Saturday, 12 July 2025

गुरु पूर्णिमा

 गुरु पूर्णिमा 

        असाढ़ पुन्नी ल गुरु पूर्णिमा कहिथें । महाभारत लिखइया कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास के जनम आजे के दिन होए रहिस उन सत्यवती अउ पराशर मुनि के बेटा रहिन । आज के दिन गुरु दत्तात्रेय ल भी सुरता करथन काबर के उन 24 ठन गुरु बनाए रहिन जेमा मनसे , जीव जंतु , प्रकृति के उपादान सहित खुद के देंह घलाय शामिल रहिस । सबो के वर्णन करबो त लेख लंबा हो जाही त सार बात ऊपर ध्यान दिहिन । हम अपन जीवन मं जेकर से भी जौन कुछु सीखथन ओहर गुरु होइस न ? एतरह देखबो त गुरु के कोनो जात , धर्म , उमर नइ होवय दूसर महत्वपूर्ण बात के हमर देंह से ही हमला बहुत बड़े ज्ञान मिलथे के शरीर नाशवान आय मुख्य होथे ये शरीर द्वारा करे गए कर्म मतलब तो इही होइस के कर्म प्रधान जीवन  होथे । त कइसन कर्म करना चाही ? उत्तर तो बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी मन बहुत प्रकार से देहे हें फेर कर्मकांड के सबले बढ़िया उपदेश मिलथे श्रीमद्भगवतगीता ले ..." कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "  माने कर्म करव फल के बारे मं झन सोचव इही ल निष्काम कर्मभाव कहे गए हे । सुरता आगे के एहू हर तो वेद व्यास के कहे बानी आय । 

      थोरिक दिन पहिली राम नाथ साहू जी इही पटल मं गीतांजलि के कुछ अंश के छत्तीसगढ़ी अनुवाद प्रस्तुत करे रहिन ...हां आज रवीन्द्र नाथ ठाकुर घलाय ल सुरता कर लिन उन गीतांजलि मं मानवता के गुन गाए हें तभे तो उनला गुरुदेव कहिथें । मनसे के कर्म घर परिवार , समाज , देश , विश्व मं सुख सनात , शांति भाईचारा लानथे त मनसे एक दूसर से सीखत चलथे । 

     अद्भुत गुरु शिष्य रहिन गोरख नाथ अउ मत्स्येन्द्र नाथ काबर के गुरु जब अज्ञान के अंधियार मं रस्ता भुला गिस त शिष्य ओकर आँखी उघारे बर ज्ञान के अंजोर बगराये बर पहुंच गिस ...अद्भुत परम्परा देखे बर मिलिस न ? सार तो इही निकलिस के गुरु होए के अहंकार बिरथा ए समय सुयोग मिलथे त शिष्य घलाय गुरु बन जाथे । 

    शिष्य खोजथे गुरु ल फेर एकझन गुरु रहिन रामकृष्ण परमहंस जेन शिष्य खोजत रहिन त मिलिन  नरेंद्र ..न देवी देवता मानय न गुरु गोविंद , रिसहा बौछहा , रामकृष्ण परमहंस के जब्बर आलोचक फेर गुरु तो गुरु होथे न ? नरेंद्र के विवेक ल जगाईन परमहंस जी अउ हमन ल मिलिन स्वामी विवेकानन्द । इतिहास गुरु शिष्य परम्परा के उदाहरण से भरे हे । ये  कुछेक के सुरता एकर बर करे गए हे के कान फूंका के गुरु बनाना जरूरी नइए , जरूरी नइए जात , धर्म , भाषा , उम्र जौन जरूरी हे तेहर आय ज्ञान के प्राप्ति । 

    आज मैं उन सब गुरु मन ल प्रणाम करत हंव जिनमन से कुछु काहीं सीखत आये हंव ..चीटिक थिरा के गुनें त लिखत हंव अवइया दिन मं माने जियत भर जिनमन से जौन भी सीखिहंव उन सबो झन ल प्रणाम । 

    कबीर दास ल भुलाए कइसे सकत हंव भाई ....

" गुरु गोविंद दोनों खड़े , काके लागूं पांय , 

 बलिहारी गुरु आपनो , जिन गोविंद दियो बताय । " 

     सरला शर्मा

No comments:

Post a Comment