Wednesday, 4 June 2025

जीत

 जीत  

बहुत  दिन पाछू कछुवा अऊ खरगोश के मुलाखात होइस । एक दूसर के हालचाल पूछे लगिन । दुनों के नाक म खाय के समान के गंध खुसरिस । दुनों ओला पाय बर सोंचिन । खरगोश किथे – रेस हो जाय ... जे जीतहि ते खाही । कछुवा किहिस – तैं काबर रेस मेस के शर्त लगाथस ... तैं आज तक मोर ले कभू जीते हस का तेमा ... ? खरगोश किथे – तब अलग बात रिहिस कछुवा भाई ... आज अलग बात हे ... अब तैं नी जीत सकस । दुनों म शर्त लगगे । 

दौंड़ शुरू होगे । खरगोश धरा रपटी भागे लगिस । भागे के पहिली कछुवा ल .. कोलिहा मुनि के दर्शन होगे । ओहा ओला जीते के उपाय बतइस । 

उपाय सार्थक रिहिस । कछुवा ह निर्धारित जगा म पहिली अमर गिस । कुछ बेर म खरगोश घला पहुँच गिस । उहाँ कछुवा ल खाय के समान सकेलत देख सुकुरदुम होगे । खरगोश पूछिस – मेहा ये पइत न सुसताय हँव ... न सुते हँव ... न अपन गति ल धीरे करे हँव ... । जबकि तैंहा खँचका म गिरगे रेहे हस .. सुने हँव  ... तभो ले कइसे अगुवा गेस ? 

कछुवा किथे – मोला कोलिहा मुनि ह जीते के रसता बतइस । ओहा मोर नाव ल .. राजनीति धर दिस अऊ मोला घेरी बेरी गिरे ल किहिस । मेहा गिरत गेंव । गिरे म मजा आय लगिस । जतका घाँव गिरँव रसता ओतके घाँव खुलय अऊ मंजिल लकठियात जाय । अइसन करत तोर ले पहिली अमर गेंव । 

खरगोश फेर चुचुवागे ।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

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