*झलमला (छत्तीसगढ़ी अनुवाद)*
*पहलइया*
मैं परछी मा टहलत रेहेंव। अतना मा मैं देखेंव कि विमला दासी अपन अँचरा के नीचे एकठन दीया धरके बड़े भऊजी के कुरिया डहर जावत रिहिस। मैं पूछेंव कइसे रे- ये का हरय? वो बोलिस- झलमला। मैंहा फेर पूछेंव येकर ले का होही? ओहा उत्तर दिस- नइ जानत हस बाबू, आज तोर बड़की भऊजी हा महराज के बहू के सखी होके आइस हे, येकरे सेती मैं ओला झलमला देखाय बर जावत हँव।
तब तो मैंहा घलो किताब ला मढ़ाके घर के भीतरी दउँड़ गेंव। दीदी ले जाके मैं कहे लगेंव- दीदी, थोरकिन तेल ला दे तो।
दीदी हर कहिस-जा, अभी मैं काम बुता मा लगे हँव।
मैं निराश होके अपन कुरिया मा लहुट आयेंव। फेर मैं सोचे लगेंव- ये अवसर ला जावन नइ देना चाही, बने हँसी-मजाक होही। मैं एती-ओती देखे लगेंव। अतका मा मोर नजर एक मोमबत्ती के टुकड़ा ऊपर परिस। मैं ओला उठा लेंव अउ माचिस के डिबिया लेके भऊजी के कुरिया डहर गेंव। मोला देखके भऊजी हा पूछिस- कइसे आय हस बाबू मैं बिना उत्तर दिये मोमबत्ती के टुकड़ा ला जलाके ओकर आगू मा मढ़ा देंव। भऊजी हा हाँस के पूछिस- ये का हरे?
मैं गंभीर स्वर मा उत्तर देंव- झलमला।
भऊजी हा कुछू नइ कहिके मोर हाथ मा पाँच रुपया रख दिस। मैं कहे लगेंव- भऊजी, का तोर मया के उजियार के अतके कन मोल हे?
भऊजी हा हाँस के कहिस- त कतेक चाही? मैं कहेंव- कम से कम एक गिन्नी। भऊजी कहे लगिस- अच्छा येमा लिखदे मैं अभीच देवत हँव।
मैं तुरते चाकू ले मोमबत्ती के टुकड़ा ऊपर लिख देंव- ‘मोल एक गिन्नी।’ भऊजी हर गिन्नी निकाल के मोला दे दिस अउ मैं अपन कुरिया मा चले आयेंव। कुछ दिन के बाद गिन्नी के खरचा होय के बाद मैं ये घटना ला बिलकुल भूला गेंव।
*दुसरइया*
8 बछर बीतगे। मैं बी० ए०, एल०-एल० बी० करके इलाहाबाद ले घर लहुटेंव। घर के वइसन दसा नइ रिहिस जइसन आठ बछर पहिली रिहिस। न भऊजी रिहिस, न विमला दासी। भऊजी हमन ला सबर दिन बर छोड़के सरग सिधारगे रिहिस। अउ विमला कटगी मा जाके खेती करत रिहिस।
संझा के बेरा रिहिस। मैं अपन कुरिया मा बइठे कोन जनि का सोचत रेहेंव। तीर के कुरिया मा परोस के कुछ माईलोगिन मन के संग दीदी बइठे रिहिस। काहीं गोठबात होवत रिहिस, अतका में मैं सुनेंव, दीदी हा कोनो माईलोगिन ले कहत हे- काहीं होवय बहिनी, मोर बहू घर के लक्ष्मी रिहिस। ओ माईलगिन हा कहिस-हाँ बहिनी, अबड़ सुरता आइस, मैं तोला पूछइया रेहेंव। ओ दिन तुमन मोर तीर सखी के संदूक भेजे रेहेव न? दीदी हा उत्तर दिस- हाँ बहिनी, बहू कहिके गिस, ओला रोहिणी ला दे देहू। ओ माईलोगिन हा कहिस- ओमा सब तो ठीक रिहिस; फेर एक बिचित्र बात रिहिस। दीदी हा पूछिस- कइसन बिचित्र बात? वो कहे लगिस-ओला मैं खोलके एक दिन देखेंव ता ओमा एक जगा बने जतन के रेशमी रूमाल मा कुछ बँधाए रिहिस। मैं सोचे लगेंव ये का हरय। जाने बर ओला खोल के देखेंव। बहिनी, बोतावव तो ओमा भले का हो सकत हे? दीदी हा उत्तर दिस- गहना रिहिस होही। ओहा हाँसके कहिस- नइ, गहना नइ रिहिस। वो तो एक आधा जरे मोमबत्ती के टुकड़ा रिहिस अउ ओकर ऊपर लिखाय रिहिस- ‘मोल एक गिन्नी।‘ छिन-भर बर मैं ज्ञान-शून्य होगेंव, फेर अपने हिरदे के आवेग ला नइ रोक के मैं वो कुरिया भीतरी जा परेंव अउ चिल्लाके कहे लगेंव- वो मोर हरय, मोला दे दव। कुछ माईलोगिन मन मोला देख के भागे लगिन कोनों एती-ओती देखे लगिन। ओ माईलोगिन हा अपन मूड़ी ढाँपत-ढाँपत कहिस- अच्छा बाबू, काली मैं ओला भेज देहूँ। फेर मैं रातेचकन एकझन दासी ला भेजके वो टुकड़ा ला मँगा लेंव! वो दिन मोर से कुछुच नइ खवइस। पूछे जाय मा मैं ये कहिके टाल देंव के मूड़ी में दरद हे। अबड़ बेर तक एती-ओती टहलत रेहेंव। जब सबझन सुते बर चल दिन तब अपन कुरिया मा आयेंव। मोला उदास देखके कमला पूछे लगिस- मूड़ी के दरद कइसे हे? फेर मैंहा काहीं उत्तर नइ देंव, कलेचुप थइली ले मोमबत्ती ला निकालके ओला जलायेंव अउ ओला एक कोंटा मा मढ़ा देंव।
कमला हा पूछिस-ये का हरय?
मैं हा उत्तर देंव- झलमला।
कमला काहीं नइ समझ सकिस। मैंहा देखेंव कि थोरकिन देर मा मोर झलमला के नानकुन उजियार, रतिहा के अंधियार मा विलीन होगे।
*अनुवादक*
*राजकुमार निषाद"राज"*
*एम.ए.छत्तीसगढ़ी*
(अनुवादकाल-24.06.2025)
गोठबात-7898837338
गाँव-बिरोदा,धमधा, जिला-दुर्ग
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