*घमंडी पंडिताइन*
कहानी
डॉ पद्मा साहू *पर्वणी*
खैरा नाम के शहर मा एक झन संध्या नाम के पंडिताइन रहिथे। संध्या पंडिताइन के उमर 60 बछर हे। येकर 3 झन बेटा हे। बड़े बेटा रोशन होटल चलाथे वोकर दू झन 12 अउ 10 साल के बेटी हे। बहू तारिणी गृहिनी हे 12पढ़े हे। कपड़ा सिले के काम करथे। मंझला बेटा दीपक अउ बहू प्रीति दूनों नौकरी मा हें। वोकर दू झन लइका हे 16 साल के बेटा पप्पू, 14 साल के बेटी स्वाती। छोटे बेटा रोहित जमीन खरीदी बिक्री के दलाली करथे। बहू संजू कॉलेज मा सहायक ग्रेड 3 के बाबू हे फेर येकर तेवर ला का कहिबे,,,,,,,,!
संध्या पंडिताइन के गोसइंया हा कोरोना के चपेटा मा सरग सिधार गे। घर के सबो जवाबदारी हा संध्या के हाथ मा आगे। संध्या पंडिताइन पहिली घलो घर के जवाबदारी संभालत रहिस फेर अपन गोसइंया ला घेपत रहिस। अब तो संध्या पंडिताइन तिजौरी के चाबी धरे ले मोर…. मोर … के राग अलापे धर लिस। संध्या पंडिताइन अपन जमाना के स्नातक पास हे हिन्दी मा। वोला अपन पढ़े लिखे अउ सुघरई के पहिली घलो घमंड रहिस अभी घलो हे। इही घमंड मा पंडिताइन अपन घर के बहू मन ला कुछुच नइ समझे। पारा पड़ोस के मन ला तो अपन धन अउ पढ़े लिखे के रोब देखाथे।
अपन तीनों बहू ला जइसने नचाथे ओ मन वइसने नाचथे। अपन बड़े बहू तारिणी ला तो वो रोज के वोकर दूनों बेटी के ताना दे दे के बहुतेच तपथे । कभू अनपढ़ कहिथे कभू तोर बेटी मन तो ससुरार चल दीही मोर का वंश बढ़ाही कहिके सतावे फेर कोनों कतका दिन ले सहही। एक दिन तारिणी वोकर ऊपर घरेलू हिंसा के केस कर दिस। फेर पइसा के बल मा मामला ला रफा-दफा करा दिस। संध्या पंडिताइन तारिणी के माँ-बाप ला धमकाय ला धर लिस कि “तोर बेटी ला समझा दे नइ ते अपन घर ले जाव।” अब रोज के चिकचिक ले वोकर बड़े बेटा बहू घर ले अलग होगे। तभो ले पंडिताइन के घमंड नइ टूटिस। येती छोटे बहू संजू ये सब ले समझो तो घर के सब काम धाम लक्ष्मण के अपन नौकरी में ध्यान देगा
अब संध्या पंडिताइन के मंझली बहू प्रीति हा अपन सास के जी हुजूरी मा रोज “जी अम्मा….. जी अम्मा …..” । काहत वोकर दुलौरीन बहू बने रहिस। अपन नौकरी ले जादा वोला अपन सास के जी हुजूरी अच्छा लगे। येकर दूनों लइका अपन महतारी ले जादा पंडिताइन कर रहे। प्रीति काम के मारे अपन लइका मन ऊपर धियान नइ दे सकिस। जइसने संग तइसने रंग वोकरो मा चढ़गे। पंडिताइन वोकर दूनों लइका पप्पू अउ स्वाती ला बचपन ले अंगिया डरिस। पंडिताइन अपन नाती नतनिन ला संस्कार दे बर छोड़ के वो मन ला पइसा के दुरुपयोग करत मनमाने खरचा करे बर, आनी-बानी के खाय पिए बर, ठाठ-बाँट ले रेहे के आदत बना दिस। मध्यम वर्ग के बेटी प्रीति सुख साधन के चक्कर मा ये बात ला समझे मा देरी कर दिस लइका मन वोकर हाथ ले निकलत हें। अउ पंडिताइन वोमन ला भड़कावत हे। लइका मन अपन महतारी ला ये प्रीति, ये दीपक के बीबी कहिके बोले। महतारी ला महतारी नइ समझय। दीपक घलो पढ़े लिखे होके गँवार कस अपन महतारी के जुबान बोलय। अउ लइका मन ला वहू अपन मुड़ी मा चढ़ा डरिस।
पंडिताइन परिवार के सियान ले लेके लइका तक सबके जुबान हा थर्ड क्लास, संस्कारहीन होय के सेती पारा पड़ोस के मन कोनों उनकर मुँह नइ लगँय। दीपक अपन बाई प्रीति ला छोटे घरके, गँवार, नौकरानी कहिके नशा मा अब्बड़ गाली गलौज संग मारय पीटय।
अब धीर-धीरे संध्या पंडिताइन अपन नान्हे बेटा रोहित संग मिलके जमीन के दलाली करत जरूरतमंद मन ला जादा बियाज मा पइसा दे के काम शुरु कर दिन। अब संध्या पंडिताइन ला छोटे बेटा रोहित अउ बहू संजू हा जादा निक लागे लगिस। बछर भर मा पंडिताइन रोहित संग मिलके खूबेच पइसा कमइस। अब पंडिताइन “हाय संजू हाय रोहित” कहिके दीपक ला कोनों काम बर पूछना जरूरी नइ समझय। इही बात बर एक दिन रोहित अउ दीपक मा झगड़ा होगे फेर पंडिताइन दीपक के पक्ष ले लिस। मंझली बहू संजू अपन सास अउ अपन गोसंइया के सरोटा खींचे धर लिस। फेर दीपक अपन महतारी ला कुछु नइ कहिस उल्टा प्रीति बीच मा बोलिस ता उही ला एक झाफड़ मार दिस। अब प्रीति घलो अपन सास के सबो चाल ला समझगे कि वोकर बर पइसा ले बड़ के कुछु नइ हे। जेती पइसा तेती वो। प्रीति सोचथे मोर सास अपन पइसा के अहम मा मोर लइका मोर पति सब ला अपन बस मा कर लिस। में येकर जी हुजूरी सेवा करथँव येला तात-तात रांध के खवाथँव। ये मोर दाई ददा ला रोज चार ठन गारी देथे अउ तो अउ ये मोर नौकरी बर मोला पहिली घर तेकर पाछू तोर ईस्कूल कहिथे। येकर सेती में समे मा कभू ईस्कूल नइ पहुँच पाँव मोर बदनामी होथे। अउ ये संजू अपन नौकरी अपन पइसा ला धर के मजा करत हे। अउ मोर आदमी ला घलो चाय मा खुसरे माछी जइसे चूस के फेंकत हें। अब तो मिही मोर सास के घमंड ला टोरहूँ अउ मोर लइका मोर आदमी ला सही रद्दा मा लाहूँ कहिके अब प्रीति अपन सास के बात मानना छोड़ दिस। धीरे-धीरे अपन दूनों लइका पप्पू अउ स्वाती ला सही गलत मा अंतर करे बर सिखाथे। अपन आदमी के नशा ला छोड़ाय बर आनी बानी के उदिम के संगे संग बड़ पूजा पाठ करथे। धीरे-धीरे प्रीति के लइकामन के बेवहार मा सुधार आथे। ये सब ला देख के संध्या पंडिताइन प्रीति संग गोठ बात बंद कर देथे। इही बीच पंडिताइन के बिना लाइसेंस के बियाज मा ग्राहक मन ला पइसा देवई मा लूट धोखाधड़ी के मामला मा एक झन ग्राहक परेशान होके पंडिताइन अउ रोहित के खिलाफ पुलिस मा रिपोर्ट लिखा दिस। कहिथे ना शेर ला सवा शेर मिलथे। जेल के हवा खाय के डर ले पंडिताइन अउ रोहित महीना भर भागे-भागे फिरिन। येमा पंडिताइन के पइसा, मान सनमान सबो माटी मा मिलगे अउ महतारी बेटा ला जेल के हवा खाय ला पड़िस तभो चेत नइ चढ़ीस। जमानत मा छूटे के बाद जब घर आईस ता संध्या पंडिताइन अपन नाती पप्पू ला कहिस –“बेटा मेरी आरती उतारो देखो मुझे कुछ नहीं हुआ मैं छूट गई मेरे पास पैसा है, मैं पढ़ी-लिखी हूँ।”
पप्पू भीतरी मा अपन महतारी प्रीति कर चल दिस। पंडिताइन जइसनेच घर के भीतरी मा गिस वइसनेच प्रीति हा कहिस– “अम्मा जी लौ अब तुँहर छोटे बहू बेटा मन तुँहर जतन करही, तुँहर मंझला बेटा दीपक तुँहर सेवा जतन करही। में छोटे घरके गँवार नौकरानी बेटी अब अपन दूनों लइका ला धर के जावत हों किराया मा रहूँ। तुँहर झूठ-मूठ के बाँचे-खोचे मान सनमान तुमन ला मुबारक हो काहत घर ले निकलथे। अतका ला देख सुनके संध्या पंडिताइन के छाती धकधकागे। वो जान जथे येमन घर ले बहिरी जाही ता मोर अउ बद्दी होही। फेर मोर असली सेवा तो प्रीति हा करही काबर कि ये धीरन भले हे फेर ये संस्कारवान हे कहिके तुरते हाथ-पाँव जोर के प्रीति ला रोक लिस। प्रीति सरत रखथे कि –”तुमन घर के लइकामन ला सही रद्दा देखाहू, संस्कार सिखाहू, परिवार ला जोड़ के रखहू, एक दूसर ला सनमान देहू तभे में घर मा आहूँ।”
संध्या पंडिताइन के घमंड हा टूट जथे वो अपन बहू प्रीति ले माफी माँगथे अउ कहिथे– “प्रीति पढ़े लिखे होके गँवार कस काम में करत रहेंव अउ गँवार तोला काहत रहेंव। में अपन धन अउ पढ़े लिखे के अहम मा कुछु ला नइ देख पावत रहेंव।” प्रीति कहिथे –– “कभू-कभू सियानमन भटक जथे ता लइका मन ला सियान मन के के आँखी खोले बर पड़थे अम्मा।” पंडिताइन अब लइकामन के पढ़ई लिखई मा मदद करथे। दीपक ला प्रीति बर भड़काना बंद करथे। अपन भाखा बेवहार ला सुधारत आगू बढ़त पइसा-पइसा के मोह ला छोड़ के अपन तीनों बेटा ला बराबर मया करथे। अब प्रीति अपन सास अउ अपन गोसंइया के गलत काम मा अवाज उठाय बर सीखगे। अपन नौकरी के काम ला समझत अपन छबि ला सुधारे के प्रयास करत आगू बढ़त हे।
कहानीकार
डॉ पद्मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़
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