*पनही तोला प्रणाम* 🙏🏻
बियंग (टेचरही)
पनही उपर निबंध लिखे के प्रतियोगिता मा सबले कम नंबर मोला मिलिस। कारण ये होगे कि मँय ओकर जनम विकासक्रम अउ मजबूती उपर विस्तार दे पारेँव। असल मा ओकर चलन चलागन कहां कहां कइसे होथे वोला लिखना रिहिस। पनही पाँव सँग दुनिया दुनिया घूम के आथे तेकर कोनो भाव नइ देवय। इही पनही जब संसद मा चलथे, ब्यवस्था के अधकपारी मा चलथे तब परिया के रेंगइया पैडगरी के रसता धरथे। तब पनही के मान अउ भाव दू गुना हो जाथे। माने सस्ता दाम वाले कथा वाचक जादा उँचहा ज्ञान पोरसथे वो भूमिका मा पनही रथे। तब तो पनही के प्रणाम पैलगी आदमी ले जादा करना चाही। कतको झन ये चरणदास ला अइसे फेंक के राखथे जइसे सरकारी दफ्तर के बाबू फाइल मन ला फेंकथे। अइसन आचरण ले अचरज नइ होवय काबर कि ये दफ्तर के मरियादा आय। फेर चरित्तर मा बिचित्तरपना अगास छूथे तब चरण के पनही चेथी तक ले जाना ही चाही। काबर कि पनही ही एक अइसन सेवादार हे जे कपार चढ़के बोलथे । अइसन शुभ समाचार के विज्ञप्ति अखबार मा आथे तब मनखे के सँग पनही के घलो पैलगी करे के मन होथे।
सौ डेड़ सौ के कंटोप ला सिराना मे चपक के सुतना अउ डेड़ हजारी पनही ला हारे निर्दली उम्मीदवार असन मोहाटी के बाजू मा रखना कहां के न्याय हे। आज हमर संस्कार के नवाचार आय कि जरुरत के समान सँग रँधनी खोली तक पनही जावत हे। एक मँय हवँ कि असामाजिक जीव जिनावर ला भगाए बर ठेंगा के जगा पनही राखे रथँव। नवा जमाना के नवा पहिनावा ले भदई चघऊ के इन्तकाल होगे। भदई ला श्रद्धांजलि देय बर पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा सकेलाय रेहेँन। भीड़ अतका बाढ़िस कि बरसो बरस के इतिहास पोटारे टुटहा भदई के चोरी घलो होगे। सोन चाँदी चोराय मा वो सुख अउ आनंद नइ मिले जतका पनही चोराय मा मिलथे। अइसन काम बर मंदिर के मोहाटी अउ बरतिया के जेवनास ला उत्तम माने गेय हे।
हमर जमाना मा बाप ला पनही लेय बर एकर सेती नइ पदोएन कि मोर जनम पत्री बनवात ले वोकर कतको पनही के तला खियागे। अफसर अधिकारी मन ला मोर बाप के पनही घिसाय से का लेना देना। जेकर लेन देन होथे वोकर लेना देना करे रहितिस तो पनही के पइसा बाँच जातिस। हम जानत हावन एक जोड़ी पनही हिमालय अउ चाँद के यात्रा करके आ जाथे फेर दफ्तर मा अरजी फँसाय बर कतको तला रोज फेंकावत रथे। वोइसे कहे जाथे पनही से मनखे के असली पहचान होथे। तभे तो परसाई जी प्रेम चंद के फटहा जूता उपर निबंध लिख डारिस। पनही मान बढाए अउ घटाए दूनो के काम करथे। फूल माला सँग रुपिया गुँथके पहिरा अउ पनही के हार पहिरा कते मा जादा सोर उड़थे वो घेँच ला पूछ जे हर पहिरे के सौभाग्य पाए रथे। फूलमाला के दुकान तो अबड़ मिलथे। फेर पनही के माला वाले दुकान के जेकर जादा जरूरत हे दिखबे नइ करे। पनही के माला के लाईक नरी तो बिक्कट हो गेहे। दुकान के कमी ला पूरा करहूँ कहिके धन कमाए अऊ बेरोजगारी ले मुक्ति पाये बर हनुमान चालीसा पढ़के दुकान शुरू करे रेहेँव। कार्पोरेट कम्पनी वाले मन तंत्र ले साँठगाँठ करके गुणवत्ता मा दोष बताके दुकान बंद करवा दिस। सौदागर मनके डर ये हे कि वो आदर्श हाट के उद्घाटन अपन कर कमलों ले करे हे, उही नरी बर पनही के माला एडवांस मा आडर शुरू होगे रिहिस। खास यहू हे कि इही खास मन के पनही पशु तन के चमड़ी ले नहीं मानुस तन के चमड़ी ले बनथे। तभे तो पाँच साल के आगू अउ टिकाऊ बर नवा पीढ़ी के नवा चमड़ी वाले तला ठेंसावत रथें।
हम सरकार ला फोकट दोष देवत रथन। वोकर नजर पाहटिया से लेके पान टोरइया के पाँव तक हे। आखिर इही पाँव मा बिना फोरा परे वोट डारे बर तो बलाए जाही। गाय के नरी मा खड़पड़ी अउ मनखे के पाँव बर पनही मिलना लालबत्ती वाले गाड़ी मिले से कम नइ होवय। फेर दुर्भाग्य हे कि इन गदहा मन के गोड़ मा जुच्छा हाथ घुमाए ले समझथे कि अब हम फँदागेन जब मालिक ढिलही तब अजादी मिलही। निजी संस्थान ले निकलके शासकीय मान्यता वाले नारा "" चमचों और दलालों को मारो जूता सालों को "" सुनत मन ला हल्का लागे कि अब पनही के चलागन जोर सोर ले होही। अवसरवादी के असरदार प्रभाव हे कि हक अनीति जरूरत के लड़ई मा अउ हलाकानी ले मुक्ति बर मुँहुँ उलाबे तब मुँहूँ बंद करे बर वो कोती ले "मारो जूता सालों को" के आधा नारा ये कोती लहुट के आथे।
जइसे एक मंत्री दू चार ठन विभाग ला सम्हालथे ओइसने पनही अउ कुसियार दुहरा जवाबदारी निभाथे। मुख मा परथे तब मीठ सवाद देथे। पिछोत मा परथे तब सबरस के सवाद देथे। ओइसने पनही पाँव मा हे तब तक तन ला सुख देथे। अउ पीठ मा परथे तब मनसुख बना देथे। पहिली मनसुख भोगी बहुत कम मिलय। फेर अब नकटा लुचकट समाज-सुधारक भ्रष्ट व्यभिचारी अधिकारी पाखंड विधर्मी दोगाली राष्ट्र भक्ति वाले के भीड़ हे। इही सब नर से नारायण बनने वाला मन बर जादा काम मा लाये के जरूरत हे। समस्या ये हे कि बिलई भेकवा के नरी मा घंटी बाँधे कोन। आम लोगन तो खुदे भूल जाथें कि उँकर हाथ मा सबले बड़का ब्रम्हास्त्र पनही हे। बात अऊ लात के मार ले काम नइ चले तब पनही ही पूरा न्याय देवाथे। ये बात के चेत आम जनता ला कब होही। सबो किसम के अतिया ला सहन करना ला अपन मजबूरी बनइया के कायरता ही आय। अइसन मूरख मन बर घलो केहे गेय हे। "का मुरख सँग करँव बात, हेरवँ पनही मारवँ लात।"
जेकर चोला झूठे राष्ट्रीयता मा बूड़े हे अउ चोलिया दगहा खादी मा लपेटाए हे, जेकर लाज धरम ईमान गंदा नाला मा विसर्जित होवत हे। जे मन बेवस्था के चिरहा चेंदरी मा तंत्र के धुर्रा झर्रावत हें। सेवा के नाम मा मेवा खावत हें। लोकतंत्र के अनुष्ठान मा नरबलि पूजवन चघावत हे अइसन मन के पैलगी करत तो माथा खियागे। ये सब देख के मुरहाराम के पनही काबर कुछु नइ बोलय। झूठ धोखा फरेब के मनभावन भाषण के आँवा मा भरोसा के चिबरी चाँउर खूब चूरत हे। अइसन मा पगराइत मन के चेथी डहर मुरहाराम के पनही बोलही तब ओकर पाँव सँग कहूँ पनही तहूँ ला प्रणाम।🙏🏻
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
9755233236
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