नान्हे लइका मन बर
लघु कथा -
" रखवार "
नेवता मिलिस बिहाव के l पुसऊ तैयारी म लग़ गे l अपन अपन कपड़ा लत्ता समान ला झोला बैग म रखे ला कहिस l
पूसऊ के बाई सकून अपन साड़ी चुरी चाकी ल रखे म
भिड़ गे l ओकर नान्हे बेटा कइथे -"मैं काला धरंव? "
पूसऊ कहिस -" अरे बेटा रखवार कहाँ हे l *
"मैं का जानव कहाँ हे? "
सकून कइथे -" तोला तो बता के गे हे का? "
पूसऊ खोजत खोजत कइथे-"
थिर थार कोनो रहय नहींl सबके हाथ गोड़ होगे हे l मुड़ी खजुवात कहिस l
"लकर धकर के बेरा म काला खोजत रहिबे " -सकून कहिस l नान्हे लइका कहिस -" मोर बांटी भौरा अउ चश्मा कहाँ हे मम्मी?
" बेटा,ओखरे बर तो
काहत हँव l"
नान्हे लइका फ़ेर कहिस-"
अभी समझ मे आइस l
मैं लावत हँव l
मुसवा अपन बिला म तो नई ले गे होही! देखे हँव l
ये दे मिलगे
इही ला काहत हस का गो -'तारा संग कुची संघरा हे l"
चट ले चेथी ला मार के कहिथे -" बेलबेली मढ़ाथस l "
घर ला इही राखथे l इही रखवार ला खोजत रहेंव एखरे भरोसा म घर रहिथे l
पर ऊपर का भरोसा?
रखवार ला छोड़ के बेफिक्री होके निकलगे पूसऊ बिहाव के नेवता म l
दू दिन के बाद आइस देखिस l रखवार के हाड़ा गोड़ा ला टोर के, मुरकेट के कुढ़ो दे हे l घर के भीतरी म समान ला तीतीर बितिर फेंक के बासी खा के चाय पीके रखवार के बोस मन चल दे रहिन l अपन समझदारी घलो देखा के गेहे l
पिसान म लिख दे हे-
"नई मिलिस कुछु l"
- मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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