लघु कथा -
" पंडाल के कथा "
-मुरारी लाल साव
बहुत भीड़ l पाँव रखे के जघा नइ हे l अतका भीड़ मुड़ीच मुड़ी दिखत हे l पंडाल खचा खच भरा गे देखते देखत l जेन ला जेन मेऱ जघा मिलिस पौगरावत गिस l मंच ले घेरी भेरी अपील होवत हे " बइठत जाव बइठत जाव "l
बिसहत अपन बाई ला कहिस "भीड़ बहुत हे संभल के रहिबे सामान ला घलो संभाल के राखबे l"
" तैं का करबे? देखबे नहीं तहूँ ह l" - बिसनतिन कहिस l
" तोला सबे झीन देखथे बने फक फक ले गोरी हस l गर भर माला पहिने हच l "
" त मोला देखाये बर लाने हच इहाँ l"
" देखाये बर नहीं कथा सुनाये बर लानेहँव l" देख देख ओती देख महाराज आवत हे l"
बिसनतिन आघू- पाछू,डेरी -जेवनी कोती डहर देखथे l
ओती देख मंच कोती उहें ले बुलक के आइस l
" महराज बुलक के? "
परदा उठा के आइस l
"अतका भीड़ म ओहा आही त कतको अइसने रौंदा जही l तेखर सेती जानेस l "
बिसनतिन कहिस-" बीचो बीच आतिस त महराज के गोड़ छुके तर जातेंव महूँ ह l " "घोलंड घोलंड के गोड़ धर धर के पाँव परइया के भीड़ l लात मारत निकलत हे तभो नइ बनय l "
"मइनखे झपाए लेथे गोड़ छुवे बर l"बिसहत समझाइस l ओती महराज अपन आसन ले कथा कहे ला शुरू करिस -
" ये संसार ए l इहाँ सब झन ला कुछु न करे ला पड़थे l जइसन करथे ओला मत देख अपन ला देख का फल मिलथे l
अच्छा करम के फल अच्छा होही l बुरा करम के फल बुरा होही l संसार बने हे देखे सुने बर बने हे l मानुस जनम मिले हे बार बार नइ मिलय l कथा सुने ले अंदर अउ बाहिर म उजियारा आथे l आत्म ज्ञान मिलथे बने आनंद मिलथे आत्मा ला l"
बिसनतिन हचकारत - "लदके परत हस गो घुच के राह थोकून l " दूसर आदमी -" का लदकत
हँव देख कतका धुरिया म हँव l" " छू मत गो घेरी भेरी l"
" कोन तोला छुवत हे l"
"कथा होवत हे तेती ला देख
"मोला काबर देखत हस?"
"तोला कोन देखत हे?"
"लबरा, तोर नियत ला देख l "
बिसहत सुन केअपन बाई ला समझाथे -
"ओकर से मत लाग l सुने बर नइ आये हे l"
..महराज के प्रवचन चलते रहिस
" संसार म अपन अपन ढंग ले रहे ला पड़थे l भक्ति करो अउ करम करो पुन कमाओ l"
कथा ला सुन के सब निकलत रहिस l
एती बिसनतिन पंडाल के भीतरी के कथा ला बाहिर म सुनावत रहिस -" मोर गला ले सोन के चैन ला पुदक के लेगे l "
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