बीमारी
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चार दिन ले अस्पताल के आई सी यू मा रखे के बाद जब जनरल वार्ड मा शिफ्ट करे गेइस ता मोला अइसे लागिस के सच मा मौत के चंगुल ले बाँच के आगेंव।
मरीज अउ उनकर देखभाल करइया मन ले जनरल वार्ड खचाखच भरे राहय। मरीज मन से मिलइया जुलइया मन तको आवत-जावत राहयँ।अपन बेड के चारों मूड़ा नजर दँउड़ा के देखेव ता मोर डेरी डहर के बेड मा उही लगभग 30-32 साल के नवजवान अउ जेवनी तरफ के बेड मा नवयुवती पेशेंट सुते रहिन।
संझा के होवत ले इहाँ एक बात देखेंव के पेशेंट के देखभाल-सेवा करे बर आयें परिजन मन एक दूसर ले घूल मिलगें।मोर धर्मपत्नि हा बगल के नोनी के शायद दाई होही तेन ला पूछिस--
"इहाँ कतेक दिन होगे हे भरती होये महतारी।"
"बीस दिन होगे हे बेटी।"
"नोनी ला का होगे रहिस।"
प्रश्न ला सुनके वो सियनहिन चुप होगे फेर थोकुन बाद धीरे से बताइस-- "ये हा जहर खाले रहिस बेटी।"
उँकर बातचीत ला सुनके मैं गुने ला धर लेंव।अइसे का दुख परगे रहिस होही जेमा कुँवारी लड़की ला जहर खाये बर परगे।मन मा कई बात आइस-गेइस।जमाना के चाल-चलन ला देख के घेरी-बेरी ये लागय के प्यार-मुहब्बत के चक्कर होही।
बगल के नवयुवक ला मही पूछेंव--"कस बाबू का होगे हे। "
"लिवर अउ किडनी खराब होगे हे अंकल।"
"अरे! ये उमर मा भला ये सब कइसे होगे?"-- मैं अचरज मा परके कहेंव।
" काला बताववँ अंकल।ये सब भट्ठी के सेती आय"-- वो कहिस।
मोला फेर गुने ला परगे।लागिच के समाज मा ये दूनों बिमारी दिन दूगुना,रात चौगुना बाढ़त हें।येला कइसे रोंके जाय?
चोवा राम वर्मा ' बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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