*काय बात के गुमान*
कोनो-कोनो ला काहत सुने हँव कि, ये मोर निजी जिंदगी ये, मैं काँही करव, कोनो ला झाँके के काम नइहे, ना दखल करे के अधिकार हे, मैं अपन भला बुरा सब जानथँव, का ये सिरतोन बात हरै ? तब मैंहा कहिथँव - बेटा ये तोर कइसन निजी जिंदगी --- तँय तो परमात्मा के कृपा होइस तब ये जग मा मनखे जनम धरके आय हस, इहाँ कहूँ मेर तोर जोर आजमाईश चलतिस ता तैं कोनो टाटा बिरला अंबानी घर घलो जनम ले सकत रेहे, तोर मन के चलतिस ता जिहाँ हावस तिहाँ के छोड़ अन्ते घलो आ सकत रेहेस, फेर नही ये तो ऊपरवाला के मर्जी हरै जउन तोर पहिली जनम के करम कमाई के सेती इहाँ आय हस अउ उही देवधामी कस दाई ददा ला पाय हस। अब तोर निजी जिंदगी हरै ता बने नान्हे ले बाढ़े अपने अपन नइ हो जते, काबर दाई ला रातभर गिल्ला मा सुताय होबे रे परलोखिया, काबर ददा के मन ला करलाय होबे, अपन बाँटा ला तोला खवाय हे, अपन पेट काट तोला पढ़ाय लिखाय हे तब जाके तैं इहाँ खड़े हस, थोरकिन कान काय तीपय तोर पीरा मा महतारी बाप के करेजा झँवा जय, नून मिरचा ला धरके तुरते डीठ उतारय, इहाँ भाग उहाँ लेग, फलाना डाक्टर, ढेकाना बइद, कतका बदना बद के बचइन, पता नही कोन बिला मा बिलई कस पीला लुकइन, अरे मूरख तोर हाँसी बर तो कका बबा डोकरी दाई अउ फूफू घलो अपन सुख ला निछावर कर दिस।
तैं तो काँही नोहस बाबू थोरिक सोंच के देख, काय हमर वश मा हे, दाई ददा के कृपा होइस ता हम जग मा आय हन, गुरु के कृपा होइस तब ये संसार ला जाने हन, उही हर सत अउ असत के पहिचान कराइस, कोन बने कोन गिनहा के भेद ला बताइस। ए देश, परम्परा, रीति रिवाज अपन संस्कृति के ज्ञान ला हम अपन समाज ले सीखे हन, जेखर प्रेरणा ले जिनगी जीये के पाठ ला पढ़े हन तब ये समाज के घलो ऋणी हन, हम ऋणी हन ये माटी के जेखर धुर्रा मा खेल कूद बाढ़ेन, जेखर पोषक तत्व ले उपजे धान गहूँ संग साग पान ला खाके,उही खनिज तत्व ले हमर देह सजे सवँरे हे। हमर मूड़ मा तो जबर लागा हे, कभू सोंचथँव कइसे छूटाही ये करजा हा।
बचपन बीतिस जवानी आगे अब तो अकेल्ला रहना घलो मुश्किल होगे, बर बिहाव के जोखा मा ढेड़हीन, सुवासिन अउ पारा परोस, जात पार, नता गोतियार, सबो के तो भार भरोसा मैं दुल्हा राजा बनके अँटियात रेहेंव, मैं तो ऋणी हँव हमर घर कुँवरिया के, ओखर आय के पहिली मोला कोन्हो दमाँद बाबू दुलरू कहिके अतका प्यार नइ लूटावत रिहिन, ससुरजी के प्रेम, सास के दुलार, सारा सारी के प्यार, कइसे भूलाहूँ ओ सरहज बहिनी के मया ला, बहुत दुख होथे ओखर आय के पहिली कोनो मोला मौसिया, फूफा नइ काहत रिहिस हे, मौसिया बनेंव, फूफा बनेंव अउ ओखरे परसादे दू झन लइका के ददा बनेंव, आज भरे पूरे कुटुंब बेटा पत्तो नाती संग इहाँ सरग असन घर परिवार के मालिक हँव। मोर जीवन बर अतेक बड़ योगदान देवैया, देश समाज परिवार के का मैं कर्जदार नइ हँव?
खसलत उमर मा वो निर्जीव लउठी घलो तो मोर सहारा बनिस, वो डाक्टर जेन जीवन तो नइ दे सकय फेर साँस ला राखे बर अपन सबो उदीम करथे।अरे जीवन तो जीवन मरत खानी घलो चार ठन खाँध के जरुरत परथे, दूसर हर चिता रचही, दूसर मन सुताही, तब जाके तोर मयारू बेटा आगी लगाही, हाड़ा ला धरके प्रयागराज कोन जाही, इहाँ तक तोर पानी पिंडा घलो वो दूसर बांभन कराही, तोर किरिया करम बर नता हितवा सब सकलाहीं गउमाता के पूँछी मा भाँचा पानी रिकोही, भवसागर पार कराही।
बने गुनव, सुजानिक हो, प्रकृति के सबो निर्जीव पदार्थ घलो पर हित अपन आप ला समर्पित कर देथे, पेड़ कभू नइ काहय कि फूल मोर निजी हे एला टोरना नइहे,ये मोर फर आय एला खाना मना हे, बल्कि एखर स्वभाव देखव ये तो फरे के बाद अउ उदार हो जथे जउन लदलद ले खाल्हे डहर ओरम जथे।नदिया नरवा कभू अपन पानी ला नइ पीयय, ये फुरहुर-फुरहुर चलत पुरवाही घलो चोबीस घंटा परहित बर बोहावत रहिथे, अगास मा चमकत सुरुज घलो हर सरी संसार ला प्रकाश अउ उर्जा बाँटत हे, रथिया चंदा रानी अपन शीतल अंजोर ले जग ला रौशन कर देथे, सिखोना देवत प्रकृति के सबो जिनिस कभू नइ काहय ये संसाधन हमर निजी हे।
हम तो सब बात मा दूसर ऊपर निर्भर हाबन, पर भरोसा आय हन पर भरोसा जाबो,तब तोर का तैं कोन?फेर काय के निजी जिंदगी ?
चार ठन ज्ञान के बात का जानेन, चार पइसा का कमायेन, ताहन जिनगी ला निजी समझे बर धर लेन।सबो जिनिस जब ये समाज ले मिलथे तब अकेल्ला तोर का अस्तित्व हे,बहुत गुमान हो जथे फेर काय बात के गुमान, हाँ गुमान कर सकत हव अपन देश के, समाज के, गुरु के, परिवार के, हम ला जनम देवैया दाई ददा के,अउ सबले बड़े गुमान अपन करम के जेखर ले दूसर घलो गुमान करय।
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नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*
ढाबा -भिंभौरी, बेमेतरा छग
7354958844
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