा कते मा जादा सोर उड़थे वो घेँच ला पूछ जे हर पहिरे के सौभाग्य पाए रथे। फूलमाला के दुकान तो अबड़ मिलथे। फेर पनही के माला वाले दुकान के जेकर जादा जरूरत हे दिखबे नइ करे। पनही के माला के लाईक नरी तो बिक्कट हो गेहे। दुकान के कमी ला पूरा करहूँ कहिके धन कमाए अऊ बेरोजगारी ले मुक्ति पाये बर हनुमान चालीसा पढ़के दुकान शुरू करे रेहेँव। कार्पोरेट कम्पनी वाले मन तंत्र ले साँठगाँठ करके गुणवत्ता मा दोष बताके दुकान बंद करवा दिस। सौदागर मनके डर ये हे कि वो आदर्श हाट के उद्घाटन अपन कर कमलों ले करे हे, उही नरी बर पनही के माला एडवांस मा आडर शुरू होगे रिहिस। खास यहू हे कि इही खास मन के पनही पशु तन के चमड़ी ले नहीं मानुस तन के चमड़ी ले बनथे। तभे तो पाँच साल के आगू अउ टिकाऊ बर नवा पीढ़ी के नवा चमड़ी वाले तला ठेंसावत रथें।

          हम सरकार ला फोकट दोष देवत रथन। वोकर नजर पाहटिया से लेके पान टोरइया के पाँव तक हे। आखिर इही पाँव मा बिना फोरा परे वोट डारे बर तो बलाए जाही। गाय के नरी मा खड़पड़ी अउ मनखे के पाँव बर पनही मिलना लालबत्ती वाले गाड़ी मिले से कम नइ होवय। फेर दुर्भाग्य हे कि इन गदहा मन के गोड़ मा जुच्छा हाथ घुमाए ले समझथे कि अब हम फँदागेन जब मालिक ढिलही तब अजादी मिलही। निजी संस्थान ले निकलके शासकीय मान्यता वाले नारा "" चमचों और दलालों को मारो जूता सालों को "" सुनत मन ला हल्का लागे कि अब पनही के चलागन जोर सोर ले होही। अवसरवादी के असरदार प्रभाव हे कि हक अनीति जरूरत के लड़ई मा अउ हलाकानी ले मुक्ति बर मुँहुँ उलाबे तब मुँहूँ बंद करे बर वो कोती ले "मारो जूता सालों को" के आधा नारा ये कोती लहुट के आथे। 

        जइसे एक मंत्री दू चार ठन विभाग ला सम्हालथे ओइसने पनही अउ कुसियार दुहरा जवाबदारी निभाथे। मुख मा परथे तब मीठ सवाद देथे। पिछोत मा परथे तब सबरस के सवाद देथे। ओइसने पनही पाँव मा हे तब तक तन ला सुख देथे। अउ पीठ मा परथे तब मनसुख बना देथे। पहिली मनसुख भोगी बहुत कम मिलय। फेर अब नकटा लुचकट समाज-सुधारक भ्रष्ट व्यभिचारी अधिकारी पाखंड विधर्मी दोगाली राष्ट्र भक्ति वाले के भीड़ हे। इही सब नर से नारायण बनने वाला मन बर जादा काम मा लाये के जरूरत हे। समस्या ये हे कि बिलई भेकवा के नरी मा घंटी बाँधे कोन। आम लोगन तो खुदे भूल जाथें कि उँकर हाथ मा सबले बड़का ब्रम्हास्त्र पनही हे। बात अऊ लात के मार ले काम नइ चले तब पनही ही पूरा न्याय देवाथे। ये बात के चेत आम जनता ला कब होही। सबो किसम के अतिया ला सहन करना ला अपन मजबूरी बनइया के कायरता ही आय। अइसन मूरख मन बर घलो केहे गेय हे। "का मुरख सँग करँव बात, हेरवँ पनही मारवँ लात।"

           जेकर चोला झूठे राष्ट्रीयता मा बूड़े हे अउ चोलिया दगहा खादी मा लपेटाए हे, जेकर लाज धरम ईमान गंदा नाला मा विसर्जित होवत हे। जे मन बेवस्था के चिरहा चेंदरी मा तंत्र के धुर्रा झर्रावत हें। सेवा के नाम मा मेवा खावत हें। लोकतंत्र के अनुष्ठान मा नरबलि पूजवन चघावत हे अइसन मन के पैलगी करत तो माथा खियागे। ये सब देख के मुरहाराम के पनही काबर कुछु नइ बोलय। झूठ धोखा फरेब के मनभावन भाषण के आँवा मा भरोसा के चिबरी चाँउर खूब चूरत हे। अइसन मा पगराइत मन के चेथी डहर मुरहाराम के पनही बोलही तब ओकर पाँव सँग कहूँ पनही तहूँ ला प्रणाम।🙏🏻


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

9755233236

पंडाल के कथा "

 लघु कथा - 

           "  पंडाल के कथा "

      -मुरारी लाल साव


          बहुत भीड़ l पाँव रखे के जघा नइ हे l अतका भीड़ मुड़ीच मुड़ी दिखत हे l पंडाल खचा खच भरा गे देखते देखत l जेन ला जेन मेऱ जघा मिलिस पौगरावत गिस l मंच ले घेरी भेरी  अपील होवत हे " बइठत जाव बइठत जाव "l 

बिसहत अपन बाई ला कहिस "भीड़ बहुत हे संभल के रहिबे सामान ला घलो संभाल के राखबे l"

      " तैं का करबे? देखबे नहीं तहूँ ह l" - बिसनतिन कहिस l

" तोला सबे झीन देखथे बने फक फक ले गोरी हस l गर भर माला पहिने हच l "

" त मोला देखाये बर लाने हच इहाँ l"

" देखाये बर नहीं कथा सुनाये बर लानेहँव  l" देख देख ओती देख महाराज आवत हे l"

बिसनतिन आघू- पाछू,डेरी -जेवनी कोती  डहर देखथे l

ओती देख मंच कोती उहें ले बुलक के आइस l 

" महराज बुलक के? " 

परदा उठा के आइस l

"अतका भीड़ म ओहा आही त कतको अइसने रौंदा जही l तेखर सेती  जानेस l " 

बिसनतिन कहिस-"  बीचो बीच  आतिस त महराज के गोड़ छुके तर जातेंव महूँ ह l " "घोलंड घोलंड के गोड़ धर धर के पाँव परइया के भीड़ l लात मारत निकलत हे तभो नइ बनय l "

"मइनखे झपाए लेथे गोड़ छुवे बर l"बिसहत समझाइस l ओती महराज  अपन आसन ले कथा कहे ला शुरू करिस -

" ये संसार ए l इहाँ सब झन ला कुछु न करे ला पड़थे l जइसन करथे  ओला मत देख अपन ला देख  का फल मिलथे l 

अच्छा करम के फल अच्छा  होही l बुरा करम के फल बुरा होही l संसार बने हे  देखे सुने बर बने हे l मानुस जनम मिले हे बार बार नइ मिलय l कथा सुने ले अंदर अउ बाहिर म उजियारा आथे l आत्म ज्ञान मिलथे बने आनंद मिलथे आत्मा ला l"

बिसनतिन हचकारत - "लदके परत हस गो घुच के राह थोकून  l " दूसर आदमी -" का लदकत 

हँव देख कतका धुरिया म हँव l" " छू मत गो घेरी भेरी l"

" कोन तोला छुवत हे l"

"कथा होवत हे तेती ला देख 

"मोला काबर देखत हस?"

"तोला कोन देखत हे?"

"लबरा, तोर नियत ला देख l "

बिसहत सुन केअपन बाई ला समझाथे -

"ओकर से मत लाग l सुने बर नइ आये हे l"

      ..महराज के प्रवचन चलते रहिस

" संसार म अपन अपन ढंग ले रहे ला पड़थे l भक्ति करो अउ करम करो पुन कमाओ l" 

कथा ला सुन के सब निकलत रहिस l

एती बिसनतिन पंडाल के भीतरी  के कथा ला बाहिर म सुनावत रहिस -" मोर गला ले सोन के चैन ला पुदक के लेगे  l "


     )(     )(

दादी के छड़ी* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)

 .         *दादी के छड़ी* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)

                       

                                 - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


            पाँच बरस के अंशिता फर्श मं दरी मं बइठके पढ़ई करत  रहिस। घर मं कुर्सी-टेबल घलो सजे हे जिहाँ वोहा पढ़ई कर सकत हे फेर कुर्सी मं बइठके पढ़ना ओला बने नि लागे। काली जुवार गणित के पेपर हे। फेर ये समे ओकर ध्यान दादी कोती रहिस। अपन अनुशासनप्रियता के कारण दादी पूरा गाँव मं हेडमास्टरनी के नाम ले विख्यात रहिस। दादी ले आँखी मिलिस त अंशिता हाँसे लगिस। दादी हेडमास्टरनी तेवर मं पूछिस- ' काबर हाँसत हस? '

        ' दादी, छड़ी! '

       दादी एती-ओती ताकिस त ओला छड़ी नइ दिखिस।

        ' तँय लुकाय हस! '- दादी गुस्सा मं बोलिस। 

       ' नइ, दादी ..... तँय बुद्धु हस!' - अंशिता अउ खेलखेला के हाँसे लगिस। 

      ' बहू, छड़ी के बिना मँय कइसे रेंगहूँ! अपन बेटी ला समझा। देख, मोला देखके कइसे हाँसत हावय? '- दादी गुस्सा मं बोलिस। ओकर चेहरा तमतमाय रहिस। 

       ' आपके घलो त पोती हे! ..... बेटा, छड़ी ले आ। बने लइका मन छड़ी ला नि लुकावँय! '

       ' मम्मा, छड़ी ला मँय नि लुकाय हँव। मँय तो एक घंटा ले एही मेर बइठके पढ़त हँव!  ' - अंशिता मासूमियत ले जवाब दीस। 

         दरअसल दू महीना पाछू दादी के दुनों घुटना के सर्जरी होय हे- नी रिप्लेसमेंट सर्जरी। आपरेशन के लगभग तीन महीना पाछू ले ओकर दुनों घुटना मं तकलीफ बहुत बढ़ गे रहीस अउ रेंगे बर छड़ी के सहारा लेना पड़त रहिस। दू दिन पाछू जाँच बर डाक्टर करा गे रहिन त डाक्टर कहिस- ' अब तक इन्हें बिना छड़ी के चल लेना चाहिए था। अगर एक महीने में कोई खास इम्प्रूव़मेंट नहीं हुआ तो इन्हें न्यूरोलाजिस्ट को दिखाना पड़ेगा! ' 

         ओ दिन डाक्टर साहब फोन मं फिजियोथेरिपिस्ट ला डाँटे घलो रहिस। तब फिजियोथेरिपिस्ट जवाब दे रहिस- ' सर! वे सभी एक्सरसाइज स्वयं से कर ले रही हैं। उन्हें अब मेरी जरूरत नहीं है। वे बिना छड़ी के चल सकती हैं, मगर नहीं चल रही हैं। अब मैं क्या करूँ? '

         ' अच्छा बेटा, मोला छड़ी लान के दे दे, मँय तोला इनाम मं पैसा दुहूँ। ' - दादी हर पुचकारत अंशिता ले कहिस। 

       ' कतका? '

       ' सौ रूपिया। '

   ' नहीं दादी, पाँच सौ लेहूँ! मोला परीक्षा खतम होय के बाद एक खेलौना खरीदना हे। '

       एकर बाद अंशिता खाना पकईया बाई ला चिल्लाके कहिस- ' कमला दीदी, पुराना घर मं दादी के छड़ी हे, ओला ले आ! '

       थोरकुन देर मं पुराना घर ले दादी के छड़ी लेके कमला बाई आ गइस। पुराना घर, नया घर ले लगभग 150 फीट दूरिहा मं हे। बीच मं अँगना हे। 

       ' अंशिता बेटा, दादी के छड़ी उहाँ पहुँचिस कइसे? '- मम्मी पुचकारत पूछिस। 

      ' मम्मा, दादी छड़ी लेके तोर सहेली मन के संग पुराना घर गे रहिस कि निही? '

      ' हाँ, उहाँ तोर दादी के संग मँय घलो गे रहेंव। मोर हाथ पकड़के तोर दादी एक हाथ मं छड़ी के सहारा लेके रेंगत गइस। '

      ' दादी बिना छड़ी के रेंगत इहाँ आइस। मँय दादी ला बिना छड़ी के रेंगत देखके खुशी के मारे हाँसत रहेंव। .... फेर नइ रेंगे सकबे त मँय तो हँव न दादी तोर छड़ी बने बर! '

      ' हाँ, सासु माँ, आप पुराना घर ले बिना छड़ी के रेंगत इहाँ आय हॅव अउ हमन ला तो पता घलो नि चलिस! '

     ' अब मँय बिना छड़ी के रेंग सकत हँव! हे भगवान!! ' - दादी आश्चर्चकित होके जोर ले कहिस अउ अंशिता के लकठा मं जाके ओला बाँही मं पोटारके रोय लगिस।

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चमचा* "

 " *चमचा* "

     वईसे चम्मच खाय के काम म आथे।लोगन मन हांथ ले घलो खाथे। फेर कुछ खास जगा,खास चीज ल खाय बर चम्मच ल उपयोग म लाथे।जईसे खीर खाय बर चम्मच के उपयोग कर सकथन, फेर दोसा खाय बर हे त हांथ ल काम म लाय ल पड़ही।भले ओकर सांभर चटनी ल खाय बर चम्मच के उपयोग कर सकथन।संत मन कहिथे हांथ ले खाय ले अंग लगथे।हमर पांचों अगंरी म पांच तत्व पानी , धरती, आकाश,हवा,अऊ आगी सघंरे रहिथे। चम्मच ल जीव रक्षक घलो कही सकथन।जब कोनो लईका, जवान, सियान मन खटिया धर लेथे त इही चम्मच म खाना,दवई खवाथन।इहां चम्मच अपन ऊपर गरब कर सकत हे फेर चमचा होव ई बने नोहे। चमचा मन दिमाग चांटे के काम करथे। चमचा अपन मालिक के वफादार होथे। ये मन सफई म गुनवान होथे।ऐ मन ल प्युरीफायर घलो कही सकथन।जईसे एक्वागार्ड पानी ल सफा कर देथे। चमचा नेतामन के घलो हो सकथे, कोनो आम,खास के घलो हो सकथे। कोनो ये मन ल कही दिस के मुरगी के चार टांग होथे ते ये मन साबित करेच के रही।दू ठन मुरगी के अऊ दू ठन ओकर छांव के। भले ओकर हिरदे (अंतस) गवाही झन दे।

        जेन परकार ले खोज पड़ताल (अनुसंधान)करईया मन के अलग-अलग दल होथे वईसने चमचा मन के दल होथे। एक झन चमचा ले छुटथे त दुसर ह लपेटथे , दुसर ले छुटथे त तीसर ह लपेटथे।जईसे एक झन ह संड़क म रेंगईया कांवड़ यात्रा वाले मन ल अऊ सड़क म नमाज पड़ाहईया मन ल एके म सरमेट दिस। इहां हम समझ सकथन चम्मच उपयोग के चीज आय अऊ चमचा प्रयोग करेके।

             चमचा सामाजिक, राजनीतिक,साहित्यिक, अफसर शाही, घलो हो सकथे।ये बात घलो संच आय के सबो चमचा मे एक गुन बरोबर होथे वो हरे सुवारथ।सुवारथ अऊ चमचा नांगर बईला के जोड़ी कस आय।जिहां सुवारथ उहां चमचा,जिहां चमचा उहां सुवारथ बिज्जुल (जरूर)रहिथे। चमचा होय के अरथ (मतलब)हे घर म मटिया पोंसना।ऐकर ले धन लाभ,पद लाभ होय के जुगाड़ (गुंजाइश)बने रहिथे। कोनो कोनो मनखे मन के भाग ये चमचा मन के पलोंदी (सिफारिश)ले घलो खुल जथे। इंकर किरपा कोनो बाबा मन के ताबिज ले कम नी राहय। इंकर आगु म डिगरी धारी मन घलो पानी पियाथे।ये गुन कोनो -कोनो मनखे म मिलथे अऊ ये सब मनखे के बस के बात घलो नो आय।ये मन ल कतनो गारी गल्ला घलो सुने ल पड़थे। इंकर मुड़ म आनी बानी के पागा घलो बांध देथे। जेकर ये मन ह टकराहा घलो पड़ जाय रहिथे। कोनो शबद (शब्द)मे मात्रा के भार कईसे पड़थे इही कर टमरे जा सकत हे। आखिर म हम कही सकत हन चम्मच होवई भाग्य (भाग)हो सकथे फेर चमचा होवई सौभाग्य।

      *फकीर प्रसाद साहू* 

            *फक्कड़*

          *ग्राम -सुरगी* 

        *जिला -राजनांदगांव*

Thursday, 17 July 2025

लघुकथा) महभारत

 (लघुकथा)

महभारत


समारू अउ बुधारू दुनों झन कका-बड़ा के सगे भाई आँय फेर दुनों मा कभू नइ पटिच ।अतक इरखा बैर हे के पाछू चार बरस ले  बोल-चाल के संगे संग एक दूसर के घर आना-जाना तको बंद हे।इहाँ तक मनमुटाव हे के दूनों के लइका-लोग मन में ये बीमारी फइल गे हे।सिरतो मा बहुत जिनिस ला लइका मन बड़े मन ला देख के सिखथें।

   बंटवारा होगे हे तेकर सेती खेतखार मन एक दूसर ले जुड़े-जुड़े मिले हे।ये मन खेती-किसानी के दिन आथे तहाँ ले काँटा-खूँटी,नाखा-मुड़ी नहीं ते मेड़-पार ला ओखी मड़ाके,कुछु न कुछु बात मा जम के झगरा जरूर होथें।गाँव मा कई पइत पनचइत तको होगे हे ।

 ये दुनो मा समारू जादा खटकायर हे।हर साल अपन कोती के मेड़ ला एक-दू बिता खांचते रहिथे।वोकर देखा-देखी बुधारू घलो चालू कर देहे।चार झन के संघरा रेंगे के लाइक मेंड़ हा दू बिता चौड़ा बस बाँचे हे।

  आज दुनों झन अपन-अपन परिवार संग खेत मा बोनी करे ला आयें हें अउ मेड़ के नाम मा मनमाडे झगरा होवत हें-- महभारत माते हे।माई लोगिन मन तको भीड़े हें।अचानक समारू हा कुदारी ला धरके बुधारू ऊपर हमला कर दिच।ओला देख के बुधारू हा रँपली उठा के मारे ला धरलिच।ये झगरा मा समारू के मउत होगे।आजू-बाजू के किसान मन दउड़ के आइन।देखिन ता बुधारू के सांस चलत राहय।माई लोगिन मन तको लहू लुहान घायल होगे राहयँ।सब झन ला अस्पताल लेगिन-थाना मा सूचना देइन।

ये झगरा मा दू परिवार उजर गे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

नानूक कथा - " कहानी पूरगे "

 नानूक कथा -

       "  कहानी  पूरगे "


            -मुरारी लाल साव


 ओ दिन अपन आँखी म देखे सुने हँव lतिराहा के घटना हे-

" मय  कुछु ला नइ जानव बाबू मय कुछुछ ला नइ जानव!" 

डोकरी दाई गिड़गिड़ा वत रहिस l जवान पुलिस अपन काम करत रहिस पूछे के l

"तै  बता येला कहाँ  ले लानेस? 

" नइ जानव  बाबू!

एक झन मोला राखे  ला कहिस l देखबे  दाई थोकून  मोर समान ला बस आवत हँव 

कहत  चल  दीस l पानी पौखार लागिस होही ओला l "

"ओ तो अपन काम ला बनालिस, तोर तो होगे?" जवान पुलिस कहिस l 

"अइसने करही कहिके नइ जानत रहेंव l"

"धंधा वाले मन एक दूसर ला जानथे?

" कब ले शुरू करे हस बेचे के धंधा ला?

"केरा बेचे के? 

खिसियावत जवान पुलिस -

ये गाँजा भाँग के?

नइ जानव बाबू  ये ला?

सब जानथस समझे?

बेच डरे केरा?

तोर कहानी पूरगे,सही सही बता l

पुलिस गाड़ी के सायरन बाजत आइस डग्गा म बैठार के ले गे i

कुछ बेरा बाद उही आदमी आइस पूछिस -' केरा वाली दाई ला देखे हव का?

उही मेऱ डिवटी करत जवान पुलिस ओकर घेँच ला धरिस 

 "चल बताहूँ कोन मेऱ हे डोकरी दाई ह !"

तोला केरा लेना रहिस ना?

जवान पुलिस ताना मार के पूछिस l

अकबकहा असन चेहरा बना लीस l

सायरन बाजत फ़ेर गाड़ी आइस उहू ला धर के लेगे l 

न दाई लगत हे न भईया

धंधा के पीछू बड़े रूपय्या l 

चार घंटा के भीतर

केरा वाली दाई आगे ले ओकर जघा म  बैग वाले अंदर होगे

ओकरे बैग मा तीन किलो गाँजा मिलिस l 


केरा वाली दाई बैग वाले मन के ऊपर ले अपन भरोसा ल उठा लीस l


जवान पुलिस अपन निगरानी म जबरदस्त डियूटी करत हे 

ओकर डिवटी ला देख बहुत झन के कहना हे -" ये हा गलत होवत हे l"

 सफ़ेद टोपी गमछा लपेटे दू चार झन "गंजहा मन " गंजावत रहिस l 


      - मुरारी लाल साव

               कुम्हारी

Saturday, 12 July 2025

*छत्तीसगढ़ी रंग नाटक* (हिंदी आलेख)

 -


                *छत्तीसगढ़ी रंग नाटक*

                      (हिंदी आलेख)



          यहां मैं दो अति विशिष्ट नाटकों का जिक्र करना चाहूंगा । उनमें प्रथम है डॉक्टर नंदकिशोर तिवारी द्वारा लिखित और डॉक्टर योगेंद्र चौबे द्वारा निर्देशित,और रँगदल ' गुड़ी  'द्वारा प्रदर्शित नाटक - रानी दई (रानी दई डभरा के ) 



              नारी विमर्श के चरमोत्कर्ष को अपने आप में सहेजे इस नाटक की कथावस्तु ,नारी के ह्रदयऔर प्राण दान, और पुरुष के द्वारा उसे भोगवादी एक वस्तु (कमोडिटी) माने जाने के बीच संघर्ष की  कथा है । अत्यंत संक्षिप्त में कथा सूत्र के रूप में कहा जा सकता है- डभरा रियासत का जमीदार या राजा, अपने संबलपुर प्रवास के दौरान वहां किसी रूप लावण्यवती तरुणी के साथ संबंध स्थापित कर लेता है ।और अपना काम समेट कर वापसी के समय उसे 'भोग्या' मानकर वहीं छोड़ देना चाहता है । पर वह साथ चलने के लिये अड़ जाती है । राजा कुटिलता के साथ उसे लाते हुए बीच रास्ते में  तलवार से गर्दन काटकर उसकी हत्या कर देता है। किंतु वापसी में अपराध बोध या (?)से उसकी दस्तक- धमक हर जगह सुनाई देती है ।और उसे वह दिखती भी है। सचमुच में देवी के रूप में उसका डभरा में आगमन हो चुका था । मगर उसने किसी भी प्रकार का प्रतिशोध नहीं लिया ।उसकी बस एक ही सोच थी कि मैं जिसको अपना कह चुकी हूं । वह मेरा है। भले ही उसने मुझे इसके बदले मौत दिया पर  वह मेरा अपना है ।और उसका प्रत्येक अपना भी मेरा अपना है। 


            और वह माता आज आराध्या होकर डभरा में जाग्रत देवी के रूप में विराजमान हैं ।उसका संकल्प वही है...  तुम मेरे अपने हो ।तुम्हारा हर चीज मेरा अपना है। ना केवल आज बल्कि आने वाले सभी समय में  भी । जहां जो व्यक्ति  इस धरा को स्पर्श करेगा ,वह मेरा अपना अपमान है । इस घटना को लेखक द्वारा अत्यंत सरलता के साथ दृश्यों में उसे उकेरा है । उसे तो  गुड़ी के द्वारा मंचित और डॉ योगेंद्र चौबे द्वारा निर्देशित इस नाटक को प्रत्यक्ष  देख कर ही अनुभव किया जा सकता है।




               ' रानी दई डभरा के '  एक सम्पूर्ण नाटक है।इसमें नाटक के सभी तत्व मौजूद हैं



1.कथावस्तु-

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  नाटक में तीन प्रकार की कथाओं का उल्लेख किया जाता है –


१ प्रख्यात


२ उत्पाद्य


३ मिश्र प्रख्यात कथा



       इस विश्लेषण में यह उत्पाद्य होते हुए भी ' मिश्र- प्रख्यात ' कथानक है।जनश्रुति और किवदंती को सहारा लेकर लेखक की कल्पना का  भी योगदान है।



             इन कथा आधारों के बाद इस नाटक में  'मुख्य' तथा 'गौण ' अथवा 'प्रासंगिक '  भी मौजूद है, जो मुख्य कथानक को अभिसिंचित करते हुए चलता है  ।  इसमें  प्रासंगिक के भी आगे 'पताका ' और 'प्रकरी ' भी  हैं । है। इसके अतिरिक्त नाटक की कथा के विकास हेतु कार्य व्यापार की पांच अवस्थाएं -प्रारंभ ,प्रयत्न , प्रत्याशा, नियताप्ति और कलागम  सभी मौजूद है।



             इसके अतिरिक्त इस नाटक में पांच संधियों  को भी चिन्हित किया जा सकता है।



2.पात्र और चरित्र चित्रण

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        ' रानी दई डभरा के ' एक नायिका प्रधान नाटक है । प्रतिनायक या खलनायक की जगह  पारंपरिक जमीदार है जिसके समक्ष स्त्री -वीर भोग्या वसुंधरा  की तर्ज पर वसुंधरा ही बन कर खड़ी है , जिसे जो चाहे अपनी बाजूओं के बल पर भोग ले ।



 नाटक में पताका और प्रकरी के प्रचलन के लिए बहुत सारे पात्र आते- जाते रहते हैं ।पर राजा के बेटे के रूप में एक सह नायक भी उपस्थित होता है  जिसके ह्रदय में नारी के प्रति श्रद्धा का प्रथम अंकुरण होता है । क्योंकि वह उसके वात्सल्य से अभिभूत है ।पात्रों का संयोजन अत्यधिक समीचीन है   जिसे योग्य निर्देशक ने अपनी कल्पना प्रवणता के बल पर थोड़ा मोड़ा फेरबदल  भी कर लिया है ।



3.संवाद

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              इस  नाटक के  संवाद सरल , सुबोध , स्वभाविक तथा पात्रअनुकूल छत्तीसगढ़ी में हैं जिसमें मिट्टी की सुगंध आप आसानी से पकड़ सकते हैं ।नीरसता के निरावरण तथा पात्रों की मनोभावों  को व्यक्त करने के लिए   स्वगत कथन तथा गीतों की योजना भी है।



4.देशकाल और वातावरण-

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          देशकाल वातावरण के चित्रण में नाटककार युग अनुरूप  चित्रण करने मे  विशेष सतर्क  रहा है। पश्चिमी नाटक के देशकाल के संकलनत्रय- समय, स्थान और कार्य की कुशलता  के बीज भी यहाँ उपस्थित है।



         इस नाटक में स्वाभाविकता , औचित्य तथा सजीवता की प्रतिष्ठा के लिए देशकाल वातावरण का उचित ध्यान रखा गया है।  पात्रों की वेशभूषा, तत्कालिक धार्मिक , राजनीतिक , सामाजिक परिस्थितियों  के अनुरूप है।



            पर एक दृश्य में नायिका का दोहरा गेटअप- सधवा और विधवा स्त्री का अद्भुत आकर्षण की उत्पत्ति करता है । वह विधवा की तरह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं ,जबकि सधवा की तरह मांग में सिंदूर है ।इस प्रकार निर्देशक और लेखक की आत्मा  का एकालाप होते हुए  अद्भुत फंतासी की रचना हो जाती है और नाटक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है ।



5. भाषा -शैली

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नाटक  'रानी दई डभरा के ' की  भाषा शैली सरल , स्पष्ट और सुबोध  है । जिससे नाटक में  विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है। बोलचाल की छत्तीसगढ़ी में रची गयी इस नाटक से प्रेक्षक सहजता से जुड़ जाते हैं।



6. उद्देश्य 

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यह नाटक नारी विमर्श को केंद्र में रख कर प्रस्तुत होता है। पुरुष पहले स्त्री को उपभोग की सामग्री मानकर उसका उपभोग करता है। यहां तक कि उसकी हत्या भी कर देता है ।और कालांतर में, उसी को देवी मानकर  उसकी आराधना भी करता है । पुरुष के इस दोहरे और दोगले चरित्र को यह नाटक बखूबी उजागर करता है । ना केवल छत्तीसगढ़ अभी तो भारत के कई भूभाग पर ऐसे मिलते -जुलते वृतांत वाले कई किस्से मिल जाते हैं । जिसमें पहले पुरुष अनाचार, दुराचार ,अत्याचार सब करता है। बाद में आराध्या बनाकर  उसका उपासक बन जाता है ।आज नारी सशक्तिकरण के इस युग में किसी नारी के प्रति ऐसे अत्याचार की पुनः पड़ताल की जा रही है । और नाटककार  का यही प्रतिपाद्य विषय वस्तु भी है । नारी विमर्श को प्रस्तुत करना नाटककार का मूल उद्देश्य  है ।



7. मंच-ध्वनि-प्रकाश-अभिनेता

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           निर्देशक डॉ योगेंद्र चौबे  रूप , आकार , दृश्यों की सजावट और उसके उचित संतुलन , परिधान , व्यवस्था , प्रकाश व्यवस्था आदि का पूरा ध्यान रखते हुए इसे आधुनिकता से लबरेज रखते हैं।  लेखक की  भी दृष्टि रंगशाला के विधि – विधानों की ओर विशेष रुप से  है। इन सब में  इस नाटक की सफलता निहित है।



            ऐसे ही 'पहटिया '  भी पूर्ण सिद्ध नाटक है।भूमकाल आंदोलन -गुण्डाधुर को जिस सहजता के साथ मंच पर उतारा जाता है वह डॉ0 योगेंद्र चौबे की व्यक्तिगत उपलब्धि है । मिर्जा मसूद के रेडियो रूपक को इसमें उन्होंने अपनी कथा का आधार बनाया है ।और एक नवीन नाटक की रचना की है । 'पहटिया ' के बहाने समग्र छत्तीसगढ़ के  प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन का एक सशक्त बानगी हम मंच पर देख लेते हैं ।यह डॉक्टर योगेंद्र चौबे की एक निर्देशक के रूप में निर्देशित की जाने वाली श्रेष्ठ नाटकों में शुमार है । रंगमंच के सभी तत्वों को सभी नोर्मों  को पूरा करते हुए अत्यंत सारगर्भित एवं प्रभावशाली प्रस्तुति देखने को मिलती है । या छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों की दास्तान है जिसमें गेंद सिंह , वीर नारायण सिंह से आगे चलकर गुंडाधुर तक कथा विस्तार पाता है पर केंद्र में एक पहटिया है जिसके द्वारा  कथा विस्तार होता है । 


        इसी क्रम में डॉक्टर योगेंद्र चौबे के द्वारा पं0 द्वारका प्रसाद तिवारी' विप्र '  के कई नाटकों का भी मंचन किया गया है ।



          इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी सिद्ध नाटकों की श्रेणी में और कई नाम शामिल हैं। जिसमें राकेश तिवारी द्वारा निर्देशित नाटक- राजा फोकलवा, अजय आठले के प्रसिद्ध नाटक  'बकासुर', घनश्याम साहू  का अघनिया प्रमुख है  । प्रख्यात रंगकर्मी मिनहाज असद, मिर्जा मसूद ,सुनील चिपड़े जैसे कई रंग निर्देशकों ने कुछ अनुदित छत्तीसगढ़ी नाटकों का भी मंचन किया है और छत्तीसगढ़ी भाषा की श्री वृद्धि की है । 



              लोक कथा शैली के अद्भुत रचनाकार श्री विजय दान देथा की मूल कहानी पर आधारित डॉक्टर योगेंद्र चौबे का 'बाबा पाखंडी '  दूसरा 'चरणदास चोर' बनने की राह पर चल निकला है । लोक नाट्य शैली नाचा और पंडवानी गायन को अपने आप में आत्मसात करते हुए यह यह नाटक 70 से भी अधिक बार  मंचित किया जा चुका है । नाट्य लेखन, परिकल्पना और निर्देशन प्रसिद्ध रंग निर्देशक और रंगकर्मी डॉक्टर देवेंद्र चौबे  का है ।आप राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ,दिल्ली के उत्पाद हैं ।



         बाबा- पाखंडी ,एक प्रकार से जन नाटक ही है। इसमें रंग जगत की तकनीक कम, कला और कौशल के साथ ही व्यक्ति का जीवन प्रमुखता से उतरा है । बाबा पाखंडी वह नाटक है जो लोग की चिंता करता है ।जन की चिंता करता है ।और राजनीति के चाटुकार प्रवक्ता मीडिया की मुखालफत  भी करता है। और बाबा पाखंडी जैसे अवांछनीय तत्व को गधे की सवारी प्रदान करने का दुस्साहस भी करता है । और गधा भी कोई ऐसा वैसा नहीं, परम सत्यवादी , जो अपने हृदय परिवर्तन के उपरांत विद्रोही हो जाता है ।और अपने मालिक बाबा के खिलाफ मुंह खोलता है ।तब- गधे ने किया कमाल, जी सच का लिया है नाम... जैसे गीत की मंत्रमुग्धकारी सामूहिक प्रस्तुति होती है । एक प्रकार सदैव सत्ता से पंगा लेने वाले और आखिरी सिरे पर खड़े हुए 'आदमी ' की तलाश में भटकने वाला- एक्टर इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन का जननाट्य धर्मी तेवर इसमें कहीं ज्यादा प्रखरता से दिखाई देते हैं ।धर्म ,अंधविश्वास और धन को राजनीतिकारों ने अपना हथियार बना रखा है । बाबा पाखंडी की रचना करने वाले ने बाबागिरी के धंधे को कारपोरेट जगत से भी ज्यादा लोकलुभावन और संपन्न पाया । अपने तमाम कूटनीतिक दांव पेंच लगा  विश्वास, खेल ,रिश्ता, लोक, भयदोहन ,सत्ता प्राप्त करने की अभीप्सा  के बीच -बाबा पाखंडी का अवतार होता है । और एक ही आवाज में यह बहुत कुछ कह जाता है । रामनाथ साहू के नाटक- जागे जागे सुतिहा गो !   में भी यही बुना गया है । गांव का भ्रष्ट कोटवार कोटवानंद बन जाता है । यह नाटक तत्कालीन पढ़े-लिखे ,संभ्रांत कुलीन जैसे बड़े-बड़े शब्दों से विभूषित किए जाने वाले समाज में भी बाबाओं की गहरी पैठ पर सीधा प्रहार करता है कि संबंधित व्यक्ति तिलमिलाने के सिवा और कुछ नहीं कर पाता है । नाटक का मुख्य पात्र रंग बदलने वाला गिरगिट जिसे छत्तीसगढ़ी में 'टेटका' कहा जाता है । यह राजनीति और बाबागिरी की जो दुरभि संधि है,उसे  पूरी तरह से परत दर परत  उखाड़ता है। जमीन पर पड़े हुए आखरी तृणमूल व्यक्ति से मंदिर के कंगूरे जैसा सत्तासीन होने का जो प्रपंच और छल है उसे यह नाटक प्रदर्शित पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत करता है ।



          यद्यपि सिनेमा नाटक एवं रंगमंच की इतर वस्तु है ।इसके बावजूद भी डॉ योगेंद्र चौबे के निर्देशन चमत्कार को हम 'गांजे की कली ' में देख चुके हैं । 



        इस प्रकार छत्तीसगढ़ी नाटक भी अपनी पूरी क्षमता के साथ किसी भी रंगमंच पर  अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम  हैं । 




*रामनाथ साहू*



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हमर आखर कहिथे का - सुत -सूत -सूंत

 हमर आखर कहिथे का -

     सुत -सूत -सूंत 

(अर्थवैज्ञानिक विवेचना )

सुत माने बेटा या पुत्र होथे l हिंदी संस्कृत ले आये है l अंजनी सुत हनुमान l उमा सुत श्री गणेश l देवकी सुत श्री कृष्ण l कौसिल्या सुत श्री राम l

सुत के प्रयोग धार्मिक कथा के पात्र मन बर होथे l 

छत्तीसगढ़ी म कहिथन - "सुत जा बेटा रात होवत हे l " 

(सोना या सुलाना ) 

हमन कहाँ कहिथन - " जगत सुत पवन कुमार l या मंगलू सुत रमेश l ब्रिंदा सुत धनी राम 

थोकिन अउ आघू बढ़न -

" सूत जगेसर बने सूत l"

जगेसर तो सुतही रात भर जागे हे,बने नींद भर सुतही l 

 देखव सूत  बडे ऊ के मात्रा के प्रभाव  म अर्थ बदल गे l(सूत -सोना)

सू म अनुस्वार बिंदु सूं ले सुंत के मतलब हे धागा l एखरे से बने हे सूंतरी l पतला रस्सी l

मोटा होगे त डोरी अउ मोटा होगे त डोर l

डोरी अउ सूं तरी म अंतर हे l

" पुड़िया ला सूंत मा बांध के ला l " 

बोरा ला सूं तरी म बांधे जाथे l

पैरा ला डोरी मे या रस्सी म बांधे जाथे l

कुंआ ले पानी निकाले बर डोरी या डोर के उपयोग करे जाथे l

"सूजी (सुई)म सूंत (धागा ) बुलकथे l " दर्जी कपड़ा सिथे l

लिखे बोले म मात्रा प्रयोग म शब्द अपन अर्थ ला बदल देथे l

( शब्द के अर्थ वैज्ञानिक अध्ययन )  

                - मुरारी लाल साव

                   कुम्हारी

नानुक कथा - "आँसू के बँटवारा"

 नानुक कथा -


   "आँसू के बँटवारा"

 

   बेरा अपन बेरा म निकलीस l

भरत अपन परिवार के भार ला अपने मुड़ी मा बोहे रहिस l बेरा के ऊवे के अगोरा करतिस l 

साईकिल मा टिफिन अउ पानी के बोतल रख के निकल गे अपन काम म l 

 भरत के परिवार म  छै झन हे l ओकर दाई -ददा ओकर पत्नि सतिया अउ 14 बरस के नोनी कुंती,9 बरस के बाबू करन l  

भरत के जादा आमदनी नई हे,बस गुजर बसर कर्रे के पुरता l जइसे तइसे परिवार चलय l

ओकर दाई ददा मन पसरा लगाके साग भाजी बेंचय l सतिया पालिका के कचरा गाड़ी के सफाई मितानिन रहिस l 

अल्हन कब अउ कइसे आ जही कोनो जानय नहीं l 

आथे बिपत त कुछु सूझय नहीं l सियान के हाँथ कटागे हंसिया म l उहीच दिन भरत के दाई ला गोल्लर हुमेल दीस l कलहरत बइठे  रहिन दूनो l सतिया ला मलेरिया बुखार आगे ओहा खटिया म सुते काँपत रहिस l

नोनी कुंती अउ करन  उंकर तीर म रहिस l 

   सँझा कुन भरत काम करके आइस l आज ओकर घर म सन्नाटा अउ लाचारी पसर के बइठ गे रहिस l बताये के जरूरत नई पड़ीस ताड़ गे l

अल्हन समाये हे सब ला चुप कराके l 

  भरत के आँखी ले आँसू डबक के निकले ला धरिस lओला देखके ओकर दाई दाई ददा के आँखी ले आँसू बोहाये ला धर लीस l सतिया के आँखी के धार ला कुंती अउ करन पोंछत रहिस l  पहिली बार दिखे ला मिलिस आँसू के बँट वारा होवत l  

करन पूछथे  -बाबू! तोर आँखी ले आँसू निकलत देख हमर सबके आँखी ले आँसू काबर निकले ला धर लीस?  

आँखी ल देख आँखी आँसू के बँटवारा कर दीस  बेटा!

एके झन जादा काबर रोवय?

मिल बाँट के आँसू ला घलो पोछे तो हन l करन के दादा कहिस l

             - मुरारी लाल साव

               कुम्हारी

घमंडी पंडिताइन* कहानी डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी*

 *घमंडी पंडिताइन*

                             कहानी 

           डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी*


खैरा नाम के शहर मा एक झन संध्या नाम के पंडिताइन रहिथे। संध्या पंडिताइन के उमर 60 बछर हे। येकर 3 झन बेटा हे। बड़े बेटा रोशन होटल चलाथे वोकर दू झन 12 अउ 10 साल के बेटी हे। बहू तारिणी गृहिनी हे 12पढ़े हे। कपड़ा सिले के काम करथे। मंझला बेटा दीपक अउ बहू प्रीति दूनों नौकरी मा हें। वोकर दू झन लइका हे 16 साल के बेटा पप्पू, 14 साल के बेटी स्वाती। छोटे बेटा रोहित जमीन खरीदी बिक्री के दलाली करथे। बहू संजू कॉलेज मा सहायक ग्रेड 3 के बाबू हे फेर येकर तेवर ला का कहिबे,,,,,,,,!

             संध्या पंडिताइन के गोसइंया हा कोरोना के  चपेटा मा सरग सिधार गे। घर के सबो जवाबदारी हा संध्या के हाथ मा आगे। संध्या पंडिताइन पहिली घलो घर के जवाबदारी संभालत रहिस फेर अपन गोसइंया ला घेपत रहिस। अब तो संध्या पंडिताइन तिजौरी के चाबी धरे ले मोर…. मोर … के राग अलापे धर लिस। संध्या पंडिताइन अपन जमाना के स्नातक पास हे हिन्दी मा। वोला अपन पढ़े लिखे अउ सुघरई के पहिली घलो घमंड रहिस अभी घलो हे। इही घमंड मा पंडिताइन अपन घर के बहू मन ला कुछुच नइ समझे। पारा पड़ोस के मन ला तो अपन धन अउ पढ़े लिखे के रोब देखाथे। 

अपन तीनों बहू ला जइसने नचाथे ओ मन वइसने नाचथे। अपन बड़े बहू तारिणी ला तो वो रोज के वोकर दूनों बेटी के ताना दे दे के बहुतेच तपथे । कभू अनपढ़ कहिथे कभू तोर बेटी मन तो ससुरार चल दीही मोर का वंश बढ़ाही कहिके सतावे फेर कोनों कतका दिन ले सहही। एक दिन तारिणी वोकर ऊपर घरेलू हिंसा के केस कर दिस। फेर पइसा के बल मा मामला ला रफा-दफा करा दिस। संध्या पंडिताइन तारिणी के माँ-बाप ला धमकाय ला धर लिस कि “तोर बेटी ला समझा दे नइ ते अपन घर ले जाव।”  अब रोज के चिकचिक ले वोकर बड़े बेटा बहू घर ले अलग होगे। तभो ले पंडिताइन के घमंड नइ टूटिस। येती छोटे बहू संजू ये सब ले समझो तो घर के सब काम धाम लक्ष्मण के अपन नौकरी में ध्यान देगा

      अब संध्या पंडिताइन के मंझली बहू प्रीति हा अपन सास के जी हुजूरी मा रोज “जी अम्मा….. जी अम्मा …..” । काहत वोकर दुलौरीन बहू बने रहिस। अपन नौकरी ले जादा वोला अपन सास के जी हुजूरी अच्छा लगे। येकर दूनों लइका अपन महतारी ले जादा पंडिताइन कर रहे। प्रीति काम के मारे अपन लइका मन ऊपर धियान नइ दे सकिस। जइसने संग तइसने रंग वोकरो मा चढ़गे। पंडिताइन वोकर दूनों लइका पप्पू अउ स्वाती ला बचपन ले अंगिया डरिस। पंडिताइन अपन नाती नतनिन ला संस्कार दे बर छोड़ के वो मन ला पइसा के दुरुपयोग करत मनमाने खरचा करे बर, आनी-बानी के खाय पिए बर, ठाठ-बाँट ले रेहे के आदत बना दिस। मध्यम वर्ग के बेटी प्रीति सुख साधन के चक्कर मा ये बात ला समझे मा देरी कर दिस लइका मन वोकर हाथ ले निकलत हें। अउ पंडिताइन वोमन ला भड़कावत हे। लइका मन अपन महतारी ला ये प्रीति, ये दीपक के बीबी कहिके बोले। महतारी ला महतारी नइ समझय। दीपक घलो पढ़े लिखे होके गँवार कस अपन महतारी के जुबान बोलय। अउ लइका मन ला वहू अपन मुड़ी मा चढ़ा डरिस। 

      पंडिताइन परिवार के सियान ले लेके लइका तक सबके जुबान हा थर्ड क्लास, संस्कारहीन होय के सेती पारा पड़ोस के मन कोनों उनकर मुँह नइ लगँय। दीपक अपन बाई प्रीति ला छोटे घरके, गँवार, नौकरानी कहिके नशा मा अब्बड़ गाली गलौज संग मारय पीटय। 

        अब धीर-धीरे संध्या पंडिताइन अपन नान्हे बेटा रोहित संग मिलके जमीन के दलाली करत जरूरतमंद मन ला जादा बियाज मा पइसा दे के काम शुरु कर दिन। अब संध्या पंडिताइन ला छोटे बेटा रोहित अउ बहू संजू हा जादा निक लागे लगिस। बछर भर मा पंडिताइन रोहित संग मिलके खूबेच पइसा कमइस। अब पंडिताइन “हाय संजू हाय रोहित” कहिके दीपक ला कोनों काम बर पूछना जरूरी नइ समझय। इही बात बर एक दिन रोहित अउ दीपक मा झगड़ा होगे फेर पंडिताइन दीपक के पक्ष ले लिस। मंझली बहू संजू अपन सास अउ अपन गोसंइया के सरोटा खींचे धर लिस। फेर दीपक अपन महतारी ला कुछु नइ कहिस उल्टा प्रीति बीच मा बोलिस ता उही ला एक झाफड़ मार दिस। अब प्रीति घलो अपन सास के सबो चाल ला समझगे कि वोकर बर पइसा ले बड़ के कुछु नइ हे। जेती पइसा तेती वो। प्रीति सोचथे मोर सास अपन पइसा के अहम मा मोर लइका मोर पति सब ला अपन बस मा कर लिस। में येकर जी हुजूरी सेवा करथँव येला तात-तात रांध के खवाथँव। ये मोर दाई ददा ला रोज चार ठन गारी देथे अउ तो अउ ये मोर नौकरी बर मोला पहिली घर तेकर पाछू तोर ईस्कूल कहिथे। येकर सेती में समे मा कभू ईस्कूल नइ पहुँच पाँव मोर बदनामी होथे। अउ ये संजू अपन नौकरी अपन पइसा ला धर के मजा करत हे। अउ मोर आदमी ला घलो चाय मा खुसरे माछी जइसे चूस के फेंकत हें। अब तो मिही मोर सास के घमंड ला टोरहूँ अउ मोर लइका मोर आदमी ला सही रद्दा मा लाहूँ कहिके अब प्रीति अपन सास के बात मानना छोड़ दिस। धीरे-धीरे अपन दूनों लइका पप्पू अउ स्वाती ला सही गलत मा अंतर करे बर सिखाथे। अपन आदमी के नशा ला छोड़ाय बर आनी बानी के उदिम के संगे संग बड़ पूजा पाठ करथे। धीरे-धीरे प्रीति के लइकामन के बेवहार मा सुधार आथे। ये सब ला देख के संध्या पंडिताइन प्रीति संग गोठ बात बंद कर देथे। इही बीच पंडिताइन के बिना लाइसेंस के बियाज मा ग्राहक मन ला पइसा देवई मा लूट धोखाधड़ी के मामला मा एक झन ग्राहक परेशान होके पंडिताइन अउ रोहित के खिलाफ पुलिस मा रिपोर्ट लिखा दिस। कहिथे ना शेर ला सवा शेर मिलथे। जेल के हवा खाय के डर ले पंडिताइन अउ रोहित महीना भर भागे-भागे फिरिन। येमा पंडिताइन के पइसा, मान सनमान सबो माटी मा मिलगे अउ महतारी बेटा ला जेल के हवा खाय ला पड़िस तभो चेत नइ चढ़ीस। जमानत मा छूटे के बाद जब घर आईस ता संध्या पंडिताइन अपन नाती पप्पू ला कहिस –“बेटा मेरी आरती उतारो देखो मुझे कुछ नहीं हुआ मैं छूट गई मेरे पास पैसा है, मैं पढ़ी-लिखी हूँ।” 


     पप्पू भीतरी मा अपन महतारी  प्रीति कर चल दिस। पंडिताइन जइसनेच घर के भीतरी मा गिस वइसनेच प्रीति हा कहिस– “अम्मा जी लौ अब तुँहर छोटे बहू बेटा मन तुँहर जतन करही, तुँहर मंझला बेटा दीपक तुँहर सेवा जतन करही। में छोटे घरके गँवार नौकरानी बेटी अब अपन दूनों लइका ला धर के जावत हों किराया मा रहूँ।  तुँहर झूठ-मूठ के बाँचे-खोचे  मान सनमान तुमन ला मुबारक हो काहत घर ले निकलथे। अतका ला देख सुनके संध्या पंडिताइन के छाती धकधकागे। वो जान जथे येमन घर ले बहिरी जाही ता मोर अउ बद्दी होही। फेर मोर असली सेवा तो प्रीति हा करही काबर कि ये धीरन भले हे फेर ये संस्कारवान हे कहिके तुरते हाथ-पाँव जोर के प्रीति ला रोक लिस। प्रीति सरत रखथे कि –”तुमन घर के लइकामन ला सही रद्दा देखाहू, संस्कार सिखाहू, परिवार ला जोड़ के रखहू, एक दूसर ला सनमान देहू तभे में घर मा आहूँ।” 

संध्या पंडिताइन के घमंड हा टूट जथे वो अपन बहू प्रीति ले माफी माँगथे अउ कहिथे– “प्रीति पढ़े लिखे होके गँवार कस काम में करत रहेंव अउ गँवार तोला काहत रहेंव। में अपन धन अउ पढ़े लिखे के अहम मा कुछु ला नइ देख पावत रहेंव।” प्रीति कहिथे –– “कभू-कभू सियानमन भटक जथे ता लइका मन ला सियान मन के के आँखी खोले बर पड़थे अम्मा।”  पंडिताइन अब लइकामन के पढ़ई लिखई मा मदद करथे। दीपक ला प्रीति बर भड़काना बंद करथे। अपन भाखा बेवहार ला सुधारत आगू बढ़त पइसा-पइसा के मोह ला छोड़ के अपन तीनों बेटा ला बराबर मया करथे। अब प्रीति अपन सास अउ अपन गोसंइया के गलत काम मा अवाज उठाय बर सीखगे। अपन नौकरी के काम ला समझत अपन छबि ला सुधारे के प्रयास करत आगू बढ़त हे।


कहानीकार

डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़

मेडे- मेडे-मेडे

 मेडे- मेडे-मेडे

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बेटा दूनो घरेलू काम से रायपुर गे रहेन।वापसी मा हाइवे मा दूनो तरफ लम्बा जाम लगे रहिसे।कारण पता करेंव त पता चलिस के बस अउ ट्रक मा एक्सीडेंट होगे हे।दस-ग्यारा आदमी मर गे हें।बहुत झन घायल हें।लोगन हाइवे जाम कर दे हें।पुलिस वाले मन आन रद्दा ले जाये बर सब झन ला लहुटावत रहिन ।हमू मन लहुट गेन।गाड़ी लड़का चलावत रहिस। एहू कोती रस्ता जाम ।गाड़ी मन कछुवा कस सरकत रहिन।अचानक लड़का के मोबाइल बार बार बजे ला धर लिस। मैं कहेंव -झन उठा--गाड़ी चलाये मा चेत कर नहीं ते ठोंका जही। वोती मोबाइल बजना बँदे नइ होवत रहिसे।लड़का सो मोबाइल ला माँग के उठायेवँ अउ मेडे- मेडे -मेडे कहिके काट देंव।


चोवाराम वर्मा 'बादल '

फैसला* *(छत्तीसगढ़ी लघुकथा)*

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                      *फैसला*

            *(छत्तीसगढ़ी लघुकथा)*



       चउक - चौराहा म चारों रस्ता मिलिन अउ गोठियाय लॉगिन।

"मैं उत्ती ले आवत हंव।"एकझन कहिस।

"अऊ मंय उत्ती कोती जात हंव।"वोकर आगु म अड़े रस्ता कहिस।

"मंय तो समझ नई पात अंव कि मंय कोन कोती ले आत हंव या कोन कोती जात हंव..."वो दुनों रस्ता मन ल आढ़ा काटने वाला एकझन आन रस्ता कहिस।

"अरे चुपव भी !हमन न कनहुँ कोती ले न आत हन न कनहुँ कोती जात हन। हमन तो बस अपन ठउर म डट के जमे भर हावन ।जाने आने वाला तो आदमी आय।हमन नहीं..."छेवर बांचे रस्ता हर, तब वो सब मन ल डपटत  फैसला सुनात कहे रहिस वोतकी बेर ।


*रामनाथ साहू*


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छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता हमर भाखा म कइथे-

 छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता


हमर भाखा म कइथे-

      " परदा " 

परदा के अलग -अलग प्रयोग म अलग -अलग अर्थ निकलथे -कपड़ा, इज्जत, दीवाल, भेद रहस्य, रिवाज, नाटक के अंक, प्रथा आदि

वाक्यों म प्रयोग होये हे -

1कुरिया मन म परदा लगे हे (कपड़ा)

2 अपन बहू ला परदा म राखे हे l (इज्जत से)

3बियारा के परदा फूट गे हे l (दीवाल )

4 परदा के भीतरी म सब खेल होथे l( गलत काम)

5 परदा तोप के राखे हे l(छिपाकर)

6जेन दिन परदा खुलही तेन दिन देखबे l ( भेद, रहस्य)

7 परदा अब गिरही l      (नाटक के अंक) 

8 परदा कर बहू तोर जेठ आवत हे l(घूंघट कर)

9 परदा प्रथा बंद होवत हे l

( मुँह ढांकनें क़ी रिवाज l) 

10 परदा ऊपर परदा तोपे ले का होही l(कमजोरी क़ो बार बार छिपानें से )

11 अपन भीतर परदा रखबे तोरे बर घातक होही l (अवगुण  रखने ) 

12 बिन परदा के कोन रहिथे?

(बिना मर्यादा के)


बोलबो लिखबो तभे जानबो l

           

             - मुरारी लाल साव 

                  कुम्हारी

पाठ्य पुस्तक बनगे कबाड़

 पाठ्य पुस्तक बनगे कबाड़

पाठ्यपुस्तक कबाड़ी तीर देखे के बाद खलबली मचगे। अभी पिछले शनिवार 14 जून के एक विडियो निकलिस। येमा देखाये गे रहिस हे के सांकरा स्कूल म संकुल समंवयक पूर्णिमा वर्मा ह कबाड़ी मन ल स्कूल म बलाये रहिस हे अउ निःशुल्क बांटने वाला पुस्तक मन ल बेचत रहिस हे। गाँव वाला मन देख लिस अउ तुरंत ओखर विडियो बना लिन। पऊर बछर भी रायपुर ले आये पुस्तक मन ल सिलियारी के एक कारखाना म बेच देय गे रहिस हे। ओला तुरंत सस्पेंड कर देय गिस। शाला विकास समिति अध्यक्ष नोहर वर्मा घलो मौका म पहुंचिस अउ उच्चाधिकारी मन ल ये मामला के शिकायत करिस।


खैरागढ़ म 11 महीना पहिली एक सरकारी स्कूल के प्राचार्य ह अपन  मनमानी करत  स्कूल के 550 किलो किताब ल कबाड़ी ल बेच दिस। बजेस रुपिया किलो म स्कूल के प्राचार्य ह करीब 550 किलो किताब के 11000₹ कमा लिस। मामला जब  आगू म अइस त शिक्षा विभाग ह जांच के आदेश दिस।


जिले के छुईंखदान विकासखंड के ग्राम ठाकुरटोला के शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय म बलदाऊ जंघेल प्राचार्य पद म रहिस हे। ओखर ऊपर आरोप हे के ओ ह छात्र-छात्रा मन बर आये किताब अउ ओखर प्रायोगिक फाइल मन ल रद्दी म बेच दिस।

ये किताब मन के छपाई म लाखों रुपिया हर बछर खर्च होथे। विद्यालय के पुस्तक प्रभारी मनोहर चंदेल ह जिला शिक्षा अधिकारी खैरागढ़ ल किताब बेचे के  शिकायत करिस।

येखर बाद जिला शिक्षा अधिकारी ह गंडई के प्राचार्य ल जांच अधिकारी नियुक्त करके जांच करे के निर्देश देय रहिस हे। जांच अधिकारी ह 24 जुलाई 2024 के दोपहर 12 बजे प्राचार्य ल जांच बर स्कूल म उपस्थित होये बर बोले रहिस हे।


बताय गिस के बेचे किताब मन पिछले सत्र के रहिस हे। यदि पाठ्यक्रम म बदलाव नइ होय हावय त उही पुस्तक ल बांटे जाथे। अइसे म ये किताब मन बहुत झन लइका मन के काम आ सकत रहिस हे।


मई 2023 में भी खैरागढ़ शहर के ही स्वामी आत्मानंद स्कूल के किताब मन ल रद्दी के भाव म बेचे गे रहिस हे। प्राचार्य कमलेश्वर सिंह ह लइका मन ल बांटे के करीब 100 किलो पुस्तक ल कबाड़ी ल बेच दिस। मामला सामने आये के बाद कमलेश्वर सिंह ल प्रभारी प्राचार्य के पद ले हटाके अस्थाई रूप ले शासकीय विद्यालय कांचरी म ट्रांसफर कर देय गिस।


ये मामला म  विभाग जांच नइ करवा पइस।विभागीय लीपापोती आज तक चलत हावय। जांच होवत हे कहिके सब बांच जथें।


सरकार द्वारा करोड़ों रुपिया खर्च करके  किताब मन ल छपवाये जाथे अउ निःशुल्क बांटे जाथे। काबर के आर्थिक रूप ले कमजोर वर्ग के लइका मन ह किताब नइ ले सकंय त पढ़ाई ले वंछित नइ रहि जायें। थोरिक पइसा के लालच म आ के लइका मन के किताब ल  रद्दी के भाव म बेचत हावंय। 

पिछले बार के घटना के तो जांच ह लटके हावय फेर अभी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ह पाठ्यपुस्तक निगम के महाप्रबंधक ल निलंबित कर दे हावय।


कुछ मन विद्या दान परम दान के तहत कापी पुस्तक बांटथें। कुछ मन फीस के पइसा दे देथें। सरकारी नौकरी अउ शिक्षक ह पाठ्यपुस्तक ल बेच के हजार दस हजार रुपिया एक बेर कमा लिही त काये बिल्डिंग बना लिही। आजकल तो तनख्वाह घलो बहुत मिलथे। अतेक पइसा के का कमी हावय।


येला रोके बर किताब के पूरा हिसाब रखवाना चाही। एक रिकार्ड रखना चाही। एक अधिकारी ल येखर जांच करे बर भेजत रहना चाही। किताब जब दो बछर ले पुराना होगे तब ओला बेचे बर आवेदन करना चाही। शिक्षा विभाग के स्कूल मन के ये भ्रष्टाचार ह बाकी के आगू म बहुत बड़े हावय। गरीब बर पुस्तक छापत हावंय अउ ओ ह उंखरे तीर नइ पहुँचय। 


ये बछर ले सरकार ह बारकोड डाले हावय। स्कूल म कतका पुस्तक गे हावय ये बखर कोड ल सँकेन करके डालत हावंय। हर स्कूल के अलग अलग बारकोड हावय। अब कचरा म बेचे पुस्तक होवय या कबाड़ी तीर के पुस्तक होवय तुरंत पता चल जही के ये पुस्तक कहाँ ले आये हावय


आज स्कूल के भवन, स्कूल के शिक्षक, मध्यान्न भोजन सब बर सोचे के जरुरत हे। पुस्तक तो सरकार देवत हावय, स्कूल जाये बर साइकिल घलो मिलत हे। सबले बड़े बात हे शिक्षण विधी अउ संस्कार डालना। आज येखर तरफ भी ध्यान देय के जरुरत हे। छात्र एक शिक्षक ल चोरी करके पुस्तक बेचत देखही तब का होही ओखर उपर का संस्कार परही??

सुधा वर्मा 22/6/2025

लघु कथा -

 लघु कथा -

     " बने बने भउजी " 

 "नजर लगाये बइठे रहिथे,चौरा बनाये हे एखरे बर l "देवकी बड़बड़ावत बाहिर ले घर भीतरी आइस l 

लता ला देख -देख के जलय l 

खूबसूरत घलो हे अउ पढ़े -लिखे हे l देवकी के पति  कुमार ला भैय्या कहय l आँगन बाड़ी म भर्ती के आवेदन दे रहिस l देवकी के पति कुमार उही ऑफिस म बाबू हे l ओला पूछे बर ओकर आये के रद्दा ला देखय l भउजी के आदत ठीक नई हे भाई ला फोकट म लड़ही l इही सोच के ओकर से बातचीत नई करत रहिस l उरभेट्टा हो जतिस त अतके कही के पूछ लेतीस -"

भउजी बने बने हस l"

देवकी मन के भरम ले ताना  मारत कहितिस -" तै बने हस तेला देख l"

 देवकी अपन घर भीतरी म बड़बड़ावत रहितिस -"मोर एड़ी के धोवन, बने बने भउजी कहिथे l "

एक दिन कुमार समझावत कहिस -" मोर बहिनी अस हे अपन नौकरी के आदेश के बारे म जाने बर l

तै ओला पता नहीं का का कहत रहिथस? 

अपन  काम बूता म लग़ जही तोला देखय घलो नहीं l

दाग लगे ले सब डरथे l 

            - मुरारी लाल साव

शाल सिरीफल मोमेंटो*. . ब्यंग (टेचरही)

 *शाल सिरीफल मोमेंटो*.

       .                         ब्यंग (टेचरही) 

 

     मेहला घर जब छट्ठी के पोँगा रेडिया बाजत सुनेँव तब लागिस कि हिनमान के पेँदी मा घलो सम्मान लदकाय रथे। परोसी होय के नाता ले हमला का हे नेँवता मिलगे तब तो भात खाके आना ही हे। सँगे सँग गाड़ा भर भर बधाई तो उलद  ही देबो। कुछ ईर्ष्यालु किसम के मन मा शंका के आलू  पिकियाये लगथे, कि उपर वाले घलो कतका चतुर हे। नकामी ला अतका बड़े सम्मान दे डारिस। फेर आसा मा निराशा के जुच्छा झेँझरी खपले ले का फायदा। हम तो उपरिया मन बनाके  सम्मानित जन के पोष्ट तक मा लाइक करे वाला ठेँगवा चपक देथन। धीरे धीरे पता चलथे कि मोरे सही कतको हे जे बिना पढ़े आदमी देखके पिछाटी बर लाइक के पिड़हा मड़ा देथें।कुछ तो मित्रता निभाना घलो परथे। 

           आधुनिक संदेश वाहक उपकरण मोबाईल के वाट्सअपी खोलखा मा  एक झन नामधारी कलमकार के पोष्ट ले ज्ञान सकेले बर पोस्ट मार्टम करत रेहेँव। ओइसे बड़े पोठ मोठ साहित्यकार के पोष्ट मा फकत लाइक ही करे जाथे।नामी दुकानदार के सरहा धनिया घलो मँहगा बेचाथे। टीकाकार बने ले भविष्य मा सम्मानित मंच मा चढ़े के मउका घलो हाथ ले निकल सकथे। पोस्ट ला पढ़े के बोहनी करत रेहेँव, अउ एक झन कलमकार मित्र के फोन आगे। किहिस कि! भइया राजधानी मा सम्मान बटइया हे आपो लाइन मा लग जावव। मोर मन के बिचार जागिस कि आजकल सम्मान मिलथे कहां। वो तो बेचावत हे अउ खरीदे जावत हे। तभो पूछ पारेंव कि नियम विधि विधान के हवन मा का का साँखला डारे बर लगही? मोर शुभ चिंतक जी समझाइस कि पहिली फारम भरबे, सदस्यता के दू हजार जमा करबे अउ खास काम सम्मान बाँटुक समीति के मुखिया ले मेलजोल बढ़ाबे। ओइसे चापलूसी अउ चमचागिरी हर सम्मान पाये के मूल योग्यता होथे । खाना के टोकन अउ आये जाये के खरचा तोर। फोटू खिंचइया अउ ताली बजइया अपन हिसाब ले रख सकत हावस।

             ओइसे मोरो नाम चरोटा अउ कुकुर मुत्ता काँदी कस उपजे कवि के लाइन मा सम्मान से लेय जाथे। मोला गरब हे कि कोनों कृपालु मन लिखइया के सँग जोड़े के किरपा तो करथें। मोर दमदारी ये हे कि मँय दमदार मनके पिछलग्गू आवँव। बस इही कला ले कृपापात्र बनके बड़का मंच मा घुसपैठी करत रथौं। जेकर ले छाटे निमारे नरियर ले सम्मान तो होते रथे। एक ठन शहर मा चार ठन अउ चार गाँव मिलके एक ठन सम्मान बाँटुक संस्था खुलगे हे। जेकर ले साहित्य मा जुड़े सब छोटे मन वरिष्ट होके सिरीफल अउ साटीफिकट झोँकत हे। मिलना घलो चाही काबर कि बिचारा मन समाज मा दरपन बेचे के काम करत हें। दोष तो हमर हे कि हम अपन असली मुहरन ला इँकर दरपन मा  देख नइ पावत हावन। अउ फेर जे भाई मन अतका बड़े बीड़ा उठाए हे आखिर कब तक गुमनाम अउ बेनामी के दिन देखहीं। मरणोपरांत मिले सम्मान के न तो शाल ला ओढ़े सकय ना नरियर ला फोर के खा सके। तेकरे सेती जियते जीयत सम्मान जनक सुख देय बर सम्मान बाँटुक समीति घलो उपजत हे। भले बिचारा मन खीर ला दोना मा ही सही  देवत तो हे। थारी मा देहीं तब  वो ठेकादार के का होही जे संस्था चलावत हे।

             ओइसे हमर मित्र के आठवां सम्मान के मउका आय। जेकर आनलाईन फारम भरके मोला फोन लागाय रिहिस। सरकारी नौकरी के भारी भरकम तनखाधारी अउ ऊँचहा पद होय के नाता ले जम्मो स्टाफ के डहर ले झोरा भर भर के मिले बधाई ले छाती कतका फुलथे सम्मानीराम बता सकथे। सम्मान आठवां जरूर हे फेर स्टाफ न तो मुहल्ला के बुद्धिजीवि  ओकर पहिली कविता सुन पाए हे। भला हो वाट्सअप फेसबुक के जे सम्मानित होय के सूचना जन जन तक बगरा देथे। एक झन मितान एकर  खबर पढ़के पूछिस कि! भाई  ये सम्मानीराम के साहित्य मा का योगदान हे? मँय मनेमन योग करेंव कि पहिली मंच मा दूसर के रचना पढ़े रिहिस। शितला दाई के भजन बने गा लेथे। दू अरथी पेरोडी करे ले पनही ले सम्मानित होवत  चूकगे। चुनाव बखत पारटी प्रचार बर गीत लिखिस उही गीत के चक्कर मा सरकार बनगे। अब विरोधी मन सम्मान करे के ताक मा हे।

                कोनो कोनो  साहित्य बैरागी मन कुआँ तो नइ कोड़िन न साहित्य के समुन्दर मा थाही मारिन। फेर पुरखौती झिरिया पानी ज्ञान सानके  परोस के मठाधीश बनगे। कतको अइसनो खानदानी हे जे मन बबा बाप के नाम के खड़पड़ी पहिर के  शाल सिरीफल मा लदावत हे। उलटबासी यहू कथे कि चेला सुभाव के मन गुरुज्ञान बाँटके मोमेंटो ले घर भरत हे। अउ गुरुजी कुआँ कोड़इया के जनम मरण दिन मनाके घोलहा नरियर फोरत हे। हमरे असन कोनों कुकुरमुत्ता समाज के कवि कहि दिस हे कि--गली गली मा गुरु फिर, चोर फुँकाए कान।. एक झन आदरणीय श्री के घर के कुरिया मा चारो कोती मोमेंटो ले सजे भरे  घर ला देखके पूछ पारेँव---कस जी आजकल एकरो बिजनेस करथो का? वो बताइस कि नही जी ये सब मोर सम्मान मा मिले हे। संतुष्टि ये सोच के होइस कि जरूर ये हर आमा अथान उपर सोध करे होही।

              एक झन के अढ़ाई कोरी किताब किलो के हिसाब ले छपे के चरचा तो हे फेर का लिखे हे ओकर थोरिक चरचा नइए। ओकर कारन अतके हे कि फखत लिखाऊ जगत मा पाव भर पढ़ाकू नइये। घर के सजे लाइब्रेरी के विमोचन मा मिले किताब ला झोँकइया नइ पढ़य। ओला दिँयार अउ मुसवा पढ़थें ये बात  देवारी के सफाई अभियान मा पता चलथे।

            सौ रुपिया के शाल ओढ़े बर सात सौ के खरचा बइठथे। तब लगथे कि आत्मा के अवाज के कीमत घोलहा नरियर ले जादा नइये। तभो ले सम्मान तो सम्मान होथे। हर हाल मे झोँकना चाही। एक झन सरकारी सेवक अपन बाचे बेरा ला फकत लिखे मा ही खरच करत हे। इही आस मा कि अब के सरकारी सम्मान बर मोरो नाम जुड़ जाए। ये अलग बात हे की चार लाइन के मुक्तक मा जेला जगाना रिहिस सुते रहिगे अउ जागे मन शाल सिरीफल झोँके के देखे सपना मा खुशी मनावत हें।

        हमर मित्र के आनलाइन रचना पाठ अउ आफलाइन प्रशस्ति पत्र झोँकत तीन झोरा भरगे हे। सुने हवँ अब ओकर नाम के आगू डाक्टर घलो चिपकने वाला हे। मँय ओकर रचना धर्मिता ला पैलगी करत हवँ। बिचारा के नजर मा जौन दिख जाय खड़े खड़े चार छंद रचना पेल  देथे। काँदा भाजी बेसरम फूल टूटहा पनही रेचका खटिया। पुरइन पान बरी बिजउरी अइसे कोनो चीज नइये  जेकर उपर लिख के समाज मा नवा  चेतना जन क्रांति नइ लावत होही। मानवीय संवेदना समाजिक सरोकार देश दुनिया अउ राजनीतिक उलट फेर के चिंतन बर समय नइ निकाल पावत हे। या तो मानहानि के डर घेरे होही। अइसन साधक के तो शाल सिरीफल मोमेंटो ले सम्मान तो होना ही चाही। एकर सम्मान के खबर अखबार मा आही तौ सम्मान बाँटुक समीति के नाम तो घलो सम्मान पाही। महामंडलेश्वर मन के वैचारिक लेख निबंध अवतरथे तब जानबा होथे कि सिरीफल के मन मा घलो भेद हे। भुँजवा पसरा मा जब झोझा परथें तब तो शक्कर के नाम चीनी हो जाथे अउ गुड़ हर गन्ना के तासीर खोजत रहि जाथे।

       हम उपर वाले ले बिनती करथन कि जेकर भाग मा शाल सिरीफल मोमेंटो परत हे वोकर असन के चोराय कविता, तीज तिहार के रचना मेला मड़ई के गीत फरा मुठिया के रचना हर तियासी बासी कस सदा दिन जन सुरता मा रहय। अवइया  पीढ़ी ला तो घलो जानकारी होय कि साहित्य के परिभाषा मा परी के योगदान हे कि भाषा के। बरदी के पाछू बाँसरी बजइया ददरिया के मुखड़ा मा फँसे हे। वरिष्ठ जन उत्तम तुकान्त बर हिन्दी के शब्द ला तिर तिर के बेजा कब्जा करत हें। आगू चल के मालिकाना पट्टा तो मिल ही सकत हे काबर कि आज के लइका अवइया बेरा मा खाँटीपना ले हजारों कोस दुरिहा हो जाय रही। अउ बाप ले झन पूछ देय कि व्हाट इज महतारी भाखा। बोले बर बोल भले मत फूटय फेर मोमेंटो बर काँछ वाले आलमारी तो बनवाय के दम तो हे।

             हमर  गाँव मा सफाई अभियान ले जुड़े महिला मन के सम्मान 26  जनवरी के नरियर धराके करे गिस। मोला लगिस कि एक जमादार के हाथ ले दूसर के सम्मान होवत हे। जेला हम समाज के गंदगी सफाई बर झाड़ू धराके चुन के भेजे  हावन। वो उलटा बिचारी मन ला सरहा नरियर मा भुलियारत हे। भ्रष्टाचार के विरोध मा मुक्त कंठ ले किँजर किँजर के कविता सुनाने वाला के सम्मान महाभ्रष्ट नेता के हाथ ले भरे मंच मा शाल सिरीफल ले होथे तब  प्रभावी कवि के आनंद हर परमानन्द मा बदल जाथे। बस जे दरपन ला समाज ला देखाय बर बनाय रिहिस, वोला सिरीफल मा कुचरे के बाँचे हे। दमदार मन के हाथ झोंके मोमेंटो ला अगला सिरीफल मिलत ले मुड़सरिया मा रखके सुतना ही हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

पाप अउ पुण्य* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा) - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .          *पाप अउ पुण्य* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)


                         - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


               कोलिहा मन के धर्मसभा मं पाप-पुण्य अउ धर्म-अधर्म उपर जोरदार बहस चलत रहिस। एक कोलिहा धर्मगुरु ले सवाल पुछिस- ' गुरुदेव, कुकरी चोरी करई पाप हे या पुण्य? '

           गुरुदेव तुरते जवाब दीन- ' कुकरी चोरी करना पुण्य के काम हे। ..... फेर यदि कोनो कोलिहा कुकरी चोरा के लानत रइही अउ तैं ओला चोरी करके भाग जाबे त एहा पाप होही! '

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ईदगाह* *(छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*

 *ईदगाह*

*(छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*



*पहलइया भाग*

रमजान के पूरा तीस रोजा के बाद ईद आय हे। कतेक सुग्घर, कतेक सुहावन बिहिनिया हे। रूख मा कुछ अनोखा हरियाली हे। खेत मन मा अनोखा रौनक हे, अगास मा कुछ अनोखा लाली दिखत हे। आज के सुरूज ल देखव, कतेक सुग्घर, कतेक शीतल हे मानो संसार ला ईद के बधाई देवत हें। गाँव में कतेक चहल-पहल हे। ईदगाह जाय के तइयारी होवत हे। ककरो कुरता के बटन नइ हे, परोसी के घर सूजी धागा लाने बर दउँड़त हे। ककरो जूमा टाँठ होगे हे, ओमा तेल डालेबर तेली के घर भागे जावत हे। उत्ता-धुर्रा बइला मन ला पानी काँजी दे दँय। ईदगाह ले लहुटत-लहुटत मँझनिया हो जाही। तीन कोस के पैदल रद्दा, फेर सैकडों मनखे ले जोहर भेंट, मँझनिया ले पहिली लहुटना असंभव हे। टूरा मन सबले जादा खुश हें। कोनो हर एक रोजा रखे हे, वो भी मँझनिया तक, कोनो उहू नइ रखे हें, फेर ईदगाह जाय के खुशी उंकर बाँटा के जिनिस आय। रोजा सियान समरत बर होही। इंकर बर तो ईद आय। रोज ईद के नाम रटत रिहिन आज वो दिन आगे। अब जल्दी परे हे कि मनखें ईद काबर नइ जावत हें। येमन ला घर के बुता के का चिंता हे! सेवई बर घर मा दूध अउ शक्कर हे या नइ, इंकर सेती, येमन सेवई खाहीं। ओ का जानही कि अब्बाजान काबर लकर-धकर चैधरी कायम अली के घर दउँड़त जावत हे। उनला का खबर हे कि चैधरी आज आँखी फेर लिही त ये सब्बो ईद मुहर्रम हो जाही। उंकर थइली मा तो कुबेर के धन भरे हुए हे। घेरी-बेरी अपन थइली ले खजाना निकाल के गिनथे अउ खुश होके फेर रख लेथे। महमूद गिनथे, एक-दू, दस-बारा! ओकर तीर बारा पइसा हे। मोहसिन के तीर एक, दू, तीन, आठ, नौ, पंदरा पइसा हे। ये अनगिनत पइसा ले अनगिनत चीज लाहीं-खेलउना, मिठई, बिगुल, गेंद अउ जाने का का! अउ सबले जादा खुश हे हामिद। वो चार-पाँच साल के गरीब सूरत, दुबर पातर टूरा, जेकर ददा पऊर बछर हैजा के भेंट चढ़गे अउ दाई न जाने काबर पिंवरा होवत होवत एक दिन मरगे। कोनो ल पता नइ चलिस, का बीमारी आय। कहितिस त कोन सुनने वाला रिहिस। अंतस मा जेन बीतत रिहिस, अंतस मा ही सहत रिहिस अउ जब बनइ सहे सकिस तब संसार ले बिदा होगे। अब हामिद अपन सियान डोकरी दाई के कोरा मा सुत जाथे अउ ओतके खुश हे। ओकर अब्बाजान पइसा कमाय बर गेहे। बहुत अकन झोला लेके आही। अम्मीजान अल्ला मियाँ के घर ले ओकर बर बड़ सुग्घर-सुग्घर जिनिस लाने बर गेहे; एकरे सेती हामिद खुश हे। आसा बड़े जिनिस आय, फेर लइका मन के आसा! उंकर कल्पना हा तो राई ला पहाड़ बना देथें। हामिद के गोड़ मा पनही नइ हें, मूड़ मा एकठन जुन्ना टोपी हावय, जेकर गोटा करिया परगे हे, फेर वो परसन हे। जब ओकर अब्बाजान झोला अउ अम्मीजान जिनिस लेके आहीं त वोहा दिल के अरमान निकाल लेही। तब देखहीं महमूद, मोहसिन, नूरे अउ सम्मी कहाँ ले ओतका पइसा निकालहीं। अभागिन अमीना अपन कुंदरा मा बइठे रोवत हे। आज ईद के दिन अउ ओकर घर एको दाना नइहें! आज आबिद होतिस त का अइसने ईद आतिस अउ चल देतिस! ये अँधियार अउ निरासा मा वो बुड़त जात हे। कोन बलाय रिहिस ये खोरवा ईद ला? ये घर मा ओकर बुता नइ हे, फेर हामिद! ओला ककरो मरे जिये ले का मतलब? ओकर भीतरी प्रकाश हे बाहिर आसा। विपत्ति अपन जम्मों ताकत लेके आवय, हामिद के आनंद भरे चितवन ओकर नास कर देही।

हामिद भीतरी जाके डोकरी दाई ला कहिथे- तँय डर्राबे झन दाई। मैं सबले पहिली आहूँ। बिलकुल झन डर्राबे। अमीना के हिरदे कचोटत हे। गाँव के लइका मन अपन-अपन ददा के संग जावत हें। हामिद के ददा अमीना के सिवा अउ कोन हे! ओला कइसे अकेल्ला मेला जावन दे? अतेक भीड़-भाड़ में लइका कहूँ गवां जहि त का होही? नहीं अमीना वोला अइसने नइ जावन देवय। नानकुन जीव! तीन कोस रेंगही कइसे? गोड़ मा छाला पड़ जाही। पनही घलो तो नइ हे। वो थोर-थोर दूरिहा में अपन गोदी मा उठा लेही, फेर इहाँ सेवई कोन बनाहीं? पइसा होतिस त लहुटत-लहुटत जम्मो समान ला बिसा के झपकुन बना लेतिस। इहाँ तो घंटो लग जाही जम्मों जिनिस ला जमा करत। माँगे के तो भरोसा हे। ओ दिन फहिमन के ओनहा सिले रिहिस। आठ आना पइसा मिले रिहिस। वो अठन्नी ला ईनाम असन बचावत आवत हे इही ईद खातिर, फेर काली पहाटनिन मूड़ी मा चढ़ जाही त का करही! हामिद बर कुछु नइ हें, त दू पइसा के दूध तो चाहिच। अब तो कुल दू आना पइसा भर बाँचत हे। तीन पइसा हामिद के थइली में, पाँच अमीना के बटूवा में, इही तो बिछौना हे अउ ईद के तिहार, अल्लाह हर बेड़ा पार लगावय। धोबिन, नवईन, मेहत्तरिन अउ चूरकिन जम्मों तो आहीं। सबोझन ला सेवई चाही अउ थोरको कोनों ला आँखी नइ लगय। काखर-काखर ले मुहूँ लुकाही। अउ मुहूँ काबर लुकाही? साल भर के तिहार आय। जिनगी सही सलामत रहय। उंकर तकदीर घलो उंकर साथ हे। लइका मन ला खुदा सलामत रखय। दिन घलो कट जाही। 

गाँव ले मेला जाय बर निकलिन, अउ लइका मन के संग हामिद घलो जावत रिहिस। कभू सबोझन दऊँड़ के आघू निकल जाथें। फेर कोनो रूख के खाल्हे मा रूक के अवइया मन के अगोरा करथें। येमन काबर धीरे-धीरे रेंगत हें? हामिद के गोड़ मा जइसे पाँख लग गेहे। वो कभू थक सकत हे! शहर के दामन आगे हे। रद्दा के दूनो बाजू मा बड़हर मन के बगइचा हें। पक्की चार दिवार बने हे। रूख मा आमा अउ लिची फरे हे। कभू-कभू कोनो टूरा ठेला उठाके आमा ला निशाना लगाथे। माली भीतरी ले गारी देवत निकलथे। टूरा मन कहाँ ले एक फर्लांग मा हें। अब्बड़ हाँसत हें। माली ला कइसे उल्लू बनइन हें।

बड़े-बड़े मकान दिखत हें। ये अदालत रहय, ये कालेज हरय, ये क्लब घर रहय, अतेक बड़ कालेज मा कतका टूरा पढ़त होहीं? सब टूरा नोहँय जी! बड़े-बड़े मनखे हरँय। सिरतोन उंकर बड़े-बड़े मेछा हवय। अतेक बड़े होगे हें अभी ले पढ़े बर जाथें। कोन जनी कबतक पढ़हीं, अउ का करहीं अतेक पढ़ के, हामिद के मदरसा मा दू-तीन झन बड़े-बड़े टूरा हें। बिल्कुल तीन कौड़ी के। रोज मार खाथें। काम ले जी चोरइया। इहू जगा घलो वइसने मनखें होहीं अउ का। क्लब-घर मा जादू होथेे। सुने हँव, इहाँ मुर्दा के खोपड़ी मन दउँड़त रहिथें अउ बड़े-बड़े तमाशा होथे, फेर कोनो ला अंदर नइ जावन देवँय अउ इहाँ संझा बेरा साहब मन खेलथें। बड़े-बड़े आदमी खेलथें, मेंछा-दाढ़ी वाले मन। अउ मैडम मन घलो खेलथें, सिरतोन! हमर अम्माँ ला वो दे दव, का नाम हे, बैट, त ओला पकड़ घलो नइ सकय। घूमाते सात गिर जाहीं।

महमूद कहिस- हमर अम्मीजान के तो हाथ काँपें धर लिहीं। अल्ला कसम।

मोहसिन बोलिस- चलो, मान ले आटा पीस डरथें। थोरकिन बैट पकड़ लेहीं, त हाथ काँपे ल लगही। कई सौ मरकी पानी रोज भरथें। पाँच मरकी तो तोर भइँस पी डरथे। कोनो मैडम ला एक मरकी पानी भरे बर पड़ही त आँखी तरी अँधियार हो जाही।

महमूद- फेर दउँड़य तो नहीं, उछल-कूद तो नइ करँय।

मोहसिन- हाँ, उछल-कूद नइ कर सकँय, फेर वो दिन मोर गाय ढिलागे रिहिस अउ चैधरी के खेत में हबरगे रिहिस त अम्माँ अतेक पल्ला दउँड़िस कि मैं ओकर पार नइ पा सकेंव, सिरतोन।

आगू बढ़िन। मिठई के दूकान शुरू होगे। आज अब्बड़ सजे रिहिस। अतेक मिठई कोन खाथें? देख न, एक-एक दूकान मा मनमाड़े हें। सुने हन, रात के जिन्न आके बिसाके ले जाथें। अब्बा कहत रिहिस कि आधा रात के एक मनखे हर दूकान मा जाथे अउ जतेक माल बचे रिथे, वोला तउला लेथे अउ सिरतोन के रुपिया देथे, डिक्टो अइसनेच रुपया।

हामिद ला भरोसा नइ होइस-अइसन रुपया जिन्न ला कहाँ से मिल जाही?

मोहसिन कहिस- जिन्न ल रुपया के का कमी? जेन खजाना तीर चाहे चले जावय। लोहा के कपाट घलो ओला नइ रोक सकँय जनाब, तैं कहाँ लगे हस! हीरा जवाहरात घलो उंकर तीर रहिथें। जेकर ले खुश हो जाथे, ओला टुकनी भर-भर के जवाहरात दे

देथें। अभी इहिचें बइठे हें, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाहीं।

हामिद हर फेर पूछिस-जिन्न बहुत बड़े-बड़े होवत होहीं?

मोहसिन- एक-एक ठन हा आसमान के बरोबर होथे जी। ”भुइँया मा खड़े हो जाहीं, त उंकर मूड़ी आसमान ले छुआ जाहीं, फेर चाहही त, एक लोटा मा खुसर जाहीं।

हामिद-मनखें ओमन ला कइसे खुश करत होहीं। कोनो मोला वो मंतर बता दिही त ,एक जिन्न ला खुश कर लेहूँ।

मोहसिन- अब ये तो मैं नइ जानँव, फेर चौधरी साहब के वश म बहुत अकन जिन्न हावँय। कोनो जिनिस चोरी हो जाय त, चौधरी साहब ओकर पता लगा दिहीं अउ चोर के नाव घलो बता दिही। जुमराती के बछवा वो दिन गवाँगे रिहिस। तीन दिन परशान होइस। कहूँ नइ मिलिस। तब झक मारके चौधरी तीर गिन। चौधरी हा तुरंत बता दिस, मवेशी खाना मा हे अउ उहें मिलिस। जिन्न आके ओला सरी जग के खबर देके जाथें।

अब ओकर समझ में आगिस कि चौधरी के तीर काबर अतेक धन हे, अउ काबर ओकर अतेक सम्मान हे। 

आगू बढ़िस। ये पुलिस लाइन आय। इहें सब कान्सटेबल मन परेड करथें। जागते रहो! रात कन बिचारा मन किंजर-किंजर के पहरा देथें, नइते चोरी झन हो जाय।

मोहसिन हा प्रतिवाद करिस- ये कान्सटेबल मन पहरा देथें! तभे तँय बहुत जानथस। अजी साहब, इही मन चोरी कराथें। शहर के जतेक चोर-डाकू हें, सब इंकर ले मिले रहिथें। रात कन येमन चोर मन ले तो कहिथे, चोरी करव अउ तँय दूसर पारा मा जाके ‘जागत रहो! जागत रहो!’ चिल्लाथें। तभे इंकर तीर अतेक रुपया आथें। मोर ममा, एक थाना में कान्सटेबल हवय। बीस रुपया महीना पाथे, फेर पचास रुपया घर भेजथे। अल्ला कसम! मैंहा एक बार पूछे रेहेंव कि ममा, तँय अतेक रुपया कहाँ ले पाथस? हाँस के कहे बर लगिस - बेटा, अल्लाह देथे। फेर तहीं तो बोलेस-हमन चाहन त, एक दिन में लाखों कमा लेथन। हम तो अतका भर लेथन, जेकर ले अपन बदनामी झन होवय अउ नौकरी झन चले जाय।

हामिद हर पूछिस- येमन चोरी करवाथें, त कोई येमन ला पकड़ँय नहीं?

मोहसिन ओकर नादानी ऊपर दया दिखाके बोलिस- अरे बइहा, येमन ला कोन पकड़हीं? पकड़इया तो इही मन खुदे हें, फेर अल्लाह येमन ला सजा घलो अबड़ देथे। हराम के माल हराम मा जाथे। कुछ दिन पहिली ममा के घर में आगी लगे रिहिस।

जम्मों ले पूँजी हर जरगे। एक बरतन घलो नइ बाँचिस। कई दिन ले रूख के खाल्हे मा सुतिन। अल्ला कसम, रूख के खाल्हे! फेर न जाने कहाँ ले ,एक सौ के कर्जा कहाँ ले लाय?, त बरतन-भाँड़ा आय।

हामिद- एक सौ तो पचास ले जादा होथे?

‘कहाँ पचास, कहाँ ,एक सौ। पचास, एक थैली भर होथे। सौ तो दू थैली में घलो नइ आवय।’

अब बस्ती घना होवत हें। ईदगाह जवइया मन के टोली दिखत हें। एक से एक भड़कीला कपड़ा पहिरें हें। कोनो इक्का-ताँगा मा सवार हे, कोनो मोटर मा, सबो इत्र मा बसे, सबो के हिरदे मा उमंग। गाँव वाले मन के ये छोटे-से दल, अपन गरीबी ले अनजान, संतोष अउ धीरज ले मगन चले जावत हे। लइका मन बर नगर के जम्मों जिनिस अनोखा रिहिस। जेन जिनिस ला देखथें, देखते रहि जाथें अउ पीछू ले बरोेबर हार्न के अवाज होय ले घलो नइ चेतँय। हामिद तो मोटर के नीचे जात-जात बाँचिस।

अचानक ईदगाह नजर अइस। ऊपर मा अमली के घना रूख के छइँहा हे। नीचे पक्का फर्रस हे, जेमा चादर बिछे हुए हे, अउ रोजादार मन के कतार, एक के पीछू, एक कोनजनि कहाँ तक चल देहें। पक्की जगा के नीचे तक, जिहाँ चादर घलो नइ हे। नवा, अवइया मन आके पीछू के कतार मा खड़े हो जाथें। आगू जघा नइ हे। इहाँ कोई धन अउ पद नइ देखँय। इस्लाम के नजर मा सबे बरोबर हें। ये गाँव वाले मन घलो वइसने करिन अउ पाछू पंक्ति में खड़े होगे। कतेक सुग्घर संचालन हे, कतेक सुग्घर व्यवस्था! लाखों मूड़ी एक संघरा सिजदे म झुक जाथें, फेर सब-के-सब एक संघरा खड़े हो जाथें। एक संघरा झुकथें, अउ एक संघरा माड़ियाके बइठ जाथें। कई बार इही बुता होथे, जइसे बिजली के लाखों बत्ती मन एक संघरा जलथें अउ एक संघरा बुता जाथें अउ इही क्रम चलत रहिथे। कतेक अपूर्व दृश्य रिहिस, जेकर सामूहिक क्रिया, विस्तार अउ अनंतता हिरदे ल श्रध्दा गरब अउ आत्मानंद ले भर देवत रिहिस, मानो भ्रातृत्व के एक सूत्र ये समस्त आत्मा मन ला एक माला मा गूथें हुए हे।


*दूसरइया भाग*


नमाज सिरागे। मनखे आपस मा भेंट होवत हें। तब मिठई अउ खेलौना के दूकान मा दउँड़ परथें। गाँव वाले मनके ये टोली के विषय मा टूरा मन ले कम उत्साही नइ हे। ये देखव, झूलना आय। एक पइसा देके चढ़ जावव। कभू आसमान मा जावत अइसन लगहीं, कभू भुइँया मा गिरत असन। ये चर्खी हरय, लकड़ी के हाथी, घोड़ा, ऊँट छड़ ले ओरमें हें। एक पइसा देके बइठ जावव अउ पच्चीस चक्कर के मजा लव। महमूद, मोहसिन, नूरे अउ सम्मी घोड़ा अउ ऊँट ऊपर बइठिन। हामिद दूरिहा मा खड़े हे। तीन पइसा भर तो हे ओकर तीर। अपन बाँटा के एक तिहाई थोरकिन चक्कर खायबर नइ दे सकय।

सब झूलना ले उतरथें। अब खेलौने लेहीं। येती दूकान मन के कतार लगे हुए हे। आनी-बानी के खेलौना हें-सिपाही अउ गुजरिया, राजा अउ वकील, भिश्ती(पानी डोहरइया) अउ धोबिन अउ साधु। वाह! कतेक सुग्घर खेलौना हें। महमूद सिपाही लेथे, खाकी वर्दी अउ लाल पगड़ीवाला, खांध मा बंदूक रखे हुए, मालूम होथे अभी परेड करत, चले आवत हे। मोहसिन ला भिश्ती(पानी डोहरइया)  पसंद अइस। कनिहा निहरे हे, ऊपर मशक(चमड़ा के थइली) रखे हुए, हे मशक(चमड़ा के थइली) के मुँह ला एक हाथ मा धरे हे। कतेक मगन हे। शायद कोनो गीत गावत हे। बस, मशक (चमड़ा के थइली) ले पानी रितोय बर चाहत हे। नूरे ला वकील ले मया हे। कइसन विद्वत्ता हे ओकर मुख ऊपर! करिया चोंगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के आगू थइली मा घड़ी, सोन रंग के जंजीर, एक हाथ में कानून के पोथा धरे, मालूम होवत हे, अभीच कोनो अदालत ले जिरह(पूछ-ताछ) या बहस करके, चले आवत हें। ये सब दो-दो पइसा के खेलौना हरँय। हामिद तीर कुल तीन पइसा हे, अतेक माहँगा खेलौना वो कइसे लेवय? खेलौना कहूँ हाथ ले छूट जाही, त चूर-चूर हो जाही,, थोरकिन पानी परही त सबो रंग धोवा जाही, अइसन खेलौना लेके वो का करही, का काम के?

मोहसिन कहिथे- मोर भिश्ती रोज पानी दिही, सँझा-बिहिनिया।

महमूद-अउ मोर सिपाही हा घर के रखवारी करही। कोनो चोर आही, त तुरते बंदूक चला दिही।

नूरे- अउ मोर वकील हा अबड़ मुकदमा लड़ही।

सम्मी- अउ मोर धोबिन हा रोज कपड़ा काँचही।

हामिद खेलौना के निंदा करत हे- माटी गतर के तो हरे, गिरही ता चकनाचूर हो जही, फेर लालच भरे आँखी ले खेलौना मन ला देखत हे, अउ चाहत हे कि थोरकिन बर ओला अपन हाथ में ले सकत हे। ओकर हाथ धरे बर करत हे, फेर टूरामन अतेक तियागी नइ होवय, खासकर जब अभी नवा सउँख हे। हामिद ललचावत रहि जाथे।

खेलौना के बाद मिठई आथे। कोनो हर रेवडी़ ले हे, कोनो हा गुलाब-जामुन, कोनो हा सोहन हलवा। मजा लेके खावत हें। हामिद बिरादरी ले अलग हे। बपरा तीर तीन पइसा हे। काबर नइ कुछु लेके खावय? लालच भरे आँखी ले सबो झन कोती ला देखत हे।

मोहसिन कहिथे-हामिद, रेवड़ी बिसा ले, कतेक खुशबूदार हे!

हामिद ला संका होइस, येहा सिरिफ दिखावा हरय, मोहसिन अतेक उदार नइ हे। फेर ये जानके घलो वो ओकर तीर जाथे। मोहसिन दोना ले एक रेवड़ी निकालके हामिद ल देबर बढ़ाथे। हामिद हाथ फइलाथे मोहसिन रेवड़ी ल खा देथे। महमूद, नूरे अउ सम्मी अब्बड़ ताली बजा-बजाके हाँसथें। हामिद खिसिया जाथे।

मोहसिन- अच्छा, ये दरी जरूर देहूँ हामिद, अल्ला कसम, ले जा।

हामिद- रखे रहा। का मोर तीर पइसा नइ हें?

सम्मी- तीन पइसा भर तो हे। तीन पइसा मा का-का लेबे?

महमूद- हमर तीर ले गुलाब-जामुन ले जा हामिद। मोहसिन बदमाश हे।

हामिद- मिठई का बने जिनिस आय। किताब मा एकर कतेक बुराई लिखे हें।

मोहसिन- लेकिन मन में काहत होबे कि मिलही त खा लेहूँ। अपन पइसा काबर नइ निकालत हस?

महमूद- हमन समझत हन येकर चलाकी। जब हमर सबो पइसा खरचा हो जाही, त हमन ला ललचा-ललचाके खाही।

मिठाई मन के बाद कुछ दूकान लोहा के जिनिस मन के, कुछ गिलट(सोन चाँदी के परत चढ़े) अउ कुछ नकली गहना मन के। टूरामन के इहाँ कोई आकर्षण नइ रिहिस। वोमन सब आगू बढ़ जाथें। हामिद लोहा के दूकान मा रुक जाथे। कईठन चिमटा रखाय रिहिस। ओला सुरता अइस, कि डोकरी दाई तीर तो चिमटा नइ हे। तावा ले रोटी उतारथे त हाथ जर जाथे। कहूँ वो चिमटा बिसा के डोकरी दाई ला दे देही त वो हा कतेक खुश होही, फेर ओकर अँगरी कभू नइ जरही। घर मा एक काम के जिनिस हो जाही।

खेलौना ले का फायदा। फोकट मा पइसा खइता हाथे। थोरिक बेर तो खुशी होथे। फेर तो खेलौना ला कोनो आँखी उठाके नइ देखँय। या तो घर पहुँचत-पहुँचत टूट-फूट के बरोबर हो जाथे। चिमटा कतेक काम के जिनिस हरय। रोटी मन ला तावा ले उतार लौ, चूल्हा मा सेंक लौ। कोनो आगी माँगेबर आय हे, त झपकुन चूल्हा ले आगी निकालके वोला दे दव। दाई बिचारी ला कहाँ फुरसत हे कि बजार आय अउ अतका पइसा तको कहाँ मिलथे। रोज हाथ जरा लेथे। हामिद के संगवारी मन आघू चल देहें। शरबत के दूकान मा सबोझन शरबत पीयत हें। देखव, सब कतेक लालची हंें! अतेक मिठई लिन, मोला कोनो हो एकठन घलो नइ दिन। ऊपर ले कहिथें मोर संग खेल। मोर ये बुता कर। अब कहूँ कोनो कोई काम करे बर कही, त पूछहूँ। खाय हव मिठई ला, तुंहर मुँहू सरही। फोरा फुुंसी निकलहीं, तुंहर जीभ चटोरी हो जाही। तब घर ले पइसा चोराहीं अउ मार खाहीं। किताब में झूठ बात अइसने थोरे लिखाय हे। मोर जबान काबर खराब होही। दाई चिमटा देखतेसात दउँड़के मोर हाथ ले धर लेहीं अउ कही- मोर अपन लइका दाई बर, चिमटा लाय हे। हजारों दुआ देहीं। फेर परोस के माईलोगिन मन ला देखाहीं। पूरा गाँव मा चर्चा होय लगहीं, हामिद चिमटा लाय हे। कतेक अच्छा लइका हे। येकर मन के खेलौना बर कोन इनला दुआ देहीं? बड़ेमन के दुआ सीधा अल्लाह के दरबार मा पहुँचथें अउ तुरते सुने जाथें। मोर तिर पइसा नइहे। तभो तो मोहसिन अउ महमूद अइसन नखरा दिखावत हें। महूँ येमन ला नखरा देखाहूँ। खेलँय खेलौना अउ खावँय मिठई। मैं नइ खेलँव खेलौना, कखरो नखरा ला काबर सहूँ। मैं गरीब भले हँव, कखरो ले कुछू माँगे बर तो नइ जावँव। आखिर अब्बाजान कभू-न-कभू आही। अम्माँ घलो आहीच। फेर इंकर ले पूछहूँ, कतेक खेलौना लेहू? एक-एक झनला टुकनी भर के खेलौना देहूँ अउ देखा देहूँ कि संगवारी मन ले कइसे व्यवहार करे जाथे। ये नइ के एक पइसा के रेवड़ी ला चिढ़ा-चिढ़ाके खाथें। सब-के-सब₹ हाँसहीं के हामिद हा चिमटा बिसाय हे। हाँसँय! मोर का जाही!

ओ दूकानदार ले पूछिस-ये चिमटा कतका के आय?

दूकानदार हा ओकर डहर देखिस अउ कोनो मनखे संग मा नइ दिखित त कहिस- तोर काम के नोहय जी!

‘बेचरउहा हे कि नइं?’

‘बेचरउहा काबर नइ हे। अउ इहाँ काबर लादके लाय हस?’

‘त बतावत काबर नइ, के पइसा के आय?’

‘छै पइसा लगही।

हामिद का मन उदास होगे।

‘बने-बने बता!’

‘बने-बने पाँच पइसा लगही, लेना हेे त ले, नहीं त चलते बन।’

हामिद हा करेजा मजबूत करके किहिस-तीन पइसा लेबे?

ये काहत वो आगू बढ़गे कहूँ दूकानदार के डाँट झन सुनले। फेर दूकानदार नइ डाँटिस। बलाके चिमटा दे दिस। हामिद हा ओला खांध ऊपर अइसन रखिस, जइसे बंदूक हरय अउ शान ले अकड़त हुए संगवारी मन तीर आगे। थोरिक सुनव, सबझन का-का आलोचना करत हें।

मोहसिन हा हाँस के कहिस- ये चिमटा ल काबर लाय हस बइहा, येला काय करबे?

हामिद हा चिमटा ला भुइँया मा पटक के कहिस- थोरिक अपन भिश्ती ला भुइँया मा गिरा देे। सबो पसली मन चूर-चूर हो जाही काहीं नइ बाँचे। महमूद बोलिस- त ये चिमटा कोई खेलौना हरय?

हामिद- खेलौना काबर नोहय? अभी खांध ऊपर रखे हँव, त बंदूक होगे। हाथ में धरे हँव, त फकीर के चिमटा होगे। चाहूँ त एकर ले मंजीरा के काम ले सकत हँव। एक चिमटा जमा देहूँ, तो तुंहर मन के सबो खेलौना के परान छूट जाही।

तुंहर खेलौना कतकों जोर लगाहीं मोर चिमटा के कुछुच नइ बिगाड़ सकँय। मोर बहादुर बघवा आय-चिमटा।

सम्मी हा खँजरी ले रिहिस। प्रभावित होके बोलिस- मोर खँजरी ले बदली करबे? दू आना के हरय।

हामिद हा खँजरी डहर उपेक्षा ले देखिस-मोर चिमटा चाहही त तोर खँजरी के पेट ल चीर डरही। बस एक चमड़ा के झिल्ली लगा दे हवय, ढब-ढब बाजत हे। थोरकिन पानी पर जाही, त खतम हो जाही,। मोर बहादुर चिमटा आगी में, पानी में, आँधी में, तूफान में बरोबर डटे खड़े रही।

चिमटा हर सबो ला मोहित कर दिस, फेर अब पइसा काकर तीर धरे हे, फेर मेला ले दूरिहा निकलगे हवँय, नौ कबके बजगे हे। घाम जादा होवत हे। घर पहुँचे बर जल्दी करत हें। ददा ले जिद घलो करहीं, तभो चिमटा नइ मिल सकय। हामिद बड़ चतुरा हे। एखरे सेती बदमाश हा अपन पइसा बचा के रखे रिहिस।

अब टूरामन के दूठन दल बनगे हे। मोहसिन, महमूद, सम्मी अउ नूरे ,एक डहर हावय, हामिद अकेल्ला दूसर डहर। वाद-विवाद होवत हे। सम्मी हर विधर्मी(धर्मभ्रष्ट) होगे। दूसर पक्ष ले जाके मिलगे, फेर मोहसिन, महमूद अउ नूरे घलो, हामिद ले एक-एक दू-दू साल बड़े होय ले घलो हामिद के अघात ले घबरा जाथें। ओकर तीर न्याय के बल हे अउ नीति के शक्ति। एक डहर माटी हे, दूसर डहर लोहा, जेन ये बेरा अपन आप ला फौलाद काहत हे। वो अजेय हवय, घातक हवय। कहूँ कोनो बघवा आ जाही, त मियाँ भिश्ती के पछीना छूट जाही, मियाँ सिपाही माटी के बंदूक छोड़के भागहीं, वकील साहब के ममादाई मर जाय, चोंगा म मुँहू लुकाके भुइँया ऊपर सूत जाहीं। फेर ये चिमटा, ये बहादुर, ये रुस्तमे-हिद(ताकतवर) लपक के बघवा के टोटा मा सवार हो जाही अउ ओकर आँखीं निकाल लेही।

मोहसिन हर एड़ी-चोटी के जोर लगाके कहिस- अच्छा, पानी तो नइ भर सकय।

हामिद हा चिमटा ला सीधा खड़ा करके कहिस- भिश्ती ला एक डाँट परही त दउँड़त पानी लाके ओकर दुवारी मा रितोही। मोहसिन हारगे। फेर महमूद हा मदद पहुँचइस-कहूँ लइचा पकड़ा जाही, त अदालत में बँधाय-बँधाय फिरही। तब तो वकील साहब के पाँव परही।

हामिद ये जबर तर्क के जवाब नइ दे सकिस। वो पूछिस- हम ला पकड़े बर कोन आही?

नूरे हा अकड़ के कहिस- ये सिपाही बंदूकवाला।

हामिद हा मुँह चिढ़ाके कहिस- ये बिचारा हमर बहादुर ताकतवर ला पकड़ही! अच्छा ले तो, अभी थोरिक कुश्ती हो जावय। येकर मुख देख के दूिरहा ले भागहीं। पकड़हीं काला बिचारा!

मोहसिन ला एक नवा चोट सूझगे- तोर चिमटा के मुँह तो रोज आगी में जरहीं। वोहर समझत रिहिस के हामिद कुछु जवाब नइ दे पाही, फेर ये बात नइ बनिस। हामिद हा तुरंत जवाब दिस- आगी में बहादुर मन ही कूदथें जनाब, तुंहर ये वकील, सिपाही अउ भिश्ती टूरी मन बरोबर घर में खुसर जाहीं। आगी मा कूदना वो काम हरय, जेन ल ताकतवर मन ही कर सकत हें।

महमूद हा एक जोर लगइस- वकील साहब कुर्सी-मेज ऊपर बइठहीं, तोर चिमटा तो रँधनी खोली मा परे रिही।

ये तर्क हा सम्मी अउ नूरे ला घलो सजीव कर दिस। कतेक ठउँका गोठ कहिस टूरा हा। चिमटा रँधनी खोली मा परे रहे के सिवा अउ का कर सकत हे?

हामिद ल कोनो बने असन जवाब नइ सूझिस त ओहा धाँधली शुरू कर दिस- मोर चिमटा नइ राहय। वकील साहब कुर्सी ऊपर बइठहीं, त जाके वोला भुइँया मा पटक देही अउ ओकर कानून ला उंकर पेट में डाल देही।

बात कुछु नइ बनिस। अब्बड़ गारी-गलौज होइस, फेर कानून ला पेट में डालने वाला बात छागे। अइसन छागे कि तीनों सूरमा मन मुँह ताकत रहिगें, मानो कोई साधारन पतंग हा कोनो महंगा वाले पतंग ला काट दे हे। कानून मुँह ले बाहिर निकलइया जिनिस आय। वोला पेट के अंदर डार दिये जाना, बेतुकी-असन बात होय फेर घलो कुछ नवापन लगथे। हामिद हा मैदान मार लिस। ओकर चिमटा ताकतवर हे। अब येमा मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी कोनो ला आपत्ति नइ हो सकय। विजेता ला हारने वाला मन से आदर मिलना स्वाभाविक हे, वो हामिद ला घलो मिलिस। अउ मन तीन-तीन, चार-चार आना पइसा खर्चा करिन, फेर कोई काम के जिनिस नइ ले सकिन।

हामिद हा तीन पइसा में रंग जमा दिस। सिरतोन तो हरय, खेलौना के का भरोसा? टूट-फूट जाहीं। हामिद के चिमटा ला कई साल ले काहीं नइ होवय।

समाझौता के शर्त तय होय लगिस। मोहसिन हा कहिस-थोरिक अपन चिमटा दे हमू मन देखिन। तँय हमर भिश्ती लेके देख।

महमूद अउ नूरे हा घलो अपन-अपन खेलौना देबर राजी होइस।

हामिद ला ये शर्त ला माने मा कोई आपत्ति नइ रिहिस। चिमटा बारी-बारी ले सबके हाथ में गिस। अउ उंकर खेलौना बारी-बारी ले हामिद के हाथ में अइस। कतेक सुग्घर खेलौना हें!

हामिद हा हारने वालामन के आँसू पोंछिस-मैं तुमन ला चिढ़ावत रेहेंव, सच! ये चिमटा भला ये खेलौना मन ले का बराबरी कर सकही। मालूम होथे कि, अब बोलही, अब बोलही, फेर मोहसिन के पार्टी ला ये दिलासा ले संतोष नइ होवय। चिमटा के सिक्का बने बइठगे हे। चिपके हुए टिकट अब पानी ले नइ छूटत हे।

मोहसिन- फेर ये खेलौना मन बर, कोनो हमन ला दुआ तो नइ देहीं?

महमूद- दुआ ला का करबे। उल्टा मार झन पड़य। अम्माँ जरूर किही कि मेला मा इही माटी के खेलौना तोला मिलिस?

हामिद ला स्वीकार करे बर परिस कि खेलौना ला देखके ककरो दाई इतेक खुश नइ होही, जतना डाकरी दाई ला चिमटा देखके होही। तीन पइसा भर मा त ओला सब कुछ करना रिहिस अउ वो पइसा के ये उपयोग मा पछतावा के बिल्कुल जरूरत नइ होवय। फेर अब तो चिमटा ताकतवर हे अउ सबो खेलौना के बादशाह!

रद्दा मा महमूद ला भूख लगिस। ओकर ददा हा केरा खायबर दिस। महमूद हा सिरिफ हामिद ला साझी बनाइस। उंकर अउ संगवारी मन मुँह ताकते रहिगें। ये ओ चिमटा के प्रसाद रिहिस।


*तीसरइया भाग*


ग्यारा बजे गाँव मा हलचल मचगे। मेला वाले मन आगे। मोहसिन के छोटे बहिनी हा दउँड़ के भिश्ती ला ओकर हाथ ले नंगा लिस अउ खुशी के मारे अइसन कूदिस कि, मियाँ भिश्ती नीचे अइस अउ सुरलोक सिधरगे। येमन भाई-बहिनी मा मार-पीट होइन। दूनों

अब्बड़ रोइन। उंकर दाई हा ये शोर ला सुनके बफरगे अउ दूनों ला दू - दू थपरा अउ लगइस।

मियाँ नूरे के वकील के अंत ओकर प्रतिष्ठानुकुल येकर ले जादा गौरवमय होइस। वकील जमीन मा या तखत ऊपर तो नइ बइठ सकय। ओकर मर्यादा के विचार तो करे बर परही। कोठ मा दू ठन खूँटी गड़ियाय गिस। ओमा लकड़ी के एक पटरा रखे गिस। पटरा ऊपर कागज के सरकी बिछाय गिस। वकील साहब राजा भोज असन सिंहासन मा बिराजिस। नूरे हा ओमा पंखा धूँके के चालू करिस। अदालत मन में खस के पट्टी अउ बिजली के पंखा रहिथें। का इहाँ मामूली पंखा घलो नइ रही! कानून के गर्मी दिमाग मा चढ़ जाही कि नइ। बाँस के पंखा अइस अउ नूरे हवा करे लगिस।

पता नहीं, पंखा के हवा ले, या पंखा के छुवाय ले वकील साहब स्वर्गलोक ले मृत्युलोक में आगे अउ ओकर माटी के चोला माटी में मिलगे। फेर जोर-जोर से मातम होइस अउ वकील साहब के अस्थि धुर्रा मा डार दे गिस। अब बाँचिस महमूद के सिपाही। ओला झपकुन गाँव के पहरा दे के चार्ज मिलगे, फेर पुलिस के सिपाही कोनो साधारण मनखे तो नोहय, जे अपन पैर मा चलय। वो हा पालकी मा चलही। एक ठन टुकनी अइस, वोमा कुछ लाल रंग के चिरहा-फटहा फरिया बिछाय गिस। जेमा सिपाही साहब आराम से लेटिस। नूरे हा ये टुकनी ला उठइस अउ अपन घर के चक्कर लगाय लगिस। ओकर दूनों छोटे भाई सिपाही के डहर ले ‘छोनेवाले, जागते लहो’ चिल्लावत जावत हें। फेर रात हा तो अँधियार होना चाही; महमूद ला ठोकर लग जाथे। टुकनी ओकर हाथ ले छूटके गिर जाथे अउ मियाँ सिपाही अपन बंदूक धरे भुइँया मा आ जाथे अउ ओकर एक गोड़ में दरार आ जाथे। महमूद ला आज पता चलिस कि वो हा अच्छा डाॅक्टर हरय। ओला अइसन दवई मिलगे हे, जेकर ले वो टूटे गोड़ ला आनन-फानन मा जोड़ सकत हे। खाली गुड़हल के दूध चाही।  गुड़हल के दूध आथे। गोड़ ला जोड़ दे जाथे फेर सिपाही को जइसे ही खड़े करे जाथे, गोड़ ह जवाब दे देथे शल्य क्रिया असफल होगे, तब ओकर दूसर गोड़ घलो टोर दे जाथे। अब कम-से-कम एक जगा आराम से बइठ तो सकत हे। एक गोड़ ले तो न चल सकय न बइठ सकय। अब वो सिपाही हा संन्यासी होगे हे। अपन जगा मा बइठे-बइठे पहरा देतव हे। कभू-कभू देवता घलो बन जाथे। ओकर मूड़ी के झालरदार साफा ला खुरच दिये गेहे। अब ओकर जतेक बदलाव करना चाहो, कर सकत हव। कभू-कभू तो ओकर ले बाट के काम घलो लिये जाथे। 

अब मियाँ हामिद के हाल सुनव। अमीना ओकर अवाज सुनतेसाठ दौड़िस अउ ओला गोदी मा उठा के मया करे लगिस। अचानक ओकर हाथ मा चिमटा ला देखके वोहा चैंक गिस।

‘ये चिमटा कहाँ रिहिस?’

‘मैंहा बिसा के लाय हँव।’

‘के पइसा में?’

‘तीन पइसा में।’

अमीना अपन छाती पीट लिस। ये कइसन बेअक्कल टूरा आय, के मँझनिया होगे, कुछू खाय न पिये। लाइस का, चिमटा! सबो मेला भर मा तोला अउ काहीं जिनिस नइ मिलिस, जेन ये लोहा के चिमटा उठा लानेस?

हामिद हा अपराधी-भाव ले कहिस तोर अँगरी मन तावा ले जर जावत रिहिस; एकरे सेती, मैंहा येला लेंव।

डोकरी के गुस्सा तुरते मया मा बदलगे, अउ स्नेह घलो वइसन नइ, जेन साहसी होथे अउ अपन सबो पीरा ला शब्द मन म बिखेर देथे। ये मौन स्नेह रिहिस, खूब ठोस, रस अउ सुवाद ले भरे। लइका मा कतेक तियाग, कतेक सद्भाव अउ कतेक विवेक हे! दूसर मन ला ख्ेालौना लेवत अउ मिठई खावत देखके येकर मन कतेक ललचाइस होही? अतेक सहन एकर ले होइस कइसे? उहाँ घलो येला अपन डोकरी दाई के सुरता आवत रिहिस। अमीना के अंतस गदगद होगे।

अउ अब एकठन बड़ा बिचित्र बात होगे। हामिद के ये चिमटा ले घलो बिचित्र। लइका हामिद हा डोकरा हामिद के पार्ट खेले रिहिस। डोकरी अमीना लइका अमीना बनगे। वोहा रोय लगिस। ओली फइलाके हामिद ला दुआ देवत जातिस अउ आँसू के बड़े-बड़े बूँंद गिरावत जातिस। हामिद येकर रहस्य का समझतिस!



*अनुवादक*

*राजकुमार निषाद राज'*

*एम.ए.छत्तीसगढ़ी*

(अनुवाद काल-23.06.2025)

गोठबात-7898837338

गाँव-बिरोदा,धमधा, जिला-दुर्ग

नान्हे लइका मन बर लघु कथा - " रखवार "

 नान्हे लइका मन बर 

लघु कथा -

           " रखवार "

नेवता मिलिस बिहाव के l पुसऊ तैयारी म लग़ गे l अपन अपन कपड़ा लत्ता समान ला झोला बैग म रखे ला कहिस l

पूसऊ के बाई सकून अपन साड़ी चुरी चाकी ल रखे  म 

भिड़ गे l ओकर नान्हे बेटा कइथे -"मैं काला धरंव? " 

पूसऊ कहिस -" अरे बेटा रखवार कहाँ हे l *

"मैं का जानव कहाँ हे? "

सकून कइथे -" तोला तो बता के गे हे का? "

पूसऊ खोजत खोजत कइथे-"

थिर थार कोनो रहय नहींl सबके हाथ गोड़ होगे हे l मुड़ी खजुवात कहिस l 

 "लकर धकर के बेरा म काला खोजत रहिबे " -सकून कहिस l नान्हे लइका कहिस -" मोर बांटी भौरा अउ चश्मा कहाँ हे मम्मी?


" बेटा,ओखरे बर तो 

काहत हँव l"

नान्हे लइका फ़ेर कहिस-"

अभी समझ मे आइस l 

मैं लावत हँव l 

मुसवा अपन बिला म तो नई ले गे होही! देखे हँव l 

ये दे मिलगे 

इही ला काहत हस का गो  -'तारा संग कुची संघरा हे l"

चट ले चेथी ला मार के कहिथे -" बेलबेली मढ़ाथस l "

घर ला इही राखथे l इही रखवार ला खोजत रहेंव   एखरे भरोसा म घर रहिथे l 

पर ऊपर का भरोसा?

रखवार ला छोड़ के बेफिक्री होके  निकलगे  पूसऊ बिहाव के नेवता म l 

     दू दिन के बाद आइस देखिस l रखवार के हाड़ा गोड़ा ला टोर के, मुरकेट के कुढ़ो दे हे l घर के भीतरी म समान ला तीतीर बितिर फेंक के बासी खा के चाय पीके रखवार के बोस मन चल दे रहिन l अपन समझदारी घलो देखा के गेहे l

पिसान म लिख दे हे-

  "नई मिलिस कुछु l" 


                - मुरारी लाल साव

                       कुम्हारी

झलमला (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*

 *झलमला (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*


*पहलइया*


मैं परछी मा टहलत रेहेंव। अतना मा मैं देखेंव कि विमला दासी अपन अँचरा के नीचे एकठन दीया धरके बड़े भऊजी के कुरिया डहर जावत रिहिस। मैं पूछेंव कइसे रे- ये का हरय? वो बोलिस- झलमला। मैंहा फेर पूछेंव येकर ले का होही? ओहा उत्तर दिस- नइ जानत हस बाबू, आज तोर बड़की भऊजी हा महराज के बहू के सखी होके आइस हे, येकरे सेती मैं ओला झलमला देखाय बर जावत हँव।

तब तो मैंहा घलो किताब ला मढ़ाके घर के भीतरी दउँड़ गेंव। दीदी ले जाके मैं कहे लगेंव- दीदी, थोरकिन तेल ला दे तो।

दीदी हर कहिस-जा, अभी मैं काम बुता मा लगे हँव।

मैं निराश होके अपन कुरिया मा लहुट आयेंव। फेर मैं सोचे लगेंव- ये अवसर ला जावन नइ देना चाही, बने हँसी-मजाक होही। मैं एती-ओती देखे लगेंव। अतका मा मोर नजर एक मोमबत्ती के टुकड़ा ऊपर परिस। मैं ओला उठा लेंव अउ माचिस के डिबिया लेके भऊजी के कुरिया डहर गेंव। मोला देखके भऊजी हा पूछिस- कइसे आय हस बाबू मैं बिना उत्तर दिये मोमबत्ती के टुकड़ा ला जलाके ओकर आगू मा मढ़ा देंव। भऊजी हा हाँस के पूछिस- ये का हरे?

मैं गंभीर स्वर मा उत्तर देंव- झलमला।

भऊजी हा कुछू नइ कहिके मोर हाथ मा पाँच रुपया रख दिस। मैं कहे लगेंव- भऊजी, का तोर मया के उजियार के अतके कन मोल हे?

भऊजी हा हाँस के कहिस- त कतेक चाही? मैं कहेंव- कम से कम एक गिन्नी। भऊजी कहे लगिस- अच्छा येमा लिखदे मैं अभीच देवत हँव।

मैं तुरते चाकू ले मोमबत्ती के टुकड़ा ऊपर लिख देंव- ‘मोल एक गिन्नी।’ भऊजी हर गिन्नी निकाल के मोला दे दिस अउ मैं अपन कुरिया मा चले आयेंव। कुछ दिन के बाद गिन्नी के खरचा होय के बाद मैं ये घटना ला बिलकुल भूला गेंव।


*दुसरइया*


8 बछर बीतगे। मैं बी० ए०, एल०-एल० बी० करके इलाहाबाद ले घर लहुटेंव। घर के वइसन दसा नइ रिहिस जइसन आठ बछर पहिली रिहिस। न भऊजी रिहिस, न विमला दासी। भऊजी हमन ला सबर दिन बर छोड़के सरग सिधारगे रिहिस। अउ विमला कटगी मा जाके खेती करत रिहिस।

संझा के बेरा रिहिस। मैं अपन कुरिया मा बइठे कोन जनि का सोचत रेहेंव। तीर के कुरिया मा परोस के कुछ माईलोगिन मन के संग दीदी बइठे रिहिस। काहीं गोठबात होवत रिहिस, अतका में मैं सुनेंव, दीदी हा कोनो माईलोगिन ले कहत हे- काहीं होवय बहिनी, मोर बहू घर के लक्ष्मी रिहिस। ओ माईलगिन हा कहिस-हाँ बहिनी, अबड़ सुरता आइस, मैं तोला पूछइया रेहेंव। ओ दिन तुमन मोर तीर सखी के संदूक भेजे रेहेव न? दीदी हा उत्तर दिस- हाँ बहिनी, बहू कहिके गिस, ओला रोहिणी ला दे देहू। ओ माईलोगिन हा कहिस- ओमा सब तो ठीक रिहिस; फेर एक बिचित्र बात रिहिस। दीदी हा पूछिस- कइसन बिचित्र बात? वो कहे लगिस-ओला मैं खोलके एक दिन देखेंव ता ओमा एक जगा बने जतन के रेशमी रूमाल मा कुछ बँधाए रिहिस। मैं सोचे लगेंव ये का हरय। जाने बर ओला खोल के देखेंव। बहिनी, बोतावव तो ओमा भले का हो सकत हे? दीदी हा उत्तर दिस- गहना रिहिस होही। ओहा हाँसके कहिस- नइ, गहना नइ रिहिस। वो तो एक आधा जरे मोमबत्ती के टुकड़ा रिहिस अउ ओकर ऊपर लिखाय रिहिस- ‘मोल एक गिन्नी।‘ छिन-भर बर मैं ज्ञान-शून्य होगेंव, फेर अपने हिरदे के आवेग ला नइ रोक के मैं वो कुरिया भीतरी जा परेंव अउ चिल्लाके कहे लगेंव- वो मोर हरय, मोला दे दव। कुछ माईलोगिन मन मोला देख के भागे लगिन कोनों एती-ओती देखे लगिन। ओ  माईलोगिन हा अपन मूड़ी ढाँपत-ढाँपत कहिस- अच्छा बाबू, काली मैं ओला भेज देहूँ। फेर मैं रातेचकन एकझन दासी ला भेजके वो टुकड़ा ला मँगा लेंव! वो दिन मोर से कुछुच नइ खवइस। पूछे जाय मा मैं ये कहिके टाल देंव के मूड़ी में दरद हे। अबड़ बेर तक एती-ओती टहलत रेहेंव। जब सबझन सुते बर चल दिन तब अपन कुरिया मा आयेंव। मोला उदास देखके कमला पूछे लगिस- मूड़ी के दरद कइसे हे? फेर मैंहा काहीं उत्तर नइ देंव, कलेचुप थइली ले मोमबत्ती ला निकालके ओला जलायेंव अउ ओला एक कोंटा मा मढ़ा देंव।

कमला हा पूछिस-ये का हरय?

मैं हा उत्तर देंव- झलमला।

कमला काहीं नइ समझ सकिस। मैंहा देखेंव कि थोरकिन देर मा मोर झलमला के नानकुन उजियार, रतिहा के अंधियार मा विलीन होगे।


*अनुवादक*

*राजकुमार निषाद"राज"*

*एम.ए.छत्तीसगढ़ी*

(अनुवादकाल-24.06.2025)

गोठबात-7898837338

गाँव-बिरोदा,धमधा, जिला-दुर्ग