Saturday, 26 July 2025

हरियर धरती के सुघरई ह आय हरेली*

 *हरियर धरती के सुघरई ह आय हरेली*


छत्तीसगढ़ के उर्वरा धरती मा सावन महीना के अमौसी के दिन मनाय जाने वाला ये लोक परब हरेली छत्तीसगढ़िया किसान, बनिहार, मजदूर मन के दूसरइया बड़का तिहार आय। छत्तीसगढ़ के किसानी तिहार अक्ती के बाद हरेली तिहार ह खेती-बाड़ी म रमे किसान मन के जिनगी म नवा उमंग-उल्लास ल अपन कोरा मा समोख के लाथे। ये तिहार ह चिखला-माटी के काम-कारज मा चिभके कमइया मन बर थोकिन सुस्ताय के उदीम घलव आय। तइहा जमाना ले बैला-भैंसा के उपयोग नाॅंगर जोतई , माल ढुलई अउ आवागमन बर होते आवत हे। किसान मन डहर ले मवेशी मन के मल-मूत्र अउ बन-कचरा (कृषि अपशिष्ट) ले जैविक खातू बनाय के परम्परा निच्चट जुन्ना बात आय।

    किसानी काम-बूता बर खातू- बीजा, मजदूर-बनिहार (मानव श्रम),नाॅंगर-दतारी, रापा- कुदारी (कृषि उपकरण) गाय -बैला (पशुधन) अउ पानी-बरसात जइसन चीज-बस (संसाधन) के होना बहुत जरूरी चीज होथे। येकरे भरोसा म किसान मन अपन खेत म थीरभाव ले फसल उपजारे के काम ल कर पाथें। किसान मन अन्न के उपजइया आँय तेकर सेती येमन ये सबो चीज-बस (श्रम संसाधन) बर भारी चिंता फिकर घलव करत रहिथें।

जोताई-बोवाई अउ बिआसी जइसन किसानी बूता के उरके के पाछू जब भाठा-टिकरा, खेत-खार, मेड़-पार, परिया-कछार मन हरियर-हरियर दिखन लगथे, तरिया-डबरी, नरवा-ढोड़गा, नंदिया-बॅंधिया डबडबाके छलछलाय ला धरथे तब किसान भाई मन इही श्रम संसाधन मन के आभार व्यक्त करे बर हरेली तिहार ल मनाथे।

हम सब जानथन कि खेती किसानी के काम में अवइया श्रम सहायक समान चाहे वोहा सजीव होय या निर्जीव, सबके देखभाल बर किसान ह चौबीस-घंटा सजग रहिथे। किसानी संस्कृति के इही प्रमुख तिहार म अगर कोनो धरम नाम के चीज हे त वोहा आय किसानी धरम जिहाॅं माल-मवेशी अउ कृषि औजार मन ह ही ओकर देवता-धामी आय।

     गाॅंंव-गॅंवई म  चलागन (लोक मान्यता) हे कि बीते रातकुन ह बहिरी हवा के सक्रिय होय के बेरा आय। बाहरी-हवा के पोषक मन कहुँ डहर सुन्ना जगा म जाके सिरजन के उलट जादू-टोना ( कारू-नारू) सीखे के शुरूवात इही दिन ले करथे।

          गाँव म ठउका इही दिन जादू-टोना जइसे बाहरी हवा ल जड़मूल ले खतम करे बर तंत्र-मंत्र विद्या के गुरूवारी पाठशाला के शुरुआत होथे। गुरूवारी पाठशाला ह सावन अमौसी रतिहा ले भादो महिना के रिषि पंचमी तक सरलग पैंतीस दिन तक चलथे।

          इही दिन माल-मवेशी मन ल नवा चारा ले होवइया रोग-राई ले बचाय बर औषधीय गुण ले भरे दशमूल कांदा, डोडो-कांदा अउ बन गोंदली जइसन जड़ी-बूटी ल खवाय जाथे। तिहार के दिन बड़े-बिहनिया राऊत-बरदिहा के घर ले ये जड़ी-बूटी ल लान के सबो मवेशी मन ल खवाय जाथे। साथे-साथ गहूँ पिसान के लोंदी बनाके ओमा नमक डार के घलव खवाय जाथे। येकर ले गाय-गरू ल जरूरी खनिज लवण मिलथे अउ मौसमी बीमारी ले लड़े बर प्रतिरोधक क्षमता घलव बाढ़थे।

     जड़ी-बूटी के एवज म किसान मन राऊत-बरदिहा ल धान-पान (शेर-चाऊर ) नइते पैसा देके ओकर कीमत अदा करथें।

     तिहार के दिन येती सुरुज के उत्ती होइस कि ओती किसान मन अपन घर के नाँगर ,जुड़ा, रापा-कुदारी, भवाँरी ,रोखनी बिन्धना-बसूला, पटासी हॅंसिया,पैसूल, सब्बल, छीनी घन अउ टंगिया जइसन किसानी औजार मनके साफ सफाई मा भीड़ जाथें। अपन घर के अँगना मा मुरूम के आसन बिछा के उही मा सब औजार मन ल रखे जाथे।

      ओ दिन घरोघर तेल-तेलई ले नाना प्रकार के पकवान बनाके किसान मन अपन परिवार अउ सगा-सजन समेत खुशी मनावत मिल बैठ के भोजन करथें। बरा,सोंहारी, चौसेला ,भजिया अउ चीला जइसन मनपसंद रोटी रँधई ले घर के वातावरण हा गमकन लगथे। हमर छत्तीसगढ़ ह धान के उपजइया प्रदेश आय तेकर सेती इहाँ के नेंग-जोग अउ पाक-पकवान मन म चाउँर पिसान के बहुते उपयोग घलव होथे। मुरूम के आसन म माढ़े कृषि औजार म दीया-बाती, हूम-धूप अउ उदबत्ती जलाके, चाऊर पिसान के घोल ल छिड़के जाथे नइते ओकर हाथा लगाय जाथे। अउ गुड़ ले बने गुरहा-चीला के भोग लगाय जाथे। किसान के धान-चाऊर ह कतक पावन-पवित्र हे तेला ये नेंग ह प्रमाणित घलव करथे। ये साल कस अवइया साल म घलव खेती किसानी के काम-बूता म इनकर अइसनेच साथ मिले कहिके घर के जम्मो सदस्य मन किसानी औजार के पूजा-पष्ट करत ओकर योगदान बर आभार व्यक्त करथें। किसान मन डहर ले सजीव (मवेशी) अउ निर्जीव (किसानी औजार) मन बर  मान-सम्मान के अइसन आदर भाव शायद आप मन ला दूसर डहर देखे बर नइ मिल पाही।

         पहिली गाँव-गॅंवई मन ह पेड़-पौधा, जंगल-झाड़ी, नदी-पहाड़ के हरियाली ले घिरे रहय। एकर कारण खूब बरसा होवय अउ अँगना-दुवार , गली-खोर, रवन-रस्ता मन चिखला के मारे गदपथ हो जाय रहय। किसानी औजार मन ल इही चिखला-पानी ले बचाय खातिर मुरूम के आसन बिछाय जाय। आज पक्का घर-दुवार होय के बाद घलव मुरूम बिछाय के परम्परा ह चलत हे, जे बहुत खुशी के बात आय। सही कहिबे ते येहा किसानी के काम म अवइया साजो-समान ल सुरक्षित रखे के किसान के अनुभव ले उपजे वैज्ञानिक सोच आय।

      इहाँ खेती-किसानी के काम-बूता ल बिना छेका-रोका के निपटाय बर गांव गॅंवई म पौनी-पसारी के बड़ सुग्घर वेवस्था घलव होथे। जेमा राऊत,लोहार,नऊ, बरेठ, बैगा, कोटवार अउ रखवार मन ह किसान के प्रमुख सहयोगी होथें। इनकर बिना किसानी के काम ह अधूरा हे।हरेली के दिन राऊत अउ लोहार मन के काम ह बड़ खास होथे। राऊत ह घरोघर जाके कपाट (दरवाजा) म लीम के डारा खोंचथे त  लोहार ह उही कपाट के चौखट मा खीला ठोक के अपन हिस्सा के बूता ल सीध करथे। कीटनाशी अउ जीवाणुनाशी मन ले बचे बर अउ शीतलता पाय खातिर नीम डारा के उपयोग अउ येती गरज-चमक जइसन बरसाती अलहन ले बाचे बर लोहा के खीला के उपयोग हमर पौनी मन के वैज्ञानिक सोच के कहानी घलव बताथे।

     बड़े (किसान) ल मान अउ छोटे (पौनी) ल दुलार देय के ये तिहार ह मानवता अउ समरसता ले एकता के मजबूत डोरी म बँधे रहे के संदेश देथे।

सियान मन बताथे कि कमती म गुजारा करे के आदत के सेती पहिली तीज तिहार के छोड़ घर मा कभू तेल-तेलई नइ चूरत रहिस। ओ बीते बेरा मा बीज ले तेल निकालना कोई सरल काम नइ रहय। तेकर सेती किसान के रोज के जिनगी म तेल-तेलई के कोई विशेष जगा नइ रहय, बिना तेल वाले डबका साग ह उनकर भोजन के हिस्सा रहय। येकरे सेती तीज-तिहार म तेलहा रोटी खाॅंय अउ ओला पचाय बर येमन भाठा-टिकरा कोति खेले-कूदे बर घलव जाॅंय।

कतको जगा म रोटी-पीठा खाय के बाद पान बीड़ा कस मुँहुँ ल लाल करे बर लइका मन कोदो पान,दतरेंगी जड़ अउ सेम्हर कांटा ल खावँय अउ खुशी मनावँय। सुदूर वनांचल डहर ये परंपरा ह अभी घलव देखे बर मिल जथे।

      ये परब म पौनी मन अपन ठाकुर ( किसान) मन के घर  मा जोहार-भेंट करे बर जाथें। बलदा म किसान मन खुशी मनावत उनला धान देके बिदा करथे। ओ पइॅंत बोंवाई म कोठी के बीजहा धान के छबनाच ह फूटे रहय तेकर सेती किसान ह उही बीजहा धान ल पौनी मन ल देंवय, तेकर सेती किसान मन डहर ले पौनी मन ल सम्मान के साथ देय जाने वाले ये प्रथा ल बीजकुटनी के नाम ले घलव जाने जाथे।

भरे बरसात म गाँव के चारों मुड़ा म चिखला माटी के कारण एक जगा ले दूसर जगा जाय म बड़ तकलीफ होवय। तेकर सेती हमर पुरखा-सियान मन ये समस्या ल दूर करे बर गेड़ी जइसे यंत्र के खोज करिन। हरेली के दिन ले पोरा तिहार तक ये गेंड़ी ह आवागमन के काम आय अउ नारबोद के दिन बैगा के अगुवाई म येला विसर्जित कर दिए जाय। आजकल इही गेंड़ी ल बड़ सम्मान के साथ खेल के रूप म स्वीकार कर ले गेहे।

हरेली के दिन गाँव के बुजुर्ग -सियान मन चौपाल म एक जगा सकला के आल्हा-उदल अउ पंडवानी जइसन किस्सा-कंथली मन ल सुनत-सुनावत ये तिहार के आनंद मनाथें।

       गाँव-गाँव म स्कूल, बिजली, सड़क,अस्पताल होय ले टोना-टोटका (बाहरी हवा) उपर अँखमुंदा विश्वास करइया मन के संख्या म कमी आय हे।जे मनखे समाज बर बड़ सुग्घर बात आय। फेर येकर साथ ट्रेक्टर, रीपर, थ्रेसर , हार्वेस्टर जइसन मशीन मन के आय ले नाँगर अउ बैला-भैसा के उपयोग अब न के बराबर होवत जात हे। ये मशीनीकरण के सेती किसान डहर ले लोहार मन ल काम नइ मिल पावत हे।जे पौनी-पसारी जइसन छत्तीसगढ़ के कृषि संस्कृति बर हाईटेक हमला घलव आय जो कि बने बात नोहे।आज आधुनिकीकरण के सेती बिखरत तीज-तिहार के महत्तम ल समोखे के जरवत  हवय।

     जिनगी म मनखे मनके हाय-हफर करत काम-कमई के बीच म अपन थके जाँगर ल सुख अउ खुशी देय बर लोक समाज ह सम्मिलात जेन अवकाश के उदीम करथे उही ह लोक परब हो जाथे। उही कड़ी म हरेली ह घलव एक ठन लोक परब आय। मने नेक सोच (सकारात्मक उर्जा) कोति ले गलत सोच (नकारात्मक ऊर्जा) के हर तिरपट चाल ल हर (खतम) लेना ही हरेली आय। कुलमिलाके हम इही कहि सकथन खेत-खार, मेड़-पार, भाठा-परिया, जंगल-पहाड़, बारी-बखरी के संग चारो मुड़ा धरती के हरियर-हरियर दिखई अउ ओकर सुघरई ह हरेली आय।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

No comments:

Post a Comment