लघु कथा -
" बने बने भउजी "
"नजर लगाये बइठे रहिथे,चौरा बनाये हे एखरे बर l "देवकी बड़बड़ावत बाहिर ले घर भीतरी आइस l
लता ला देख -देख के जलय l
खूबसूरत घलो हे अउ पढ़े -लिखे हे l देवकी के पति कुमार ला भैय्या कहय l आँगन बाड़ी म भर्ती के आवेदन दे रहिस l देवकी के पति कुमार उही ऑफिस म बाबू हे l ओला पूछे बर ओकर आये के रद्दा ला देखय l भउजी के आदत ठीक नई हे भाई ला फोकट म लड़ही l इही सोच के ओकर से बातचीत नई करत रहिस l उरभेट्टा हो जतिस त अतके कही के पूछ लेतीस -"
भउजी बने बने हस l"
देवकी मन के भरम ले ताना मारत कहितिस -" तै बने हस तेला देख l"
देवकी अपन घर भीतरी म बड़बड़ावत रहितिस -"मोर एड़ी के धोवन, बने बने भउजी कहिथे l "
एक दिन कुमार समझावत कहिस -" मोर बहिनी अस हे अपन नौकरी के आदेश के बारे म जाने बर l
तै ओला पता नहीं का का कहत रहिथस?
अपन काम बूता म लग़ जही तोला देखय घलो नहीं l
दाग लगे ले सब डरथे l
- मुरारी लाल साव
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