Monday, 30 June 2025

छत्तीसगढ़ म पत्रकारिता के पुरोधा स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी

 1 जुलाई जयंती//

छत्तीसगढ़ म पत्रकारिता के पुरोधा स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी

    आज के नवा छत्तीसगढ़ म पत्रकारिता के भीष्म पितामह के रूप म चिन्हारी रखइया पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी जब बाइस बछर के रहिन तभे बछर 1942 म केशव प्रसाद वर्मा जी संग मिल के अग्रदूत समाचार पत्र के संपादन शुरू करे रिहिन हें. तब अग्रदूत ह साप्ताहिक पत्र के रूप म निकलत रिहिसे, जे ह बछर 1983 ले दैनिक समाचार पत्र के रूप म निकले के चालू होइस. अउ ए ह कतका संजोग के बात आय के बछर 1983 म घलो स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी ए अखबार संग सलाहकार संपादक के रूप म जुड़े रिहिन हें.

    मोर जिनगी म जे मन लेखन के रद्दा म अंजोर बगरावत डहर देखाय के बड़का उदिम करीन वोमा त्रिवेदी जी के घलो बड़का ठउर हे. वइसे तो मैं अपन लेखक अउ शिक्षक सियान रामचंद्र वर्मा ल घर म लिखत-पढ़त देख के कागज-कलम डहार चेत करेंव, फेर एमा ठोसहा बुता अग्रदूत के कार्यालय म जाए के बाद ही होइस.

    बछर 1982 के आखिर म मैं अग्रदूत अखबार म काम करे बर गेंव, तब अग्रदूत ह साप्ताहिक निकलत रिहिसे. बछर 1983 म ए ह दैनिक होइस. वो बखत मैं ह कम्पोजिटर के रूप म काम करे बर गे रेहेंव. कविता-कहानी लिखे के उदिम तो छात्र जीवन के बेरा ले अपन सियान ल लिखत-पढ़त देख के होगे रिहिस, फेर पत्रकारिता के समझ नइ रिहिसे.

    अग्रदूत के दैनिक चालू होए के बाद एक दिन मैं एक लेख लिखेंव जेला आदरणीय स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी ल देखाएंव. वोला देख के उन खुश होगे, अउ वोमा कुछ काट-छाॅंट कर के दैनिक अग्रदूत के संपादकीय वाले पृष्ठ म छाप दिए रिहिन हें. ए ह मोर जिनगी के पहला प्रकाशन रिहिसे.

   फेर मैं कविता कहानी तो पहिलीच के लिखत रेहेंव, भले वो मन कभू छपे नइ रिहिसे. आदरणीय त्रिवेदी जी के द्वारा मोर लेख ल छापे के बाद थोरिक हिम्मत बाढ़ीस, त फेर वो बखत दैनिक अग्रदूत म साहित्य संपादक के रूप म काम करत हमर अंचल के प्रसिद्ध व्यंग्यकार रहे विनोद शंकर शुक्ल जी ल अपन कविता अउ कहानी मनला देखाय लगेंव. आदरणीय शुक्ल जी घलो वोमन ल सुधार-सुधार के अग्रदूत के साहित्यिक अंक मन म छाप देवत रिहिन हें.

   तब तक मैं हिंदी म ही लिखत रेहेंव. ए ह संयोग के संगे-संग मोर बर सौभाग्य के बात आय के वो बखत अग्रदूत अखबार म स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी अउ विनोद शंकर शुक्ल जी के संगे-संग टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी घलो संपादकीय विभाग म रिहिन हें. पत्रकारिता के क्षेत्र म मोला त्रिवेदी जी प्रोत्साहित करीन अउ साहित्य लेखन डहार शुक्ल जी त छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर टिकरिहा जी. एकरे मन के संगत ह मोर जीवन म गुरुकुल के बुता करीस.

    स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी के जनम 1 जुलाई बछर 1920 म होए रिहिसे. उंकर सियान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. गया चरण त्रिवेदी जी रिहिन. त्रिवेदी जी के प्राथमिक शिक्षा रायपुर के महाराणा प्रताप स्कूल नयापारा म होए रिहिसे. जेला हमन अभी सप्रे स्कूल के नॉव ले जानथन, वो ह तब लारी स्कूल के नॉव ले जाने जाय, जिहां त्रिवेदी जी हाईस्कूल के शिक्षा पाइन. 

    त्रिवेदी जी अपन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सियान ले प्रभावित होके नान्हे उमर ले ही देश के आजादी खातिर रेंगइया मन के रद्दा धर लिए रिहिन हें. बछर 1935 ले उन साहित्य अउ पत्रकारिता म सक्रिय होगे रिहिन हें. हिन्दी साहित्य मंडल रायपुर के साहित्यिक पत्रिका 'आलोक' के उन संपादक बनीन. एकर आगू बछर उनला कांग्रेस के पत्रिका के संपादक चुन ले गे रिहिसे. बछर 1942 म केशव प्रसाद वर्मा जी के संग मिल के साप्ताहिक अग्रदूत के संपादन करे लगिन. बछर 1946 म महाकोशल साप्ताहिक के संपादक बनीन. इही महाकोशल अखबार ह बछर 1951 दैनिक अखबार के रूप म छत्तीसगढ़ के पहला दैनिक अखबार के रूप म चालू होइस, अउ एकर संपादक बनीन स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी.

   बछर 1954 ले त्रिवेदी जी मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग म चल दिए रिहिन, जिहां 1978 तक उच्चाधिकारी के रूप म बुता करत रिहिन. 1987 म शासकीय सेवा ले सेवानिवृत्त होए के पाछू फेर दैनिक महाकोशल म संपादक बनगे रिहिन. अउ फेर अग्रदूत ह जब बछर 1983 म दैनिक अखबार के रूप म चालू होइस, त फेर स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी एकर सलाहकार संपादक बनीन. अइसे किसम देखे जाय त त्रिवेदी जी अपन पूरा जिनगी कलम के साधना म मगन रिहिन. ए बखत उन पत्रकारिता के संगे-संग साहित्य सृजन घलो करत रिहिन. मैं उंकर कतकों कहानी अउ कविता मनला अग्रदूत म पढ़त रेहेंव.

   आदरणीय त्रिवेदी जी मोला गजब मया करंय. वइसे तो अग्रदूत अखबार के कार्यालय म अबड़ झन कर्मचारी रेहेन, फेर उन सब मा मैं अकेल्ला रेहेंव जेकर संग उन छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियावंय. अइसने जब कभू अपन घर ले कोनो पत्र-पत्रिका आदि मंगवाना या पहुँचाना होवय, त मुंहिच ल जोंगय. उंकर घर तब अग्रदूत प्रेस ले पांच मिनट के रद्दा म ही रिहिसे. बाद म मैं जानेंव, के उंकर बेटा के घलो नॉव मोरे असन 'सुशील' हावय. त मोला समझ आइस उंकर अतेक दुलार के कारण ह. आदरणीय त्रिवेदी जी के बेटा आज हमर छत्तीसगढ़ म वरिष्ठ साहित्यकार के रूप म प्रतिष्ठित हावंय- डॉ. सुशील त्रिवेदी जी, जे मन छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद ले सेवानिवृत्त होए हावंय. डॉ. त्रिवेदी जी संग घलो मोर मयारुक संबंध हे. उंकर संग जब कभू भेंट होथे त उन मोला नॉव ले के संबोधित नइ करंय, भलुक हमर छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुसार 'सहिनॉव' कहिथें.

   स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी बछर 1935 ले ही साहित्य अउ पत्रकारिता के रद्दा म रेंगे लगे रहिन हें. 1935 म उन हिंदी साहित्य मंडल के गठन करे रिहिन हें. 1940 के दशक म हिंदी साहित्य सम्मेलन के साहित्य मंत्री रिहिन. वोमन हमर मन असन नवा पीढ़ी ल सरलग आगू बढ़े खातिर प्रोत्साहित करत रिहिन. बछर 1951 म हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन जबलपुर म होए रिहिसे, तब पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ल अध्यक्ष अउ स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी ल प्रधानमंत्री चुने गे रिहिसे. 

    स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी सरलग लिखत तो रिहिन हें, संग म छपत घलो रिहिन हें. कविता संग्रह भूख, बरसों बाद भाषण के पौधे हरियाये, स्वराज गान अउ आदमी रहे न रहे बात रह जाती है, तीसरा किनारा आदि साहित्यिक कृति मन के प्रकाशन होय रिहिसे. 

    साहित्य अउ पत्रकारिता दूनों के रद्दा म त्रिवेदी जी के कलम जिनगी के अंतिम बेरा तक सरलग चलत रिहिसे. उन 11 जुलाई 2009 के ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले के परमधाम के रद्दा धर लिए रिहिन हें. उंकर सुरता ल पैलगी जोहार.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

Monday, 16 June 2025

छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द के अपन अलग विशेषता- -मुरारी लाल साव

 छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द   

के अपन अलग विशेषता-

      -मुरारी लाल साव


संत पवन दीवान जी अपन भागवत मंच म कठ्ठल के हाँस के पब्लिक ला हँसा देवत रहिन अपन "राख" नामक कविता ला पढ़ केसुना के l  "राख " कविता ला मैं  बहुत बढ़िया अनेकार्थी शब्द के विशेषता भरे कविता मान थंव l

उंकर बोले के लहजा अलगे रहय लोगन सुनत जाय अलग अर्थ भाव ला समझत जाय l

   "राख "

   रा... ख l रा... ख l

बहू सिनेमा देखे ला गेहे 

घर ला राख l  

(कोनो चोर झन घुसय )

ओकर अलमारी ला राख l

(चोरी झन होवय)

ओकर बेटा ला राख l

(देख भाल कर )

कोठा कोठी ला राख l

(सुरक्षित )

घर म लगगे आगी

घर होगे राख l 

(भसम होगे, कुछु नई बाँचीस)

मुरदा जलके होगे राख l 

 (भभूत बन गे )

लकड़ी होगे राख l

(धुर्राअसन )

कोयला होगे राख l

 (करिया रंग )

का राखे हे तन म 

(क्षण भंगूर, नाशवान)

मन ला भगवान कोती राख l 

(ध्यान, एकाग्रता, आदि ) 

राख चुपर के बइठ l

(भभूत )

मन ला राख l

(चंचलता ला रोक )

छत्तीसगढ़ी के शब्द शक्ति अनेकार्थी प्रसंग संदर्भ अउ प्रयोग म अपन अलग विशेषताअभिव्यक्त करथे l

       हिंदी म झलक के मतलब देखना हे किंतु हमर छत्तीसगढ़ी म झलक के मतलब नहाना हे l वाक्य -"जा बेटा जल्दी झलक के आ जा l ((नहा के)"  बबा कहिस - तात पानी ला ओकर ऊपर झलक l (उड़ेल )

एक ठन हिंदी गाना बहुत जादा बजींस -

झलक दिखला जा 

झलक दिखला जा l

 -रूप दिखादे l चेहरा दिखा दे जलवा दिखा दे मुखड़ा दिखा दे 

हमर छत्तीसगढ़ी म ससुरार ले  बेटी कइथे -"दाई के जाये के बेरा आगे हे l एक झलक देख के आ जतेव l  "(एक नजर देख के आना l (आँखी म देख लेतेव )

एक किसान अपन रखवार ला कहिस-" खेत ला देखत रहिबे बने l " गोल्लर आके सब ला चर दीस l मोला गोल्लर भगा देबे नई कहिस l चरन दे बने l समझ गे l

अइसने एक शब्द हे "बउरना "

बउरे बर्तन ला बेच दीस l (उपयोग होये ला l) 

(अनुपयोगी टूट फूट बर्तन )


'जाये के बेरा ' के मतलब मरे के बेरा l 

'आखिरी साँस चलत हे l' 

'आखिरी साँस लेवत हे l '         ' साँस टूटगे ओकर l '

मरगे मैनखे इही मतलब होथे l ठेला म बतासा बेचत चिल्ला चिल्लाके कहत रहीस -* बता साले l बता साले l एक सुन के बने ओला झोर दीस l मतलब हकन के पीट दीस l

झोर के अर्थ  रसा घलो होथे l " मछरी साग के झोर होथे  ll "  बादर पानी बहुत झोरत हे l याने हवा के संग खूब बरसा होवत हे l 

गली मोहल्ला म झगरा होथे त सुने ला मिलथे -" अतका झोर टुरा ला होश जाय l "

(बनेच मार, )

हमर छत्तीसगढ़ी म "आमा ला चुहक " कहे जाथे l हिंदी म आम ला चूसना  l बनेच अंतर हे l जेमा रस होथे तेला चुहके जाथे l गन्ना ला चूसे जाथे, चबा चबा फ़ेर रस ला चूस l नानकुन लइका चूहक  चूहक के दूध पिथे l दाँत नई आये हे होंठ अउ जीभ ले l

गारी देवत बाप कहिथे -" मोला चूस डरेव रे l " याने तंग होना l 

मुड़ी धर के रोना अउ आँखी मुँद के रोना म अंतर हे l हाथ पीट के रोना गोड़ पीट के रोना म अलग अर्थ छिपे हे l पेट ला देखा के रोना अउ पीठ देखा के रोना म घलो अंतर हे l मन भर रो l हाँस के रो l अलग अलग भाव हे l अलग अर्थ हे l पेट ला दिखाके रोना याने भूख हे l पीठ दिखा के रोना के मतलब मार जादा खाये हे l 

तो अइसन म छत्तीसगढ़ी शब्द  बहू अर्थी  होथे l 

एक ठन अउ गाना म 

" झूपना "अनेकार्थी प्रयोग होथे l 

"झूपत झूपत आबे दाई l "

देवी मन के झूपना अलग, टोनही मन के झूपना अलग 

नशा म झुमरथे  दवाई के नशा म झूमरे नहीं आँखी मुंफाथे l आँखी मुँद के झूपथे आँखी मुँद के झूमर थे l

छत्तीसगढ़ी के शब्द मन के अध्ययन होना जरुरी हे l

         मुरारी लाल साव 

             कुम्हारी

आवव खँचवा खनन*. ब्यंग

 *आवव खँचवा खनन*.     

                                           ब्यंग 

       हमर देश मा जतका महापुरुष मन जनम धरिन, का जरूरत रिहिस रापा कुदारी धरके खँचवा पाटे के। बने सब झन अपन मा मस्त मौला जीयत हे ओइसने रहि लेतिन। अउ बरोबर करके ये दुनिया मा खूँटा गाड़ के रहना तो नइये। आखिर मा तोला अढ़ाई गज के गड्ढा मा पाट देहीं। फेर उँकर सोच रिहिस कि उपर वाले हर ये धरती मा मनखे जोनी मा भेजे हे तौ हमरो थोर बहुत फरज बनथे कि हम सब आदमी ही बनके रहन। अब मुहरन गत गड़हन  तो आदमी के तो हे फेर  दानवी सुभाव  हर मनखे के मूँड़ी चढ़के नाचत हे। जिँकर मनके चेतना जागिस वो मन आदमी के बीच कोनो गड्ढा झन रहय कहिके नंगत जोर लगाके काम करिन। 

सबले पहिली संत शिरोमणी घासीदास जी भिड़िस। मनखे मन सब बरोबर होके डिपरा मा रहय कहिके एक समान के ज्ञान वाले रापा कुदारी मा बरोबर करे के जोखा लगाइन। एक झन बपुरा गरीब कबीर जी ठेही मार मार के धरम पाखंड आडंबर के खँचवा ले तिर तिर के निकाले बर लिख लिख के कुड़ही रख दिस। असर ये हे कि जेकर ले मनखे बचके रहय गड्ढा मा झन झपाय किहिस, उही गड्ढा मा जाके कबीर के अनुयायी बने हें। इँकरे लगे लगे स्वामी विवेकानंद जी पागा बाँध के देश दुनिया के खँचवा पाटे बर निकल पड़िस। आदत आचरण मा सदाचार खुसेर के आत्मा परमात्मा के बीच के खोँचका पाटे के उदिम करिस। ओकर ले आत्मज्ञान अतका बाढ़िस कि प्रवचन कथा बर जगा कम होवत दिखथे। मनखे कतका आत्मा परमात्मा के रहस्य ला जान पाइन वो ये बात ले समझ मा आथे कि हवन पूजन मा चढ़ौतरी के वजन जादा होना चाही। ए डहर गाँधी बबा ठेंगा धरके चल पड़िस। ओ मन ऊँच नीच छुआछूत के खँचवा पाटके समाजिक समरसता अउ एकता लाने के उदिम करिस। मनखे के समरता के बीच परे कचरा ला सफा करे के नतीजा आज सुग्घर ढंग ले सफाई अभियान बर स्वच्छ भारत चस्मा मा लिख के देखत हे। ओकर पिछलगहा साहेब जी जेला आम्बेडकर के नाम ले जानथें। ओहू अपन कोती ले बिक्कट कोशिश करिस कि समानता हक के सँगे सँग कुप्रथा ले बाहिर लिकलय। अपन नाम के झंडा जम्मो दुनिया मा गड़ा डारिन। ओकर  उँचहा सोच अउ सजग मनखे होय के दुनिया मा साटिपिकट के जरूरत नइ परिस। मनखे हक अउ कायदा मा रहय एकर बर सइघो संविधान लिख के धरा दिस। आज उही संविधान के मान सम्मान मा फकत संसोधन हर मूल अधार हे। जेकर ले खँचवा डिपरा मा कतका समानता लाही या आवत हे सबके नजर हे। पहिली गड्ढा मा ढकेलत हे फेर सरहा डोरी के सहारा देके उप्पर चघावत हें। 

      जतका इतिहास के युग पुरुष होइन, का जरूरत रिहिस ये सब काम ला अपन हाथ मा लेय के। इन मन ला सब के ज्ञान सतबुद्धि रिहिस, फेर ये नइ जान पाइन कि इहाँ जतके गड्ढा पाटबे ओतके खने कोड़े के  रिवाजिक काम होथे।एक ठन हर पटाय नइ रहय दूसर खाँचा तइयार मिलथे। मनखे समाज बर आदर्श के उदाहरण तो बनगे, फेर इँकर सोच अउ मनखे समाज बर देखे सपना सब गड्ढा मा जावत हे।अइसन दसा मा  गाँधी जी उप्पर डहर ले चस्मा पोछ के देखत होही अउ खुश होही कि मँय इँकर बीच ले जल्दी निकल गयेँव कहिके। स्वामी जी मूँड़ के पागा हेर के  मुँह ढाँकत होही एकर सेती कि ये मनखे मन झन दिखय। सौ मन साबुन आज के मानसिक चिटियाहा मन ला कतका उजराही। जिकर मन हिरदे मा कजरी भरे हे तिँकर मन बर कोन किसम के साबुन धरके कते तपसी अवतरही। अउ सार बात ये हे कि आदमी के बीच  कोनों जुग काल मा समानता समता आयेच नइये। हवे तो फकत खँचवा।  अउ कोनो जगा काकरो बीच खँचवा नइये तौ वो जगा आपसी खाँचा कोड़के पुन्य लाभ ले सकत हव। 

         खँचवा काकर बीच नइये घर परिवार समाज गाँव शहर देश देश के बीच खँचवा हे। भाईगिरी के जमाना मा भाईचारा बटइया भाई दिखय ना चारा। दमदार मन डिपरा मा हे अउ लिल्हर मन दहरा मा उबुक चुबुक होवत हें। मौका के ताक मा सब बइठे हें, कि कतिक बखत काकर बर खँचवा कोड़े जाय। जेकर ले आगू वाले बोजा जाय जेकर ले हमर बोलबाला होय। खुराफाती तकनीक ले काकरो तरक्की मा अड़ंगा डारे के सफल प्रयास होना चाही। बनत ला बिगाड़ अउ सुम्मत ला उजाड़ मनखेपन के मूल अधार होना चही।खुद से नइ होवय तब सँगवारी बना। दूसर बर गड्ढा कोड़इया खुदे झपाथे ये बात जुन्ना होगे। आगू वाले नइ बोजाही तब तक चैन से बइठना आत्मा ला गवाही नइ मिलय। काबर कि अपन तरक्की बर आगू वाले बाधक हो सकथे।

      जौन ज्ञान उपदेश अउ करम ले महामानव मन खँचाना पाटे के रद्दा बनाइन ओकर ले जादा गड्ढा खनावत हे। कभू कभू अइसे लगथे कि ये मन साँप ला दूध पियाके चल दिस। एक दूसर बर दाँत पिसना अउ गिराना आदमी के आचरण मा सामिल हो गेहे। ये दुनिया मा सुख समृद्धि ले रहना हे, आगू वाले ले अगुवाना हे तब खँचवा कोड़ना ही एक ठन सहज उपाय रहि जाथे। समाजिक समरसता एकता समानता अउ सद्भाव के रस पीबे तब नीज तरक्की के रसास्वाद लेय के पहिली अरझ के मरे के संभावना दिखथे। नेकी अउ परमार्थ के लफड़ा मा कोन पड़े। स्वारथ लाख करे सब प्रीति, सुर नर मुनि सबके यह रीति।.  जब स्वारथ सधाए के बात बेद कर सकथे तब मनखे ला तो सीख उँहिचे ले मिलथे। अभिमन्यु कुल के मन पेट भितर ले ईर्ष्या द्वेष राजनीति खुराफाती ला सीख के आथें। तब तोर शिक्षा ज्ञान धरम करम दर्शन के गोठ ला सीख के का करम ठठाहीं। देश दुनिया के बात छोड़ सग भाई हर भाई ला गिराय के उदिम करत मिलथे। तोर घर के अलहन मा परोसी मुसकात रेंगथे। तब समझ ले कि वो अपन अच्छा दिन के भान करत हे।ये पारा के कुकुर वो पारा के कुकुर ला देखके गुरेरत रथे तभे समझ मा आ जाथे कि सामाजिक समरसता के रसा कतका करू हे। फूट डालो अउ राज करव चाहे खँचवा खनव अउ आगे बढ़व एके बात आय। एक दिन सब ला गड्ढा मा जाके बोजाना हे। फेर जब तक जीवन हे आगू वाले बाजू वाले तिर तखार के वो मनखे जे तोर ले सजोर हे कमजोर करे बर ये काम चलते रहना चाही। कलेचुप रेहे ले जिनगी के रद्दा मा कभू नइ अगुवा सकस। आगू चलके पछतावा झन होवय। सम्पन्नता अउ सम्मान बर अतका काम ला फर्ज समझ के करना ही परथे। जिनगी मा कुछ नाम पहिचान बनाना हे सफल आदमी के पद पाना हे तब आवव हम सब एक दूसर बर खँचवा खनन।


               (का के बधाई 2019ले)

राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

छत्तीसगढ़ी संस्कृति के चिन्हारी*

 *छत्तीसगढ़ी संस्कृति के चिन्हारी* 


*कहिनी*                      *//  पुरोनी  //*

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                भाजी ले लेवा ओ भाजी ले लेवा... चिकर-चिकर के खोलबहरा कोचिया गली-खोर म चिकरत भाजी बेचत रहिस।कांवर सींका म दूनों कोती खांड़ी भर के टूकना म भाजी ल चिप-चिप के धरे रहिस अउ कांदा भाजी ल पटकू मा गठिया के टूकनी ऊपर मढ़ाय रहिस अउ कनिहा ला लसकारत रेंगत रहिस।वोकर चिकरई ल सुन के... दाई ओ..दाई ओ येदे गली म भाजी बेचाय आय हे लेबे का ओ ?... रमशिला ह अपन दाई ल पूछिस।का भाजी ये ?... घर भीतर ले छुही खुंटियावत दाई ह नोनी ल पूछिस।दउड़त गली कोती नोनी रमशीला ह जाके भाजी बेचइया ल पूछथे... काय भाजी धरे हस ? लाल भाजी बर्रे भाजी,मुरई भाजी,गोंदली भाजी अउ येदे कांदा भाजी धरे हौं नोनी।बने कोवंर-कोवंर हावे,बारी ले टोर के तुरतेच लानत हौं....खोलबहरा कोचिया कहिस।फेर नोनी रमशीला जाके अपन दाई ल बताइस लाल भाजी,बर्रे भाजी,मुरई भाजी,गोंदली भाजी अउ कांदा भाजी बेचे बर आय हावे।

            दाई ह छुही खुंटियावत पोतनी ल छोड़ के सूपा ल धर के धरा-रपटा निकलथे बेचइया के तीर जाके भाजी ल देखे लागथे।अतका म पारा परोस के सेमरतलहिन,सक्तीहिन नगोहिन मन घलो भाजी बिसाय बर आ जाथें।कोनों धान के त कोनों चउर के त कोनों रुपिया-पइसा के बिसावत रहिन।जतका कन चउंर रहीस ओकर हिसाब ले खोलबहरा कोचिया भाजी ल अपन मुठा म निकाल के देवत जाथे वइसनहे धान के घलो अपन हिसाब से देवत जावे।सबो ल थोर-थोर अउ भाजी दे देवै।रमशीला के दाई ह कांदा भाजी अउ चेंच भाजी चउर के बिसा डारीस।

             येती फिरतीन घलो ह भाजी बिसाय बर धर लीस।खोलबहरा कोचिया के भाजी के देवइ ल देख के रुंगे बर धर लिस....कसगा एतका कन  चउंर दे हंव अउ तैंहा कइसे येतकेच कन भाजी देबे कइसे बनही थोरिक अउ उपरहा *पुरोनी* पुरो न...फिरतिन कहे ल धर लीस।माईलोगन मन कोनों जिनीस ल बिसाय बर उहीच मन जानथे अउ मोलभाव तहं ले कइसनो करके कमेच करके बिसा डारथें अउ रुंग घलो डारथें।फिरतीन के संगे-संग मनटोरा  घलो मुड़ी डोलावत हां म हां मिलाय बर धर लीस।बाबूपीला मन कुछू जिनीस बिसाथें त जइसनहा पाथें वइसनहा जेतका म पाथें वोतका मा बिसा डारथे फेर येती घरो म तहं फेर गारी खाबेच करथें।

               आजकल जादा देखे म आवत हे तखरी बाट के जघा ल डीजिटल तउले के मशीन आ गे हावे जेमा येको कनीक टेंड़ा नी देवंय।जेला सोन तउल कइथें।अब तो भाजी के संगे-संग छीता पाका,जोंधरी तको ह तउलेच म बेचाय बर धर लीस हावे,नि तो छीता पाका के छोटे बड़े के हिसाब ले बेचइया मन अलग-अलग कुढ़ा बना के बेचें,जोंधरी ल मुठिया के मुताबिक देवैं।अब ये तो जमाना आय हे काय कहिबे अउ काला बताबे।तउलों म कतका बेर कांटा मार देथें कोनों गमेच नी मिलय...बुधारु मनेच मन सोचिस।

                  एक दिन बुधारु अपन घर के जुन्ना कागद अउ किताब ल घरेच के तखरी म छियालीस किलो तउल के तीनठन बोरी म भर के राखे रहिस।एक दिन मोहना रद्दी कागद किताब लोहा टीना वाला आइस त ओला रोकवा के पूछिस....रद्दी कागद किताब के का भाव चलथे ?...बुधारु पुछिस! बताईस बारा रुपया किलो चलत हे,आजकल येखर चलन कम हे तैं कहत हावस त मैं ले लेथंव.... मोहना कहिस।ले दे के कहे बोले म पंदरा रुपिया किलो म मोहना ह तियार होइस।ले सबो कापी किताब ल तउल...बुधारु कहिस।अपन तउले के तखरी निकालिस एक किलो बाट एक डहर अउ एक डहर कापी किताब ला रखिस थोरिक टेंडा़ रखिस,बुधारु धियान से देखत रहिस कुछू नि कहिस।अइसे करके ओहर दू किलो के पासंग बनाइस।तखरी के पलोहा म दू किलो अउ दूसर कोती के पलोहा म रद्दी कागद किताब रख के तउलत गीस।

              जम्मो रद्दी कागद किताब ल तउलीस त ओकर तउल म तेईस किलो होइस कोनजनी कइसे ढंग ले तउलीस त बुधारु ओकर तउलईच ल देख के सुकुरदुम होगे।फेर ओला बुधारु कहिस येला मैं छियालीस किलो तउल के बोरी म भरें हौं अउ तोर तउल म कइसे अतेक अधिया गिस......बुधारु पुछिस।ओहर बुधारु के बात ल समझ गीस अउ रोज के तउलइच म अंदाजा लगा डारे रहिस अउ छियालीस किलो होही कहिके बात ल मान के बुधारु ल छियालीस किलो के पइसा तो दे दिस।तोर तउले म अतेक कइसे कमतिया गिस ? ... बुधारु जावत-जावत पूछिस।ओहर अपन के तउले के उदीम ल बताइस... तखरी म कांटा मारे के तरीका येदे अइसनहे तउलथन..... मोहना कहिस।अइसे तो हालचाल हे काय कहिबे आजकल नि जानत रहिबे त भइगे अइसनहे होबेच करथे कतको झन ल तउल म मुरुख  बनावत रहिथें।

                  तइहा हमर घर के बढ़खा दाई ह चना मुर्रा लाई उखरा बेचें त छोट-छोट डब्बा अउ चुरकी म भर के बेचे।एक रुपिया,दू रुपिया पाँच रुपिया के अउ तामी घलो राखे रहीस जेमा जेतका के बिसावैं ओतका के चुरकी नहीं तो डब्बा म भर के दे देवैं अउ एक-दू मूठा अउ डार देवै।एक-दू मूठा जादा देवय तेकर सेथी लेवइया घलो जादा आवंय अउ पर्रा भर चना मुर्रा देखतेच देखत जल्दी बेचा जावत रहिस।उहीच मेर संगी मन संग खेलत रहन त हमन ल खाय बर ओली म एक खबोसा घलो देवय त हमन कहि देवन थोरिक *पुरोनी* पुरो न ओ।अइसन सत वो समे म जादा देखे म मिल जावत रहिस।

                  तइहा के समे म *सत अउ ईमान* के डहर म रेंगइया मनखे घलो रहीस थोरिक ऊपर कोती ल डरा के मनखे ह काम बुता करे। चुरकी अउ तामी म नापे के बाद एक-दू मूठा अउ काबर देथस ? कहिके एक दिन बड़खा दाई ल मैं हा पूछ पारेंव।ये एक मूठा अउ देथंव येही ल *पुरोनी* कहिथें... बड़खा दाई हाँसत-हाँसत कहिस।लेहे-देहे म कुछू भूल-चूक हो जाय रहिथे तेकर सेथी भूल-चूक ल बरोबरी करे बर पुरोनी देहे पर जाथे।इही पुरोनी परम्परा हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के चिन्हारी आय।ये परंपरा ह जुन्ना चलागत चलत आत रहिस फेर अब ये *पुरोनी* के चलन ह *भठत* जावत हे अइसे जनावत हे।हमर छत्तीसगढ़ के जुन्ना परम्परा ल कभू नी भूलावन भलुक छत्तीसगढ़ी संस्कृति ल आघू बढ़ाय के उदीम घलो सबोझन जुरमिल के करबो आवौ थोरिक हमर जून्ना संस्कृति के *पुरोनी* पुरो देवौ।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त*

*तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार - लक्ष्मण मस्तुरिया

 7 जून -76वीं  जयंती म विशेष 


    छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार - लक्ष्मण मस्तुरिया 


                       मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी… मंय छत्तीसगढ़िया अंव… पता दे जा रे गाड़ी वाला… पड़की मैना… मंगनी म मांगे मया नइ मिलय… मन डोले रे माघ फगुनवा… घुनही बंसुरिया… सोना खान के आगी… जइसे गीत के लिखइया जन कवि स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया के 7 जून के 76 वीं जयंती हे।मस्तुरिया जी हा अपन अपन गीत, कविता अउ गायन के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाइस अउ सुग्घर ढंग ले अपन हक खातिर लड़े के रद्दा बताइस. वोकर गीत म एक डहर छत्तीसगढ़ महतारी के गजब बखान हे त दूसर कोति छत्तीसगढ़वासी मन के भोला पन के वर्णन के संगे- संग किसान, मजदूर ला जगाय के उपाय हे.

जिनगी भर छत्तीसगढ़िया मन के मान मर्यादा बर लड़इया अइसन क्रान्तिकारी कवि अउ गीतकार

के जनम बिलासपुर जिला के मस्तुरी गाँव म 7 जून 1949 के होय रिहिन हे. शुरुआत के जिनगी गजब संघर्ष ले बीतिस. फेर वोहर राजकुमार कालेज रायपुर

म शिक्षक के रूप म अपन सेवा दिस. बाद म हिंदी विभागाध्यक्ष घलो रिहिन.

जउन मन ह दाउ रामचन्द्र कृत चंदैनी गोंदा ल अपन खूब मिहनत ले ऊँचाई तक पहुँचाइस वोमा लक्ष्मण मस्तुरिया ह प्रमुख रिहिन हे. लक्ष्मण मस्तुरिया ह चंदैनी गोंदा के गीत अउ गायन पक्ष ल गजब सजोर बनाइस.

मस्तुरिया जी के लिखे अउ गाये

गीत ह जनता के बीच गजब लोक प्रिय होइस . छत्तीसगढ़ के आकाशवाणी केन्द्र मन म उंकर गीत ह खूब चलिस. रायपुर दूरदर्शन म गीत प्रसारित होइस. उंकर गीत ल सुन के मन ह खुशी से झूमे लागय त कतको गीत ह छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाइस. वोकर गीत के खूब आडियो अउ वीडियो रूप बनिस. पान ठेला, होटल के संगे संग बर बिहाव, षट्ठी, कोनो भी सार्वजनिक कार्यक्रम म मस्तुरिया जी के गीत रंग झाझर मंता देय. वोकर गीत ल सभा -संगोष्ठी म बजा के / गा के जनता म जोश भरे जाथे. स्कूल /कॉलेज के वार्षिक समारोह म मस्तुरिया के गीत ह कार्यक्रम म जान डाल देथे.

लक्ष्मण मस्तुरिया के बारे म डॉ. बल्देव जी ह लिखथे –“लक्ष्मण मस्तुरिया हमर अग्रज कवि हरि ठाकुर जइसन वीर अउ ऋंगार, क्रांति अउ पीरित के अद्वितीय गायक आय .कहूँ -कहूँ उन बहुत करीब हे, लेकिन शैली के थोर बहुत अन्तर तो रहिबेच करही.”

छत्तीसगढ़वासी मन के स्वाभिमान ल वो कइसे जगाइस वोकर उदाहरण देखव                              –सोन उगाथौं माटी खाथौ ।

मान ल देके हांसी पाथौ ।।

खेती खार संग मोर मितानी ।                                                           घाम मयारु हितवा पानी ।।


मोर इही जिनगानी मंय नगरिया अंव ग

किसन के बड़े भइया हलधरिया अंव रे …

झन कह मोला लेढ़वा डोमी करिया अंव ग

सिधा म सिधा नइ तो डोमी करिया अंव रे…

मैं छत्तीसगढ़िया अंव रे…


मोर संग चलव गीत म वोहर छत्तीसगढ़िया मन ल जगाय के काम करथे. बिपत संग जूझे बर कहिथे.

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी

वो गिरे थके हपटे मन अउ परे

डरे मनखे मन

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव ग

बिपत संग जूझे बर भाई मंय बाना बांधे हंव ।

सरग ल पिरथी म ला देहू प्रन अइसे ठाने हंव ।।

मोर सुमता के सरग निसेनी जुरमिल सबो चढ़व रे….

मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी…

मस्तुरिया जी के ऋंगार गीत ल सुन के मन ह मयूर जइसे नाचे ल लगथे. अंतस ह मगन हो जाथे.


पता दे जा ले जा गाड़ी वाला रे

तोर नाम के तोर गाँव के तोर काम के…

पता दे जा…

जियत जागत रहिबे बयरी

भेजबे कभू ले चिठिया

बिना बोले भेद खोले रोये

जाने अजाने पीरीतिया

बिन बरसे उमड़े घुमड़े

जीव मया के बयरी बदरिया

पता दे जा रे गाड़ी वाला…

अइसने “पड़की मैना “गीत ल सुनके हिरदे ल गजब उछाह लागथे.


वारे मोर पड़की मैना, तोर कजरेली नैना

मिरगिन कस रेंगना तोरे नैना

मारे वो चोंखी बान, हाय रे तोर नैना…


वियोग ऋंगार रस मा मस्तुरिया के गीत ल सुन के मया करइया मन के आंसू ह टपक जाथे.


काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये

तोला का होगे, रस्ता नइ दिखे बइरी तोर…

का कहूं रस्ता म काहीं अनहोनी होगे

का कहूं छोड़ मया ल संगवारी जोगी होगे

घेरी बेरी डेरी आंखी कइसे फरकाये

तोला का होगे, टीपकी टीपकी आंसू गिरे मोर…


अइसने अउ उदाहरण प्रस्तुत हे..


सरी रतिहा पहागे तैं नइ आये रे

तोला घेरी बेरी बइरी मंय सपनायेंव रे…

अइसन का होगे काम

भूलिगै देह ल परान

का तो महि हौं अभागिन

अपने होगे आन

आ आ नींद बइरी आंखी ले उड़ि जाय रे…


शोषण करइया मन ल मस्तुरिया जी खूब ललकारय .

हम तो लूट गयेन सरकार तुंहर भरे बीच दरबार

खुल्लम -खुल्ला राज म तुंहर अहा अत्याचार

रइहो रइहो खबरदार…

हाय विधाता दिन -दिन बाढै देस म अत्याचारी

परमिट वाले डाकू भइगे जन सेवक सरकारी

सुतरी सुतरी छांद फांद के लूटै पारी -पारी

हांस रे लछमन करम ठठा नइ रोवे म उबार

हम तो लूट गयेन सरकार तुंहरे भरे बीच दरबार…


मस्तुरिया जी ह “सोनाखान के आगी” म शहीद वीर नारायण सिंह के वीरता ल गजब सुग्घर ढंग ले प्रस्तुत करे हवय .


फेर सुरता आगे उही प्रन के ।                                                        फरकिस भुजा बरन ललियाय ।।                                                          आंखी जले लगिस लक लक l                                                              कटरै  दांत , बदन अटियाय  !!                                 


नहीं नहीं संगी ये मरना तो ।

कायर अउ मन हारे के ।।

मोर जिनगी मोर परजा खातिर।

जे मोला मुखिया माने हे ।।


जमींदार मंय सोना खान के ।

सोना उपजै मोर माटी म ।।

जिहां के भुंईधर भूख मरत हे ।

आग बरै मोर छाता म ।।


रचनायें… 

मस्तुरिया के रचना म हमू बेटा भुइंया के (काव्य संग्रह),

चंदैनी गोंदा में लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ,छत्तीसगढ़ के माटी (छत्तीसगढ़ दर्शन ),सोना खान के आगी, माटी कहे कुम्हार से (निबंध संग्रह) अउ घुनही बंसुरिया (गीत संकलन) प्रमुख हे.

मस्तुरिया जी ह सन् 2000 मा बने मोर छइंहा भुइंया, मंजरी सहित कतको छत्तीसगढ़ी फिलिम बर गीत लिखे के सँगे सँग गायन करिस.

कछ बेरा तक लोकासुर मासिक पत्रिका के संपादन घलो करीस.


सम्मान –  छत्तीसगढ़िया जन जागरण के अग्रदूत मस्तुरिया जी ल राज्य सरकार द्वारा जउन सम्मान मिलना रिहिस वो नइ मिल पइस. आंचलिक साहित्य म गजब लिखइया साहित्यकार मन ला शासन द्वारा पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान देय जाथे. वहू नइ देय गिस. जबकि मस्तुरिया जी के कई ठन गीत ह छत्तीसगढ़ के स्वभिमान गीत हरे. पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के समय मस्तुरिया के गीत मोर सँग चलव रे… मयँ छत्तीसगढ़िया अवँ …ह शंखनाद के काम करिस. पर मस्तुरिया जी ह जनता के प्यार ल सबसे बड़े सम्मान माने. एक चैनल म इंटरव्यू देत खानि वोहा पूरा दम खम के साथ येला बोले रिहिस. ये इंटर व्यू देत समय सुप्रसिद्घ गीतकार जनाब मीर अली मीर जी घलो उंकर संग रिहिस.

                        हमर छत्तीसगढ़ के कतको साहित्यिक अउ सांस्कृतिक संस्था मन हा मस्तुरिया जी ल सम्मानित करिस. येमा छत्तीसगढ़ी काव्य भूषण, लोक स्वर, विशेष प्रतिभा सम्मान, स्व. ठाकुर प्यारे लाल सिंह सम्मान, छत्तीसगढ़ी विभूषण, सृजन सम्मान, रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्मान ।

  रेडियो म मस्तुरिया जी के गीत ल ननपन ले सुनत हन. गिने चुने जउन गीतकार, गायक मन जनमानस म अपन अलग प्रभाव छोड़िस वोमा लक्ष्मण मस्तुरिया प्रमुख रीहिन हे ।                      मस्तुरिया जी के कवि सम्मेलन म अब्बड़ मांग रहय. छत्तीसगढ़ के सबो प्रमुख शहर अउ कतको गाँव म वोहा काव्य पाठ करे हे.वोकर लोक प्रियता ल देख के भीड़ भाड़ ल रोके बर वोला आखिरी डहर काव्य पाठ कराय जाय.मेहा लक्ष्मण मस्तुरिहा ल लखोली, राजनांदगांव म आयोजित कवि सम्मेलन म काव्य पाठ करत सुने रहेंव. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कार्यक्रम म  मस्तुरिया जी ले भेंट होय ।             मस्तुरिया जी ह 20 जनवरी 1974 म नई दिल्ली के लालकिले म गणतंत्र दिवस के अवसर म आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन म काव्य पाठ करिस. वोहा देश के नामी कवि/गीतकार गोपाल दास नीरज, बाल कवि बैरागी, इन्द्रजीत सिंह तुलसी, रामावतार त्यागी, रमानाथ अवस्थी मन संग अपन प्रस्तुति दिस. वो समय मस्तुरिया जी सिरिफ 25  बछर के रिहिन हे।येहर छत्तीसगढ़ म वोकर लोक प्रियता के सबले बड़का उदाहरण हे .

छत्तीसगढ़ के ये रतन बेटा ह 3 नवंबर 2018 म परम लोक चले गे. श्रद्धेय मस्तुरिया जी ल  सत् सत् नमन हे।


           ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’

         सुरगी, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़)

अमर गीतकार मस्तुरिया के गीत मा संबोधन शब्द के लालित्य..

 अमर गीतकार मस्तुरिया के गीत मा संबोधन शब्द के लालित्य..


छत्तीसगढ़ी भाखा मा सम्बोधन शब्द मन के मधुरता देखते बनथे। हमर भाखा म सम्बोधन के अनेक शब्द बउरे जाथे। हालाकि छत्तीसगढ़ी भाखा मा सम्बोधन चिन्ह(!) के प्रयोग कम ही दिखथे। छत्तीसगढ़ी काव्य म संबोधन के अपन अलग ही लालित्य हवय। अगर छत्तीसगढ़ी काव्य मा संबोधन शब्द के लालित्य देखना हवय ता मस्तुरिया जी के गीत के अवलोकन करे ला परही। मोर जानबा मा संबोधन शब्द के लालित्य मस्तूरिहा जी के गीत म सबले जादा मिलथे। 

         एक सम्बोधन शब्द हे "रे" येकर प्रयोग अपन ले छोटे बर ही करे जा सकथे फेर मस्तुरिया जी अपन गीत म "रे" के अतका खूबसूरती से प्रयोग करे हवय कि गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हे - लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत मा  संबोधन शब्द के लालित्य देखव - 


मोर संग चलव "रे", मोर संग चलव "गा" मोर संग चलव जी".....

ये कालजयी गीत म "रे" के प्रयोग से गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हवय।

ले चल "रे" ले चल, ले चल "गो"  ले चल "ओ" मोटरवाला ले चल....

बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूम "रे" ....

वा रे मोर पडकी मैना .... (अपन प्रेमिका ल पड़की मैना के रूप देख के "रे" के प्रयोग )

पता दे जा "रे", पता ले जा "रे" गाड़ीवाला

"ओ" गाड़ीवाला "रे"..... पता दे जा रे पता "ले" जा रे....

"अहो मन" भजो गणपति गणराज .....

(मस्तुरिया जी अपन मन ल संबोधित करत हे। मन ल "अहो" कहि के सबोधन )

हम तोरे संगवारी "कबीरा हो"......

मन डोले "रे" माघ फगुनवा....

नरवा म अगोर लेबे "रे" .....नरवा म अगोर लेबे "गा"...

मँय छत्तीसगढ़िया अंव "रे"...मँय छत्तीसगढ़िया अंव "गा".....

मँय बंदथौं दिन रात "वो"..मोर धरती मैया...

मोला जावन दे ना "रे अलबेला"....

काबर समाए रे मोर "बैरी" नैना मा...

"अहो" गजानन स्वामी हो, डंडा-सरन पाँव ...

मँगनी मा माँगे मया नइ मिले "रे"  मँगनी मा...

संगी के मया जुलुम होगे "रे"....

चल-चल ना किसान बोये चली धान असाढ़ आगे "गा"...

चल "जोही"  जुरमिल कमाबो "जी" करम खुलगे....

दया मया ले जा "रे"  मोर गाँव ले......

मोर खेतिखार रुनझुन, मन भौंरा नाचे झूमझूम, किंदर के आबे "चिरैया रे".... किंदर के आबे मोर "भौंरा रे"....

काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये, तोला का होगे, रस्ता नइ दिखे "बइरी" तोर....

चौंरा मा गोंदा '"रसिया"...मोर बारी मा पताल "रे" चौंरा मा गोंदा..

मोला जावन दे ना "रे अलबेला" मोर....

"जागौ रे जागौ बागी बलिदानी मन, महाकाल भैरव लेखनी महामाया सीतला काली मन".....

ये गीत के पूरा शब्द मन संबोधन के हवय ...

वा रे मोर "पड़की मैना".....

छोड़ के गँवई शहर डहर झन जा झन जा "संगा रे"

मोर गँवई गंगा ये....

रेंगव रेंगव "रे रेंगइया" बेरा कड़कथे रे ......

"भइया गा"  किसान हो जा तियार..

तोर मुरली म कइसे जादू भरे "जोड़ीदार"...

मोर कुरिया सुन्ना ''रे", बियारा सुन्ना "रे मितवा" तोरे बिना "हितवा" तोरे बिना....

आ मोर बइँया मा "गाँजा कली" गाड़ी चढ़ के बंबई कोती भाग चली....

दुख के रतिहा काट संगी, सुख बिहिनिया आही रे, "सँगवारी रे" .....

मोर मया तोर बर जहर जुलुम होगे "लहरी यार"...

झमझम ले लुगरा पहिर के आये हौं, देखव तो "जोड़ी" मैं कइसे लागे हौं....

दुनिया मड़ई मेला बजार ए, ये बजार ए "गा भइया"

तहीं बता "रे मोर मयारू" तोर-मोर भेंट कहाँ मेर होही.....

आ गे सुराज के दिन " रे संगी "....

रस्ता हे नवा-नवा "रे रेंगइया भइया" मोर...

जीव लागे न "हो" जग ठगनी माया....

"भइया हो" अइसे करव कुछ काम,के जुग-जुग होवै तुंहर नाम......

झन हो "ग मोर गियाँ" उदास, तोर जाँगर पथरा कस .......

रस्ता हे नवा-नवा "रे रेंगइया भइया" मोर...

"भइया हो" अइसे करव कुछ काम,के जुग-जुग होवै तुंहर नाम......

झन हो "ग मोर गियाँ" उदास, तोर जाँगर पथरा कस .......

बात मान ले परदेस झन जा "रे".....


           उपर उल्लेखित गीत म - रे, अरे, अहो, ओ, गा, गो, जी, जोही, संगवारी रे,रे संगी, पड़की मैना, रसिया, मितवा, हितवा, जोड़ी, जोड़ीदार, गाँजा कली, चिरैया रे, भौंरा रे, रे मोर मयारू, रे अलबेला, बैरी, लहरी यार, रे रेंगइया, भइया गा, भइया हो, गा भइया, कबीरा हो, रे रेंगइया, संगा रे,"रे रेंगइया भइया","ग मोर गियाँ" ....  ये संबोधन शब्द के प्रयोग मस्तुरिया जी मन अपन गीत म करे हवँय। कई गीतकार मन सम्बोधन के शानदार प्रयोग करके छत्तीसगढ़ी गीत मन ला नवा ऊँचाई दिन  फेर मस्तुरिया जी के बाते अलग रिहिस। आज के गीतकार मन ला चाही कि उमन मस्तुरिया जी के गीत ल चेत लगा के सुनय अउ अपन गीत म भी अइसन संबोधन के प्रयोग करँय कि गीत मधुरता म कोनो कमी झन आय। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा

आम महोत्सव के अपन मजा

 आम महोत्सव के अपन मजा

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी, छत्तीसगढ़ शासन अउ "प्रकृति की ओर" सोसायटी मिलके छः सात अउ आठ जून के कृषि महाविद्यालय परिसर रायपुर म "फलों के राजा" आम के "आम महोत्सव " करने वाला हें।


इंहा आम के दू सौ प्रकार के आम रखे जाही अउ छप्पन प्रकार के कलेवा रखे जाही। देश भर के लोगन ल नेवता हावय ,अपन विशेष प्रकार के आम ल प्रदर्शनी यें रखंय। अउ प्रतियोगिता म घलो भाग लेवंय। छत्तीसगढ़ के बाहिर के आम उत्पादक मन भाग लिहीं। आम के कलेवा के घलो प्रतियोगिता होही। पंजियन मुफ्त म होही। भाग लेय बर हे तभो कोनो शुल्क नइ लगय। सब मुफ्त म होही।


देशी आम रखे जाही। आम के संख्या दस होना चाही। हमर छत्तीसगढ़ के मन ल दूसर राज्य के आम देखे बर मिलही। जेन आमा देश भर म बेचाये बर आथे तेखर नाम हावय--दशहरी,लंगड़ा,चौसा,मालदा,हिमसाग,सुंदरजा,केसर,अलफांसो,तोतापरी,नीलम,बैगनफल्ली,पैरी, सिंदूरी,फज़ली। रायपुर म तो बैगनफल्ली, तोतापरी, कलमी, दसेरी ही ज्यादा मिलथे। इंहा के बाकी आम अलग अलग क्षेत्र म अलग अलग सुवाद के होथे। अभी एक झन जांजगीर के आम ला के दीस त ओ ह शक्कर असन मीठ रहिस हे  । कलमी आम सरिख दिखत रहिस हे। आम पना बनायेंन त शक्कर डारे के जरुरत ही नइ रहिस हे। पहिली भिलाई के आम बगीचा के बहुत नाम रहिस हे। चूसनी आम, अचारी आम बहुत मिलय। छत्तीसगढ़ म अचार बनाये बर रेशा वाला आम प्रयोग म लानय जेन ल आजकल बूच वाला आम कहिथें। अब ये मिलबे नइ करय। बैतूल के आम रायपुर म आथे इही ल सब अचार बर लेथें। गाँव गाँव के आम के पेड़ मन बूढ़ागे हावय। नवा पेड़ लगावत नइये। नवा पेड़ लगावत भी हें त हाइब्रिड वाला लगावत हावय जेखर ले अचार नइ बनय।  महोत्सव म हाइब्रिड के ही बूच वाला अचार के प्रकार तैयार करना चाही। जेखर नाम ही अचारी आम होवय। दक्षिण म गुजरात म महाराष्ट्र म बिना रेशा वाला आम के अचार बनाथें फेर छत्तीसगढ़ म आज भी रेशा वाला आम के सुरता करथें। मलाजखंड म मिलथे, दुर्ग भिलाई म मिलथे। गाँव के मन आज भी अपन पेड़ के आम ल बेचे बर आथें। जेन पहुँच गे तेन ल मिलगे।


आम महोत्सव म आवव अउ आम देखे के खरीदे के मजा लेवव। आम के बने जिनिस ल खरीद के खाये के मजा लेवव।

सुधा वर्मा 8/6/2025, मड़ई

लोक संगीत सम्राट- खुमान साव

 9 जून - 6 वीं पुण्यतिथि म विशेष 


लोक संगीत सम्राट- खुमान साव 




कोनो भी अंचल के संस्कृति वो क्षेत्र के पहिचान होथे. येमा वोकर आत्मा ह वास करथे. जब अपन संस्कृति ल जन मानस समाज ह कोनो मंच म प्रस्तुति के रूप म देखथे त ऊंकर हिरदे म गजब उछाह भर जाथे.   हमर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति के अलगे पहिचान हे. येला जन जन तक बिखेरे म जउन महान कलाकार मन के हाथ हे वोमन म स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. महासिंग चन्द्राकर, स्व. हबीब तनवीर, स्व. देव दास बंजारे, स्व. झाड़ू राम देवांगन, श्रीमती तीजन बाई, स्व. केदार यादव, स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया,स्व.शेख हुसैन, झुमुक दास बघेल, निहाई दास मानिकपुरी, ममता चन्द्राकार, कविता वासनिक, पूना राम निषाद, लालू राम साहू, स्व. मदन निषाद, स्व. गोविन्द निर्मलकर,माला मरकाम, फिदा बाई मरकाम, सूरुज बाई खांडे, चिन्ता दास बंजारे, रामाधार साहू, दीपक चन्द्राकार, शांति बाई चेलक, स्व. भैया लाल हेड़ाऊ,स्व.गंगा राम शिवारे, बद्री विशाल यदु परमानंद,शिव कुमार तिवारी, मिथलेश साहू, घुरवा राम मरकाम, डॉ. पीसी लाल यादव, शिव कुमार दीपक, नवल दास मानिकपुरी अउ संगीतकार श्रद्धेय स्व. खुमान साव के नांव ल आदर के साथ लेय जाथे. स्व. साव जी ह अपन साधना के बल म छत्तीसगढ़ी लोक संगीत ल खूब मांजिस. हमर लोक गीत ल पश्चिमी अउ फिल्मी संस्कृति ले बचा के माटी के खुशबू ल बिखेरिस. खुमान साव ह छत्तीसगढ़ के नामी कवि अउ गीतकार मन के गीत ल संगीतबद्ध कर के चंदैनी गोंदा के मंच म प्रस्तुति दिस. 

   छत्तीसगढ़ी लोक संगीत बर समर्पित खुमान साव के जनम 5 सितंबर 1929 म राजनांदगॉव के  ग्राम खुर्सीटिकुल (डोंगरगॉव) म होय रिहिस. बाद म ठेकवा (सोमनी )म जाके बसगे. वोकर बाबू जी के नांव टीकमनाथ साव रिहिस. खुमान ल लोक गीत- संगीत के घर म सुग्घर वातावरण मिलिस काबर कि वोकर बाबू जी ह हारमोनियम बजाय. लइका खुमान ह घर म हारमोनियम बजाय म धियान लगाय. फेर वोहा रामायण मंडली म हारमोनियम बजाय ल शुरु करिस. खुमान ह नाचा के भीष्म पितामह स्व. मंदराजी दाऊ के मौसी के बेटा रिहिस .मंदरा जी दाऊ ह खुमान ल हारमोनियम बजाय बर प्रोत्साहित करे. खड़े साज म वोहा  पहिली बार 13 साल के उमर म बसन्तपुर (राजनांदगॉव) के नाचा कलाकार मन सँग हारमोनियम बजइस. मंदरा जी दाऊ द्वारा संचालित रवेली नाचा पार्टी म वोहा 14 साल के उमर म सामिल होगे. साव जी नाचा म हारमोनियम म लोक धुन के सृजन कर छत्तीसगढ़ के माटी के महक ल बिखेरे के जब्बर काम करिस. साव जी ह बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करे रिहिन हे. वोहर म्युनिसीपल स्कूल राजनांदगॉव म शिक्षक रिहिन हे. 

    साव जी ह सन 1950-51 म राजनांदगॉव म आर्केस्टा पार्टी  चलाइस. छत्तीसगढ़ के कतको शहर के सँगे -सँग महाराष्ट्र अउ मध्यप्रदेश म आर्केस्टा के प्रस्तुति दिस. धीरे से वोकर मन ह आर्केस्टा डहर ले उचट गे. 1952 म सरस्वती कला मंडल के गठन करिस. खुमान साव जी के प्रतिभा ल देखके दाऊ रामचंद्र देशमुख ह अब्बड़ प्रभावित होइस. 1952 म दाऊ रामचंद्र देशमुख के गांव पिनकापार (बालोद )म मंडई के समय म नाचा होइस. ये कार्यक्रम म देशमुख जी हा साव जी ल हारमोनियम बजाय बर बुलाइस.1953 म घलो अइसने होइस.ये कार्यक्रम के अइसे प्रभाव पड़िस कि रवेली अउ रिंगनी नाचा पार्टी के विलय होगे. काबर कि येमा रवेली अउ रिंगनी पार्टी के संचालक मन ल छोड़ के बाकी नामी कलाकार मन ह आमंत्रित होय रिहिन हे. लोक संगीत अउ कला डहर कुछ अलग काम करे के इच्छा के सेति वोहा 1960 म शिक्षक सांस्कृतिक मंडल के गठन करिस. येमा भैया लाल हेडाऊ, गिरिजा सिन्हा, रामनाथ सोनी जइसे बड़का कलाकार मन शामिल होइस. 

  साव जी ह सबले पहिली स्व. रामरतन सारथी के 3 गीत मोला मइके देखे के साध, सुनके मोर पठौनी परोसिन रोवन लागे, सोन के चिरइया बोले ल लयबद्ध करिस. 1971 म आकाशवाणी रायपुर म वोकर संगीत निर्देशन म गाना रिकार्ड होइस .भैया लाल हेड़ाऊ अउ दूसर कलाकार मन ह गीत गाइस. 

दाऊ रामचंद्र देशमुख ह रेडियो म खुमान साव अउ ऊंकर कलाकार मन के गीत ल सुनिस त साव जी ल अपन गांव बघेरा बुलाइस. वो समय दाऊ जी ह छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार मन ल सकेल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उदिम करत रिहिस. साव जी ह दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित चंदैनी गोंदा म हारमोनियम वादक के रूप म जुड़गे. चंदैनी गोंदा म साव जी ल अपन प्रतिभा देखाय के सुग्घर मौका  मिलिस. चन्दैनी गोंदा के प्रसिद्धी म संगीत पक्ष के गजब रोल रेहे हे. येकर श्रेय खुमान साव ल जाथे जउन ह अपन साधना के बल म नामी कवि /गीतकार लाला फूलचंद, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, रविशंकर शुक्ल, पवन दीवान, प्यारे लाल गुप्त, कोदू राम दलित, राम रतन सारथी, लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ल संगीतबद्ध करके चंदैनी गोंदा म प्रस्तुति दिस. साव जी ह मोर संग चलव रे..., धन धन मोर किसान, घानी मुनी घोर दे, छन्नर छन्नर पैरी बाजे, चिटिक अंजोरी निर्मल छइंहा, मोर धरती मइया जय होवय तोर, पता ले जा रे गाड़ी वाला, बखरी के तुमा नार बरोबर, मोर खेती खार रुमझुम जइसे कतको छत्तीसगढ़ी गीत ल संगीत दिस. ये गीत मन हा अब्बड़ लोकप्रिय होइस अउ आजो जनता के जुबान म बसे हे. छत्तीसगढ़ी लोकगीत गौरा गीत, सुवा गीत, बिहाव गीत, करमा ये मन ला लयबद्ध करे म ऊंकर गजब योगदान हवय.


 लोक संगीत के ये महान

 कलाकार से मोर पहिली भेंट 17 मार्च 2002 म दिग्विजय स्टेडियम के सभागार म 

आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम म होय रिहिस. 

दूसरइया भेंट मानस भवन दुर्ग मा आयोजित छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अधिवेशन म होइस .इहां के एक संस्मरण बतावत हवँ. कार्यक्रम ह चालू नइ होय रिहिस. साहित्यकार /कलाकार मन के पहुंचना जारी रिहिस. नामी साहित्यकर दानेश्वर शर्मा जी, खुमान साव जी सहित पांच -छै साहित्यकार स्वागत द्वार के पास खड़े होके एक दूसर ला पयलगी /जय जोहार करत रेहेन. इही बीच एक नव जवान कवि ह अइस अउ साव जी ल नइ पहिचान पाइस. हमर मन ले वो नव जवान कवि ह पूछे लागिस कि ये सामने म खड़े हे वोहा कोन हरे. मेहा  साव जी के परिचय बताय बर अपन जबान खोलत रेहेंव त साव जी ह मोला रोक दिस अउ ओकर से पूछिस कि पहिली तँय ह बता तैंहा कोन गांव के हरस. नव जवान सँगवारी ह बोलिस - मेहा बघेरा (दुर्ग) के रहवइया अंव. 

साव जी ह बोलिस कि- तैंहा बघेरा के हरस तब तो मोला तोला जानेच ल पड़ही. अउ मोर नांव नइ बता पाबे त तोला मारहू किहिस ". ये बात ल सुनके वो नव जवान ह सकपकागे!

 वइसे मेहा साव जी के अख्खड़ स्वभाव ले परीचित रेहेन त देरी नइ करत वोला बतायेंव कि - यह महामानव चंदैनी गोंदा के संचालक आदरणीय खुमान साव जी हरे. अइसन सुनके वोहा तुरते साव जी ल पयलगी करिस. जे साव जी ह वोला मारहू केहे रिहिस वोहा वोकर मुड़ी म हाथ रखके आशीर्वाद प्रदान करिस. ये प्रसंग म हमन मुस्कात रहिगेन. 

  फेर साव जी ह नम्र स्वभाव ले वोकर से किहिस कि - तैंहा बघेरा रहिथो केहेस तेकर सेति केहेंव कि मोला जाने ल पड़ही .फेर वो नव जवान ल पूछिस कि दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ल जानथस? श्री विश्वंभर यादव मरहा जी ल जानथस? त वोहा किहिस कि हव दूनों ल जानथव. 

साव जी ह बोलिस कि महू ह दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर रिहर्सल मा आंव जी .तेकर सेति तोला केहेंव रे बाबू कि मोला तोला जाने ल पड़ही. 

ये घटना ले पता चलथे कि साव जी ह नारियल जइसे ऊपर ले

कठोर जरूर दिखय पर अंदर ले गजब नरम स्वभाव के रिहिस. 


साव जी ह  हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के वार्षिक समारोह म चार बेर पहुंचिस. 2012 म करेला (खैरागढ़) भवानी मंदिर मा आयोजित कार्यक्रम म, 2013 म सुरगी के पंचायत भवन म, 2015 म सुरगी के कर्मा भवन म अउ 2016 म  सुरगी शनिवार बाजार चौक के मुख्य मंच मा आयोजित कार्यक्रम म पहुंच के हमन ल कृतार्थ करिस. 2015 म खुमान साव जी ह साकेत सम्मान स्वीकार कर हमन ल गौरवान्वित कर दिस. वर्ष 2016 म 87 साल के साव जी के चयन संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार -2015  बर चयनित होय के खुशी म  साकेत साहित्य परिषद् सुरगी द्वारा नागरिक अभिनंदन करे गिस. 

    2015 अउ 2016 म सम्मानित होय के बेरा म साव जी ह किहिस कि -" मोला जनता से जउन सम्मान मिलथे उही मोर बर सबले बड़का सम्मान हरे. आज तक मेहा राज्य सम्मान अउ पद्म श्री बर आवेदन नइ करे हवँ न अवइया बेरा म करव! हां शासन ह खुद मोला सम्मान देना चाहत हे त दे सकथे. छत्तीसगढ़ के लाखो जनता के प्रेम ह मोर बर सबसे बड़े पुरस्कार हरे. "

   हमर छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अइसन महान कलाकार ह 9 जून 2019 के दिन 89 साल के उमर म ये दुनियां ल छोड़ के स्वर्गवासी होगे. श्रद्धेय साव जी ल उंकर 6 वीं पुण्यतिथि म सत् सत् नमन हे।

            

          ओमप्रकाश साहू "अँकुर "                सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)

अप्रकाशित शोध ग्रंथ छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता

 अप्रकाशित शोध ग्रंथ 

छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता 

(भाषा प्रयोग और संदर्भ के आधार पर)

-मुरारी लाल साव


अनेकार्थी शब्द  -जोर

 

अनेकार्थ  -समय,ताकत, धन दौलत,भरना,देना, बंधन, बल, सहयोग शक्ति हीन  प्रेम l

वाक्यों मे प्रयोग -

1 बेटी बर सब समान ला जोर दे l (दे, दे)

2 कतका जोर आबे?(समय )

3 जोर लगा उठ जही पथरा ह l(ताकत )

4 पैली म चाउंर जोर दे l(भरना )

5 जादा जोर झन दे टूट जही l (बल )

6 संग म खांध जोर के रेंगे ले मन हल्का हो जथे l(सहयोग )

7 तोर मया ला मोर मन जोर के राखे हे l (बंधन ) 

8 ऊपर डहर गेहे तौन कुछु ला जोर के नई लेगे हे l (धन  दौलत)

9 दिखे म पोठ भीतर ले कम जोर हे l (शक्तिहीन )

10 जोर -जोर से खांस बलगम बाहिर आही l(अधिक )

11 बेरा ला जोर के रखे आदत परगे हे l (पाबंद)

12 मुँह जोर के बैठे हे l (प्रेम)

            

        प्रस्तुति 

  मुरारी लाल साव

      कुम्हारी

मो 9826160613

अजवा खजूर के पेड़* (छत्तीसगढ़ी कहानी)

 .       *अजवा खजूर के पेड़* (छत्तीसगढ़ी कहानी)


                        - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


               देवव्रत सक्सेना एक दबंग व्यक्ति तो रहिबेच्च करिन फेर विमर्श अउ काव्य के क्षेत्र मं नामी-गिरामी साहित्यकार रहिन। नगर, प्रदेश ले लेके राष्ट्रीय स्तर मं ओकर ख्याति फैले रहिस। कोलकोता, मुंबई, दिल्ली, अमरावती, लखनऊ, भोपाल आदि नगर ले बेरा-बेरा मं बुलऊवा आवय अउ सक्सेना जी अतिथि के रूप मं भाग लेवँय। सक्सेना जी बहुत अकन पुस्तक के भूमिका घलो लिखे हें। बाहर के कई झिन साहित्यकार मन बिलासपुर के नाम आवय त पूछें- ' का ये हा देवब्रत सक्सेना वाला बिलासपुर हे? '

            सक्सेना जी के घर मं आये दिन साहित्यकार मन के महफिल जमे अउ विमर्श के साथ गीत-नवगीत, गज़ल के पाठ घलो होवय। सक्सेना जी ला हास्य रस के कविता अउ निबंध बहुत पसन्द रहिस अउ ओला सुनके अतका जोर ले माइक मं ठहाका लगावँय कि पड़ोस के नान-नान लइकन रोय लगें। माइक ले ओला विशेष लगाव रहिस! पड़ोसी मन ये सब ला एकर बर सहत रहिन कि एक-दू बार  विरोध करइया मन ला सक्सेना जी तमाचा घलो जड़ दे रहिस! एकदम बगल के पड़ोसी रामप्रसाद अपन घरवाली के सामने ओला रोज गारी देवय- ' साला, एकदम जड़मति हे! पड़ोसी के दुख-दर्द ले ओला कुछु मतलब नि हे! ' फेर ओकर गारी ला आन कोई नि सुन पाय। एक दिन सक्सेना जी के वाचमैन ओला सुन लिस अउ शिकायत कर दीस त सक्सेना जी घर घुस के रामप्रसाद ला दू थपरा पेलाय रहिस!

           एक बार सक्सेना जी बिमार पड़ गीन त पता चलिस कि खून के कमी हो गे हे। डाक्टर साहब ओला सुबेरे-शाम एक-एक चुकंदर खाय के सलाह दीस। ये गोठ-बात ला ओकर तीन बछर के नतनिन ध्यानपूर्वक सुनत रहिस। ओकर अम्मा यानी सक्सेना जी के लड़की बाबूजी के देखरेख करे बर पूणे ले बिलासपुर आय रहिस। सक्सेना जी ला थोरकुन आराम मिलिस त अस्पताल ले वापिस आय के बाद लोकल साहित्यकार मन के ताँता लग गे। संझाती बेरा सबो आवँय। गप-शप अउ चाय-नास्ता के बाद सबो शुभकामना देवँत चल देवँय। कोनो-कोनो ला सक्सेना जी ले जादा मया रहिस, त ओमन सुबे-संझा ड्यूटी देवँय अउ पेल के नास्ता-पानी करँय। सक्सेना जी मेर कुछु चीज के कमी तो रहिस निहीं। एक बेटा अउ एक बेटी। बेटा मल्टी नेशनल कम्पनी मं अमेरिका मं काम करत रहिस त बेटी पूणे के एक आईटी कम्पनी मं। सक्सेना जी घर मं अपन सुवारी संग रहँय। घर मं एक अंग्रेजी डाग घलो रहिस जेहर नाजो-नखरा मं पलत-बढ़त रहिस। ओकर महीना के खर्चा बीस हजार ले जादा रहिस। गेट मं वॉचमैन दू सिफ्ट मं ड्यूटी करँय ओमन के तनख्वाह दस-दस हजार रहिस। बिलासपुर मं दस हजार रूपिया के वाचमैन एक्को झिन नि रहिन। एकरे सेती ओकर वाचमैन के पावर घलो थोरकुन जादा रहिस! सक्सेना जी ला टीवी के समाचार, सिरियल, धार्मिक चैनल सब बकबास लगे। एकरे सेती टीवी नई देखँय अउ टाइमपास करे बर महफिल जमावँय। सुबेरे के बखत लिखना-पढ़ना करँय अउ संझाती बेरा लगभग रोजेच्च महफिल जमय। महफिल ला गुलजार करइया मन ला अउ का चाही?- बइठे बर एक हाॅल, बोले बर माइक अउ कहानी-कविता, खाये बर लड्डू-समोसा, पीये बर चाय-पानी अउ गारी देहे बर राजनीतिक नेता! राजनैतिक नेता मन बर सक्सेना जी आगी बर जाँय- एमन ओला एक्को नि सुहाय! ओकरे सेती महफिल गुलजार करइया साहित्यकार मन घलो पानी पी-पी के अपन कविता, कहानी व्यंग्य मं नेता मन ला गारी देना अपन कर्तव्य समझें! घर मं हप्ता मं एक दिन बरा-सोंहारी खवइया मन सक्सेना जी के बंगला आवँय त ओमन ला तिहार-बार कस लगय। एकरे सेती रोजेच् आवँय! बिमारी ले ठीक होय के बाद एक दिन संझा एक कवि अंग्रेजी मं एक हास्य कविता सुनाइस- ' इफ आई वेयर यूवर डाॅगी! ' खूब ताली परिस। कतकोन झिन नि समझ पाइन ओमन अउ जोर ले ताली बजाइन! सक्सेना जी खुश हो के कवि ला अपन गला मं पहिरे सोन-पालिस लगे चाँदी के चैन ला उतार के इनाम मं दे दीस! कई झिन के आँखी मं चमक आ गे जइसे देशी कुकुर मन के आँखी मं माँस के टुकड़ा देख के चमक आ जाथे! थोरकुन देर बाद सक्सेना जी के संग महफिल मं जमे साहित्यकार मन भजिया खावत रहिन त तीन बछर के नतनिन आइस अउ सक्सेना जी के प्लेट ला छिन के बोलिस- ' नानाजी! आपको भजिया नहीं खाना है! '

       ' तो क्या खाना है बेटी? '

      ' आपको सुबह-शाम नास्ते में एक-एक छछूंदर खाना है! इससे खून बढ़ता है! '

       सक्सेना जी के नतनिन ' चुकंदर ' अउ ' छछूंदर ' के भेद ला समझ नि पाइस! बिचारी नानेच्च-कुन तो रहिस ?

       सबो साहित्यकार हाँस परिन फेर तिवारी जी बहुत जोर ले हाँसिस अउ खाँसिस घलो! सुबेरे-संझा ड्यूटी देवइया मन मा तिवारी जी घलो रहिस। सक्सेना जी के गुस्सा सातवें आसमान मं चढ़ गे! मगर बोलिस कुछु निहीं। अपन नतनिन ला घर के भीतर भेज दीस अउ तिवारी जी ला अपन लक्ठा मं बुलाइस। ओ बिचारा समझिस कि कुछु इनाम मिलने वाला हवय!

        तिवारी जी जइसे लक्ठा मं पहुँचिस, त बड़का इनाम मिलिस। सक्सेना जी के हाथ घुमिस अउ तिवारी जी के दुनों गाल मं झन्नाटेदार थपरा परिस! दुनों गाल मं पाँचो अंगठी के लोर उबक गे! एती थपरा मारे के आवाज पड़ोसी मन घलो सुनिन ओती महफिल मं चारों कोती सन्नाटा छा गे! मानो अचानक भूत आ गे हो!

      सक्सेना जी के बहुत-सारा किस्सा-कहिनी हवय। का का ला सुनावँव? ओकर जबड़ लान मं एक ठिन खजूर के पेड़ हावय, जेला घर बनाय के समय ओकर पिताजी लगाय रहिस। खजूर पेड़ के ऊँचाई साठ फीट ले उपर रहिस। एहा अजवा खजूर के पेड़ रहिस। सक्सेना जी अक्सर ओकर गोठ-बात करत कहे कि अजवा खजूर के पेड़ केवल सउदी अरब के मदीना मं पाये जाथे। एकर फल बहुत मीठा अउ स्वादिष्ट होथे अउ एहा 200 बरस तक जीवित रहिथे। एकर फल पवित्र माने जाथे अउ प्रसाद के रूप मं बाँटे जाथे।

         सक्सेना जी के घर शहर के अन्तिम छोर मं रहिस। लगभग पचास बरस पहिली सक्सेना जी के पिताजी कौड़ी के मोल मं जमीन खरीदके एही बिरान जगा मं अपन घर बनाय रहिस। धीरे-धीरे नौ-दस परिवार अउ बस गे। उहाँ ड्रेनेज के कोई व्यवस्था नि रहिस त सिवरेज के पानी एक डबरीनुमा गड्डा मं इकट्ठा होवय। गंदा पानी के जमाव के कारण मच्छर-मक्खी के जबड़ समस्या रहिस अउ लोग-लइका, बुढ़ुवा-जवान सबो बार-बार बिमार परें। एक दिन मोहल्ला के सियान मन इकट्ठा हो के सक्सेना जी मेर भेंट करे आइन।

         ' कहिए क्या समस्या लेकर आये हैं? ' सक्सेना जी अपन डागी ला पुचकारत मीठ आवाज मं बोलिस। 

         ' समस्या तो आपो-मन जानत हॅव साहब! ' - रामप्रसाद डरत-डरत बोलिस। 

        ' अरे! खुल के बात करव। मोला का मालूम कि का समस्या आ गे हे ? '

       ' सक्सेना जी, ड्रेनेज के बेवस्था नगर निगम नि करत हे। ओमन के कहना हे कि ये एरिया ओकर क्षेत्र ले 300 फीट दूरिहा हे। तीन सौ फीट के अंडरग्राउंड नाली बना के सिवरेज के पानी ला नगर-निगम के नाली मं जोड़े जा सकत हे। लगभग एक लाख रूपिया खर्चा आही। पचास हजार हमन इकट्ठा कर चुके हन। पचास हजार आप दे देवा। ' - रामप्रसाद बोलिस। 

        ' रामप्रसाद मैं तुमन ला फूटी कौड़ी नि देवँव! पीठ पीछे मं मोर बुराई करथव अउ अभी भीख माँगे बर आ गे हॅव! नमस्कार। '- सक्सेना जी अपन तेवर दिखाइस अउ घर के भीतर जा के दरवाजा ला धड़ाम ले बन्द कर  दीस। मोहल्ला के सियान मन ठगे कस रह गिन! रामप्रसाद ला सक्सेना जी के थपरा सुरता आ गे। डेढ़ साल पहिली घर घुस के रामप्रसाद ला दू-थपरा  सक्सेना जी पेलाय रहिस!

       थोरकुन देर बाद रामप्रसाद के घर मं सबो सियान बइठ के चाय पियत-पियत गोठ-बात करत रहिन। विषय सक्सेना जी ही रहिस। 

          ओही समे पाँचवी कक्षा मं पढ़इया रामप्रसाद के लइका घर के भीतर ले निकलके आइस अउ एक दोहा के अर्थ मासूमियत ले पूछिस-


     बड़ा हुआ तो क्या  हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

     पंथिन को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।


        पापा बोलिस- ' जेला हमन अभी तक समझ नि पावत रहेंन ओला तँय आज समझा देहे बेटा! अब हमन सब समझ गे हन ! सक्सेना जी अजवा खजूर कस बड़का पेड़ हे। ये पेड़ के फल बड़ स्वादिष्ट होथे अउ अड़बड़ पवित्र माने जाथे। एकरे सेती प्रसाद के रूप मं घलो दिये जाथे। फेर खजूर के पेड़ कोनो पथिक ला न तो छाँव दे सके न ही फल! अइसन पेड़ का काम के बेटा! '

                        समाप्त 

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Chhattigarhi story written by


          डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 


मो- 98263 40331

छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द भारी

 छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द 

     भारी 

अर्थ - वजनी, बहुत बड़ा,भरपूर, अजीरन, गर्भवती, मोटापा,  कोंख,व्यर्थ l 

वाक्यों मे प्रयोग 

1  दरवाजा भारी हे l (बहुत बड़ा )

2 भारी समान ला बोहे हे l (वजनदार )

3 सुरूर सुरूर हवा चलिस भारी आनंद आगे जी l (भरपूर )

4 बहू के पेट भारी है l(गर्भवती )

5 पेट भारी होगे l अब नई खा सकय l(अजीरन )

6 नेता मन के गोठ भारी हे होवत कुछु नई हे l (व्यर्थ )

7  देहँ भारी  हे का बूता करही? l(मोटापा )

8  पाँव भारी हे, बहुत अगोरीस बिचारी ह l( कोंख मे )


छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता 

भाषा प्रयोग और संदर्भ के आधार पर 

अप्रकाशित शोध ग्रंथ से 

 मुरारी लाल साव 

 कुम्हारी 

मो 9826160613

छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द पार

 छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द 

     पार 

अर्थ - तट, किनारा, मेड़पार, तरिया पार, सामाजिक पार 

मुक्ति, सफलता, मोक्ष,  तर्ज ,अधिकार आदि l

वाक्यों मे प्रयोग 

1नदी के ओ पार बड़े मकान हे l (उस तरफ )

2 पानी के धार पार ले बाहिर बोहावत हे l(किनारा )

2 तोर पार म कतका झन महिला पुरुष हे l (इकाई समाज का एक अंग )

3 भगवान के कथा सुन तोर पार लग़ जही l (मुक्ति )

4 देवारी पार के बाजा बजा दे बजनिया l (तर्ज )

5 सदकरम करे ले नइया पार होही l (मोक्ष )

7 बिहाव निपटीस पार लगिस l

(झंझट ले मुक्त )

8 धान पान सकलागे अउ बेचागे घलो  पार निकलगे l

(सफल )

9 खेत के पार म बइठ  के बासी खाले भाई l (मेड़ )

10 अपराधी मन के तड़ी पार 

पुलिस मन लगाथे l (निकाला )

11 गंगा मईया के पार ला कोनो नई जान सकीस l ( महिमा)

12 नेता मन के पार ला कोनो पा नई सकय l (पहुँच )

13 राजा के पार अलग होथे मंत्री के पार अलग l (अधिकार)

14 भगवान तोर बेड़ा पार करही l( सदगति )



छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता अप्रकाशित शोध ग्रंथ ले 

मुरारी लाल साव 

कुम्हारी 

मो 9826160613

ठउंका अनेकार्थी नहीं शब्द शक्ति के शब्द

 ठउंका  अनेकार्थी नहीं 

शब्द शक्ति के  शब्द 


मोला ठउंका बिचार करे बर कही देव ,कमलेश बाबू l लिखे बर शुरू करेंव ठउंका के बेर दूध वाले आगे l ले हिसाब कर दे महीना पूरगे सर जी कहत l चुकता करेंवl l ठउंका के बैर बिजली गोल होगेl सौ के जघा पांच सौ देवा गे l बिचार होते रहिस नानकुन बाबू मोर मोबाइल ला ठउंका झटक लीस l एती नल म पानी आगे मोला भरना l पानी भरते रहेंव ठउंका   

बाल्टी खसल गे नई ते पिसान म गिर जाये रहितिस पानी l भीतरी ले मास्टरीन चिल्ला वत बोम्बियावत निकलीस l ठउंका  चिमटा अन्ते फेंकाये रहिस l अत लंगहा टुरा ला मारे रहितिस l चाय म नून ला डार दे रहिस l मन भर हाँसेव ठउंका  l बने होइस मोर बर कभू तात पानी मढ़ा के नई दीस l बपुरी साली कुमारी ठउंका तीर म नई आतिस तो मरे बिहान रहीस मोर l भाँटा खाबे भांटो कहिके भूरता बनाके खवा देथे कभू कभू l

पड़ोसिन बिचारी धुरिहा ले बने हाँस ले बने गोठियाले कहिके आगी अमरा के चल देथे l

जी म आगी  मन म आगी  ठउंका  अभिताब बच्चन के सन्देश सुने ला मिल जथे - ककरो मोबाइल उठा साइबर अपराधी हो सकता है -- मोबाइल उठाना बंद कर देंव l

भाखा म ठउंका कुछ लिखा जाथे l अनेक अर्थ झन लगावव l शब्द शक्ति  के ठउंका उदाहरण आय l


मुरारीलाल साव

अहिंसा* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा) - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .                  *अहिंसा* (छत्तीसगढ़ी लघुकथा)


                         - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


          स्वामी कृपानंद के प्रवचन रात्रि साढे सात बजे ले चलत रहिस। विषय रहिस- ' अहिंसा परमो धर्मः। ' ओमन सभा ला संबोधित करत सार-रूप मं कहिन कि छोटे ले छोटे प्राणी उपर घलो दया के भावना रखना चाही। ओकर हत्या नि करना चाही, चाहे वह चाँटी जइसन नानकुन जीव ही क्यों न हो। गौ हत्या तो महापाप हवय!

        स्वामी जी व्याख्यान देवत अपन खुले भुजा मन ला बार-बार हथेली ले थपथपावत रहिन, बल्कि ये कहना जादा ठीक होही कि चट्-चट् मारत रहिन! दाई मन अपन लइकामन के पीठ ला थपथपावत रहिन, मगर मया-दुलार ले- आहिस्ता-आहिस्ता, चट्-चट् मारत नि रहिन! ओती स्वामी जी के देखा-देखी कुछ भक्त मन घलो अपन खुले बाँह ला चट्-चट् मारत रहिन! थोरकुन देर बाद प्रश्नकाल के समे ठीक पंखा के सामने बइठे एक भक्त श्रोता सवाल करिस- ' महाराज, प्रवचन देहे के समे आपमन अपन भुजा मन ला बार-बार काबर थपथपावत रहेव ? '

       स्वामी जी मुस्कुरावत तत्क्षण जवाब दीस- ' आपके इहाँ बहुत मच्छर हे। वोही ला भगावत रहेंव! ' -ये सुनके हाॅल मं हाँसी के लहर दउड़ गे। दरअसल वोही भक्त समझत रहिस कि ये हा घलो भक्ति करे के कोई विधि हवय!

          एकर बाद एक अउ श्रोता सवाल करिस- ' गाँधीजी कहे रहिन कि कोई हमार एक गाल मं झापड़ मारही त हमन ला अपन दूसरा गाल दे देना चाही? का एहा अहिंसा माने जाही? '

       स्वामी जी उत्तर दीस- ' अइसन न गाँधी कहे रहिन न ही शास्त्र मन मा लिखे हवय। ' 

          ' त का सुभाष चंद्र बोस के बात सही हे कि कोनो एक गाल मं झापड़ मारही त ओकर दुनों गाल मं झापड़ मारना चाही? ' - तीसर श्रोता सवाल करिस। 

     ' सुभाष बाबू अइसन बिलकुल नि कहे हें! बल्कि ये बात कहे रहिन कि .... तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा! .... मोला ये  समझ मं नि आवत हे कि हर बात बर आपमन दूसर के मुँहु काबर ताकत रहिथॅव? आपमन स्वयं चिन्तन-मनन अउ संयम के मदद ले गाँधी तो निहीं, फेर नेहरू, सुभाष और भगत तो बनिच् सकत हॅव। ओमन घलो आपेमन जइसे हाड़-मांस के इंसान रहिन। .... ओमन कइसन तरह ले अपन जीवन ला जीये रहिन?- एला आपमन ला पढ़ना चाही। मँय अपन प्रवचन मं जउन बात कहे हौं, ओकर सार तत्व ला समझे के आज जरूरत हे। आपमन चिन्तन नइ करव बल्कि चिन्ता करथव अउ दूसर-मन के सुक्ति मं ओकर हल ढूढ़थॅव! अहिंसा उपर संस्कृत मं एक श्लोक हे-

' अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव चः, अहिंसा परम् तपः, अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते। '

      ' ये श्लोक के अर्थ हे कि अहिंसा मनुष्य के परम् धरम हवय, फेर धरम के रक्षा करे बर हिंसा करना ओकर ले घलो श्रेष्ठ हे! '

          चार लइका जउन चौथी-पाँचवीं के छात्र रहिन होहीं- ओमन ला स्वामी जी के बड़े-बड़े बात समझ मं नि आवत रहिस। ओमन सबले आघू दर्री मं बइठे आपस मं धीरे-धीर गोठ-बात करत रहिन।

         ' यदि कोनो मच्छर हमन ला काट लिही त ओला मार देना चाही कि छोड़ देना चाही? '- एक लइका सवाल करिस। 

         ' छोड़ देना चाही। एहा अहिंसा होही। '- दूसर जवाब दीस।

        ' मार देना चाही। एहा हिंसा नि माने जाही। '- तीसर लइका बोलिस। 

        ' प्रश्नोत्तरी खत्म होय के बाद स्वामी जी के बाँही ला देखे चलव। ओमन अपन बाँही ला चट्-चट् मारत रहिन। एकर सही जवाब मिल जाही! '- चौथा लइका बोलिस। 

       प्रश्नोत्तरी समाप्त होय के तुरते बाद चारों लइका-मन कुछु-काँही करके स्वामी जी के आसन के लकठा मं पहुँच गइन। ओमन देखिन कि ऊँकर बाँही मं चार-पाँच मरे मच्छर-मन के संग थोर-बहुत खून चिपके हे अउ कुछ मरे मच्छर आसन के लकठा मं गिरे-परे हे! स्वामी जी मच्छर ला भगावत नि रहिन बल्कि काटने वाला मच्छर-मन ला हथेली ले चट्-चट् मारत रहिन!

          आज लइकामन अपन मन मं उठत सवाल के हल स्वंय ढूढ़ ले रहिन। 

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Short story written by-


           डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 


मो-  98263 40331

छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द कोरा

 छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द 

     कोरा 

अर्थ -कोंख, निः संतान, बिना लिखा, बिल, बेदाग, सफ़ेद झूठ,माटी 

वाक्यों मे प्रयोग 

1  बहू तोर कोरा म लइका खेले l( कोंख)

2 मुसवा  कोरा  ले डरे हे धान के कोठी म l( बिल )

3 नोनी के कोरा सुन्ना हे l (निःसंतान )

4 कागज कोरा हे l (बिना लिखा )

5 जिनगी कोरा बितगे l (पुण्य काम नहीं हुआ )

6  धरती दाई तोर कोरा म खेले कूद के बड़े होएन l ( माटी मे)

7 जज कोरा फैसला सुना के बरी कर दीस l (बेदाग )

8 भगवान नारायण अपन भक्त प्रहलाद ला अपन कोरा म बैठार लीस l (शरण )

9 महतारी अपन लइका ला कोरा म लुकाथे  l  (गोदी ) 

10 टैंगिया म मारे कहाँ हे? मारे हे कहत हस l कोरा झूठ हे l

(सफ़ेद झूठ)


छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता 

भाषा प्रयोग और संदर्भ के आधार पर

अप्रकाशित शोध ग्रंथ ले

मुरारी लाल साव

कुम्हारी

मो 9826160613

छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द फूल

 छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द 

    फूल  

मुहावरे मे प्रचलित - फूल लगना, फूल गिरना, फूल आना, फूल चढ़ाना, फूल मारना, फूल सुंघाना, फूल फेंकना फूल सूंघना, फूल  टोरना,  फूल परना,फूल देना,  फूल कुचरना (गौरा पूजा )आदि l


अर्थ - पुष्प, गर्भपात, गर्भाधान, कोढ रोग,श्रद्धांजलि, पूजा निमित्त, प्रेम दिखाना, पसंद, अस (हड्डी ) बिनना, नवजात शिशु, भाव समर्पण, अभिनंदन, स्वागत, बच्चे क़ी किलकारी, आदि 

वाक्यों मे प्रयोग 

प्रसंग, संदर्भ मे अनेकार्थ

1 चलो देवता म फूल चघाबो l 

     (श्रद्धा के भाव )

2 हमर गाँव के मुखिया चल बसीस l फूल चढ़ा के आ जातेंन l ( श्रद्धांजलि )

3 गौरा पूजा होही, फूल कुचर के गौरा इशर देव ला मढ़ाही l (स्थापना पूजा )

4 भगवान राम के लंका जीते के समय देवता मन फूल बरसाइस l(हर्ष,अत्याचारी के अंत )

5 बहारो फूल बरसाओ l

  (मजा )

6  मोर हाथ म फूल हे तोरेच बर लाने हँव देये बर l (मया)

7 संत महात्मा के चरण म फूल चढ़ाना चाही l (विनय भाव)

8 श्मशान घाट ले फूल बिन के ले आव l (अस (हड्डी))

9 घर म रहिथे अकेल्ला फूल परगे हे l (कोढ रोग )

10  टुरी ला फूल सुंघाके लेगे l

(( सम्मोहन)

11  पार्षद के घर फूल खिल गे l  (बच्चा हुआ )

12 घेरी भेरी फूल मार के झन बलाये कर l(प्रेम का इजहार)

13 बहू बहुत खुश हे फूल खिलही अब l (गर्भवती)

14 बहू के फूल गिरगे l(गर्भपात)

15 घर सदा फूल ले भरे रहय l

(संतान)

16  चुनाव म जीत के आइस सब फूल माला दीस l (स्वागत)

17   आज बने फूल असन दिखत हे नोनी  ह l(खुश )

18 देख देख के फूल टोर के

ले आथे l (सुन्दर लड़की )

19 समाज के नजर ले गिर गे हे l गिरे फूल ला झन उठा l

( पतित, मनहूस) 

20 हमर जिनगी म फूल नई मिलिस काँटा काँटा मिलिस l

(आनंद, ख़ुशी )


छत्तीसगढ़ी मे अनेकार्थकता

भाषा प्रयोग और संदर्भ के आधार पर

अप्रकाशित  शोध ग्रंथ ले

मुरारी लाल साव

कुम्हारी

मो 9826160613

लघुकथा) ससुरार

 (लघुकथा)


ससुरार

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ममा गाँव जाये बर तइयार होके जइसे फटफटी ला गली मा निकाले पाये रहेंव ठक ले एक झन रिश्ता मा जीजा मिलगे। मोला देखिच तहाँ ले मुस्कावत बोलिच--

" बन ठन के कहाँ ससुरार जावत हच का जी?" 

 "ससुरार के नाम मत ले जीजा "-- मैं कहेंव।

 "वाह! ससुरार के नाम काबर नहीं-- ससुरार हा तो हम दमाँद मन बर तीरथ धाम बरोबर होथे जी।"

"होवत होही ककरो बर।मोर बर नोहय।मैं तो उहाँ जाबे नइ करवँ।"

"अइसे काबर?"

"मोर ससुर ले रार होगे हे।"

"का के सेती?"

" देख ना जीजा मोर बाई ला डिलीवरी बर अस्पताल में भर्ती करे रहेंव। चालीस-पचास हजार रुपिया लगगे। ससुर हा आवय --देखय तहाँ ले मीठ मीठ सुल्हार के चल देवय फेर पाँच पइसा के सहायता नइ करिस।"

"अच्छा ये बात हे।वो भला काबर रुपिया पइसा देही। बाई तोर,बच्चा तोर- जिम्मेदारी तोर।"

"वाह मोर बाई हा वोकर बेटी आय ना "- बोल के रेंग देंव।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद,छत्तीसगढ़

खुमान-संगीत"

 "छत्तीसगढ़ की सरकार, खुमान-संगीत को उसी तरह से स्थापित करने की पहल करे  जैसे कि बंगाल में रवींद्र-संगीत को स्थापित किया गया"


"खुमान-संगीत"


यह शीर्षक  ठीक वैसा ही है जैसे रवींद्र-संगीत। यह बात और है कि बंगाल ने रवींद्र-संगीत को मान्यता प्रदान कर उसे अपनी पहचान बना ली। रवींद्र-संगीत को स्थापित कर दिया। इसी तरह से असम ने भूपेन हजारिका को अपनी पहचान बना लिया किन्तु छत्तीसगढ़ ने खुमान-संगीत को अपनी पहचान बनाने के लिए मान्यता प्रदान नहीं की है और स्थापित भी नहीं किया है। यह कहने से भला कौन रोक सकता है कि  खुमान लाल साव और छत्तीसगढ़ का संगीत एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं फिर "खुमान-संगीत" कहने में भी कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। 


बात सन् 1999 की है जब मैं और मेरे अनुज हेमन्त निगम ने छत्तीसगढ़ी के दो ऑडियो कैसेट्स रिकॉर्ड कराने का विचार करके लक्ष्मण मस्तुरिया जी से चर्चा की थी। इन कैसेट्स के नाम थे "मया मंजरी" और "छत्तीसगढ़ के माटी"। संगीत देने के लिए हमने खुमान लाल साव जी को तैयार किया था। गायक स्वर लक्ष्मण मस्तुरिया, कविता वासनिक और महादेव हिरवानी के थे। दोनों कैसेट्स के लिए। इसकी रिहर्सल कविता विवेक वासनिक के राजनांदगाँव निवास में हुई थी। सारे कलाकारों के साथ हम जबलपुर पहुँचे थे। जबलपुर में विजय मिश्रा जी ने सभी के रुकने और भोजन की व्यवस्था कर दी थी। उन्हीं के निवास में रिहर्सल के दौरान लक्ष्मण मस्तुरिया जी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के किसी भी संगीतकार के संगीत में खुमान के संगीत की झलक दिखती है। खुमान का संगीत छत्तीसगढ़ के जनमानस के हृदय में इस प्रकार से छा गया है कि नया राज्य बनने पर इसे बंगाल के रवींद्र संगीत की तरह खुमान संगीत के नाम से स्थापित कर देना चाहिए। इस प्रकार से खुमान-संगीत की परिकल्पना का श्रेय लक्ष्मण मस्तुरिया जी को जाता है। 


छत्तीसगढ़ का लोक संगीत बहुत पहले अत्यन्त ही मधुर था। इसी कारण वाचिक परम्परा में इसके लोक गीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अंतरित होते हुए पल्लवित और पुष्पित होते रहे। फिर बम्बइया प्रभाव का दीमक इन्हें कुतरता गया, कुतरता गया और एक समय ऐसा भी आया जब छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की मौलिकता लगभग समाप्त होने लगी। लोक गीत अपभ्रंश होने लगे, इनका माधुर्य गुम सा गया। ऐसे समय में ग्राम बघेरा के दाऊ रामचंद्र देशमुख ने इन लोकगीतों के माधुर्य को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया और चंदैनी गोंदा की स्थापना की। लोक गीतों के काव्य पक्ष को सँवारने का दायित्व कवि-द्वय रविशंकर शुक्ल और लक्ष्मण मस्तुरिया को सौंपा गया और लोक संगीत में प्राण फूँकने का दायित्व खुमान लाल साव को दिया गया। इन्होंने छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव में जाकर लोक गायकों की तलाश की, उनसे पारंपरिक लोक गीत प्राप्त किये और उनकी धुनें प्राप्त की और उसे परिष्कृत में जुट गए। यह कार्य किसी साधना से कम नहीं था। यह साधना सफलीभूत हुई और छत्तीसगढ़ के लोक गीत नए कलेवर में पहले से भी ज्यादा मधुर हो गए। जिन्होंने चंदैनी गोंदा के मंचन को देखा है उन्हें ज्ञात है कि इस आयोजन में कैसे आस पास के सारे गाँव उमड़ कर आते थे। अस्सी हजार से एक लाख दर्शकों से आयोजन स्थल खचाखच भरा होता था। दर्शकों की यह भीड़ कार्यक्रम की समाप्ति तक मंत्र मुग्ध होकर बँधी रहती थी। 


चंदैनी गोंदा कोई नाचा गम्मत जैसा कार्यक्रम नहीं था यह छत्तीसगढ़ के किसान की जीवन यात्रा की सांगीतिक प्रस्तुति थी और इसके संगीतकार थे, खुमान लाल साव। खुमान लाल साव ने न केवल अपभ्रंश होते लोक गीतों में प्राण फूँके बल्कि उस दौर के अधिकांश कवियों के गीतों को संगीतबद्ध करके ऐसा जादू डाल दिया कि गीतों और लोक गीतों के बीच अंतर खोज पाना लगभग असंभव सा हो गया। खुमानलाल साव के संगीतबद्ध गीत अमर हो गए और आज लगभग पचास वर्षों के बाद भी उसी आदर और सम्मान के साथ सुने जा रहे हैं। उन्होंने पारम्परिक वाद्ययंत्रों का ही प्रयोग किया। उनकी टीम में हारमोनियम वादक स्वयं थे।  बाँसुरी वादक, संतोष टांक, बेंजो वादक गिरिजा शंकर सिन्हा, मोहरी वादक पंचराम देवदास, तबला वादक महेश ठाकुर थे। ढोलक, मंजीरा, माँदर जैसे वाद्ययंत्र भी उनकी टीम में शामिल थे। ग्राम बघेरा में जाकर चंदैनी गोंदा की रिहर्सल देखने का भी सौभाग्य मिला है। प्रारंभिक दौर के गायक लक्ष्मण मस्तुरिया, भैयालाल हेडाऊ, रविशंकर शुक्ल, केदार यादव और गायिका - कविता (हिरकने) वासनिक, अनुराग ठाकुर, संतोष झाँझी, संतोष चौबे, लीना महापात्र, साधना यादव, किस्मत बाई थे। मंच संचालन सुरेश देशमुख किया करते थे। 

खुमान लाल साव ने जिन कवियों और गीतकारों की रचनाओं को संगीतबद्ध किया उनमें से प्रमुख नाम कोदूराम "दलित", लक्ष्मण मस्तुरिया, रविशंकर शुक्ल, राम रतन सारथी, प्यारेलाल गुप्त,भगवती सेन, हेमनाथ यदु, पवन दीवान, चतुर्भुज देवांगन, रामकैलाश तिवारी, रामेश्वर वैष्णव, विनय पाठक, फूलचंद लाल श्रीवास्तव, ब्रजेन्द्र ठाकुर, बद्री विशाल परमानंद आदि कवियों के हैं। 

दाऊ रामचंद्र देशमुख के स्वप्न को साकार करते हुए खुमान लाल साव ने अपभ्रंश होते जिन लोकगीतों सँवारा है उनमें से प्रमुख लोक गीत हैं  - सोहर, लोरी, बिहाव गीत, भड़ौनी, करमा, ददरिया, माता सेवा, गौरा गीत, भोजली, सुआ, राउत नाचा, पंथी, देवार गीत, बसदेव गीत, फाग, संस्कार गीत आदि।


संयोग श्रृंगार, वियोग श्रृंगार, करुण, वीर, आदि रस


संयोग श्रृंगार - 

तोर संग राम राम के बेरा, भेंट होगे संगवारी, मुस्का के जोहार ले ले(लक्ष्मण मस्तुरिया)

झन आंजबे टूरी आँखी मा काजर बिन बरसे रेंग देही करिया बादर छूट जाही ओ परान(लोकगीत)

मोर खेती खार रुमझुम (लक्ष्मण मस्तुरिया)

नाक बर नथनी अउ पैरी मोरे पाँव बर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

अब मोला जान दे संगवारी (रामेश्वर वैष्णव)

बखरी के तूमा नार बरोबर मन झूमे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चंदा के टिकुली चंदैनी के फूल, श्रृंगार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर खोपा मा फुँदरा रइहौं बन के(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोला मैके देखे के साध धनी मोर बर लुगरा ले दे हो

(राम रतन सारथी),

नैना लहर लागे श्रृंगार (फूलचंद लाल श्रीवास्तव)

तोर बाली हे उमरिया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोला देखे रहेंव रे, तोला देखे रहेंव गा, धमनी के हाट मा बोइर तरी (द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र)

मोर अँगना मा कोन ठाढ़े हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मजा हे मजा आजा मोर मोहना(लक्ष्मण मस्तुरिया)


विरह गीत - 

अन्ताज पाय रहेंव आँखी मिलाय रहेंव मया बान धरे रहेंव तबभे चिरई उड़ गे। (विनय पाठक)

झिलमिल दिया बुता देबे (प्यारेलाल गुप्त)

परगे किनारी मा चिन्हारी ये लुगरा तोर मन के नोहय

वा रे मोर पँड़की मैना, तोर कजरेरी नैना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कइसे दीखथे आज उदास कजरेरी मोर मैना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कोन सुर बाजँव मँय तो घुनही बंसुरिया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये(लक्ष्मण मस्तुरिया)

धनी बिन जग लागे सुन्ना रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

काबर समाए रे मोर बैरी नैना मा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

संगी के मया जुलुम होगे रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

सावन आगे आबे आबे आबे संगी मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर कुरिया सुन्ना रे मितवा तोरे बिना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर मया मोर बर जहर जुल्मी होगे लहरी यार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये विरह में संदेह (लक्ष्मण मस्तुरिया)

परगे किनारी मा चिन्हारी ये लुगरा तोर मन के नोहय (बद्री विशाल परमानंद)


कृषि और मौसम के गीत - 


चल चल गा किसान "बोए चली धान" असाढ़ आगे गा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चलो जाबो रे भाई, जुरमिल के सबो झन करबो "निंदाई"

(रामकैलाश तिवारी)

भैया गा किसान हो जा तैयार, मुड़ मा पागा कान मा चोंगी धर ले हँसिया अउ डोरी ना, चल चल गा भैया "लुए चली धान" (लक्ष्मण मस्तुरिया)

छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी(कोदूराम दलित)

आज दउँरी मा बइला मन घूमत हे


मौसम - 

आगी अंगरा बरोबर घाम बरसत हे "जेठ बैसाख" (लक्ष्मण मस्तुरिया)

"सावन" बदरिया घिर आगे (लक्ष्मण मस्तुरिया)

फागुन में होली के त्यौहार की धूम होती है। यह हर्ष और उल्लास का पर्व है। मस्ती का पर्व है। बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है। ढोल, नँगाड़ा, माँदर की थाप में सबके हृदय ताल मिलाने लगते हैं और कदम स्वस्फूर्त हो थिरकने लगते हैं। रंगों का यह त्यौहार संगीत के बिना नहीं मनाया जा सकता है। संगीतकार खुमान लाल साव के कौशल का प्रमाण देता यह गीत भला कौन भुला सकता है ?

मन डोले रे "माघ फगुनवा" (लक्ष्मण मस्तुरिया)


हिन्दी माह की बारहों पूर्णिमा में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्वों का वर्णन एक ही गीत में हुआ है। जितना सुंदर यह गीत रचा गया है, उतनी ही सुंदरता से इसे संगीतबद्ध भी किया गया ही। 

फिटिक अंजोरी निर्मल छइयां गली गली बगराये ओ पुन्नी के चंदा मोर गाँव मा(लक्ष्मण मस्तुरिया)


आज दौरी मा बइला मन घूमथें वर्तमान व्यवस्था पर प्रतीकात्मक गीत है। 


प्रकृति चित्रण - 

शीर्षक गीत -देखो फुलगे चंदैनी गोंदा फूलगे (रविशंकर शुक्ल)

धरती के अँगना मा चंदैनी गोंदा फुलगे

सावन आगे (लक्ष्मण मस्तुरिया)


चल सहर जातेन रे भाई, गाँव ला छोड़ के शहर जातेन (हेमनाथ यदु)

चलो बहिनी जाबो अमरैया मा खेले बर घरघुंदिया (मुकुंद कौशल)


आगे सुराज के दिन रे संगी, बाँध ले पागा साज ले बण्डी करमा गीत गा के आजा रे झूम जा संगी मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चन्दा बनके जीबो हम, सुरुज बनके बरबो हम


(दो कवियों के गीत का सुंदर कॉम्बिनेशन

छोड़ के गँवई शहर डहर झन जा झन जा संगा रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चल शहर जाबो संगी, गाँव ला छोड़ के शहर जाबो हेमनाथ यदु)


संस्कृति - 

ओ काँटा खूँटी के बोवैया, बने बने के नठैया दया मया ले जा रे मोर गाँव ले(लक्ष्मण मस्तुरिया)


लोक गीत 

घानी मुनी घोर दे पानी दमोर दे (रविशंकर शुक्ल)

बसदेव गीत सुन संगवारी मोर मितान (भगवती सेन)

चौरा मा गोंदा रसिया मोर बारी मा पताल(लक्ष्मण मस्तुरिया)

सुवा गीत -

तरी हरी ना ना रे ना ना मोर सुवना(लक्ष्मण मस्तुरिया)

बेंदरा नाचा - 

नाच नचनी रे झूम झूम के झमाझम(लक्ष्मण मस्तुरिया)

कहाँ रे हरदी तोर जनावन (बिहाव गीत)

दड़बड़ दड़बड़ आइन बरतिया (बिहाव भड़ौनी)

रूप धरे मोहनी मोहथे संसार (चंदैनी गीत)

सोहर - 

द्वार बनाओ बधाई निछावर बाँटन निछावर बाँटन हो

ललना लुटावहु रतन भंडार चंदैनी गोंदा अवतरे हो

लागे झन कखरो नजर रे दुलरू बेटा

लोरी - सुत जा ओ बेटी मोर, झन रो दुलौरिन मोर (वात्सल्य)

गौरा गीत, पंथी गीत, जस गीत, ददरिया, करमा, सोहर, सुवा, राउत नाचा के दोहा, बसदेव गीत, 


माटी की महिमा - 

तोर धरती तोर माटी (पवन दीवान)

मोर भारत भुइयाँ धरमधाम हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मँय बंदत हँव दिन रात मोर धरती मैया जय होवै तोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मँय छत्तीसगढ़िया हँव गा(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर भारत भुइयाँ धरम धाम हे(लक्ष्मण मस्तुरिया)


आव्हान गीत - 

मोर संग चलव रे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

मोर राजा दुलरुवा बेटा, तँय नागरिहा बन जाबे(लक्ष्मण मस्तुरिया)

हम करतब कारण मर जाबो रे, फेर के लेबो संग्राम(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चम चम चमके मा बने नही अब कड़क के बरसे बर परिही (लक्ष्मण मस्तुरिया)

तोर धरती तोर माटी रे भैया (लक्ष्मण मस्तुरिया)

चल जोही जुरमिल कमाबो(लक्ष्मण मस्तुरिया)

चलो जिनगी ला जगाबो (लक्ष्मण मस्तुरिया)

भजन - 

अहो मन भजो गणपति गणराज (लक्ष्मण मस्तुरिया)

जय हो जय सरसती माई(लक्ष्मण मस्तुरिया)

जय हो बमलेसरी मैया(लक्ष्मण मस्तुरिया)

प्राण तर जाई रामा, चोला तर जाई

जीवन दर्शन - 

माटी होही तोर चोला रे संगी (चतुर्भुज देवांगन),

दिया के बाती ह कहिथे (ब्रजेन्द्र ठाकुर)

हम तोरे संगवारी कबीरा हो(लक्ष्मण मस्तुरिया)


मस्ती - 

मोला जावन दे न रे अलबेला मोर(लक्ष्मण मस्तुरिया)

बोकबाय देखे,हाले न डोले कुछु नइ बोलय टूरा अनचिन्हार (लक्ष्मण मस्तुरिया)

मंगनी मा मांगे मया नइ मिले (लक्ष्मण मस्तुरिया)

लहर मारे लहर बुंदिया (लक्ष्मण मस्तुरिया)

हमका घेरी बेरी घूर घूर निहारे ओ बलमा पान ठेला वाला(लक्ष्मण मस्तुरिया)

हर चांदी हर चांदी डोकरा रोवय मनावै डोकरी का या

पता ले जा रे, पता दे जा रे, गाड़ीवाला(लक्ष्मण मस्तुरिया)

छत्तीसगढ़ के माटी, एक अद्भुत रचना। 


हिन्दी फिल्मों के संगीत और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के अन्तर्सम्बन्धों में एक विचित्र सा विरोधाभास देखने में आता है। हिन्दी फिल्मों का निर्माण तीस के दशक में प्रारम्भ हुआ। चालीस के दशक तक इन फिल्मों का संगीत एक प्रकार से अनगढ़ सा ही रहा। वहीं इन दशकों में छत्तीसगढ़ी लोक संगीत शिखर पर था। पचास और साठ के दशकों में हिंदी फिल्मों का संगीत परिष्कृत होकर अत्यंत ही लोकप्रिय हो गया किन्तु छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में फिल्मी गीतों के कारण विकृतियाँ आने लगी थी। खासकर नाचा-गम्मतों में जिन लोक गीतों का प्रयोग होता था उनमें बम्बइया प्रभाव के लटके झटके के कारण गिरावट आने लगी थी। पचास और साथ के दशक में छत्तीसगढ़ी लोकगीत विकृति की ओर बढ़ने लगे थे। फिर आया सत्तर का दशक। इस दशक में फ़िल्म संगीत पर पाश्चात्य संगीत का प्रभाव पड़ने लगा था। पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का भी प्रयोग बढ़ गया था। संगीत का शोर तो बढ़ा किन्तु गुणवत्ता में एकदम से गिरावट आ गई। ऐसा भी नहीं कि समूचा फ़िल्म संगीत ही स्तरहीन हो गया हो। कुछ संगीतकारों ने पाश्चात्य संगीत का अंधानुकरण नहीं किया और संगीत की मधुरता बनाये रखी। सत्तर का दशक छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के लिए प्राणवायु लेकर आया । इसी दशक में दाऊ राम चन्द्र देखमुख के चंदैनी गोंदा ने जन्म लिया। उनके स्वप्न को साकार करते हुए खुमान लाल साव ने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के निष्प्राण होते तन पर अमृत बूँदें  बरसा कर उसे पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। इन अमृत बूंदों ने सत्तर के दशक के संगीत को ऐसा अमरत्व प्रदान कर दिया कि यह सदियों बाद भी सुना जाता रहेगा। 


छत्तीसगढ़ में छोटे बड़े बहुत से मंच हैं और विभिन्न  गीतकारों के गीतों के संगीतबद्ध करके गीत बना रहे हैं । अधिकांश संगीतकारों के संगीत में खुमान लाल साव के संगीत की झलक दिख ही जाती है। बिरले ही संगीतकार हैं जिनके संगीत में कुछ मौलिकता दिखाई दे जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि खुमान लाल साव का संगीत उनके मन की गहराई में इस तरह से रच बस गया है कि उनके संगीत में खुमान- संगीत का प्रभाव दिख ही जाता है। इसीलिए छत्तीसगढ़ शासन को भी चाहिए कि खुमान-संगीत को छत्तीसगढ़ की पहचान बनाए। 

खुमान लाल साव का संगीत छत्तीसगढ़ के लोक में समाया हुआ है अतः इनके संगीत को भी लोक संगीत मानकर इनके संगीतबद्ध गीतों को लोक गीत के रूप में मान्यता देना चाहिए। क्योंकि ये गीत अब केवल खुमान के न होकर लोक के गीत बन चुके हैं। 


अरुण कुमार निगम

संस्थापक - "छन्द के छ", छत्तीसगढ़

राजभाषा आयोग अउ सचिव

 राजभाषा आयोग अउ सचिव


पाछु बच्छर  छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डॉ अनिल कुमार भतपहरी  जउन शिक्षा शास्त्री अउ साहित्यकार घलो रहिन हें। उंखर  2021 से 2023 तक  तीन बछर के कार्यकाल हर घातेच्च सहराय के लइक   रहिस।

    कोरोना काल के अलकर समे म ओमन पदस्थ होके लगभग मरणासन्न आयोग ल अपन सक पूर्तिन उदिम करके फेर खोभीया के खड़ा करिन। ओमन  जिला समन्वयक साहित्यकार मन के माध्यम ले नवा जून्ना साहित्यकार, कलाकार अउ भाषा प्रेमी मन ल जोड़ के सुग्घर बुता करिन। सर्वप्रथम ओमन आयोग के कार्य ल समझ बुझ के साल भर का का करना हे ओला बजट अनुसार  कार्ययोजना (एक्शन प्लान ) बनाके समन्वयक  अउ वरिष्ठ  साहित्यकार, संस्कृति मंत्री संचालक मन सो अनुमोदित करवाके सुदूर जशपुर ले बीजापुर अउ रायगढ़ ले डोंगरगढ़ तक चारो मुड़ा सीमावर्ती से मांझोत तक के भाषा अउ साहित्यकार सम्मेलन करवाइस जेकर से राजभर के सबो भाषा बोली जेमा छत्तीसगढी के सँग गोड़ी,भतरी, हलबी,सादरी लरिया कुडूख मन के साधक साहित्यकार कलाकर मन ल संघेर के एकमई करे के जोखा मढाईन. एखर पहिली "  एक  कोस म पानी बदले तीन कोस बानी " जैसे भाषाई विविधता अउ ओखर खींचाताना म सुम्मत सलाह होके छत्तीसगढ़ी के सहायक अउ राज के प्रमुख संपर्क भाषा बर आम सहमति कराय गिस। एखर बर आयोग हर  " सुरहूत्ती "नाव के पत्रिका निकाल के उत्तर दक्षिण अउ मध्य छत्तीसगढ़ के  भाषा साहित्य ल छाप के एक सूत्र म पिरोय गिस।  ये हर अकादमिक स्तर के बुता रहिस। जेन ल शिक्षा विद मन तको सेहराइन।

प्रकाशन- 

 राज के गुंनिक रचनाकार के 100 ले आगर पाण्डुलिपि  मन ल  जउन कहानी, कविता,उपन्यास  आदि पुस्तक के प्रकाशन करवा के उन ल राज्य के जिला ग्रन्थालय म पहुंचाये गिस ताकि पाठक अउ शोधर्थी मन ल छत्तीसगढ़ी साहित्य सहजता से उपलब्ध हो सके।


प्रशिक्षण -

 छत्तीसगढ़ी म राजकाज करे सेती मंत्रालय महानदी भवन, संचालनालाय इंद्रावती भवन, संचालनालाय संस्कृति  विभाग के लगभग 1500  अधिकारी कर्मचारी मन ल प्रशिक्षण देके उनमन ल प्रशासनिक भाग 1'2 अउ अन्य प्रशिक्षण सामग्री प्रदान करे गिस। एकर संग 

जिला कार्यालय बेमेतरा, बालोद, राजनांदगांव, कांकेर, कोंडागांव, सरलग प्रशिक्षण देय गिस।

आयोजन - 

आयोग प्रतिवर्ष 14 अगस्त के कार्यालय स्थापना दिवस मानथे ये बखत जिला समन्वयक वरिष्ठ भाषा शास्त्री  साहित्यकार अउ आयोग डहन ले  नवा छपे किताब के मुँह उघरौनी  (विमोचन ) कर के रचनाकार के सम्मान करे के नवा बुता होइस। 

28 नवंबर के छत्तीसगढी दिवस म दिया बार के देवारी कस आतिशबाज़ी कर के हर्ष उल्लास से तिहार मनाय गिस  हमर राज के मुखिया  माननीय मुख्यमंत्री जी हर प्रदेश के भाषा साहित्य  साधक वरिष्ठ रचनाकार मन के सम्मान सरलग करिन।

 एकर साथ साथ जिला ,संभाग स्तरीय  साहित्यकार सम्मेलन जशपुर ले  बीजापुर, रायगढ़ ले डोंगरगढ़ तक करे गिस। जगदलपुर, महासमुन्द, बालोद, रायपुर, अंबिकापुर मे तको बड़का जुराव होइस।


पहली साल त्रिदिवसीय जनजातीय भाषा के विविध आयाम,  शहीद स्मारक भवन मे होइस। दूसर साल त्रिदिवसीय  लोक साहित्य महोत्सव साइंस कॉलेज सभागार अउ तीसरा आयोजन  " सातवां  प्रांतीय सम्मेलन  इंटरनेशनल होटल बेबीलान में करे गिस। ये आयोजन मे सबो जिला के प्रतिनिधि साहित्यकार लगभग 1500 से ऊपर मन सकलाइन अउ विविधतापूर्ण कार्यक्रम सम्पन्न होइस।


येखर  संग संग राजभाषा आयोग के गतिविधि अउ राज्य के सबो  बोली भाषा ल स्थान देय बर त्रैमासिक " सुरहुत्ती" नाव के पत्रिका के प्रकाशन होइस। ये संग्रहणीय पत्रिका आये जेन ह  आगू चलके शोध कार्य बर महत्वपूर्ण होही।


  आयोग हर आठवीं अनुसूची  में छत्तीसगढ़ी ल संघारे बर उदिम करत मानक छत्तीसगढी शब्दकोश ,व्याकरण निर्माण  समिति के गठन करके चार ग्रुप बनाये गे हैं।  उनमन ल कुल 13,13 अक्षर बाट देय गए हवे। उनकर पाण्डुलिपि मिल गे हे अउ टाइपिंग चलत भी हवे। 

    ये तरा से आयोग में अकादमिक स्तर में बुता करे गिस जेकर से भाषा प्रेमी मन मे गजब के उत्साह देखे बर मिलिस...

 

 विलुप्ति के कगार मे अउ सघन वन क्षेत्र बीजापुर के प्रमुख  गोड़ी भाषा के संवर्धन बर ट्रिपल  आई टी  टुल विकसित करना अउ विविध कार्यशाला म 2 करोड़ के बजट प्रावधान होइस। ओकर पहिली किस्त घलाव ए साल आयोग ल मिलिस। ये रकम के चौतरफ़ा बड़ सुग्घर कार्यक्रम होवत रहिस। सरकार के बदले ले  डॉ  अनिल भतपहरी जी वापस उप संचालक  उच्च शिक्षा विभाग मे चल दिन अउ ओकर जगा महिला बाल विकास विभाग के सहा संचालक डॉ अभिलाषा बेहार के नियुक्ति होइस।

ये तरह ले तीन बछर के कार्यकाल ह उपलब्धि   भरे  रहिस हे। 

उच्च शिक्षा अधिकारी ल ही राजभाषा आयोग के सचिव बना सकथें। सबले बड़े बात ओमा साहित्यिक योग्यता होना चाही। येखर अलावा साहित्यिक क्षेत्र म ओखर काम भी होना चाही। सिरिफ कहानी कविता लिखना ही ये पद बर जरुरी नइये। काम लेय के क्षमता, लोगन से व्यवहार कइसे करना येखर जानकारी होना चाही।अभी तक के कार्यकाल म सबले बढ़िया काम अनिल कुमार भतपहरी के रहिस हे। हर क्षेत्र म काम होइस। पूरा छत्तीसगढ़ के साहित्यिक मनखे मन ल स्थान मिलिस। सम्मान मिलिस मंच मिलिस। स्वयं सचिव महोदय मंच ले दूरिहा रहिन।


अगला सचिव घलो अइसना ही होना चाही जेमा कइ तरह के योग्यता होवय अउ सब ल ले के चलय। अभिलाषा बेहार जी म सब ल ले के चले के क्षमता या गुण कमती हे। महिला बाल विकास के काम में ही योग्य हावय तब तो राजभाषा म काम कमती दिखिस। सबके  अपन अपन क्षेत्र होथे।


 साहित्यकार मन ल सम्मान चाही न की डांट। कार्यक्रम म एक ही बात ल बार बार बोलना घलो स्तर ल गिरा देथे। कमरा म जा जा के लेखक कवि मन ल बुलाना ये सब साहित्यकार मन के अपमान आये। आज भी रायपुर म कइ ठन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन होथे ओमा 25-30- मनखे ले ज्यादा नइ राहंय तब का करे जाये। शब्द के बाण थोड़े छोड़बे।


राजभाषा आयोग ब्राम्हणवाद अउ परिवार वाद के बोझा ले कब मुक्त होही। जब लोगन आज भी पिछला सचिव भतपहरी जी ल सुरता करथे त ओखर पीछू कुछ तो कारण होही। आज भी पूरा छत्तीसगढ़ भतपहरी जी ल सुरता करत हावय।

आज भी नवा सचिव के चयन सोच समझ के करना चाही। उच्च शिक्षा विभाग अधिकारी के ही चयन करे जाये जेखर साहित्यिक क्षेत्र म कुछु काम बोलत होही। जेखर म संचालन  के क्षमता हो, लोगन ल ले के चले के गुण होवय।

अभी समय हे तीन बछर बर परिवार वाद ल न लादे जाये। कब तक सब क्षेत्र म पहुँचे के बाद भी अपमान के पीड़ा ल आम मनखे मन झेलत राहंय। राजभाषा एक होनहार सचिव के बाट जोहत हे जेन  परिवारवाद अउ जातिवाद ले उपर उठके होवय।

सुधा वर्मा 15/6/2025



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नंदनी ------( छत्तीसगढ़ी कहानी )

 ----------------नंदनी ------( छत्तीसगढ़ी  कहानी )


निगोड़ी दिन भर खाथे रहिथे, जतेक देओ सब ला हजम कर जाथे। फेर  दूध एक पाव ले जियादा नइ देय। चुन्नू के महतारी हर दिन दसो बेर नंदनी ला कोसथे।


चुन्नू जब अपन माई के मुंह ले नंदनी बर गारी सुनय, त ओकर मन भारी दुखी हो जाथे।  चुन्नू अउ नंदनी बचपन ले संगी रहिन। दुनो के उमर अब 8 बरिस के हो गे हे। चुन्नू रोज बिहान नंदनी संग कोतीच नदी म जाथे। सही माने म त वह त नंदनी के संग चलत-चलत तइरना सीख ले रहिस।


अब सावन के महीना आगे रहिस बेरा बेरा म पानी टपकत रहिस हवय। इतवार के दुपहर लक्ष्मी जब घर आइस, त वो हाँफत रहिस। ओकर गोड़ म लहू के छींटा रहिस, ऐसे लगिस कोई ओकर गोड़ ला दांत ले काट डारे रहिस। जब सहोदरा ओला ए हालत म देखिस, त फेर सुरू होगे ओकर बड़बड़ाहट – “करमजली, मर काबर नइ जाथे रे!”


बमएक रात, रात के 12 बजे चुन्नू के निंद खुल गे।  कारण रहिस – नंदनी अंगना म बंधाय रहिके जोर-जोर ले रंभात रहिस, चिचियात रहिस। चुन्नू बहिर निकल के देखिस, त भारी पानी बरसत रहिस। अंगना म पानी भरना चालू हो गे रहिस। उंखर घर नदी के बिलकुल तीर म रहिस, त बरसात अउ नदी दूनो के पानी पहिली उंखरे  घर म घुसय।


चुन्नू अपन माई-बाबू ला जगा के सब बात बताइस। उंकरो होश उड़ गे अउ समझ गिन – अब गांव छोड़के बाजू म चुन्नु के ममा गांव जाना जियादा सुरक्षित रही।


उनकर घर म एक छोटे नाव रहिस। तेन म तीनों मन बइठ गे। संग-संग अपन गइया नंदनी ला घलो नाव के आगू म खड़ा कर दिन। नंदनी अभी घाव ले पीड़ित अउ थकित दिखत रहिस।


नाव डगमगात-डगमगात नदी म उतर गे अउ पार जाय बर लगिस। 20-25 हाथ के दूरी बिना कोनो भारी दिक्कत के पार कर लीन, फेर एक ठन जबरदस्त पानी के बहाव आय, त नाव पलट गे अउ चारों झन नदी म गिर पड़िन।


चुन्नू अउ ओकर बाबू ला तइरना आथे, त वो मन तौर के बाहिर निकले के उदिम करे लगिन। फेर सहोदरा  ला तइरना नइ आवत रहिस, त ओ डूबे लागिस।


नंदनी जब देखिस के ओकर मालिकिन डूबत हे, त ओ तुरते पीछे से तइर के गीस, अउ डूबकी मार के अपन मालिकिन के नीचे पहुँच गे। फेर ओला अपन पीठ ऊपर बइठा के आगे बढ़े लागिस। नंदनी के हालत अभी घलो कमजोर रहिस, त पानी के तेज धार म ओकर तकलीफ अउ बढ़ गे। ओला पूरा ताकत लगाना पड़त रहिस।


थोड़ा दूर गीस, त ओकर सांस फूल गे। ओ डर गे – का मैं अपन मालिकिन ला बचा पाबो? फेर वो फेर जोर लगाइस। 10 हाथ अउ पार कर लीस। अब बस 5 हाथ बांचे रहिस किनारा ला धरे बर। ततके म  ओकर छाती म भयंकर दरद होए लागिस। ओ सोचिस – अब मोर आखिरी बेरा आ गे हे। हो जाही।


नंदनी मन म महादेव ला जपिस – “हे प्रभु, मोला मोर मालकिन ला बचाय बर शक्ति दे, ओखर बाद मोर जान ले ले मोला कांही गम नइ रही।” अतका  कहिके का होइस, नंदनी के शरीर म कुछ बदलाब आ गे। ओला अपन दरद कम लगई लागिस। फेर ओ अपन बचे ताकत संग आगू बढ़े  खातिर जोर लगाइस।


दु मिनट म आखिर वो हा 5 हाथ के दूरी पार करके किनारा म पहुंच गे। पहुंचते ही सहोदरा देवी नंदनी के पीठ ले उतरिस, अउ ओला गले लगाके फूट-फूट के रोय लगिस। नंदनी घलो अपन मालिकिन के मया भरे नजर ले देखिस। ओकर आंखी ले घलो आंसू झरे लगिस।


ओखर बाद नंदनी के आंखी सदा बर तोपा गिस।


सहोदरा दहााड़ मार के रोय लागिस। अब ओकर मन म ए बात घुसिस – नंदनी के असल महत्तम का रहिस। का होइस जे वो दूध कम देथे, का होइस जे चारा जियादा खाथे, फेर ओ त पुरा परिवार बर समर्पित रहिस।


ए घटना के बाद सहोदरा के जिनगी अउ सोच म बहुते बदलाब आ गे। अब वो अपन खेती के जमीन म गोशाला बनवा लीस अउ गाय मन के सेवा म लग गे। अब हर रक्षाबंधन म गाय अउ सब जानवर मन ला राखी बांधथे।

(समाप्त)

Friday, 6 June 2025

अपन बेरा के आरो देवत संग्रह: ये कलजुग के गोठ*


 

*अपन बेरा के आरो देवत संग्रह: ये कलजुग के गोठ*

        अजय अमृतांशु समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य आकाश के कोनो अनजान तारा नोहय। समाचार-पत्र मन म समीक्षात्मक लेख अउ साहित्यिक मंच के संचालन बर उन ल छत्तीसगढ़ के साहित्य बिरादरी के लोगन जानथें पहिचानथें। उन अपन समय के नवा-जुन्ना (नवोदित अउ स्थापित) दूनो साहित्यकार मन के कृति ऊपर सम्यक रूप ले लेखनी चलाथें। उन कृति मन के पुनः प्रकाशन करथें। पुनः प्रकाशन ए सेती लिखे हॅंव कि सुधि साहित्य प्रेमी मन के चर्चा ले ही कोनो कृति डहर आम पाठक मन के चेत जाथे। 

      अजय अमृतांशु छत्तीसगढ़ी पद्य म छंदबद्ध लेखन के पक्षधर रचनाकार आवॅंय। छंद के बढ़िया जानकार हें। कुण्डलिया छंद उॅंकर पसंदीदा छंद हे। एकर प्रमाण उॅंकर एक मात्र प्रकाशित कृति 'ये कलजुग के गोठ' आय, जेन म १५१ कुण्डलिया संग्रहित हें। जेकर भूमिका श्री अरुण कुमार निगम जी लिखें हवॅंय। जेमा उन मन कुण्डलिया के शिल्प के बात के संग ओकर तब ले अब तक के इतिहास के कुछ जानबा ल सूत्र रूप म समाहित करे के सुग्घर उदिम करे हें। 

      ए संग्रह म अजय अमृतांशु के सामाजिक, पर्यावरणीय अउ वैज्ञानिक दृष्टि म पगाय चिंतन साफ नजर आथे। संग्रह के नाम 'ये कलजुग के गोठ' अपन आप म एक संदेश देवत हुए उॅंकर गहन चिंतन अउ सूक्ष्म दृष्टि ल रेखांकित घलो करथे। लोक म एक कहावत चलथे कि हे भगवान...घोर कलजुग आगे, शायद इहें ले अमृतांशु ल समाज अउ व्यवस्था म व्याप्त विसंगति ल अभिव्यक्ति दे के प्रेरणा मिलिस। 'ये कलजुग के गोठ' म वर्तमान समय के विसंगति अउ लोक जीवन के सुग्घर चित्रण हावे। जीवन दर्शन, तीज-तिहार, परम्परा, मौसम, खान-पान, झिल्ली, दान-धर्म, नारी शक्ति, राजनीति अउ चुनावी एजेंडा, मोबाइल, महंगाई, घूसखोरी, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, विश्वव्यापी त्रासदी कोरोना, जल-जंगल-जमीन, आडंबर, विज्ञान, नशा, किसान अउ आम आदमी के पीरा जइसन कतको विषय वस्तु के विविधता अउ विस्तार ए संग्रह म हावय। विषय वस्तु के विस्तार ले ही अजय अमृतांशु शब्द भंडार के मामला म कतेक धनी हें, अनुमान लगाय जा सकत हे। बावजूद छत्तीसगढ़ी म उपयुक्त शब्द के रहिते, कुछ-कुछ हिंदी के शब्द मन ल बउरना, विचारणीय हे।

      मौसम संबंधी उँकर कुण्डलिया मन ल पढ़ के अइसे लगथे कि उन प्रकृति अउ ऋतु परिवर्तन ऊपर अपन दृष्टि जमा के रखथें। तभे ठंडी, गरमी अउ बरसात सबो के चित्रण जीवंत हो सके हे। संग्रह म मौसम संबंधी कुण्डलिया अतेक अकन हे, कि पाठक ल कहूॅं-कहूॅं भाव के दुहराव जनाही। 

      छत्तीसगढ़ के दर्जन भर ले आगर नदिया मन ल लेके लिखे गे कुण्डलिया अनुपम हे। पाठक के मन ल भाही, उहें उॅंकर सामान्य ज्ञान म बढ़ोतरी करही।

      लोक अध्यात्म ले एक ऊर्जा अर्जित करथे। थके-हारे जिनगी म अपन ईष्ट के ध्यान धरथे। जिनगी के भाग-दउड़ म जतका अध्यात्म के जरुरत हे, ओ अनुपात म ए संग्रह म एकर पुट पाठक ल मिलही। अमृतांशु जी खुद कबीर के अनुयायी आँय। उनकर लेखन म उॅंकर छाप दिखथे।

      *आडंबर ला छोड़ के, कर लव प्रभु के ध्यान।*

      *हिरदे ले आवाज दव, मिल जाही भगवान।।*

        लेखन के शुरुआती दौर ले अमृतांशु हास्य-व्यंग्य के कवि के रूप म कवि सम्मेलन म भाग लेवॅंय। एकर प्रभाव उनकर कुण्डलिया म घलव दिखथे। कहूॅं-कहूॅं मेर लोक म प्रचलित शब्द मन के प्रयोग बड़ सुग्घर हे। समासिक अउ युगल शब्द मन के बीच योजक चिह्न के कमी घलव खलत हे।

        भूमिका म कुण्डलिया के बताय गे शिल्प म जम्मो कुण्डलिया सोला आना खरा उतरथे। छंद-बद्ध रचना म जेन तुकांत, यति, गति अउ लय/प्रवाह होना चाही, वो सब पाठक ल ए संग्रह म मिलही।

      चूंकि एक कुण्डलिया, एक दोहा अउ एक रोला ले मिल के पूरा होथे। एमा एक शर्त यहू हे कि दोहा अउ रोला दूनो मिला के एक भाव ल पूरा-पूरा समोखय, स्पष्ट करय। शिल्प अउ भाव दूनो ल साधना मुश्किल तो हे, फेर नामुमकिन नइ हे। देखे जाथे कि दोहा के चौथा चरण रोला के पहला चरण बनाय के बाद रोला के संग समरस भाव ले जोड़ पाना कठिन होथे। अमृतांशु जी के ये संग्रह म कोनो-कोनो जघा तीसर अउ चौथा डाॅंड़ के बीच भाव के दृष्टि ले जुड़ाव मोला कमजोर /कमसल नजर आइस। उहें कुछ जघा वचन संबंधी चूक हे, जउन प्रूफ रीडिंग के चूक हो सकत हे।

      *झिल्ली कभू सरय नहीं, फेंकव झन मैदान।*

      लोक हित म उनकर अइसन कई पंक्ति हें, जेन अमृतांशु ल सामाजिक सरोकार अउ पर्यावरण हित के पक्ष म खड़े कवि साबित करथें।

      एक रचनाकार हमेशा सृजनात्मकता के पक्षधर होथे। उनकर भीतर विश्व कल्याण के भाव होथे। सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया: के भाव ले लिखथे। आज जब पूरा विश्व बारुद के ढेर म खड़े नजर आथे, अइसे म अजय अमृतांशु भला अपन दायित्व ल निभाय म कइसे अछूता रही। उन ये कुण्डलिया लिखके अपन जिम्मेदारी ल पूरा करे हें -

    एटम बम मा बइठ के, अड़बड़ हव इतरात।

    पल भर मा मेटा जहू, का हावय औकात।।

    का हावय औकात, प्रलय हा कब हो जाही।

    मनखे ला दे छोड़, धरा तक नइ बच पाही।।

    हो जाहू सब ख़ाक, गरजथव काकर दम मा।

   जादा झन इतराव, बइठ के एटम बम मा।।

    अजय अमृतांशु के ये संग्रह अपन बेरा के आरो देवत अपन शीर्षक ये कलजुग के गोठ ल सार्थक करथे। कव्हरपेज शीर्षक के मूल भाव के प्रतिनिधित्व करत हुए आकर्षक हे। भीतरी पन्ना के छपाई अउ क्वालिटी बढ़िया हे। पाठक बर संग्रह के कुण्डलिया मन के भाव ल रखे के मोर कोशिश भर आय। या कहन कि रचनाकार अउ पाठक के बीच के पुल (सेतु) आँव। दू-चार ठन कुण्डलिया ल छांट-निमार के परोसई ह, आने कुण्डलिया मन ल कमतर अँकई हो जही। भेद करई होही। बेहतर होही पाठक किताब बिसा के कुण्डलिया मन ल पढ़ॅंय अउ आनंद लेवॅंय।

   सुघ्घर संग्रह के प्रकाशन बर अजय अमृतांशु जी ल बधाई अउ शुभ कामना पठोवत हँव।


 संग्रह: ये कलजुग के गोठ  

रचनाकार: अजय अमृतांशु

प्रकाशक: सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली-रायपुर

प्रकाशन वर्ष: 2025

पृष्ठ संख्या: 86मूल्य: 200/-

सर्वाधिकार: लेखकाधीन

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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग.

Wednesday, 4 June 2025

27 अप्रैल -4 वीं पुण्यतिथि मा विशेष माटी महतारी के रचनाकार – नरेश कुमार वर्मा*

 27 अप्रैल -4 वीं पुण्यतिथि मा विशेष


माटी महतारी के रचनाकार  – नरेश कुमार वर्मा* 


हमन महान व्यक्ति के जीवनी पढ़थन ता पता चलथे कि वोहर अपन जीवन मा कत्तिक संघर्ष करके आगू बढ़ीस हे. कम सुविधा के बावजूद जब कोनो मनखे हा अपन जीवन मा कुछ करे बर ठान लेथे अउ जब अपन मंजिल ल प्राप्त करथे ता अइसन मनखे हा दूसर मन बर प्रेरणास्रोत बन जाथे. गरीबी ला झेलके आगू बढ़इया मा एक नाँव हवय श्रद्धेय स्वर्गीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी. स्वर्गीय वर्मा जी गरीब परिवार मा जनम लेके बावजूद प्रोफेसर बनीस अउ अपन कर्म के माध्यम ले दूसर मन बर एक उदाहरण बनके सामने आइस. 

  नरेश कुमार वर्मा के जनम 13 अगस्त 1959 मा बलौदाबाजार जिला मा भाटापारा ले 12 किलोमीटर दूरिहा फरहदा गाँव मा छोटे किसान परिवार मा होय रीहीस. वोकर पिता जी के नाँव उदय राम वर्मा अउ माता जी के नाँव पुनौतिन वर्मा रीहीस हे. वोमन तीन भाई अउ तीन बहन रीहिस हे. तीन भाई मा वोहा सबले बड़े रीहीस हे.

     पढ़ाई -लिखाई 

माता -पिता के अनपढ़ अउ आर्थिक समस्या के बावजूद अपन मन ला पढ़ई डहर खूब लगाय राहय. गाँव मा प्राथमिक शिक्षा पूरा करे के बाद मीडिल स्कूल के पढ़ाई जरोद अउ हायर सेकण्डरी के पढाई भाटापारा मा करीस. महासमुंद ले बीटीआई अउ बीए व हिन्दी अउ भूगोल मा एमए बलौदाबाजार ले करीस. राजनांदगॉव के दिग्विजय कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक पद मा रहत वोहा हिन्दी मा पीएचडी करीन. 

   1975 मा वोहा बीटीआई महासमुंद ले अध्यापक प्रशिक्षण बर प्रवेश परीक्षा 75 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण की. 

प्राथमिक शाला के शिक्षक ले प्रोफेसर तक के सफर 

 1979 मा शासकीय प्राथमिक शाला वटगन (रायपुर) मा शिक्षक बनके गीस. येखर बाद विश्वविद्यालय के सबो परीक्षा मन ला स्वाधायी छात्र के रुप मा दिलइस अउ उच्च अंक के साथ उत्तीर्ण होत गीस. 

  कॉलेज के प्रोफेसर बनना अपन जीवन के लक्ष्य बनाय रीहीस अउ येला वोहा गजब संघर्ष करके प्राप्त करीन. आर्थिक समस्या ले जूझत अपन रास्त बनइस. जब हिन्दी के सामान्य वर्ग ले  आठ पद बर अखिल भारतीय विज्ञापन आधार मा वोकर नियुक्ति होइस ता अपन लक्ष्य ला प्राप्त करके अपन जीवन के सबले बड़े खुशी प्राप्त करीस. 

   1986 मा ऊंकर नियुक्ति शासकीय माखन लाल चतुर्वेदी महाविद्यालय बाबई (होशंगाबाद)मा हिन्दी के सहायक प्राध्यापक पद मा होइस. 1987 मा वोहा दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव मा स्थानांतरित होके आइस. इहां वोहा जुलाई 2008 तक रीहीन. 21 वर्ष तक ये कॉलेज म टिके रीहीस यहू हा गजब बड़े उपलब्धि रीहीस. 2006 मा वोहा सहायक प्राध्यापक ले प्राध्यापक (हिन्दी) बनगे.  21 वर्ष मा वोहा अपन एक अलग छाप छोड़िस. वोहा महाविद्यालय के शैक्षणिक गतिविधि के सँगे सँग साहित्यिक, सांस्कृतिक अउ राष्ट्रीय सेवा योजना के गतिविधि के जिम्मेदारी ला बने ढंग ले निभाइन. 

    पीएचडी के उपाधि   -  वर्मा जी हा 1992 मा विद्वान  डॉ. गणेश खरे जी (राजनांदगॉव) के प्रेरणा ले डॉ. गीता पाठक के मार्गदर्शन मा “ साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना “विषय मा पीएचडी के उपाधि प्राप्त करीस.

स्थानांतरण पर हाईकोर्ट ले स्टे लाइस -

छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी जत्तिक सरल, सहज अउ सरस रीहीस वतकी दृढ़ता के घलो प्रतीक रीहीस. जब साभिमान ला ठेस पहुंचे के नौबत आय ता करिया डोमी कस फूंफकार के अपन मान -मर्यादा के रक्षा करे. 

2007 मा वर्मा जी के स्थानांतरण दिग्विजय कॉलेज राजनांदगॉव ले कवर्धा के नया कॉलेज मा सहायक प्राध्यापक मा करे गीस जबकि वोहा 2006 मा प्राध्यापक बन गे रीहीस. कवर्धा कालेज में हिन्दी में प्राध्यापक के पद नइ रीहीस हे. इहां वर्मा जी हा अपन हक बर लड़ाई करत हाई कोर्ट ले स्टे ला लीस अउ ये प्रकार ले ऊंकर स्थानांतरण रुकगे. वर्मा जी हा शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष रीहीन. 

स्वेच्छा स्थानांतरण मा भाटापारा गीस -

   21 साल तक दिग्विजय कॉलेज मा सेवा देय के बाद जुलाई 2008 मा अपन स्थानांतरण अपन जनम भूमि फरहदा के तीर भाटापारा कॉलेज मा करा लीन.  जुलाई 2008 मा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा दिग्विजय कॉलेज के नवीन सभागार मा विदायी समारोह के आयोजन करे गीस जेमा जेमा जिला भर के तीन दर्जन साहित्यकार मन अपन उपस्थिति देके वर्मा जी के प्रति अपन मया ला उड़ेलिन. उंकर विदायी बेला मा सबके आँखी हा डबडबागे. ये प्रकार ले वर्मा जी हा अपन दृढ़ता अउ दूरदर्शिता ले शासकीय गजानन स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटापारा मा आके सेवा करे लागीस. इहां वोहा हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे के सँगे सँग 

2017 मा प्रभारी प्राचार्य घलो रीहीन. कॉलेज मा राष्ट्रीय स्तर के सेमीनार करइस .अपन दूरदर्शिता ले प्रभारी प्राचार्य रहत भाटापारा कॉलेज के नेक का मूल्यांकन कराय मा सफल होइस. ये प्रकार ले  भाटापारा कॉलेज ला नेक से मान्यता प्राप्त कॉलेज के श्रेणी मा आगे. 

विश्वविद्यालय के हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनीस -

श्रद्धेय वर्मा जी के योग्यता अउ विद्वता ला देख के  नवंबर 2020 मा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष बनाय गे रीहीस. येकर सदस्य पहलीच ले रीहीस हे. 

     साहित्य सेवा - वर्मा जी हा 1975 ले कविता लिखे के शुरु करीस. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा समान रुप ले लिखे हवय. रायपुर के कतको अखबार मा ऊंकर रचना छपिस. छत्तीसगढ़ महतारी के प्रति गजब प्रेम रखइया वर्मा जी हा 1979 मा अलग राज खातिर अपन लहू मा चिट्ठी लिखके छत्तीसगढ़ राज्य के समरथन करीन. 

वर्मा जी के आलेख, शोध पत्र, संस्मरण, समीक्षा, कविता हा कतको राष्ट्रीय अउ स्थानीय पत्र -पत्रिका मा प्रकाशित होत रीहीस हे. उंकर प्रकाशित पुस्तक मा “साठोत्तरी हिन्दी कविता में राष्ट्रीय -सामाजिक चेतना (शोध ग्रन्थ) 1999, “समकालीन हिन्दी कविता और राष्ट्रीय परिदृश्य “

(शोध पत्रिका संपादित) 2000, छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह “माटी महतारी 2001 , पुरातत्व अउ संस्कृति मंत्रालय छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग अउ जिला प्रशासन राजनांदगॉव के सहयोग ले 2002 मा “छत्तीसगढ़ की अभिव्यक्ति, इतिहास एवं स्वतंत्रता”, 2003 मा “छत्तीसगढ़ की जनभाषा और कथा कंथली “ के संपादन,साकेत छत्तीसा भाग -1 (2003),साकेत छत्तीसा भाग -2 (2004),साकेत छत्तीसा -3(2005) के संपादन करीन. समकालीन हिन्दी कविता पर विश्व विद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली के सहयोग ले 2000 मा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के आयोजन के दायित्व ला गजब सुग्घर ले निभाइस. लखनउ अउ रायबरेली के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन मा भागीदारी करीस. 

   साहित्य सम्मान  - डॉ. वर्मा जी ला साहित्य सेवा खातिर कतको संगठन हा सम्मानित करीस. मध्यांचल कल्याण समिति उत्तरप्रदेश अउ महिला प्रगति संस्थान रायबरेली द्वारा “ साहित्य शिरोमणि सम्मान “(1998),साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव द्वारा “ साकेत साहित्य सम्मान “(2002),छत्तीसगढ़ी राजभाषा अउ आदिवासी संस्कृति संस्थान रायपुर द्वारा  “छत्तीसगढ़ी रत्न सम्मान “(26 नवंबर 2007 ) आदर्श युवा संगठन मुड़पार 

(सुरगी)  द्वारा “साहित्य सम्मान “के सँगे सँग कतको संगठन मा सम्मानित करीस. 

नवा प्रतिभा मन ला पलोंदी देवइया साहित्यकार -

वर्मा जी हा नवा लिखइया रचनाकार मन ला गजब पलोन्दी देय के काम करीस. दिग्विजय कॉलेज मा सेवा काल के समय साहित्य अउ भाषण कला मा रुचि रखइया छात्र मन ला आगू बढ़े बर मार्गदर्शन करय. राष्ट्रीय सेवा योजना के अधिकारी के रुप मा युवा वर्ग ला रचनात्मक अउ समाज सेवा के कार्य करे बर प्रोत्साहित करीस अउ साहित्य डहर जाय बर रास्ता घलो बतइस. महाविद्यालय मा आयोजित परिचर्चा, भाषण अउ वाद विवाद स्पर्धा, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता मा विद्यार्थी मन ला भाग लेय बर अब्बड़ प्रोत्साहित करे.  1997 मा आजादी के स्वर्ण जयंती के सुग्घर बेला मा दिग्विजय कॉलेज मा स्वतंत्रता सग्राम पर परिचर्चा आयोजित करे गे रीहीस वोमा मुख्य अतिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्रद्धेय कन्हैया लाल अग्रवाल माई पहुना रीहिस. येमा प्रोफेसर मन के सँग महू ला अउ वक्ता सरोज कुमार मेश्राम ला विचार रखे बर बुलाय गे रीहिस. येमा वर्मा जी के ही हाथ रीहिस हे. मेहा उँहा काव्य पाठ घलो करे रेहेंव. कार्यक्रम के संचालन जाने माने वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन हा करत रीहिस हे. साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के प्रमुख सलाहकार के पद के दायित्व ला सुग्घर ढंग ले निभावत येमा जुड़े जम्मो साहित्यकार मन ला अब्बड़ मया दीस. रचना लिखे बर गजब प्रोत्साहित करीस अउ अपन अमूल्य मार्गदर्शन ले नवा रास्ता दिखाइस. साकेत छत्तीसा भाग -1,2, 3(2003,2004,2005) के माध्यम ले नवा रचनाकार मन ला पलोंदी दीस. कार्यक्रम बर आर्थिक सहयोग करके साहित्यकार मन ला संबल प्रदान करय. वर्मा जी हा कॉलेज के प्रोफेसर होय के बावजूद ग्रामीण साहित्यकार मन सँग बहुत सरल,सहज अउ सरस ढंग ले पेश आय. कोनो सुझाव ला सुग्घर विनम्र ढंग ले बताय. गुनिक विद्यार्थी मन ला आर्थिक सहयोग घलो करय. 

हमर राजनांदगॉव जिला मा साहित्य के क्षेत्र मा आदरणीय वर्मा जी अउ आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी के जोड़ी गजब सुग्घर ढंग ले चलीस. दूनों के जोड़ी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ला एक नवा ऊंचाई दीस.

दूनों के सुग्घर प्रयास ले हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनॉदगॉव के वार्षिक सम्मान समारोह मा अंतरराष्ट्रीय पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे जी, संत कवि पवन दीवान जी, तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष अउ वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय भपेश बघेल जी, प्रसिद्ध साहित्यकार,डॉ. परदेशी राम वर्मा जी, प्रख्यात भाषाविद् अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक जी, डॉ. विमल कुमार पाठक जी जइसे साहित्यकार मन हा पहुंच के क्षेत्र के साहित्यकार मन के मान बढ़इस. 

  कतको संगठन मा दायित्व ला निभाइस   - वर्मा जी हा साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगॉव के प्रमुख सलाहकार, छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद् के कार्यक्रम मंत्री, छत्तीसगढ़ी साहित्य परिषद् राजनांदगॉव के जिला संयोजक, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति उपाध्यक्ष, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर मा हिन्दी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष रहे के सँगे सँग मनवा कुर्मी क्षेत्रीय समाज राजनांदगॉव के अध्यक्ष अउ सर्व कुर्मी समाज के उपाध्यक्ष के दायित्व ला बखूबी निभाइस.

घर परिवार के जिम्मेदारी ला गजब सुग्घर निभाइस -

वर्मा जी हा छोटे किसान परिवार ले रीहीस. अब्बड़ संघर्ष करके आगू बढ़े रीहीस हे. तीन भाई मा सबसे बड़े रीहीस हे. वर्मा जी हा बड़का भाई के फर्ज ला सुग्घर ढंग ले निभाइस. जब वोहा राजनांदगॉव मा पदस्थ रीहीस ता अपन छोटे भाई अउ छोटे बहिनी ला अपन तीर रखके बने पढ़इस -लिखइस .छोटे भाई हा जब दूसर करा काम मा जाय ता अपन गाँव फरहदा मा रोड जगह मा जमीन खरीद के दुकान खोले मा सहयोग करीन अउ आत्म निर्भर बने के प्रेरणा दीस. जब भाटापारा कॉलेज मा स्थानांतरण होके गीस तब हर सप्ताह माता -पिता के दर्शन करे बार अपन गाँव फरहदा जरुर जाय. अपन घर परिवार के प्रति वर्मा जी के मन मा अगाध प्रेम राहय.  22 फरवरी 2017 के उंकर माताजी के निधन होइस. 

2018 मा विधानसभा चुनाव के समय अति व्यस्तता मा वर्मा जी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ीस. 17 नवंबर 2018 मा बीमार पड़गे. रायपुर के मित्तल हास्पिटल मा 17 नवंबर 2018 से 1 जनवरी 2019 तक ईलाज चलीस. इही समय मेहा हमर पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनॉदगॉव के अध्यक्ष भाई शिव प्रसाद लहरे के संग वर्मा जी ला देखे बर हास्पिटल पहुंचेन. वर्मा जी हा हमर दूनो सँग 

सुग्घर गोठ -बात करीस. वर्मा जी हमर सँग अउ बहुत कुछ बात करना चाहत रीहीस हे पर स्वास्थ्य ला देखत उंकर पुत्र मयंक वर्मा हा जादा बात करे ले रोकीस अउ कीहिस कि ले पापा जब पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत अकन बात कर लेहू ता इही जगह वर्मा जी हा कहिन मेहा ठीक हवँ मयंक. मोला बात करन दे. कई चीज हा कई घांव बतात ले छूट जाथे. वर्मा जी हा इहां अपन कवर्धा स्थानांतरण के बात करत छत्तीसगढ़िया अस्मिता के चर्चा करत रीहीस हे. थोरकुन बात सुने के बाद महू हा केहेंव कि ले सर जी जब आप हा पूरा ठीक हो जाहू ता बहुत सारा बात करबो. अभी आप मन आराम करव. हमन गुरुदेव जी के आशीर्वाद लेके हास्पिटल ले बिदा लेन.  ये बीच मा वर्मा जी के स्वास्थ्य हा पूर्णत : ठीक नइ हो पाइस. 20,21,22 अप्रैल 2019 तक मित्तल हास्पिटल मा फेर ईलाज बर भर्ती होइस. 7 जून 2019 के फिर से स्ट्रोक मा अटैक आगे. निमोनिया घलो होगे. ये बीच मा वर्मा जी ला कोनो चीज ला गुटके मा परेशानी होय लागीस. 12 जुलाई से 12 अगस्त 2019 तक अमलेश्वर मा ईलाज चलीस.  13 अगस्त 2019 मा अपन जनम दिन मा कॉलेज ज्वाइन करीस. अक्टूबर 2019 मा बेल्लोर (तमिलनाडु) जांच हेतु ले जाय गीस. उँहा के डॉक्टर मन हा कीहिस कि वर्मा जी आप बने हवव.

  27 मार्च 2021 मा वर्मा जी के पिता जी गुजर गे. वोकर ठीक एक महीना बाद  27 अप्रैल 2021 मा वर्मा जी हा घलो ये दुनियां ला छोड़ दीस. लॉकडाउन के समय कुछ नकारात्मक खबर हा घलो वर्मा जी ला तोड़े के काम करीन . ये बीच मा अपनों अउ अपन जान- पहचान के गुजरे ले वोला धक्का लागत गीस. काबर कि पहिली ले वोकर स्वास्थ्य हा पूरा ठीक नइ रीहीस हे. 

वर्मा जी हा अपन यश रुपी शरीर ले हमर बीच जीवित हवय. वर्मा जी पत्नी के नाँव श्रीमती मीना वर्मा, बेटा मयंक वर्मा अउ बेटी भुप्रिया वर्मा हे. श्रद्धेय वर्मा जी हा सरल, मृदुभाषी अउ उदार मनखे रीहीस हे.वोहा भाषाविद्, कुशल संपादक, बड़का विद्वान, दूरदर्शी,स्पष्ट वक्ता अउ छत्तीसगढ़िया व्यक्तित्व के धनी रीहीस हे. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के बारे मा उंकर कहना राहय कि “ छत्तीसगढ़ी मा भाषा के सबो गुन हे. एक दिन वोला भाषा के दर्जा मिलके रहिही. “छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान खातिर लड़इया स्व. वर्मा जी ला शत् शत् नमन है.  

        ओमप्रकाश साहू “अंकुर “

       सुरगी, राजनांदगॉव 

       मो.  7974666840