लघु कथा- कश्मिरी गोल-गोला
****"*****"****"*****"****"
सुने रहेन सियान मन बतावँय, गरहन के समे म अँगना म कोपरी म पानी भर के मुसर हर खड़ा होय तव बिशेष घटना हो जय | जबे गरहन उतरय तभे मुसर हर गिरय|
अइसन नुक्सा चरित्तर के का भरोसा परोसी खावय तीन परोसा| जिनगी राहय झिमिर झामर| का ममहावय इसनू पाउडर| बुके बुकाय अँजावय काजर| मुड़ी म गजरा मोठल्ली बेनी के कनिहा पातर |चुक ले फभय रग ले बरय| दगर - दगर चोला करय | पहिरे राहय बाँह भर चुरी कान म बारी
चोली चुनरी बनारसी सारी, पाँव में पैरी| चमक - चमक रेंगय बैरी | झलक पाए बर घुमँय पारा भर के चेलिक जहुँरिया|
आँधी अउ तुफान कस टूट परँय मोर गाँव में राहँस (रास) लीला के रात राधा रानी अउ किशन कस धरे बिश्वास अपन मन में लगाय आस आज होही मिलन| प्रेम के दू चार बात कर लेबो रहय ख्वाब| पर सुरता आथे|
हरियर खेती , गाभिन गाय -जभे खाए तभे पतियाय!
मन मैना मँजूर मन नाचे लेवँय रास के गम्मत संग|
जुवानी के चढ़ती जोश फोंक ले उफान मारय गुदगुदावय,सुहलावय घुरघुरावय बदन| तरंगित होवय करिया बिलवा केश रोमियावय ,दहाड़य परिवेश| चढ़े रहय नशा मेनका - उर्वशी के | फेर उही रतिहा गरज के हिलोरत सवार होगे चिल चिल चिलकत कश्मिरी गोल - गोला|
अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
No comments:
Post a Comment