Saturday, 12 July 2025

साँप* (लघुकथा) -डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .                     *साँप* (लघुकथा)


                           -डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


            रामलाल के घर के आघू गाँव वाला मन के अच्छा-खासा भीड़ इकट्ठा हो गे रिहिस जेमन अब छँटे लगिन हें। रात के आठ बजने वाला रिहिस। रामलाल के दू कमरा के कच्चा घर रिहिस। जेकर दरवाजा बाहर ले बंद रिहिस। ओकर दस साल के बेटा घनश्याम, अपन दाई लखेसरी के संग घर के बाहिरेच्च मं खड़े रिहिस। दाई के कांधा मं सिर टिकाये दू साल के नोनी सोवत रिहिस। ..... जतकी मुँह ओतकी बात! 

      ' कइसे बेटा साँप ला बने देखे हस न? '

      ' हाँ, महराज! फन काढ़े रिहिस। ओकर माथा मं खड़ाऊ के चिनहा रिहिस। ओही मेर मोर बहिनी सोवत रिहिस। बहिन ला लटपट उठा के मँय उहाँ ले धरा-रपटा बाहिर कोती भागेंव! '

     ' चिन्ता मत कर। वोहा नाग देवता हे। मैं सर्पमित्र अउ तोर ददा ला फोन कर दिए हँव। ओमन आतेच्च होहीं। '- पंडित जी के जवाब ले लड़का संतुष्ट नि होइस। ओहा सवाल करिस- ' सर्पमित्र कब तक आही? दू घंटा तो हो गे हवय! '

      ' आतेच्च  होही बेटा। '

        ठीक ओही बेरा रामलाल आ गे।  रायगढ़ से लउटत बेरा बस ले उतरिस त बारिस शुरू हो गे जेकर कारण वोहा भीगत घर पहुँचिस। ओला मोबाईल मं पूरा जानकारी मिल गे रिहिस। 

        बारिश के कारण बाकी बचे लोगन बगल के घर के टिन सेड के नीचे पंडित जी ला घेर के खड़े रिहिन अउ पंडित जी के धरम-करम के बात मं सब मोहाय कस रिहिन। ओही मेर रामलाल के घरवाली अउ दुनों लइका घलो रिहिन। रामलाल के आतेच्च ले पंडित जी कहिन- ' तँय बहुत भाग्यशाली हस रामलाल! तोर घर मं नाग देवता प्रकट होय हे। नाग देवता के माथा मं दिखत चिनहा भगवान विष्णु के पैर के खड़ाऊ के समान होथे। एकर सनातन धरम मं बड़ महात्तम हे। ये चिनहा गुरुभक्ति और पवित्रता के प्रतीक हे। एहा नाग देवता के दिव्य स्वरूप अउ ओकर ले जुड़े आध्यात्मिक महात्तम ला घलो बताथे! .....'

         ' पंडित जी, आप मोर घर के भीतरी पेल के नाग देवता ला पूजा-पाठ करके बाहर काबर नि  निकालत हॅव! '

       ' पागल हो गे हस का? डस लिही त? ......'

       ' अउ मोर लइका मन ला डस लेतिस त? ' 

       पंडित जी मुक्का हो गे। एकर बाद लकठा मं परे एक ठिन सात फीट लम्बा लकड़ी के डंडा ला लेके रामलाल अपन घर मं घुस गे। थोरकुन देर मं मरहा साँप के पूँछी ला पकड़के ओहा टिन सेड मं आ गे। ओहा लगभग छै फीट लम्बा नाग साँप ही रिहिस। लोगन मन आश्चर्य ले कभू मरे हुए नाग साँप ला देखँय त कभू रामलाल ला! 

        अचानक पंडित जी के मुँहू ले ये शब्द निकलिस- ' रामलाल, तँय नाग साँप ला मार डारेव! ..... ये तो बहुत बड़े पाप हे!! ' 

       रामलाल कहिस- ' हाँ मार डारेंव पंडित जी! .... आपके घर मं तीन घंटा ले एही साँप घुसे रहितिस त आप एही कांड नि करता का ? ..... हिन्दी मं आपमन एक ठिन मुहावरा जरूर सुने होइहा -आस्तीन का साँप! '

       ' हाँ सुने हँव। '

       ' आपके धरम-करम के बात सब ठीक हे। मोला बस एकेच्च  बात के जवाब दे देवा कि ये मुहावरा- आस्तीन का बिच्छू - काबर नि होइस? '

      पंडित जी आवाक् होके रामलाल के मुँह ताके लगिन!

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