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*फैसला*
*(छत्तीसगढ़ी लघुकथा)*
चउक - चौराहा म चारों रस्ता मिलिन अउ गोठियाय लॉगिन।
"मैं उत्ती ले आवत हंव।"एकझन कहिस।
"अऊ मंय उत्ती कोती जात हंव।"वोकर आगु म अड़े रस्ता कहिस।
"मंय तो समझ नई पात अंव कि मंय कोन कोती ले आत हंव या कोन कोती जात हंव..."वो दुनों रस्ता मन ल आढ़ा काटने वाला एकझन आन रस्ता कहिस।
"अरे चुपव भी !हमन न कनहुँ कोती ले न आत हन न कनहुँ कोती जात हन। हमन तो बस अपन ठउर म डट के जमे भर हावन ।जाने आने वाला तो आदमी आय।हमन नहीं..."छेवर बांचे रस्ता हर, तब वो सब मन ल डपटत फैसला सुनात कहे रहिस वोतकी बेर ।
*रामनाथ साहू*
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