. *अजवा खजूर के पेड़* (छत्तीसगढ़ी कहानी)
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
देवव्रत सक्सेना एक दबंग व्यक्ति तो रहिबेच्च करिन फेर विमर्श अउ काव्य के क्षेत्र मं नामी-गिरामी साहित्यकार रहिन। नगर, प्रदेश ले लेके राष्ट्रीय स्तर मं ओकर ख्याति फैले रहिस। कोलकोता, मुंबई, दिल्ली, अमरावती, लखनऊ, भोपाल आदि नगर ले बेरा-बेरा मं बुलऊवा आवय अउ सक्सेना जी अतिथि के रूप मं भाग लेवँय। सक्सेना जी बहुत अकन पुस्तक के भूमिका घलो लिखे हें। बाहर के कई झिन साहित्यकार मन बिलासपुर के नाम आवय त पूछें- ' का ये हा देवब्रत सक्सेना वाला बिलासपुर हे? '
सक्सेना जी के घर मं आये दिन साहित्यकार मन के महफिल जमे अउ विमर्श के साथ गीत-नवगीत, गज़ल के पाठ घलो होवय। सक्सेना जी ला हास्य रस के कविता अउ निबंध बहुत पसन्द रहिस अउ ओला सुनके अतका जोर ले माइक मं ठहाका लगावँय कि पड़ोस के नान-नान लइकन रोय लगें। माइक ले ओला विशेष लगाव रहिस! पड़ोसी मन ये सब ला एकर बर सहत रहिन कि एक-दू बार विरोध करइया मन ला सक्सेना जी तमाचा घलो जड़ दे रहिस! एकदम बगल के पड़ोसी रामप्रसाद अपन घरवाली के सामने ओला रोज गारी देवय- ' साला, एकदम जड़मति हे! पड़ोसी के दुख-दर्द ले ओला कुछु मतलब नि हे! ' फेर ओकर गारी ला आन कोई नि सुन पाय। एक दिन सक्सेना जी के वाचमैन ओला सुन लिस अउ शिकायत कर दीस त सक्सेना जी घर घुस के रामप्रसाद ला दू थपरा पेलाय रहिस!
एक बार सक्सेना जी बिमार पड़ गीन त पता चलिस कि खून के कमी हो गे हे। डाक्टर साहब ओला सुबेरे-शाम एक-एक चुकंदर खाय के सलाह दीस। ये गोठ-बात ला ओकर तीन बछर के नतनिन ध्यानपूर्वक सुनत रहिस। ओकर अम्मा यानी सक्सेना जी के लड़की बाबूजी के देखरेख करे बर पूणे ले बिलासपुर आय रहिस। सक्सेना जी ला थोरकुन आराम मिलिस त अस्पताल ले वापिस आय के बाद लोकल साहित्यकार मन के ताँता लग गे। संझाती बेरा सबो आवँय। गप-शप अउ चाय-नास्ता के बाद सबो शुभकामना देवँत चल देवँय। कोनो-कोनो ला सक्सेना जी ले जादा मया रहिस, त ओमन सुबे-संझा ड्यूटी देवँय अउ पेल के नास्ता-पानी करँय। सक्सेना जी मेर कुछु चीज के कमी तो रहिस निहीं। एक बेटा अउ एक बेटी। बेटा मल्टी नेशनल कम्पनी मं अमेरिका मं काम करत रहिस त बेटी पूणे के एक आईटी कम्पनी मं। सक्सेना जी घर मं अपन सुवारी संग रहँय। घर मं एक अंग्रेजी डाग घलो रहिस जेहर नाजो-नखरा मं पलत-बढ़त रहिस। ओकर महीना के खर्चा बीस हजार ले जादा रहिस। गेट मं वॉचमैन दू सिफ्ट मं ड्यूटी करँय ओमन के तनख्वाह दस-दस हजार रहिस। बिलासपुर मं दस हजार रूपिया के वाचमैन एक्को झिन नि रहिन। एकरे सेती ओकर वाचमैन के पावर घलो थोरकुन जादा रहिस! सक्सेना जी ला टीवी के समाचार, सिरियल, धार्मिक चैनल सब बकबास लगे। एकरे सेती टीवी नई देखँय अउ टाइमपास करे बर महफिल जमावँय। सुबेरे के बखत लिखना-पढ़ना करँय अउ संझाती बेरा लगभग रोजेच्च महफिल जमय। महफिल ला गुलजार करइया मन ला अउ का चाही?- बइठे बर एक हाॅल, बोले बर माइक अउ कहानी-कविता, खाये बर लड्डू-समोसा, पीये बर चाय-पानी अउ गारी देहे बर राजनीतिक नेता! राजनैतिक नेता मन बर सक्सेना जी आगी बर जाँय- एमन ओला एक्को नि सुहाय! ओकरे सेती महफिल गुलजार करइया साहित्यकार मन घलो पानी पी-पी के अपन कविता, कहानी व्यंग्य मं नेता मन ला गारी देना अपन कर्तव्य समझें! घर मं हप्ता मं एक दिन बरा-सोंहारी खवइया मन सक्सेना जी के बंगला आवँय त ओमन ला तिहार-बार कस लगय। एकरे सेती रोजेच् आवँय! बिमारी ले ठीक होय के बाद एक दिन संझा एक कवि अंग्रेजी मं एक हास्य कविता सुनाइस- ' इफ आई वेयर यूवर डाॅगी! ' खूब ताली परिस। कतकोन झिन नि समझ पाइन ओमन अउ जोर ले ताली बजाइन! सक्सेना जी खुश हो के कवि ला अपन गला मं पहिरे सोन-पालिस लगे चाँदी के चैन ला उतार के इनाम मं दे दीस! कई झिन के आँखी मं चमक आ गे जइसे देशी कुकुर मन के आँखी मं माँस के टुकड़ा देख के चमक आ जाथे! थोरकुन देर बाद सक्सेना जी के संग महफिल मं जमे साहित्यकार मन भजिया खावत रहिन त तीन बछर के नतनिन आइस अउ सक्सेना जी के प्लेट ला छिन के बोलिस- ' नानाजी! आपको भजिया नहीं खाना है! '
' तो क्या खाना है बेटी? '
' आपको सुबह-शाम नास्ते में एक-एक छछूंदर खाना है! इससे खून बढ़ता है! '
सक्सेना जी के नतनिन ' चुकंदर ' अउ ' छछूंदर ' के भेद ला समझ नि पाइस! बिचारी नानेच्च-कुन तो रहिस ?
सबो साहित्यकार हाँस परिन फेर तिवारी जी बहुत जोर ले हाँसिस अउ खाँसिस घलो! सुबेरे-संझा ड्यूटी देवइया मन मा तिवारी जी घलो रहिस। सक्सेना जी के गुस्सा सातवें आसमान मं चढ़ गे! मगर बोलिस कुछु निहीं। अपन नतनिन ला घर के भीतर भेज दीस अउ तिवारी जी ला अपन लक्ठा मं बुलाइस। ओ बिचारा समझिस कि कुछु इनाम मिलने वाला हवय!
तिवारी जी जइसे लक्ठा मं पहुँचिस, त बड़का इनाम मिलिस। सक्सेना जी के हाथ घुमिस अउ तिवारी जी के दुनों गाल मं झन्नाटेदार थपरा परिस! दुनों गाल मं पाँचो अंगठी के लोर उबक गे! एती थपरा मारे के आवाज पड़ोसी मन घलो सुनिन ओती महफिल मं चारों कोती सन्नाटा छा गे! मानो अचानक भूत आ गे हो!
सक्सेना जी के बहुत-सारा किस्सा-कहिनी हवय। का का ला सुनावँव? ओकर जबड़ लान मं एक ठिन खजूर के पेड़ हावय, जेला घर बनाय के समय ओकर पिताजी लगाय रहिस। खजूर पेड़ के ऊँचाई साठ फीट ले उपर रहिस। एहा अजवा खजूर के पेड़ रहिस। सक्सेना जी अक्सर ओकर गोठ-बात करत कहे कि अजवा खजूर के पेड़ केवल सउदी अरब के मदीना मं पाये जाथे। एकर फल बहुत मीठा अउ स्वादिष्ट होथे अउ एहा 200 बरस तक जीवित रहिथे। एकर फल पवित्र माने जाथे अउ प्रसाद के रूप मं बाँटे जाथे।
सक्सेना जी के घर शहर के अन्तिम छोर मं रहिस। लगभग पचास बरस पहिली सक्सेना जी के पिताजी कौड़ी के मोल मं जमीन खरीदके एही बिरान जगा मं अपन घर बनाय रहिस। धीरे-धीरे नौ-दस परिवार अउ बस गे। उहाँ ड्रेनेज के कोई व्यवस्था नि रहिस त सिवरेज के पानी एक डबरीनुमा गड्डा मं इकट्ठा होवय। गंदा पानी के जमाव के कारण मच्छर-मक्खी के जबड़ समस्या रहिस अउ लोग-लइका, बुढ़ुवा-जवान सबो बार-बार बिमार परें। एक दिन मोहल्ला के सियान मन इकट्ठा हो के सक्सेना जी मेर भेंट करे आइन।
' कहिए क्या समस्या लेकर आये हैं? ' सक्सेना जी अपन डागी ला पुचकारत मीठ आवाज मं बोलिस।
' समस्या तो आपो-मन जानत हॅव साहब! ' - रामप्रसाद डरत-डरत बोलिस।
' अरे! खुल के बात करव। मोला का मालूम कि का समस्या आ गे हे ? '
' सक्सेना जी, ड्रेनेज के बेवस्था नगर निगम नि करत हे। ओमन के कहना हे कि ये एरिया ओकर क्षेत्र ले 300 फीट दूरिहा हे। तीन सौ फीट के अंडरग्राउंड नाली बना के सिवरेज के पानी ला नगर-निगम के नाली मं जोड़े जा सकत हे। लगभग एक लाख रूपिया खर्चा आही। पचास हजार हमन इकट्ठा कर चुके हन। पचास हजार आप दे देवा। ' - रामप्रसाद बोलिस।
' रामप्रसाद मैं तुमन ला फूटी कौड़ी नि देवँव! पीठ पीछे मं मोर बुराई करथव अउ अभी भीख माँगे बर आ गे हॅव! नमस्कार। '- सक्सेना जी अपन तेवर दिखाइस अउ घर के भीतर जा के दरवाजा ला धड़ाम ले बन्द कर दीस। मोहल्ला के सियान मन ठगे कस रह गिन! रामप्रसाद ला सक्सेना जी के थपरा सुरता आ गे। डेढ़ साल पहिली घर घुस के रामप्रसाद ला दू-थपरा सक्सेना जी पेलाय रहिस!
थोरकुन देर बाद रामप्रसाद के घर मं सबो सियान बइठ के चाय पियत-पियत गोठ-बात करत रहिन। विषय सक्सेना जी ही रहिस।
ओही समे पाँचवी कक्षा मं पढ़इया रामप्रसाद के लइका घर के भीतर ले निकलके आइस अउ एक दोहा के अर्थ मासूमियत ले पूछिस-
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथिन को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
पापा बोलिस- ' जेला हमन अभी तक समझ नि पावत रहेंन ओला तँय आज समझा देहे बेटा! अब हमन सब समझ गे हन ! सक्सेना जी अजवा खजूर कस बड़का पेड़ हे। ये पेड़ के फल बड़ स्वादिष्ट होथे अउ अड़बड़ पवित्र माने जाथे। एकरे सेती प्रसाद के रूप मं घलो दिये जाथे। फेर खजूर के पेड़ कोनो पथिक ला न तो छाँव दे सके न ही फल! अइसन पेड़ का काम के बेटा! '
समाप्त
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Chhattigarhi story written by
डाॅ विनोद कुमार वर्मा
व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक
मो- 98263 40331
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