Wednesday, 4 June 2025

लघुकथा) भयानक ढांड़स

 (लघुकथा)


भयानक ढांड़स 

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ममा के बड़े बेटा गोपाल भइया हा अचानक बनेच बीमार परगे रहिसे। महीना भर ले जादा अस्पताल में भर्ती रहीसे।चार दिन होये हे घर आगे हावय ,तब ले मोर मन हा वोला देखे बर छट पटावत हे। उहां जाये के पहिली फोन कर लेथव सोच के भइया ला काल करेंव।

 "हलो हलो ।"

"हां हलो।कोन रामू बोलत हस का गा? एको दिन आवत नइ अच का?"

"हां भइया।प्रणाम।आज आहूं कहिके सोचे हंव। वोकरे सेती फोन लगाये रहेंव। तबियत ठीक हे न?"

हां भाई सब बने हे।ले आव तहां ले गोठियाबो कहिके वो फोन ला रख दिस।

 नजदीक के गाँव ताय आधा घंटा मा पहुंचगेंव ।मामी मामा से मिलके भइया सो बइठ के वो कर हाल-चाल पूछेंव ।देखे मा वो एकदम कमजोर होगे रहिसे। मैं कहेंव-- "हिम्मत झन हारबे भइया। बहुत जल्दी ठीक हो जाबे।ले अब मैं ज्यादा टाइम ले नइ बइठव।मरीज सो जादा टाइम ले बइठ के परेशान नइ करना चाही।ले अब तैं अराम कर।अउ कुछु समस्या तो नइये?"

"काला बताववं रे भाई।एक झन मोहल्ला के कका के भयानक ढांड़स बंधाये के सेती मोर तबियत अउ जादा डोल जही तइसे लागथे।"

"वो कइसे भइया?"

" अरे ! सुतके नइ उठे रहिबे धमक जथे। ठीक हो जबे बाबू कहिके,चाय पानी पी के घंटों एती वोती के बात झेलवावत रहिथे। मँझनिया संझा घलो आ जथे।एको दिन आड़ नइ परय।"

"ओहो कइसे पागल आदमी हे वोहा।अच्छा भइया आज संझा वो आही त तैहा सुत जबे।उठबेच मत करबे।मैं भउजी ला चेता देथव वो हा वोला आये बर मना कर देही।"मैं समझायेंव।


चोवा राम वर्मा बादल

हथबंद, छत्तीसगढ़

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