हमर आखर कहिथे का -
सुत -सूत -सूंत
(अर्थवैज्ञानिक विवेचना )
सुत माने बेटा या पुत्र होथे l हिंदी संस्कृत ले आये है l अंजनी सुत हनुमान l उमा सुत श्री गणेश l देवकी सुत श्री कृष्ण l कौसिल्या सुत श्री राम l
सुत के प्रयोग धार्मिक कथा के पात्र मन बर होथे l
छत्तीसगढ़ी म कहिथन - "सुत जा बेटा रात होवत हे l "
(सोना या सुलाना )
हमन कहाँ कहिथन - " जगत सुत पवन कुमार l या मंगलू सुत रमेश l ब्रिंदा सुत धनी राम
थोकिन अउ आघू बढ़न -
" सूत जगेसर बने सूत l"
जगेसर तो सुतही रात भर जागे हे,बने नींद भर सुतही l
देखव सूत बडे ऊ के मात्रा के प्रभाव म अर्थ बदल गे l(सूत -सोना)
सू म अनुस्वार बिंदु सूं ले सुंत के मतलब हे धागा l एखरे से बने हे सूंतरी l पतला रस्सी l
मोटा होगे त डोरी अउ मोटा होगे त डोर l
डोरी अउ सूं तरी म अंतर हे l
" पुड़िया ला सूंत मा बांध के ला l "
बोरा ला सूं तरी म बांधे जाथे l
पैरा ला डोरी मे या रस्सी म बांधे जाथे l
कुंआ ले पानी निकाले बर डोरी या डोर के उपयोग करे जाथे l
"सूजी (सुई)म सूंत (धागा ) बुलकथे l " दर्जी कपड़ा सिथे l
लिखे बोले म मात्रा प्रयोग म शब्द अपन अर्थ ला बदल देथे l
( शब्द के अर्थ वैज्ञानिक अध्ययन )
- मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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