(लघुकथा)
बदलाव
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भूखन लाल के एके झन बेटा धर्मेंद्र कुमार जेकर शादी बिहाव होगे हे अउ दू झन बाल बच्चा तको हे। वोकर बस्तर मा पटवारी के नौकरी हे, दस साल होगे हे। वो हा उन्हें परिवार सहित किराया के घर मा रहिथे।गाँव मा तीन एकड़ खेती हे तेकर देखभाल अधिया रेगहा देके दाई ददा मन करथें।
धर्मेंद्र हा पहिली महिना- दू महिना मा बाल- बच्चा मन सहित घर आते- जात राहय।धीरे- धीरे सिरिफ तिहार बार मा आये-जाये ला धरलिच।अब तो उहू बंद होगे हे। वो हा पाछू दू बरस ले घर नइ आये हे।
काली हरेली तिहार ये।हो सकथे धर्मेंद्र हा बाल बच्चा मन संग आही सोच के भूखन हा अपन परानी संग रद्दा जोहत हे।
ठऊँका संझौती के बेरा धर्मेंद्र हा उदुक ले पहुँच गे।वोला देख के दूनों के खुशी के ठिकाना नइ रहिच। थोकुन पाछू सियनहिन दाई हा पूछिच--
"नाती- नतनिन अउ बहू ला नइ लाये अच का बेटा ?"
"कहाँ लाबे दाई।आयेच- जाये मा छै सात दिन लग जथे।लइका मन के पढ़ाई लिखाई के नुकसान होथे।"
धर्मेंद्र के उत्तर ला सुनके भूखन के चेहरा मा उदासी छागे।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
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