----------------नंदनी ------( छत्तीसगढ़ी कहानी )
निगोड़ी दिन भर खाथे रहिथे, जतेक देओ सब ला हजम कर जाथे। फेर दूध एक पाव ले जियादा नइ देय। चुन्नू के महतारी हर दिन दसो बेर नंदनी ला कोसथे।
चुन्नू जब अपन माई के मुंह ले नंदनी बर गारी सुनय, त ओकर मन भारी दुखी हो जाथे। चुन्नू अउ नंदनी बचपन ले संगी रहिन। दुनो के उमर अब 8 बरिस के हो गे हे। चुन्नू रोज बिहान नंदनी संग कोतीच नदी म जाथे। सही माने म त वह त नंदनी के संग चलत-चलत तइरना सीख ले रहिस।
अब सावन के महीना आगे रहिस बेरा बेरा म पानी टपकत रहिस हवय। इतवार के दुपहर लक्ष्मी जब घर आइस, त वो हाँफत रहिस। ओकर गोड़ म लहू के छींटा रहिस, ऐसे लगिस कोई ओकर गोड़ ला दांत ले काट डारे रहिस। जब सहोदरा ओला ए हालत म देखिस, त फेर सुरू होगे ओकर बड़बड़ाहट – “करमजली, मर काबर नइ जाथे रे!”
बमएक रात, रात के 12 बजे चुन्नू के निंद खुल गे। कारण रहिस – नंदनी अंगना म बंधाय रहिके जोर-जोर ले रंभात रहिस, चिचियात रहिस। चुन्नू बहिर निकल के देखिस, त भारी पानी बरसत रहिस। अंगना म पानी भरना चालू हो गे रहिस। उंखर घर नदी के बिलकुल तीर म रहिस, त बरसात अउ नदी दूनो के पानी पहिली उंखरे घर म घुसय।
चुन्नू अपन माई-बाबू ला जगा के सब बात बताइस। उंकरो होश उड़ गे अउ समझ गिन – अब गांव छोड़के बाजू म चुन्नु के ममा गांव जाना जियादा सुरक्षित रही।
उनकर घर म एक छोटे नाव रहिस। तेन म तीनों मन बइठ गे। संग-संग अपन गइया नंदनी ला घलो नाव के आगू म खड़ा कर दिन। नंदनी अभी घाव ले पीड़ित अउ थकित दिखत रहिस।
नाव डगमगात-डगमगात नदी म उतर गे अउ पार जाय बर लगिस। 20-25 हाथ के दूरी बिना कोनो भारी दिक्कत के पार कर लीन, फेर एक ठन जबरदस्त पानी के बहाव आय, त नाव पलट गे अउ चारों झन नदी म गिर पड़िन।
चुन्नू अउ ओकर बाबू ला तइरना आथे, त वो मन तौर के बाहिर निकले के उदिम करे लगिन। फेर सहोदरा ला तइरना नइ आवत रहिस, त ओ डूबे लागिस।
नंदनी जब देखिस के ओकर मालिकिन डूबत हे, त ओ तुरते पीछे से तइर के गीस, अउ डूबकी मार के अपन मालिकिन के नीचे पहुँच गे। फेर ओला अपन पीठ ऊपर बइठा के आगे बढ़े लागिस। नंदनी के हालत अभी घलो कमजोर रहिस, त पानी के तेज धार म ओकर तकलीफ अउ बढ़ गे। ओला पूरा ताकत लगाना पड़त रहिस।
थोड़ा दूर गीस, त ओकर सांस फूल गे। ओ डर गे – का मैं अपन मालिकिन ला बचा पाबो? फेर वो फेर जोर लगाइस। 10 हाथ अउ पार कर लीस। अब बस 5 हाथ बांचे रहिस किनारा ला धरे बर। ततके म ओकर छाती म भयंकर दरद होए लागिस। ओ सोचिस – अब मोर आखिरी बेरा आ गे हे। हो जाही।
नंदनी मन म महादेव ला जपिस – “हे प्रभु, मोला मोर मालकिन ला बचाय बर शक्ति दे, ओखर बाद मोर जान ले ले मोला कांही गम नइ रही।” अतका कहिके का होइस, नंदनी के शरीर म कुछ बदलाब आ गे। ओला अपन दरद कम लगई लागिस। फेर ओ अपन बचे ताकत संग आगू बढ़े खातिर जोर लगाइस।
दु मिनट म आखिर वो हा 5 हाथ के दूरी पार करके किनारा म पहुंच गे। पहुंचते ही सहोदरा देवी नंदनी के पीठ ले उतरिस, अउ ओला गले लगाके फूट-फूट के रोय लगिस। नंदनी घलो अपन मालिकिन के मया भरे नजर ले देखिस। ओकर आंखी ले घलो आंसू झरे लगिस।
ओखर बाद नंदनी के आंखी सदा बर तोपा गिस।
सहोदरा दहााड़ मार के रोय लागिस। अब ओकर मन म ए बात घुसिस – नंदनी के असल महत्तम का रहिस। का होइस जे वो दूध कम देथे, का होइस जे चारा जियादा खाथे, फेर ओ त पुरा परिवार बर समर्पित रहिस।
ए घटना के बाद सहोदरा के जिनगी अउ सोच म बहुते बदलाब आ गे। अब वो अपन खेती के जमीन म गोशाला बनवा लीस अउ गाय मन के सेवा म लग गे। अब हर रक्षाबंधन म गाय अउ सब जानवर मन ला राखी बांधथे।
(समाप्त)
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