. *आँसू* (लघुकथा)
डाॅ विनोद कुमार वर्मा
दो बरस के नातिन सीढ़ी चढ़े के उदिम करत रहिस। दूसर सीढ़ी चढ़ती बेरा पैर फिसल गे अउ धड़ाम ले नीचे गिरिस। मैं कुर्सी मं बइठे अखबार पढ़त रहेंव।
मँय दऊड़ के गेंव अउ नातिन ला उठाएंव। ओहा जोर-जोर से रोवत रहिस अउ आँखी ले आँसू ढरकत रहिस।
मँय सीढ़ी ला डाँटत जोर से बोलेंव- ' रे सीढ़ी! तँय मोर नानकुन बेटी ला गिरा देहे। मँय तोला डंडा ले पीटहूँ! '
ओही मेर कनेर के नानकुन पतला साँटी परे रहिस। नातिन ओही साँटी ला उठा लिस अउ जोर-जोर ले सीढ़ी ला मारे लगिस। एकर साथ हाँसे घलो लगिस।
नातिन के आँखी ले आँसू ढरकत रहिस फेर मुखमंडल प्रफुल्लित रहिस।
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