*ईदगाह*
*(छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*
*पहलइया भाग*
रमजान के पूरा तीस रोजा के बाद ईद आय हे। कतेक सुग्घर, कतेक सुहावन बिहिनिया हे। रूख मा कुछ अनोखा हरियाली हे। खेत मन मा अनोखा रौनक हे, अगास मा कुछ अनोखा लाली दिखत हे। आज के सुरूज ल देखव, कतेक सुग्घर, कतेक शीतल हे मानो संसार ला ईद के बधाई देवत हें। गाँव में कतेक चहल-पहल हे। ईदगाह जाय के तइयारी होवत हे। ककरो कुरता के बटन नइ हे, परोसी के घर सूजी धागा लाने बर दउँड़त हे। ककरो जूमा टाँठ होगे हे, ओमा तेल डालेबर तेली के घर भागे जावत हे। उत्ता-धुर्रा बइला मन ला पानी काँजी दे दँय। ईदगाह ले लहुटत-लहुटत मँझनिया हो जाही। तीन कोस के पैदल रद्दा, फेर सैकडों मनखे ले जोहर भेंट, मँझनिया ले पहिली लहुटना असंभव हे। टूरा मन सबले जादा खुश हें। कोनो हर एक रोजा रखे हे, वो भी मँझनिया तक, कोनो उहू नइ रखे हें, फेर ईदगाह जाय के खुशी उंकर बाँटा के जिनिस आय। रोजा सियान समरत बर होही। इंकर बर तो ईद आय। रोज ईद के नाम रटत रिहिन आज वो दिन आगे। अब जल्दी परे हे कि मनखें ईद काबर नइ जावत हें। येमन ला घर के बुता के का चिंता हे! सेवई बर घर मा दूध अउ शक्कर हे या नइ, इंकर सेती, येमन सेवई खाहीं। ओ का जानही कि अब्बाजान काबर लकर-धकर चैधरी कायम अली के घर दउँड़त जावत हे। उनला का खबर हे कि चैधरी आज आँखी फेर लिही त ये सब्बो ईद मुहर्रम हो जाही। उंकर थइली मा तो कुबेर के धन भरे हुए हे। घेरी-बेरी अपन थइली ले खजाना निकाल के गिनथे अउ खुश होके फेर रख लेथे। महमूद गिनथे, एक-दू, दस-बारा! ओकर तीर बारा पइसा हे। मोहसिन के तीर एक, दू, तीन, आठ, नौ, पंदरा पइसा हे। ये अनगिनत पइसा ले अनगिनत चीज लाहीं-खेलउना, मिठई, बिगुल, गेंद अउ जाने का का! अउ सबले जादा खुश हे हामिद। वो चार-पाँच साल के गरीब सूरत, दुबर पातर टूरा, जेकर ददा पऊर बछर हैजा के भेंट चढ़गे अउ दाई न जाने काबर पिंवरा होवत होवत एक दिन मरगे। कोनो ल पता नइ चलिस, का बीमारी आय। कहितिस त कोन सुनने वाला रिहिस। अंतस मा जेन बीतत रिहिस, अंतस मा ही सहत रिहिस अउ जब बनइ सहे सकिस तब संसार ले बिदा होगे। अब हामिद अपन सियान डोकरी दाई के कोरा मा सुत जाथे अउ ओतके खुश हे। ओकर अब्बाजान पइसा कमाय बर गेहे। बहुत अकन झोला लेके आही। अम्मीजान अल्ला मियाँ के घर ले ओकर बर बड़ सुग्घर-सुग्घर जिनिस लाने बर गेहे; एकरे सेती हामिद खुश हे। आसा बड़े जिनिस आय, फेर लइका मन के आसा! उंकर कल्पना हा तो राई ला पहाड़ बना देथें। हामिद के गोड़ मा पनही नइ हें, मूड़ मा एकठन जुन्ना टोपी हावय, जेकर गोटा करिया परगे हे, फेर वो परसन हे। जब ओकर अब्बाजान झोला अउ अम्मीजान जिनिस लेके आहीं त वोहा दिल के अरमान निकाल लेही। तब देखहीं महमूद, मोहसिन, नूरे अउ सम्मी कहाँ ले ओतका पइसा निकालहीं। अभागिन अमीना अपन कुंदरा मा बइठे रोवत हे। आज ईद के दिन अउ ओकर घर एको दाना नइहें! आज आबिद होतिस त का अइसने ईद आतिस अउ चल देतिस! ये अँधियार अउ निरासा मा वो बुड़त जात हे। कोन बलाय रिहिस ये खोरवा ईद ला? ये घर मा ओकर बुता नइ हे, फेर हामिद! ओला ककरो मरे जिये ले का मतलब? ओकर भीतरी प्रकाश हे बाहिर आसा। विपत्ति अपन जम्मों ताकत लेके आवय, हामिद के आनंद भरे चितवन ओकर नास कर देही।
हामिद भीतरी जाके डोकरी दाई ला कहिथे- तँय डर्राबे झन दाई। मैं सबले पहिली आहूँ। बिलकुल झन डर्राबे। अमीना के हिरदे कचोटत हे। गाँव के लइका मन अपन-अपन ददा के संग जावत हें। हामिद के ददा अमीना के सिवा अउ कोन हे! ओला कइसे अकेल्ला मेला जावन दे? अतेक भीड़-भाड़ में लइका कहूँ गवां जहि त का होही? नहीं अमीना वोला अइसने नइ जावन देवय। नानकुन जीव! तीन कोस रेंगही कइसे? गोड़ मा छाला पड़ जाही। पनही घलो तो नइ हे। वो थोर-थोर दूरिहा में अपन गोदी मा उठा लेही, फेर इहाँ सेवई कोन बनाहीं? पइसा होतिस त लहुटत-लहुटत जम्मो समान ला बिसा के झपकुन बना लेतिस। इहाँ तो घंटो लग जाही जम्मों जिनिस ला जमा करत। माँगे के तो भरोसा हे। ओ दिन फहिमन के ओनहा सिले रिहिस। आठ आना पइसा मिले रिहिस। वो अठन्नी ला ईनाम असन बचावत आवत हे इही ईद खातिर, फेर काली पहाटनिन मूड़ी मा चढ़ जाही त का करही! हामिद बर कुछु नइ हें, त दू पइसा के दूध तो चाहिच। अब तो कुल दू आना पइसा भर बाँचत हे। तीन पइसा हामिद के थइली में, पाँच अमीना के बटूवा में, इही तो बिछौना हे अउ ईद के तिहार, अल्लाह हर बेड़ा पार लगावय। धोबिन, नवईन, मेहत्तरिन अउ चूरकिन जम्मों तो आहीं। सबोझन ला सेवई चाही अउ थोरको कोनों ला आँखी नइ लगय। काखर-काखर ले मुहूँ लुकाही। अउ मुहूँ काबर लुकाही? साल भर के तिहार आय। जिनगी सही सलामत रहय। उंकर तकदीर घलो उंकर साथ हे। लइका मन ला खुदा सलामत रखय। दिन घलो कट जाही।
गाँव ले मेला जाय बर निकलिन, अउ लइका मन के संग हामिद घलो जावत रिहिस। कभू सबोझन दऊँड़ के आघू निकल जाथें। फेर कोनो रूख के खाल्हे मा रूक के अवइया मन के अगोरा करथें। येमन काबर धीरे-धीरे रेंगत हें? हामिद के गोड़ मा जइसे पाँख लग गेहे। वो कभू थक सकत हे! शहर के दामन आगे हे। रद्दा के दूनो बाजू मा बड़हर मन के बगइचा हें। पक्की चार दिवार बने हे। रूख मा आमा अउ लिची फरे हे। कभू-कभू कोनो टूरा ठेला उठाके आमा ला निशाना लगाथे। माली भीतरी ले गारी देवत निकलथे। टूरा मन कहाँ ले एक फर्लांग मा हें। अब्बड़ हाँसत हें। माली ला कइसे उल्लू बनइन हें।
बड़े-बड़े मकान दिखत हें। ये अदालत रहय, ये कालेज हरय, ये क्लब घर रहय, अतेक बड़ कालेज मा कतका टूरा पढ़त होहीं? सब टूरा नोहँय जी! बड़े-बड़े मनखे हरँय। सिरतोन उंकर बड़े-बड़े मेछा हवय। अतेक बड़े होगे हें अभी ले पढ़े बर जाथें। कोन जनी कबतक पढ़हीं, अउ का करहीं अतेक पढ़ के, हामिद के मदरसा मा दू-तीन झन बड़े-बड़े टूरा हें। बिल्कुल तीन कौड़ी के। रोज मार खाथें। काम ले जी चोरइया। इहू जगा घलो वइसने मनखें होहीं अउ का। क्लब-घर मा जादू होथेे। सुने हँव, इहाँ मुर्दा के खोपड़ी मन दउँड़त रहिथें अउ बड़े-बड़े तमाशा होथे, फेर कोनो ला अंदर नइ जावन देवँय अउ इहाँ संझा बेरा साहब मन खेलथें। बड़े-बड़े आदमी खेलथें, मेंछा-दाढ़ी वाले मन। अउ मैडम मन घलो खेलथें, सिरतोन! हमर अम्माँ ला वो दे दव, का नाम हे, बैट, त ओला पकड़ घलो नइ सकय। घूमाते सात गिर जाहीं।
महमूद कहिस- हमर अम्मीजान के तो हाथ काँपें धर लिहीं। अल्ला कसम।
मोहसिन बोलिस- चलो, मान ले आटा पीस डरथें। थोरकिन बैट पकड़ लेहीं, त हाथ काँपे ल लगही। कई सौ मरकी पानी रोज भरथें। पाँच मरकी तो तोर भइँस पी डरथे। कोनो मैडम ला एक मरकी पानी भरे बर पड़ही त आँखी तरी अँधियार हो जाही।
महमूद- फेर दउँड़य तो नहीं, उछल-कूद तो नइ करँय।
मोहसिन- हाँ, उछल-कूद नइ कर सकँय, फेर वो दिन मोर गाय ढिलागे रिहिस अउ चैधरी के खेत में हबरगे रिहिस त अम्माँ अतेक पल्ला दउँड़िस कि मैं ओकर पार नइ पा सकेंव, सिरतोन।
आगू बढ़िन। मिठई के दूकान शुरू होगे। आज अब्बड़ सजे रिहिस। अतेक मिठई कोन खाथें? देख न, एक-एक दूकान मा मनमाड़े हें। सुने हन, रात के जिन्न आके बिसाके ले जाथें। अब्बा कहत रिहिस कि आधा रात के एक मनखे हर दूकान मा जाथे अउ जतेक माल बचे रिथे, वोला तउला लेथे अउ सिरतोन के रुपिया देथे, डिक्टो अइसनेच रुपया।
हामिद ला भरोसा नइ होइस-अइसन रुपया जिन्न ला कहाँ से मिल जाही?
मोहसिन कहिस- जिन्न ल रुपया के का कमी? जेन खजाना तीर चाहे चले जावय। लोहा के कपाट घलो ओला नइ रोक सकँय जनाब, तैं कहाँ लगे हस! हीरा जवाहरात घलो उंकर तीर रहिथें। जेकर ले खुश हो जाथे, ओला टुकनी भर-भर के जवाहरात दे
देथें। अभी इहिचें बइठे हें, पाँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाहीं।
हामिद हर फेर पूछिस-जिन्न बहुत बड़े-बड़े होवत होहीं?
मोहसिन- एक-एक ठन हा आसमान के बरोबर होथे जी। ”भुइँया मा खड़े हो जाहीं, त उंकर मूड़ी आसमान ले छुआ जाहीं, फेर चाहही त, एक लोटा मा खुसर जाहीं।
हामिद-मनखें ओमन ला कइसे खुश करत होहीं। कोनो मोला वो मंतर बता दिही त ,एक जिन्न ला खुश कर लेहूँ।
मोहसिन- अब ये तो मैं नइ जानँव, फेर चौधरी साहब के वश म बहुत अकन जिन्न हावँय। कोनो जिनिस चोरी हो जाय त, चौधरी साहब ओकर पता लगा दिहीं अउ चोर के नाव घलो बता दिही। जुमराती के बछवा वो दिन गवाँगे रिहिस। तीन दिन परशान होइस। कहूँ नइ मिलिस। तब झक मारके चौधरी तीर गिन। चौधरी हा तुरंत बता दिस, मवेशी खाना मा हे अउ उहें मिलिस। जिन्न आके ओला सरी जग के खबर देके जाथें।
अब ओकर समझ में आगिस कि चौधरी के तीर काबर अतेक धन हे, अउ काबर ओकर अतेक सम्मान हे।
आगू बढ़िस। ये पुलिस लाइन आय। इहें सब कान्सटेबल मन परेड करथें। जागते रहो! रात कन बिचारा मन किंजर-किंजर के पहरा देथें, नइते चोरी झन हो जाय।
मोहसिन हा प्रतिवाद करिस- ये कान्सटेबल मन पहरा देथें! तभे तँय बहुत जानथस। अजी साहब, इही मन चोरी कराथें। शहर के जतेक चोर-डाकू हें, सब इंकर ले मिले रहिथें। रात कन येमन चोर मन ले तो कहिथे, चोरी करव अउ तँय दूसर पारा मा जाके ‘जागत रहो! जागत रहो!’ चिल्लाथें। तभे इंकर तीर अतेक रुपया आथें। मोर ममा, एक थाना में कान्सटेबल हवय। बीस रुपया महीना पाथे, फेर पचास रुपया घर भेजथे। अल्ला कसम! मैंहा एक बार पूछे रेहेंव कि ममा, तँय अतेक रुपया कहाँ ले पाथस? हाँस के कहे बर लगिस - बेटा, अल्लाह देथे। फेर तहीं तो बोलेस-हमन चाहन त, एक दिन में लाखों कमा लेथन। हम तो अतका भर लेथन, जेकर ले अपन बदनामी झन होवय अउ नौकरी झन चले जाय।
हामिद हर पूछिस- येमन चोरी करवाथें, त कोई येमन ला पकड़ँय नहीं?
मोहसिन ओकर नादानी ऊपर दया दिखाके बोलिस- अरे बइहा, येमन ला कोन पकड़हीं? पकड़इया तो इही मन खुदे हें, फेर अल्लाह येमन ला सजा घलो अबड़ देथे। हराम के माल हराम मा जाथे। कुछ दिन पहिली ममा के घर में आगी लगे रिहिस।
जम्मों ले पूँजी हर जरगे। एक बरतन घलो नइ बाँचिस। कई दिन ले रूख के खाल्हे मा सुतिन। अल्ला कसम, रूख के खाल्हे! फेर न जाने कहाँ ले ,एक सौ के कर्जा कहाँ ले लाय?, त बरतन-भाँड़ा आय।
हामिद- एक सौ तो पचास ले जादा होथे?
‘कहाँ पचास, कहाँ ,एक सौ। पचास, एक थैली भर होथे। सौ तो दू थैली में घलो नइ आवय।’
अब बस्ती घना होवत हें। ईदगाह जवइया मन के टोली दिखत हें। एक से एक भड़कीला कपड़ा पहिरें हें। कोनो इक्का-ताँगा मा सवार हे, कोनो मोटर मा, सबो इत्र मा बसे, सबो के हिरदे मा उमंग। गाँव वाले मन के ये छोटे-से दल, अपन गरीबी ले अनजान, संतोष अउ धीरज ले मगन चले जावत हे। लइका मन बर नगर के जम्मों जिनिस अनोखा रिहिस। जेन जिनिस ला देखथें, देखते रहि जाथें अउ पीछू ले बरोेबर हार्न के अवाज होय ले घलो नइ चेतँय। हामिद तो मोटर के नीचे जात-जात बाँचिस।
अचानक ईदगाह नजर अइस। ऊपर मा अमली के घना रूख के छइँहा हे। नीचे पक्का फर्रस हे, जेमा चादर बिछे हुए हे, अउ रोजादार मन के कतार, एक के पीछू, एक कोनजनि कहाँ तक चल देहें। पक्की जगा के नीचे तक, जिहाँ चादर घलो नइ हे। नवा, अवइया मन आके पीछू के कतार मा खड़े हो जाथें। आगू जघा नइ हे। इहाँ कोई धन अउ पद नइ देखँय। इस्लाम के नजर मा सबे बरोबर हें। ये गाँव वाले मन घलो वइसने करिन अउ पाछू पंक्ति में खड़े होगे। कतेक सुग्घर संचालन हे, कतेक सुग्घर व्यवस्था! लाखों मूड़ी एक संघरा सिजदे म झुक जाथें, फेर सब-के-सब एक संघरा खड़े हो जाथें। एक संघरा झुकथें, अउ एक संघरा माड़ियाके बइठ जाथें। कई बार इही बुता होथे, जइसे बिजली के लाखों बत्ती मन एक संघरा जलथें अउ एक संघरा बुता जाथें अउ इही क्रम चलत रहिथे। कतेक अपूर्व दृश्य रिहिस, जेकर सामूहिक क्रिया, विस्तार अउ अनंतता हिरदे ल श्रध्दा गरब अउ आत्मानंद ले भर देवत रिहिस, मानो भ्रातृत्व के एक सूत्र ये समस्त आत्मा मन ला एक माला मा गूथें हुए हे।
*दूसरइया भाग*
नमाज सिरागे। मनखे आपस मा भेंट होवत हें। तब मिठई अउ खेलौना के दूकान मा दउँड़ परथें। गाँव वाले मनके ये टोली के विषय मा टूरा मन ले कम उत्साही नइ हे। ये देखव, झूलना आय। एक पइसा देके चढ़ जावव। कभू आसमान मा जावत अइसन लगहीं, कभू भुइँया मा गिरत असन। ये चर्खी हरय, लकड़ी के हाथी, घोड़ा, ऊँट छड़ ले ओरमें हें। एक पइसा देके बइठ जावव अउ पच्चीस चक्कर के मजा लव। महमूद, मोहसिन, नूरे अउ सम्मी घोड़ा अउ ऊँट ऊपर बइठिन। हामिद दूरिहा मा खड़े हे। तीन पइसा भर तो हे ओकर तीर। अपन बाँटा के एक तिहाई थोरकिन चक्कर खायबर नइ दे सकय।
सब झूलना ले उतरथें। अब खेलौने लेहीं। येती दूकान मन के कतार लगे हुए हे। आनी-बानी के खेलौना हें-सिपाही अउ गुजरिया, राजा अउ वकील, भिश्ती(पानी डोहरइया) अउ धोबिन अउ साधु। वाह! कतेक सुग्घर खेलौना हें। महमूद सिपाही लेथे, खाकी वर्दी अउ लाल पगड़ीवाला, खांध मा बंदूक रखे हुए, मालूम होथे अभी परेड करत, चले आवत हे। मोहसिन ला भिश्ती(पानी डोहरइया) पसंद अइस। कनिहा निहरे हे, ऊपर मशक(चमड़ा के थइली) रखे हुए, हे मशक(चमड़ा के थइली) के मुँह ला एक हाथ मा धरे हे। कतेक मगन हे। शायद कोनो गीत गावत हे। बस, मशक (चमड़ा के थइली) ले पानी रितोय बर चाहत हे। नूरे ला वकील ले मया हे। कइसन विद्वत्ता हे ओकर मुख ऊपर! करिया चोंगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के आगू थइली मा घड़ी, सोन रंग के जंजीर, एक हाथ में कानून के पोथा धरे, मालूम होवत हे, अभीच कोनो अदालत ले जिरह(पूछ-ताछ) या बहस करके, चले आवत हें। ये सब दो-दो पइसा के खेलौना हरँय। हामिद तीर कुल तीन पइसा हे, अतेक माहँगा खेलौना वो कइसे लेवय? खेलौना कहूँ हाथ ले छूट जाही, त चूर-चूर हो जाही,, थोरकिन पानी परही त सबो रंग धोवा जाही, अइसन खेलौना लेके वो का करही, का काम के?
मोहसिन कहिथे- मोर भिश्ती रोज पानी दिही, सँझा-बिहिनिया।
महमूद-अउ मोर सिपाही हा घर के रखवारी करही। कोनो चोर आही, त तुरते बंदूक चला दिही।
नूरे- अउ मोर वकील हा अबड़ मुकदमा लड़ही।
सम्मी- अउ मोर धोबिन हा रोज कपड़ा काँचही।
हामिद खेलौना के निंदा करत हे- माटी गतर के तो हरे, गिरही ता चकनाचूर हो जही, फेर लालच भरे आँखी ले खेलौना मन ला देखत हे, अउ चाहत हे कि थोरकिन बर ओला अपन हाथ में ले सकत हे। ओकर हाथ धरे बर करत हे, फेर टूरामन अतेक तियागी नइ होवय, खासकर जब अभी नवा सउँख हे। हामिद ललचावत रहि जाथे।
खेलौना के बाद मिठई आथे। कोनो हर रेवडी़ ले हे, कोनो हा गुलाब-जामुन, कोनो हा सोहन हलवा। मजा लेके खावत हें। हामिद बिरादरी ले अलग हे। बपरा तीर तीन पइसा हे। काबर नइ कुछु लेके खावय? लालच भरे आँखी ले सबो झन कोती ला देखत हे।
मोहसिन कहिथे-हामिद, रेवड़ी बिसा ले, कतेक खुशबूदार हे!
हामिद ला संका होइस, येहा सिरिफ दिखावा हरय, मोहसिन अतेक उदार नइ हे। फेर ये जानके घलो वो ओकर तीर जाथे। मोहसिन दोना ले एक रेवड़ी निकालके हामिद ल देबर बढ़ाथे। हामिद हाथ फइलाथे मोहसिन रेवड़ी ल खा देथे। महमूद, नूरे अउ सम्मी अब्बड़ ताली बजा-बजाके हाँसथें। हामिद खिसिया जाथे।
मोहसिन- अच्छा, ये दरी जरूर देहूँ हामिद, अल्ला कसम, ले जा।
हामिद- रखे रहा। का मोर तीर पइसा नइ हें?
सम्मी- तीन पइसा भर तो हे। तीन पइसा मा का-का लेबे?
महमूद- हमर तीर ले गुलाब-जामुन ले जा हामिद। मोहसिन बदमाश हे।
हामिद- मिठई का बने जिनिस आय। किताब मा एकर कतेक बुराई लिखे हें।
मोहसिन- लेकिन मन में काहत होबे कि मिलही त खा लेहूँ। अपन पइसा काबर नइ निकालत हस?
महमूद- हमन समझत हन येकर चलाकी। जब हमर सबो पइसा खरचा हो जाही, त हमन ला ललचा-ललचाके खाही।
मिठाई मन के बाद कुछ दूकान लोहा के जिनिस मन के, कुछ गिलट(सोन चाँदी के परत चढ़े) अउ कुछ नकली गहना मन के। टूरामन के इहाँ कोई आकर्षण नइ रिहिस। वोमन सब आगू बढ़ जाथें। हामिद लोहा के दूकान मा रुक जाथे। कईठन चिमटा रखाय रिहिस। ओला सुरता अइस, कि डोकरी दाई तीर तो चिमटा नइ हे। तावा ले रोटी उतारथे त हाथ जर जाथे। कहूँ वो चिमटा बिसा के डोकरी दाई ला दे देही त वो हा कतेक खुश होही, फेर ओकर अँगरी कभू नइ जरही। घर मा एक काम के जिनिस हो जाही।
खेलौना ले का फायदा। फोकट मा पइसा खइता हाथे। थोरिक बेर तो खुशी होथे। फेर तो खेलौना ला कोनो आँखी उठाके नइ देखँय। या तो घर पहुँचत-पहुँचत टूट-फूट के बरोबर हो जाथे। चिमटा कतेक काम के जिनिस हरय। रोटी मन ला तावा ले उतार लौ, चूल्हा मा सेंक लौ। कोनो आगी माँगेबर आय हे, त झपकुन चूल्हा ले आगी निकालके वोला दे दव। दाई बिचारी ला कहाँ फुरसत हे कि बजार आय अउ अतका पइसा तको कहाँ मिलथे। रोज हाथ जरा लेथे। हामिद के संगवारी मन आघू चल देहें। शरबत के दूकान मा सबोझन शरबत पीयत हें। देखव, सब कतेक लालची हंें! अतेक मिठई लिन, मोला कोनो हो एकठन घलो नइ दिन। ऊपर ले कहिथें मोर संग खेल। मोर ये बुता कर। अब कहूँ कोनो कोई काम करे बर कही, त पूछहूँ। खाय हव मिठई ला, तुंहर मुँहू सरही। फोरा फुुंसी निकलहीं, तुंहर जीभ चटोरी हो जाही। तब घर ले पइसा चोराहीं अउ मार खाहीं। किताब में झूठ बात अइसने थोरे लिखाय हे। मोर जबान काबर खराब होही। दाई चिमटा देखतेसात दउँड़के मोर हाथ ले धर लेहीं अउ कही- मोर अपन लइका दाई बर, चिमटा लाय हे। हजारों दुआ देहीं। फेर परोस के माईलोगिन मन ला देखाहीं। पूरा गाँव मा चर्चा होय लगहीं, हामिद चिमटा लाय हे। कतेक अच्छा लइका हे। येकर मन के खेलौना बर कोन इनला दुआ देहीं? बड़ेमन के दुआ सीधा अल्लाह के दरबार मा पहुँचथें अउ तुरते सुने जाथें। मोर तिर पइसा नइहे। तभो तो मोहसिन अउ महमूद अइसन नखरा दिखावत हें। महूँ येमन ला नखरा देखाहूँ। खेलँय खेलौना अउ खावँय मिठई। मैं नइ खेलँव खेलौना, कखरो नखरा ला काबर सहूँ। मैं गरीब भले हँव, कखरो ले कुछू माँगे बर तो नइ जावँव। आखिर अब्बाजान कभू-न-कभू आही। अम्माँ घलो आहीच। फेर इंकर ले पूछहूँ, कतेक खेलौना लेहू? एक-एक झनला टुकनी भर के खेलौना देहूँ अउ देखा देहूँ कि संगवारी मन ले कइसे व्यवहार करे जाथे। ये नइ के एक पइसा के रेवड़ी ला चिढ़ा-चिढ़ाके खाथें। सब-के-सब₹ हाँसहीं के हामिद हा चिमटा बिसाय हे। हाँसँय! मोर का जाही!
ओ दूकानदार ले पूछिस-ये चिमटा कतका के आय?
दूकानदार हा ओकर डहर देखिस अउ कोनो मनखे संग मा नइ दिखित त कहिस- तोर काम के नोहय जी!
‘बेचरउहा हे कि नइं?’
‘बेचरउहा काबर नइ हे। अउ इहाँ काबर लादके लाय हस?’
‘त बतावत काबर नइ, के पइसा के आय?’
‘छै पइसा लगही।
हामिद का मन उदास होगे।
‘बने-बने बता!’
‘बने-बने पाँच पइसा लगही, लेना हेे त ले, नहीं त चलते बन।’
हामिद हा करेजा मजबूत करके किहिस-तीन पइसा लेबे?
ये काहत वो आगू बढ़गे कहूँ दूकानदार के डाँट झन सुनले। फेर दूकानदार नइ डाँटिस। बलाके चिमटा दे दिस। हामिद हा ओला खांध ऊपर अइसन रखिस, जइसे बंदूक हरय अउ शान ले अकड़त हुए संगवारी मन तीर आगे। थोरिक सुनव, सबझन का-का आलोचना करत हें।
मोहसिन हा हाँस के कहिस- ये चिमटा ल काबर लाय हस बइहा, येला काय करबे?
हामिद हा चिमटा ला भुइँया मा पटक के कहिस- थोरिक अपन भिश्ती ला भुइँया मा गिरा देे। सबो पसली मन चूर-चूर हो जाही काहीं नइ बाँचे। महमूद बोलिस- त ये चिमटा कोई खेलौना हरय?
हामिद- खेलौना काबर नोहय? अभी खांध ऊपर रखे हँव, त बंदूक होगे। हाथ में धरे हँव, त फकीर के चिमटा होगे। चाहूँ त एकर ले मंजीरा के काम ले सकत हँव। एक चिमटा जमा देहूँ, तो तुंहर मन के सबो खेलौना के परान छूट जाही।
तुंहर खेलौना कतकों जोर लगाहीं मोर चिमटा के कुछुच नइ बिगाड़ सकँय। मोर बहादुर बघवा आय-चिमटा।
सम्मी हा खँजरी ले रिहिस। प्रभावित होके बोलिस- मोर खँजरी ले बदली करबे? दू आना के हरय।
हामिद हा खँजरी डहर उपेक्षा ले देखिस-मोर चिमटा चाहही त तोर खँजरी के पेट ल चीर डरही। बस एक चमड़ा के झिल्ली लगा दे हवय, ढब-ढब बाजत हे। थोरकिन पानी पर जाही, त खतम हो जाही,। मोर बहादुर चिमटा आगी में, पानी में, आँधी में, तूफान में बरोबर डटे खड़े रही।
चिमटा हर सबो ला मोहित कर दिस, फेर अब पइसा काकर तीर धरे हे, फेर मेला ले दूरिहा निकलगे हवँय, नौ कबके बजगे हे। घाम जादा होवत हे। घर पहुँचे बर जल्दी करत हें। ददा ले जिद घलो करहीं, तभो चिमटा नइ मिल सकय। हामिद बड़ चतुरा हे। एखरे सेती बदमाश हा अपन पइसा बचा के रखे रिहिस।
अब टूरामन के दूठन दल बनगे हे। मोहसिन, महमूद, सम्मी अउ नूरे ,एक डहर हावय, हामिद अकेल्ला दूसर डहर। वाद-विवाद होवत हे। सम्मी हर विधर्मी(धर्मभ्रष्ट) होगे। दूसर पक्ष ले जाके मिलगे, फेर मोहसिन, महमूद अउ नूरे घलो, हामिद ले एक-एक दू-दू साल बड़े होय ले घलो हामिद के अघात ले घबरा जाथें। ओकर तीर न्याय के बल हे अउ नीति के शक्ति। एक डहर माटी हे, दूसर डहर लोहा, जेन ये बेरा अपन आप ला फौलाद काहत हे। वो अजेय हवय, घातक हवय। कहूँ कोनो बघवा आ जाही, त मियाँ भिश्ती के पछीना छूट जाही, मियाँ सिपाही माटी के बंदूक छोड़के भागहीं, वकील साहब के ममादाई मर जाय, चोंगा म मुँहू लुकाके भुइँया ऊपर सूत जाहीं। फेर ये चिमटा, ये बहादुर, ये रुस्तमे-हिद(ताकतवर) लपक के बघवा के टोटा मा सवार हो जाही अउ ओकर आँखीं निकाल लेही।
मोहसिन हर एड़ी-चोटी के जोर लगाके कहिस- अच्छा, पानी तो नइ भर सकय।
हामिद हा चिमटा ला सीधा खड़ा करके कहिस- भिश्ती ला एक डाँट परही त दउँड़त पानी लाके ओकर दुवारी मा रितोही। मोहसिन हारगे। फेर महमूद हा मदद पहुँचइस-कहूँ लइचा पकड़ा जाही, त अदालत में बँधाय-बँधाय फिरही। तब तो वकील साहब के पाँव परही।
हामिद ये जबर तर्क के जवाब नइ दे सकिस। वो पूछिस- हम ला पकड़े बर कोन आही?
नूरे हा अकड़ के कहिस- ये सिपाही बंदूकवाला।
हामिद हा मुँह चिढ़ाके कहिस- ये बिचारा हमर बहादुर ताकतवर ला पकड़ही! अच्छा ले तो, अभी थोरिक कुश्ती हो जावय। येकर मुख देख के दूिरहा ले भागहीं। पकड़हीं काला बिचारा!
मोहसिन ला एक नवा चोट सूझगे- तोर चिमटा के मुँह तो रोज आगी में जरहीं। वोहर समझत रिहिस के हामिद कुछु जवाब नइ दे पाही, फेर ये बात नइ बनिस। हामिद हा तुरंत जवाब दिस- आगी में बहादुर मन ही कूदथें जनाब, तुंहर ये वकील, सिपाही अउ भिश्ती टूरी मन बरोबर घर में खुसर जाहीं। आगी मा कूदना वो काम हरय, जेन ल ताकतवर मन ही कर सकत हें।
महमूद हा एक जोर लगइस- वकील साहब कुर्सी-मेज ऊपर बइठहीं, तोर चिमटा तो रँधनी खोली मा परे रिही।
ये तर्क हा सम्मी अउ नूरे ला घलो सजीव कर दिस। कतेक ठउँका गोठ कहिस टूरा हा। चिमटा रँधनी खोली मा परे रहे के सिवा अउ का कर सकत हे?
हामिद ल कोनो बने असन जवाब नइ सूझिस त ओहा धाँधली शुरू कर दिस- मोर चिमटा नइ राहय। वकील साहब कुर्सी ऊपर बइठहीं, त जाके वोला भुइँया मा पटक देही अउ ओकर कानून ला उंकर पेट में डाल देही।
बात कुछु नइ बनिस। अब्बड़ गारी-गलौज होइस, फेर कानून ला पेट में डालने वाला बात छागे। अइसन छागे कि तीनों सूरमा मन मुँह ताकत रहिगें, मानो कोई साधारन पतंग हा कोनो महंगा वाले पतंग ला काट दे हे। कानून मुँह ले बाहिर निकलइया जिनिस आय। वोला पेट के अंदर डार दिये जाना, बेतुकी-असन बात होय फेर घलो कुछ नवापन लगथे। हामिद हा मैदान मार लिस। ओकर चिमटा ताकतवर हे। अब येमा मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी कोनो ला आपत्ति नइ हो सकय। विजेता ला हारने वाला मन से आदर मिलना स्वाभाविक हे, वो हामिद ला घलो मिलिस। अउ मन तीन-तीन, चार-चार आना पइसा खर्चा करिन, फेर कोई काम के जिनिस नइ ले सकिन।
हामिद हा तीन पइसा में रंग जमा दिस। सिरतोन तो हरय, खेलौना के का भरोसा? टूट-फूट जाहीं। हामिद के चिमटा ला कई साल ले काहीं नइ होवय।
समाझौता के शर्त तय होय लगिस। मोहसिन हा कहिस-थोरिक अपन चिमटा दे हमू मन देखिन। तँय हमर भिश्ती लेके देख।
महमूद अउ नूरे हा घलो अपन-अपन खेलौना देबर राजी होइस।
हामिद ला ये शर्त ला माने मा कोई आपत्ति नइ रिहिस। चिमटा बारी-बारी ले सबके हाथ में गिस। अउ उंकर खेलौना बारी-बारी ले हामिद के हाथ में अइस। कतेक सुग्घर खेलौना हें!
हामिद हा हारने वालामन के आँसू पोंछिस-मैं तुमन ला चिढ़ावत रेहेंव, सच! ये चिमटा भला ये खेलौना मन ले का बराबरी कर सकही। मालूम होथे कि, अब बोलही, अब बोलही, फेर मोहसिन के पार्टी ला ये दिलासा ले संतोष नइ होवय। चिमटा के सिक्का बने बइठगे हे। चिपके हुए टिकट अब पानी ले नइ छूटत हे।
मोहसिन- फेर ये खेलौना मन बर, कोनो हमन ला दुआ तो नइ देहीं?
महमूद- दुआ ला का करबे। उल्टा मार झन पड़य। अम्माँ जरूर किही कि मेला मा इही माटी के खेलौना तोला मिलिस?
हामिद ला स्वीकार करे बर परिस कि खेलौना ला देखके ककरो दाई इतेक खुश नइ होही, जतना डाकरी दाई ला चिमटा देखके होही। तीन पइसा भर मा त ओला सब कुछ करना रिहिस अउ वो पइसा के ये उपयोग मा पछतावा के बिल्कुल जरूरत नइ होवय। फेर अब तो चिमटा ताकतवर हे अउ सबो खेलौना के बादशाह!
रद्दा मा महमूद ला भूख लगिस। ओकर ददा हा केरा खायबर दिस। महमूद हा सिरिफ हामिद ला साझी बनाइस। उंकर अउ संगवारी मन मुँह ताकते रहिगें। ये ओ चिमटा के प्रसाद रिहिस।
*तीसरइया भाग*
ग्यारा बजे गाँव मा हलचल मचगे। मेला वाले मन आगे। मोहसिन के छोटे बहिनी हा दउँड़ के भिश्ती ला ओकर हाथ ले नंगा लिस अउ खुशी के मारे अइसन कूदिस कि, मियाँ भिश्ती नीचे अइस अउ सुरलोक सिधरगे। येमन भाई-बहिनी मा मार-पीट होइन। दूनों
अब्बड़ रोइन। उंकर दाई हा ये शोर ला सुनके बफरगे अउ दूनों ला दू - दू थपरा अउ लगइस।
मियाँ नूरे के वकील के अंत ओकर प्रतिष्ठानुकुल येकर ले जादा गौरवमय होइस। वकील जमीन मा या तखत ऊपर तो नइ बइठ सकय। ओकर मर्यादा के विचार तो करे बर परही। कोठ मा दू ठन खूँटी गड़ियाय गिस। ओमा लकड़ी के एक पटरा रखे गिस। पटरा ऊपर कागज के सरकी बिछाय गिस। वकील साहब राजा भोज असन सिंहासन मा बिराजिस। नूरे हा ओमा पंखा धूँके के चालू करिस। अदालत मन में खस के पट्टी अउ बिजली के पंखा रहिथें। का इहाँ मामूली पंखा घलो नइ रही! कानून के गर्मी दिमाग मा चढ़ जाही कि नइ। बाँस के पंखा अइस अउ नूरे हवा करे लगिस।
पता नहीं, पंखा के हवा ले, या पंखा के छुवाय ले वकील साहब स्वर्गलोक ले मृत्युलोक में आगे अउ ओकर माटी के चोला माटी में मिलगे। फेर जोर-जोर से मातम होइस अउ वकील साहब के अस्थि धुर्रा मा डार दे गिस। अब बाँचिस महमूद के सिपाही। ओला झपकुन गाँव के पहरा दे के चार्ज मिलगे, फेर पुलिस के सिपाही कोनो साधारण मनखे तो नोहय, जे अपन पैर मा चलय। वो हा पालकी मा चलही। एक ठन टुकनी अइस, वोमा कुछ लाल रंग के चिरहा-फटहा फरिया बिछाय गिस। जेमा सिपाही साहब आराम से लेटिस। नूरे हा ये टुकनी ला उठइस अउ अपन घर के चक्कर लगाय लगिस। ओकर दूनों छोटे भाई सिपाही के डहर ले ‘छोनेवाले, जागते लहो’ चिल्लावत जावत हें। फेर रात हा तो अँधियार होना चाही; महमूद ला ठोकर लग जाथे। टुकनी ओकर हाथ ले छूटके गिर जाथे अउ मियाँ सिपाही अपन बंदूक धरे भुइँया मा आ जाथे अउ ओकर एक गोड़ में दरार आ जाथे। महमूद ला आज पता चलिस कि वो हा अच्छा डाॅक्टर हरय। ओला अइसन दवई मिलगे हे, जेकर ले वो टूटे गोड़ ला आनन-फानन मा जोड़ सकत हे। खाली गुड़हल के दूध चाही। गुड़हल के दूध आथे। गोड़ ला जोड़ दे जाथे फेर सिपाही को जइसे ही खड़े करे जाथे, गोड़ ह जवाब दे देथे शल्य क्रिया असफल होगे, तब ओकर दूसर गोड़ घलो टोर दे जाथे। अब कम-से-कम एक जगा आराम से बइठ तो सकत हे। एक गोड़ ले तो न चल सकय न बइठ सकय। अब वो सिपाही हा संन्यासी होगे हे। अपन जगा मा बइठे-बइठे पहरा देतव हे। कभू-कभू देवता घलो बन जाथे। ओकर मूड़ी के झालरदार साफा ला खुरच दिये गेहे। अब ओकर जतेक बदलाव करना चाहो, कर सकत हव। कभू-कभू तो ओकर ले बाट के काम घलो लिये जाथे।
अब मियाँ हामिद के हाल सुनव। अमीना ओकर अवाज सुनतेसाठ दौड़िस अउ ओला गोदी मा उठा के मया करे लगिस। अचानक ओकर हाथ मा चिमटा ला देखके वोहा चैंक गिस।
‘ये चिमटा कहाँ रिहिस?’
‘मैंहा बिसा के लाय हँव।’
‘के पइसा में?’
‘तीन पइसा में।’
अमीना अपन छाती पीट लिस। ये कइसन बेअक्कल टूरा आय, के मँझनिया होगे, कुछू खाय न पिये। लाइस का, चिमटा! सबो मेला भर मा तोला अउ काहीं जिनिस नइ मिलिस, जेन ये लोहा के चिमटा उठा लानेस?
हामिद हा अपराधी-भाव ले कहिस तोर अँगरी मन तावा ले जर जावत रिहिस; एकरे सेती, मैंहा येला लेंव।
डोकरी के गुस्सा तुरते मया मा बदलगे, अउ स्नेह घलो वइसन नइ, जेन साहसी होथे अउ अपन सबो पीरा ला शब्द मन म बिखेर देथे। ये मौन स्नेह रिहिस, खूब ठोस, रस अउ सुवाद ले भरे। लइका मा कतेक तियाग, कतेक सद्भाव अउ कतेक विवेक हे! दूसर मन ला ख्ेालौना लेवत अउ मिठई खावत देखके येकर मन कतेक ललचाइस होही? अतेक सहन एकर ले होइस कइसे? उहाँ घलो येला अपन डोकरी दाई के सुरता आवत रिहिस। अमीना के अंतस गदगद होगे।
अउ अब एकठन बड़ा बिचित्र बात होगे। हामिद के ये चिमटा ले घलो बिचित्र। लइका हामिद हा डोकरा हामिद के पार्ट खेले रिहिस। डोकरी अमीना लइका अमीना बनगे। वोहा रोय लगिस। ओली फइलाके हामिद ला दुआ देवत जातिस अउ आँसू के बड़े-बड़े बूँंद गिरावत जातिस। हामिद येकर रहस्य का समझतिस!
*अनुवादक*
*राजकुमार निषाद राज'*
*एम.ए.छत्तीसगढ़ी*
(अनुवाद काल-23.06.2025)
गोठबात-7898837338
गाँव-बिरोदा,धमधा, जिला-दुर्ग