Saturday, 12 July 2025

टाइगर अभी जिंदा हे....*

 *टाइगर अभी जिंदा हे....*


दू के पहाड़ा ला चार बार पढ़

अमटाहा भाटा ला खा, मुनगा ल चुचर 

राजिम म नहा के डोंगरगढ़ मा चढ़.. 

येला कहिथे बाबू छत्तीसग।

        अइसन कालजयी कविता के लिखने वाला पद्मश्री डॉक्टर सुरेंद्र दुबे जी के जन्म

8 अगस्त 1953 के तात्कालीन दुर्ग जिला के बेमेतरा मा होय रहिस। पेशा से उन आयुर्वेदिक डॉक्टर रहिन फेर हास्य के रंग मा अइसन रंगिन कि आजीवन लोगन ल हँसाए के काम करिन। 

        अपन काव्य पाठ के दौरान सुरेंद्र दुबे जी दावा के साथ कहय कि - 

      मैं कभी मरूंगा नहीं क्योंकि

      ऐसा कोई काम कभी करूंगा ही नहीं

सही बात आय,विचार कभू नइ मरय वो सदियों तक जिंदा रहिथे। अपन काव्य यात्रा में लगभग 14-15 देश के यात्रा उन करिन हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी ला भी सात समुंदर पार पहुँचाये के काम सुरेंद्र दुबे जी करिन।

          सन 2018 मा जब राजस्थान के कवि सुरेंद्र दुबे के निधन के समाचार हमर दुबे जी के फोटो के साथ छत्तीसगढ़ के मीडिया मा वायरल होइस उही समय दुबे जी के कलम से ये कविता निकलिस जेन काफी प्रसिद्ध होइस - 

ये हास्य के कोकड़ा ये, ठहाका के परिंदा ये..

टेंशन मा मत रहिबे बाबू, टाइगर अभी जिन्दा हे..।

       अखिल भारतीय मंच ले अइसन दहाड़ने वाला सुविख्यात कवि पद्मश्री डॉ सुरेन्द्र दुबे सचमुच जिंदा हे, काबर कि विचार कभू नइ मरय। विचार हमेंशा जिंदा रहिथे। बड़े-बड़े मंच ले छत्तीसगढ़ी भाखा म काव्य पाठ करके दुबे जी छत्तीसगढ़ के गौरव गान करिन। अइसे अनेक अवसर आइस जब दुबे जी छत्तीसगढ़ी में काव्य पाठ करँय ता बाहर ले आय 4-5 अंतरराष्ट्रीय कवि मन उपर उन अकेल्ला भारी पर जाय। एक छत्तीसगढ़िया के आत्मविश्वास दुबे जी चेहरा ले साफ झलकय। उन छत्तीसगढ़ के तीन करोड़ जनता के आवाज रहिन। उँकर सपना उँकर कविता म झलकय - 

      मोर जियत ले अउ मोर मरे के बाद भी

      छत्तीसगढ़ रही एक नंबर..

छत्तीसगढ़ी भाखा के प्रति उँकर अगाध मया साफ दिखय। अक्सर मंच उन कहय- अंग्रेजी नौकरी दे सकथे, व्यापार दे सकथे फेर छत्तीसगढ़ी ही वो भाखा आय जे संस्कार दे सकथे। 

दूसर उपर बियंग करके तो कोनो भी हँसा लेथे फेर स्वयं के उपर बियंग करके लोगन ल हँसाना बहुत बड़े कला आय जेमा दुबे जी माहिर रहिन। उन स्टेज मा खड़ा होइन नहीं कि ठहाका शुरू हो जाय। 

          ठेठरी,खुरमी,बरी,बिजौरी,मुनगा, अमटाहा भांटा जइसन छत्तीसगढ़ी के अनेक शब्द उँकर काव्य म अनिवार्य रुप से प्रयोग होवय । सरकारी नौकरी मा रहे के बाद भी उन व्यवस्था के खिलाफ  खुल के लिखिन उँकर व्यंग्य के अंदाज देखव -

        राजपरिवहन के बस, गाड़ी नोहय गाड़ा

        सीट ह गड़थे कुकुर कस हाड़ा..

        सरकारी अस्पताल के का ठिकाना 

        नरक मा जाना.. उहू मा पछुवाना.. 

छत्तीसगढ़ के पीरा ला उन अपन कविता के माध्यम ले देश के हर हिस्सा म पहुँचाइन,जब ये मार्मिक कविता के पाठ उन करय तब उपस्थित जन समूह सिहर जाय - 

         मैं खामोश बस्तर हूँ लेकिन आज बोल रहा हूँ..

        अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ...

उन केवल राज के बात नहीं बल्कि हमेशा 'सुराज' के बात करँय। उँकर दूरदर्शिता गज़ब के रहिस। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद के स्थिति ल उन पहिली ले भाँप ले रहिन उँकर कविता देखव :- 

     छत्तीसगढ़ राज बनही, ता उही मन बनही

     हमर बर तीन बाई पाँच के गड्ढा खनही..।

            महतारी भाखा के प्रति अगाध प्रेम उनला सबले अलग करय। छत्तीसगढ़ी के मजाक उडाने वाला मन ला उन खुला चेलेंज करय - 

'छत्तीसगढ़ी अगर तोला समझ नइ आय ता ये तोर टेंशन ये मोर नोहय ' अनुवादक तय रख मैं काबर रखहूँ...

           2008 मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग बने के बाद लगातार 10 साल उँकर साथ काम  करे के मौका मिलिस। अनेक कवि सम्मेलन मा उँकर साथ काव्य पाठ भी करेंव। मिलनसार के संग उन जिंदादिल इंसान रहिन। छत्तीसगढ़ी ला राजकाज के भाषा बनाय बर अउ आठवीं अनुसूची में शामिल करे खातिर अंतिम समय तक  प्रयासरत रहिन। उन हमेशा कहँय कि छत्तीसगढ़ी ला केवल हिंदी माध्यम के विद्यार्थी ही नहीं बल्कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थी मन घलो पढ़य अउ ये तभे होही जब छत्तीसगढ़ी आठवीं अनुसूची म आही। 

         दुबे जी छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के पर्याय बनगे रहिन। सन 2008 म उन काका हाथरसी से हास्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित होइन। पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान अउ सन  2010 मा  उन पद्मश्री से सम्मानित होइन। मोर जानबा म उँकर 5 किताब प्रकाशित होय रहिस। जीवन के अंतिम साँस तक उन मनखे ला हँसाइन अउ ये सन्देश दिन कि जीना अगर जरुरी हे.. ता हँसना बहुत जरुरी हे..। 26 जून 2025 के "ये हास्य के कोकड़ा" अपन नश्वर देह ला इँहे छोड़ के देवलोक गमन कर गे। 

    

          

अजय अमृतांशु

भाटापारा

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