Wednesday, 4 June 2025

मोर उधमी बेटी शांति – (एक नानचुन कहानी)

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मोर उधमी बेटी शांति – (एक नानचुन कहानी)


आज बिहान, लगभर 7 बजे, में नहाय के बाद बाथरूम ले बाहर निकले अऊ अपन कमरा ले जाय बर निकले रहेंव। ततके म मोर जेवनी गोड़ म बड़ जोर के पीरा होइस—में कांच के टुकड़ा ऊपर पैर रख दे रहेंव। गोड़ के तलवा ले लहू बहे लगिस। पीरा म सिसकत, में घाव ला स्पिरिट ले साफ करेवं, मलहम लगायेवं अऊ पट्टी बांध लेवं।


म तुरते समुझ गेंव का होइस हे। मोर छे बरस के बेटी शांति, जरूर खेलत-खेलत कांच के कप फोड़े रहीस अऊ ओकर टुकड़ा इहाँ-वहाँ बगर गिस। बड़ दुख के बात ये रहिस कि वो ये बात ला वो हमन ला नइ बताइस।


में सांस ला रोक के मन ही मन भगवान ले परारथना करेवं कि मोर लइका ला कुछ डिमाग देवव अऊ जिम्मेदार बनावय।


मोर नाव संजय सपरे आय, अऊ में मुंबई के दादर म रहिथंव। चार महीना पहिली, में एक वेब कंपनी ले नौकरी छोड़ दे रहेंव, ओखर खराब कर्मचारी नीति के कारन। तब ले में आर्थिक दबाव म हंव अऊ नवा काम के खोज म लगे हंव।


अब में आपमन ला मोर लइका बारे म थोड़िक बतावत हंव। शांति सिरिफ चंचल नइ हे ओखर शरारती ब्यवहार  हर दिन हमर परेसानी बढ़ाथे। अक्सर जब कुछ गड़बड़ हो जाथे, अउ वो अपन गलती ला कबूल घलो नइ करय। मोर घरवाली राधा अऊ में रोज भगवान ले परारथना करथन के शांति थोरिक शांत हो जावय, जेन ले घर म सांति आवय।


ओ दिन, मोर इंटरव्यू एक फार्मास्यूटिकल कंपनी के ऑफिस म खार म रखाय रहिस, बिहान 10 बजे। में 9 बजे घर ले निकलेवं अऊ दादर ले खार जाय बर लोकल ट्रेन पकड़ेंव। ट्रेन म बहुते भीड़ भरे रहिस अऊ मोर घायल गोड़ के संग खड़े होके यात्रा करना बड़ दुखदायी रहिस। फेर कोनो चारा नइ रहिस—एको सीट खाली नइ रहिस।


में जइसे खार स्टेशन पहुंचेंव, टैक्सी पकड़े के कोसिस करेंव, काबर के ऑफिस सिरिफ 300 मीटर दूर रहिस। फेर, सब टैक्सी वाला मना कर देय—कऊनो छोट दूरी बर जाय नइ चाहत रहिन।


आखिर म, में पैदल जाय के सोचेवं। जऊन रास्ता सिरिफ कुछ मिनट म तय हो जथे, वोला तय करत करत एक घन्टा ले जियादा लग गे। रद्दा म तीन बखत रुक के बईठना परिस मोला, अपन पीरा ले राहत पाय बर।


आखिर  म, जब में बिल्डिंग के तीर पहुंचेंव, तब देखथंव कि उहां भारी भीड़ इकट्ठा होय रहिस। जम्मो  बिल्डिंग पुलिस ले घेराय रहिस। में जिज्ञासावश एक मनखे ले पूछेंव का होइस हे।


वो कहिस कि बिहान के समय, पांच हथियारबंद आतंकवादी मन बिल्डिंग म घुस गे रहिन। ओमन कंपनी के कर्मचारी मन ला बंधक बनाय रहिन अऊ उनला छोड़े बर 10 करोड़ रुपया के मांग करत रहिन।


पुलिस ला जानकारी मिलते ही, ओमन पूरा इलाका ला घेर लिन। बातचीत करे के बाद घलो आतंकवादी मन सरेंडर करे ले मना कर दीन। आखिर म पुलिस एक सटीक ऑपरेशन चलाइस। पांचों हमलावर मारे गिस। दुःख के बात ये रहिस कि गोलीबारी म दू निर्दोष मनखे के जान घलो चल दिस।


में उहिच खड़े-खड़े सन्न रह गेंव। मोर देह म सिहरन हो गिस। अगर में समय म पहुंच गेंव रहितें, त में ओ बिल्डिंग म रहितें। हो सकथे, में घलो उन पीड़ित मन म रहितें।


जब में घर वापिस मुड़ेवं, तब मोर दिमाग म सिरिफ मोर बेटी के बात चलत रहिस। ओकर शरारत ही हा मोला देरी कराइस। वो फूटे कांच, ओकर चुप्पी, मोर पीरा—इही सब मोला संकट ले बचाय हे।


पहिली बखत, में हांस के कहेंव, "धन्यवाद, शांति… तंय मोर जान बचा लेस।" तोर शरारत ले ही मोर जान बचिस


लेखक

(डॉ. संजय दानी, दुर्ग)



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