Monday, 16 June 2025

आवव खँचवा खनन*. ब्यंग

 *आवव खँचवा खनन*.     

                                           ब्यंग 

       हमर देश मा जतका महापुरुष मन जनम धरिन, का जरूरत रिहिस रापा कुदारी धरके खँचवा पाटे के। बने सब झन अपन मा मस्त मौला जीयत हे ओइसने रहि लेतिन। अउ बरोबर करके ये दुनिया मा खूँटा गाड़ के रहना तो नइये। आखिर मा तोला अढ़ाई गज के गड्ढा मा पाट देहीं। फेर उँकर सोच रिहिस कि उपर वाले हर ये धरती मा मनखे जोनी मा भेजे हे तौ हमरो थोर बहुत फरज बनथे कि हम सब आदमी ही बनके रहन। अब मुहरन गत गड़हन  तो आदमी के तो हे फेर  दानवी सुभाव  हर मनखे के मूँड़ी चढ़के नाचत हे। जिँकर मनके चेतना जागिस वो मन आदमी के बीच कोनो गड्ढा झन रहय कहिके नंगत जोर लगाके काम करिन। 

सबले पहिली संत शिरोमणी घासीदास जी भिड़िस। मनखे मन सब बरोबर होके डिपरा मा रहय कहिके एक समान के ज्ञान वाले रापा कुदारी मा बरोबर करे के जोखा लगाइन। एक झन बपुरा गरीब कबीर जी ठेही मार मार के धरम पाखंड आडंबर के खँचवा ले तिर तिर के निकाले बर लिख लिख के कुड़ही रख दिस। असर ये हे कि जेकर ले मनखे बचके रहय गड्ढा मा झन झपाय किहिस, उही गड्ढा मा जाके कबीर के अनुयायी बने हें। इँकरे लगे लगे स्वामी विवेकानंद जी पागा बाँध के देश दुनिया के खँचवा पाटे बर निकल पड़िस। आदत आचरण मा सदाचार खुसेर के आत्मा परमात्मा के बीच के खोँचका पाटे के उदिम करिस। ओकर ले आत्मज्ञान अतका बाढ़िस कि प्रवचन कथा बर जगा कम होवत दिखथे। मनखे कतका आत्मा परमात्मा के रहस्य ला जान पाइन वो ये बात ले समझ मा आथे कि हवन पूजन मा चढ़ौतरी के वजन जादा होना चाही। ए डहर गाँधी बबा ठेंगा धरके चल पड़िस। ओ मन ऊँच नीच छुआछूत के खँचवा पाटके समाजिक समरसता अउ एकता लाने के उदिम करिस। मनखे के समरता के बीच परे कचरा ला सफा करे के नतीजा आज सुग्घर ढंग ले सफाई अभियान बर स्वच्छ भारत चस्मा मा लिख के देखत हे। ओकर पिछलगहा साहेब जी जेला आम्बेडकर के नाम ले जानथें। ओहू अपन कोती ले बिक्कट कोशिश करिस कि समानता हक के सँगे सँग कुप्रथा ले बाहिर लिकलय। अपन नाम के झंडा जम्मो दुनिया मा गड़ा डारिन। ओकर  उँचहा सोच अउ सजग मनखे होय के दुनिया मा साटिपिकट के जरूरत नइ परिस। मनखे हक अउ कायदा मा रहय एकर बर सइघो संविधान लिख के धरा दिस। आज उही संविधान के मान सम्मान मा फकत संसोधन हर मूल अधार हे। जेकर ले खँचवा डिपरा मा कतका समानता लाही या आवत हे सबके नजर हे। पहिली गड्ढा मा ढकेलत हे फेर सरहा डोरी के सहारा देके उप्पर चघावत हें। 

      जतका इतिहास के युग पुरुष होइन, का जरूरत रिहिस ये सब काम ला अपन हाथ मा लेय के। इन मन ला सब के ज्ञान सतबुद्धि रिहिस, फेर ये नइ जान पाइन कि इहाँ जतके गड्ढा पाटबे ओतके खने कोड़े के  रिवाजिक काम होथे।एक ठन हर पटाय नइ रहय दूसर खाँचा तइयार मिलथे। मनखे समाज बर आदर्श के उदाहरण तो बनगे, फेर इँकर सोच अउ मनखे समाज बर देखे सपना सब गड्ढा मा जावत हे।अइसन दसा मा  गाँधी जी उप्पर डहर ले चस्मा पोछ के देखत होही अउ खुश होही कि मँय इँकर बीच ले जल्दी निकल गयेँव कहिके। स्वामी जी मूँड़ के पागा हेर के  मुँह ढाँकत होही एकर सेती कि ये मनखे मन झन दिखय। सौ मन साबुन आज के मानसिक चिटियाहा मन ला कतका उजराही। जिकर मन हिरदे मा कजरी भरे हे तिँकर मन बर कोन किसम के साबुन धरके कते तपसी अवतरही। अउ सार बात ये हे कि आदमी के बीच  कोनों जुग काल मा समानता समता आयेच नइये। हवे तो फकत खँचवा।  अउ कोनो जगा काकरो बीच खँचवा नइये तौ वो जगा आपसी खाँचा कोड़के पुन्य लाभ ले सकत हव। 

         खँचवा काकर बीच नइये घर परिवार समाज गाँव शहर देश देश के बीच खँचवा हे। भाईगिरी के जमाना मा भाईचारा बटइया भाई दिखय ना चारा। दमदार मन डिपरा मा हे अउ लिल्हर मन दहरा मा उबुक चुबुक होवत हें। मौका के ताक मा सब बइठे हें, कि कतिक बखत काकर बर खँचवा कोड़े जाय। जेकर ले आगू वाले बोजा जाय जेकर ले हमर बोलबाला होय। खुराफाती तकनीक ले काकरो तरक्की मा अड़ंगा डारे के सफल प्रयास होना चाही। बनत ला बिगाड़ अउ सुम्मत ला उजाड़ मनखेपन के मूल अधार होना चही।खुद से नइ होवय तब सँगवारी बना। दूसर बर गड्ढा कोड़इया खुदे झपाथे ये बात जुन्ना होगे। आगू वाले नइ बोजाही तब तक चैन से बइठना आत्मा ला गवाही नइ मिलय। काबर कि अपन तरक्की बर आगू वाले बाधक हो सकथे।

      जौन ज्ञान उपदेश अउ करम ले महामानव मन खँचाना पाटे के रद्दा बनाइन ओकर ले जादा गड्ढा खनावत हे। कभू कभू अइसे लगथे कि ये मन साँप ला दूध पियाके चल दिस। एक दूसर बर दाँत पिसना अउ गिराना आदमी के आचरण मा सामिल हो गेहे। ये दुनिया मा सुख समृद्धि ले रहना हे, आगू वाले ले अगुवाना हे तब खँचवा कोड़ना ही एक ठन सहज उपाय रहि जाथे। समाजिक समरसता एकता समानता अउ सद्भाव के रस पीबे तब नीज तरक्की के रसास्वाद लेय के पहिली अरझ के मरे के संभावना दिखथे। नेकी अउ परमार्थ के लफड़ा मा कोन पड़े। स्वारथ लाख करे सब प्रीति, सुर नर मुनि सबके यह रीति।.  जब स्वारथ सधाए के बात बेद कर सकथे तब मनखे ला तो सीख उँहिचे ले मिलथे। अभिमन्यु कुल के मन पेट भितर ले ईर्ष्या द्वेष राजनीति खुराफाती ला सीख के आथें। तब तोर शिक्षा ज्ञान धरम करम दर्शन के गोठ ला सीख के का करम ठठाहीं। देश दुनिया के बात छोड़ सग भाई हर भाई ला गिराय के उदिम करत मिलथे। तोर घर के अलहन मा परोसी मुसकात रेंगथे। तब समझ ले कि वो अपन अच्छा दिन के भान करत हे।ये पारा के कुकुर वो पारा के कुकुर ला देखके गुरेरत रथे तभे समझ मा आ जाथे कि सामाजिक समरसता के रसा कतका करू हे। फूट डालो अउ राज करव चाहे खँचवा खनव अउ आगे बढ़व एके बात आय। एक दिन सब ला गड्ढा मा जाके बोजाना हे। फेर जब तक जीवन हे आगू वाले बाजू वाले तिर तखार के वो मनखे जे तोर ले सजोर हे कमजोर करे बर ये काम चलते रहना चाही। कलेचुप रेहे ले जिनगी के रद्दा मा कभू नइ अगुवा सकस। आगू चलके पछतावा झन होवय। सम्पन्नता अउ सम्मान बर अतका काम ला फर्ज समझ के करना ही परथे। जिनगी मा कुछ नाम पहिचान बनाना हे सफल आदमी के पद पाना हे तब आवव हम सब एक दूसर बर खँचवा खनन।


               (का के बधाई 2019ले)

राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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