Wednesday, 4 June 2025

रेचकत चाल वाले घोड़ा (नानकिन कहानी)

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रेचकत चाल वाले घोड़ा

(नानकिन कहानी)


मोरो बेटी हर्षिता बड़ दिन ले घोड़ा खिलौना मांगे बर जिद करत रिहिस. में  ओकर मन के बात पूरा करे बर भिलाई के खिलौना बजार में खोजे लगेंव. कतेक दुकानों में  घोड़ा के खिलौना दिखिस, फेर सब्बो मोर बजट ले बाहर रिहिन. सबसे सस्ता घोड़ा घलो कम से कम दू हजार रुपिया के रिहिस, अउ मोर करा सिरिफ़ दुअसिया (₹200) रिहिस.


में हंव हिमांशु भारती, स्टील फैक्ट्री मं बाबू के काम करत हंव, महिना के दस हजार कमाथंव. अइसन आमदनी में खिलौना जइसन छोट-छोट सुख-सुविधा घलो दूर के सपना लागथे.


मन मं भारी उदासी भर गे, मं धीरे-धीरे घरे बर लहुटे लगेंव. बजार ले निकलत बेरा, रोड किनारे एक ठन बड़ कचरा के ढेर दिखिस. ओकर ऊपर एक झिन चीज चमकत रिहिस—मं जाके देखेंव त वो घोड़ा के खिलौना रिहिस, फेर ओकर पीछू वाला बायें गोड़ टूटे रिहिस अउ झूलत रहिस. फेर घलो मोला वो मं कुछ खास बात लागिस. मं धीरे ले उठाके अपन झोला मं राख देंव अउ घरे लहुट गेंव


घरे पहुँचके मं हर्षिता ला बुला के ओला घोड़ा के खिलौना दे देंव. मं ओकर मन ला समझावत कहेंव, “लईका, घोड़ा ला लावत समय गलती ले एक ठन गोड़ टूट गे.” मोर मन मं डर रिहिस, फेर हर्षिता खुशी-खुशी खिलौना ला देखिस अउ तुरते खेले लगिस. वो हा खिलौना ला जमीन मं दौड़ावत रिहिस, बहुत खुश होके.


एक हफ्ता के बाद हर्षिता कहिस, “पापा, में अपन घोड़ा ला अपन संगी हेतल पटेल संग बदलत हंव. हम दू झिन अपन-अपन खिलौना ले एक-दूसर के ज्यादा पसंद करथन.”

मं हँसत कहेंव, “बिटिया, ये तो तुम झन के बात आय. जब तुम दू झिन खुश हव, त हमन घलो खुश हन।”


दूसर दिन सांझ मं जब मं 6 बजे घर आएंव, त हर्षिता अउ हेतल दूनों हॉल मं खेलत रहिन. मे चुपचाप एक कोना मे खड़ें होके ओमन ला देखे लगेंव. पहिली हर्षिता अपन घोड़ा ला धकेलिस. घोड़ा एक कोना ले दूसर कोना तक जल्दी-जल्दी दौड़िस. दुनों झिन हँसिन अउ ताली बजाइन. फेर हेतल अपन घोड़ा ला धकेलिस—ओही टूटी गोड़ वाला पुराना खिलौना. वो घोड़ा धीरे-धीरे लंगड़ावत चलिस. हेतल ओकर चाल देखके खूब हँसिस अउ दौड़ के ओला उठा लिस.


तभे मोर नजर ओकर गोड़ मं गिस. मं देखंव—हेतल के खुद के एक ठन गोड़ दूसर ले छोट रिहिस. वो हा खुदे थोरकिन लंगड़ात रिहिस. मोर आखी मं आँसू भर गे. मं मन मं भगवान ले प्राथना करेंव—“हे भगवान, हेतल के गोड़ ला ठीक कर दे।”


तभे मोर मन मं एक बात आइस अउ  समझ मं आ गे—हेतल काबर अपन खिलौना बदले रिहिस। शायद वो ह अपन तौर तरीका वाले एक ठिन खास खिलौना चाहत रिहिस, जेन मं ओकरे जइसन कुछ अनोखापन होवय।


— डॉ. संजय दानी, दुर्ग

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