अमर गीतकार मस्तुरिया के गीत मा संबोधन शब्द के लालित्य..
छत्तीसगढ़ी भाखा मा सम्बोधन शब्द मन के मधुरता देखते बनथे। हमर भाखा म सम्बोधन के अनेक शब्द बउरे जाथे। हालाकि छत्तीसगढ़ी भाखा मा सम्बोधन चिन्ह(!) के प्रयोग कम ही दिखथे। छत्तीसगढ़ी काव्य म संबोधन के अपन अलग ही लालित्य हवय। अगर छत्तीसगढ़ी काव्य मा संबोधन शब्द के लालित्य देखना हवय ता मस्तुरिया जी के गीत के अवलोकन करे ला परही। मोर जानबा मा संबोधन शब्द के लालित्य मस्तूरिहा जी के गीत म सबले जादा मिलथे।
एक सम्बोधन शब्द हे "रे" येकर प्रयोग अपन ले छोटे बर ही करे जा सकथे फेर मस्तुरिया जी अपन गीत म "रे" के अतका खूबसूरती से प्रयोग करे हवय कि गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हे - लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत मा संबोधन शब्द के लालित्य देखव -
मोर संग चलव "रे", मोर संग चलव "गा" मोर संग चलव जी".....
ये कालजयी गीत म "रे" के प्रयोग से गीत के मधुरता अउ बाढ़ गे हवय।
ले चल "रे" ले चल, ले चल "गो" ले चल "ओ" मोटरवाला ले चल....
बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूम "रे" ....
वा रे मोर पडकी मैना .... (अपन प्रेमिका ल पड़की मैना के रूप देख के "रे" के प्रयोग )
पता दे जा "रे", पता ले जा "रे" गाड़ीवाला
"ओ" गाड़ीवाला "रे"..... पता दे जा रे पता "ले" जा रे....
"अहो मन" भजो गणपति गणराज .....
(मस्तुरिया जी अपन मन ल संबोधित करत हे। मन ल "अहो" कहि के सबोधन )
हम तोरे संगवारी "कबीरा हो"......
मन डोले "रे" माघ फगुनवा....
नरवा म अगोर लेबे "रे" .....नरवा म अगोर लेबे "गा"...
मँय छत्तीसगढ़िया अंव "रे"...मँय छत्तीसगढ़िया अंव "गा".....
मँय बंदथौं दिन रात "वो"..मोर धरती मैया...
मोला जावन दे ना "रे अलबेला"....
काबर समाए रे मोर "बैरी" नैना मा...
"अहो" गजानन स्वामी हो, डंडा-सरन पाँव ...
मँगनी मा माँगे मया नइ मिले "रे" मँगनी मा...
संगी के मया जुलुम होगे "रे"....
चल-चल ना किसान बोये चली धान असाढ़ आगे "गा"...
चल "जोही" जुरमिल कमाबो "जी" करम खुलगे....
दया मया ले जा "रे" मोर गाँव ले......
मोर खेतिखार रुनझुन, मन भौंरा नाचे झूमझूम, किंदर के आबे "चिरैया रे".... किंदर के आबे मोर "भौंरा रे"....
काल के अवइया कइसे आज ले नइ आये, तोला का होगे, रस्ता नइ दिखे "बइरी" तोर....
चौंरा मा गोंदा '"रसिया"...मोर बारी मा पताल "रे" चौंरा मा गोंदा..
मोला जावन दे ना "रे अलबेला" मोर....
"जागौ रे जागौ बागी बलिदानी मन, महाकाल भैरव लेखनी महामाया सीतला काली मन".....
ये गीत के पूरा शब्द मन संबोधन के हवय ...
वा रे मोर "पड़की मैना".....
छोड़ के गँवई शहर डहर झन जा झन जा "संगा रे"
मोर गँवई गंगा ये....
रेंगव रेंगव "रे रेंगइया" बेरा कड़कथे रे ......
"भइया गा" किसान हो जा तियार..
तोर मुरली म कइसे जादू भरे "जोड़ीदार"...
मोर कुरिया सुन्ना ''रे", बियारा सुन्ना "रे मितवा" तोरे बिना "हितवा" तोरे बिना....
आ मोर बइँया मा "गाँजा कली" गाड़ी चढ़ के बंबई कोती भाग चली....
दुख के रतिहा काट संगी, सुख बिहिनिया आही रे, "सँगवारी रे" .....
मोर मया तोर बर जहर जुलुम होगे "लहरी यार"...
झमझम ले लुगरा पहिर के आये हौं, देखव तो "जोड़ी" मैं कइसे लागे हौं....
दुनिया मड़ई मेला बजार ए, ये बजार ए "गा भइया"
तहीं बता "रे मोर मयारू" तोर-मोर भेंट कहाँ मेर होही.....
आ गे सुराज के दिन " रे संगी "....
रस्ता हे नवा-नवा "रे रेंगइया भइया" मोर...
जीव लागे न "हो" जग ठगनी माया....
"भइया हो" अइसे करव कुछ काम,के जुग-जुग होवै तुंहर नाम......
झन हो "ग मोर गियाँ" उदास, तोर जाँगर पथरा कस .......
रस्ता हे नवा-नवा "रे रेंगइया भइया" मोर...
"भइया हो" अइसे करव कुछ काम,के जुग-जुग होवै तुंहर नाम......
झन हो "ग मोर गियाँ" उदास, तोर जाँगर पथरा कस .......
बात मान ले परदेस झन जा "रे".....
उपर उल्लेखित गीत म - रे, अरे, अहो, ओ, गा, गो, जी, जोही, संगवारी रे,रे संगी, पड़की मैना, रसिया, मितवा, हितवा, जोड़ी, जोड़ीदार, गाँजा कली, चिरैया रे, भौंरा रे, रे मोर मयारू, रे अलबेला, बैरी, लहरी यार, रे रेंगइया, भइया गा, भइया हो, गा भइया, कबीरा हो, रे रेंगइया, संगा रे,"रे रेंगइया भइया","ग मोर गियाँ" .... ये संबोधन शब्द के प्रयोग मस्तुरिया जी मन अपन गीत म करे हवँय। कई गीतकार मन सम्बोधन के शानदार प्रयोग करके छत्तीसगढ़ी गीत मन ला नवा ऊँचाई दिन फेर मस्तुरिया जी के बाते अलग रिहिस। आज के गीतकार मन ला चाही कि उमन मस्तुरिया जी के गीत ल चेत लगा के सुनय अउ अपन गीत म भी अइसन संबोधन के प्रयोग करँय कि गीत मधुरता म कोनो कमी झन आय।
अजय "अमृतांशु"
भाटापारा
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