*शाल सिरीफल मोमेंटो*.
. ब्यंग (टेचरही)
मेहला घर जब छट्ठी के पोँगा रेडिया बाजत सुनेँव तब लागिस कि हिनमान के पेँदी मा घलो सम्मान लदकाय रथे। परोसी होय के नाता ले हमला का हे नेँवता मिलगे तब तो भात खाके आना ही हे। सँगे सँग गाड़ा भर भर बधाई तो उलद ही देबो। कुछ ईर्ष्यालु किसम के मन मा शंका के आलू पिकियाये लगथे, कि उपर वाले घलो कतका चतुर हे। नकामी ला अतका बड़े सम्मान दे डारिस। फेर आसा मा निराशा के जुच्छा झेँझरी खपले ले का फायदा। हम तो उपरिया मन बनाके सम्मानित जन के पोष्ट तक मा लाइक करे वाला ठेँगवा चपक देथन। धीरे धीरे पता चलथे कि मोरे सही कतको हे जे बिना पढ़े आदमी देखके पिछाटी बर लाइक के पिड़हा मड़ा देथें।कुछ तो मित्रता निभाना घलो परथे।
आधुनिक संदेश वाहक उपकरण मोबाईल के वाट्सअपी खोलखा मा एक झन नामधारी कलमकार के पोष्ट ले ज्ञान सकेले बर पोस्ट मार्टम करत रेहेँव। ओइसे बड़े पोठ मोठ साहित्यकार के पोष्ट मा फकत लाइक ही करे जाथे।नामी दुकानदार के सरहा धनिया घलो मँहगा बेचाथे। टीकाकार बने ले भविष्य मा सम्मानित मंच मा चढ़े के मउका घलो हाथ ले निकल सकथे। पोस्ट ला पढ़े के बोहनी करत रेहेँव, अउ एक झन कलमकार मित्र के फोन आगे। किहिस कि! भइया राजधानी मा सम्मान बटइया हे आपो लाइन मा लग जावव। मोर मन के बिचार जागिस कि आजकल सम्मान मिलथे कहां। वो तो बेचावत हे अउ खरीदे जावत हे। तभो पूछ पारेंव कि नियम विधि विधान के हवन मा का का साँखला डारे बर लगही? मोर शुभ चिंतक जी समझाइस कि पहिली फारम भरबे, सदस्यता के दू हजार जमा करबे अउ खास काम सम्मान बाँटुक समीति के मुखिया ले मेलजोल बढ़ाबे। ओइसे चापलूसी अउ चमचागिरी हर सम्मान पाये के मूल योग्यता होथे । खाना के टोकन अउ आये जाये के खरचा तोर। फोटू खिंचइया अउ ताली बजइया अपन हिसाब ले रख सकत हावस।
ओइसे मोरो नाम चरोटा अउ कुकुर मुत्ता काँदी कस उपजे कवि के लाइन मा सम्मान से लेय जाथे। मोला गरब हे कि कोनों कृपालु मन लिखइया के सँग जोड़े के किरपा तो करथें। मोर दमदारी ये हे कि मँय दमदार मनके पिछलग्गू आवँव। बस इही कला ले कृपापात्र बनके बड़का मंच मा घुसपैठी करत रथौं। जेकर ले छाटे निमारे नरियर ले सम्मान तो होते रथे। एक ठन शहर मा चार ठन अउ चार गाँव मिलके एक ठन सम्मान बाँटुक संस्था खुलगे हे। जेकर ले साहित्य मा जुड़े सब छोटे मन वरिष्ट होके सिरीफल अउ साटीफिकट झोँकत हे। मिलना घलो चाही काबर कि बिचारा मन समाज मा दरपन बेचे के काम करत हें। दोष तो हमर हे कि हम अपन असली मुहरन ला इँकर दरपन मा देख नइ पावत हावन। अउ फेर जे भाई मन अतका बड़े बीड़ा उठाए हे आखिर कब तक गुमनाम अउ बेनामी के दिन देखहीं। मरणोपरांत मिले सम्मान के न तो शाल ला ओढ़े सकय ना नरियर ला फोर के खा सके। तेकरे सेती जियते जीयत सम्मान जनक सुख देय बर सम्मान बाँटुक समीति घलो उपजत हे। भले बिचारा मन खीर ला दोना मा ही सही देवत तो हे। थारी मा देहीं तब वो ठेकादार के का होही जे संस्था चलावत हे।
ओइसे हमर मित्र के आठवां सम्मान के मउका आय। जेकर आनलाईन फारम भरके मोला फोन लागाय रिहिस। सरकारी नौकरी के भारी भरकम तनखाधारी अउ ऊँचहा पद होय के नाता ले जम्मो स्टाफ के डहर ले झोरा भर भर के मिले बधाई ले छाती कतका फुलथे सम्मानीराम बता सकथे। सम्मान आठवां जरूर हे फेर स्टाफ न तो मुहल्ला के बुद्धिजीवि ओकर पहिली कविता सुन पाए हे। भला हो वाट्सअप फेसबुक के जे सम्मानित होय के सूचना जन जन तक बगरा देथे। एक झन मितान एकर खबर पढ़के पूछिस कि! भाई ये सम्मानीराम के साहित्य मा का योगदान हे? मँय मनेमन योग करेंव कि पहिली मंच मा दूसर के रचना पढ़े रिहिस। शितला दाई के भजन बने गा लेथे। दू अरथी पेरोडी करे ले पनही ले सम्मानित होवत चूकगे। चुनाव बखत पारटी प्रचार बर गीत लिखिस उही गीत के चक्कर मा सरकार बनगे। अब विरोधी मन सम्मान करे के ताक मा हे।
कोनो कोनो साहित्य बैरागी मन कुआँ तो नइ कोड़िन न साहित्य के समुन्दर मा थाही मारिन। फेर पुरखौती झिरिया पानी ज्ञान सानके परोस के मठाधीश बनगे। कतको अइसनो खानदानी हे जे मन बबा बाप के नाम के खड़पड़ी पहिर के शाल सिरीफल मा लदावत हे। उलटबासी यहू कथे कि चेला सुभाव के मन गुरुज्ञान बाँटके मोमेंटो ले घर भरत हे। अउ गुरुजी कुआँ कोड़इया के जनम मरण दिन मनाके घोलहा नरियर फोरत हे। हमरे असन कोनों कुकुरमुत्ता समाज के कवि कहि दिस हे कि--गली गली मा गुरु फिर, चोर फुँकाए कान।. एक झन आदरणीय श्री के घर के कुरिया मा चारो कोती मोमेंटो ले सजे भरे घर ला देखके पूछ पारेँव---कस जी आजकल एकरो बिजनेस करथो का? वो बताइस कि नही जी ये सब मोर सम्मान मा मिले हे। संतुष्टि ये सोच के होइस कि जरूर ये हर आमा अथान उपर सोध करे होही।
एक झन के अढ़ाई कोरी किताब किलो के हिसाब ले छपे के चरचा तो हे फेर का लिखे हे ओकर थोरिक चरचा नइए। ओकर कारन अतके हे कि फखत लिखाऊ जगत मा पाव भर पढ़ाकू नइये। घर के सजे लाइब्रेरी के विमोचन मा मिले किताब ला झोँकइया नइ पढ़य। ओला दिँयार अउ मुसवा पढ़थें ये बात देवारी के सफाई अभियान मा पता चलथे।
सौ रुपिया के शाल ओढ़े बर सात सौ के खरचा बइठथे। तब लगथे कि आत्मा के अवाज के कीमत घोलहा नरियर ले जादा नइये। तभो ले सम्मान तो सम्मान होथे। हर हाल मे झोँकना चाही। एक झन सरकारी सेवक अपन बाचे बेरा ला फकत लिखे मा ही खरच करत हे। इही आस मा कि अब के सरकारी सम्मान बर मोरो नाम जुड़ जाए। ये अलग बात हे की चार लाइन के मुक्तक मा जेला जगाना रिहिस सुते रहिगे अउ जागे मन शाल सिरीफल झोँके के देखे सपना मा खुशी मनावत हें।
हमर मित्र के आनलाइन रचना पाठ अउ आफलाइन प्रशस्ति पत्र झोँकत तीन झोरा भरगे हे। सुने हवँ अब ओकर नाम के आगू डाक्टर घलो चिपकने वाला हे। मँय ओकर रचना धर्मिता ला पैलगी करत हवँ। बिचारा के नजर मा जौन दिख जाय खड़े खड़े चार छंद रचना पेल देथे। काँदा भाजी बेसरम फूल टूटहा पनही रेचका खटिया। पुरइन पान बरी बिजउरी अइसे कोनो चीज नइये जेकर उपर लिख के समाज मा नवा चेतना जन क्रांति नइ लावत होही। मानवीय संवेदना समाजिक सरोकार देश दुनिया अउ राजनीतिक उलट फेर के चिंतन बर समय नइ निकाल पावत हे। या तो मानहानि के डर घेरे होही। अइसन साधक के तो शाल सिरीफल मोमेंटो ले सम्मान तो होना ही चाही। एकर सम्मान के खबर अखबार मा आही तौ सम्मान बाँटुक समीति के नाम तो घलो सम्मान पाही। महामंडलेश्वर मन के वैचारिक लेख निबंध अवतरथे तब जानबा होथे कि सिरीफल के मन मा घलो भेद हे। भुँजवा पसरा मा जब झोझा परथें तब तो शक्कर के नाम चीनी हो जाथे अउ गुड़ हर गन्ना के तासीर खोजत रहि जाथे।
हम उपर वाले ले बिनती करथन कि जेकर भाग मा शाल सिरीफल मोमेंटो परत हे वोकर असन के चोराय कविता, तीज तिहार के रचना मेला मड़ई के गीत फरा मुठिया के रचना हर तियासी बासी कस सदा दिन जन सुरता मा रहय। अवइया पीढ़ी ला तो घलो जानकारी होय कि साहित्य के परिभाषा मा परी के योगदान हे कि भाषा के। बरदी के पाछू बाँसरी बजइया ददरिया के मुखड़ा मा फँसे हे। वरिष्ठ जन उत्तम तुकान्त बर हिन्दी के शब्द ला तिर तिर के बेजा कब्जा करत हें। आगू चल के मालिकाना पट्टा तो मिल ही सकत हे काबर कि आज के लइका अवइया बेरा मा खाँटीपना ले हजारों कोस दुरिहा हो जाय रही। अउ बाप ले झन पूछ देय कि व्हाट इज महतारी भाखा। बोले बर बोल भले मत फूटय फेर मोमेंटो बर काँछ वाले आलमारी तो बनवाय के दम तो हे।
हमर गाँव मा सफाई अभियान ले जुड़े महिला मन के सम्मान 26 जनवरी के नरियर धराके करे गिस। मोला लगिस कि एक जमादार के हाथ ले दूसर के सम्मान होवत हे। जेला हम समाज के गंदगी सफाई बर झाड़ू धराके चुन के भेजे हावन। वो उलटा बिचारी मन ला सरहा नरियर मा भुलियारत हे। भ्रष्टाचार के विरोध मा मुक्त कंठ ले किँजर किँजर के कविता सुनाने वाला के सम्मान महाभ्रष्ट नेता के हाथ ले भरे मंच मा शाल सिरीफल ले होथे तब प्रभावी कवि के आनंद हर परमानन्द मा बदल जाथे। बस जे दरपन ला समाज ला देखाय बर बनाय रिहिस, वोला सिरीफल मा कुचरे के बाँचे हे। दमदार मन के हाथ झोंके मोमेंटो ला अगला सिरीफल मिलत ले मुड़सरिया मा रखके सुतना ही हे।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
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