*कहिनी* *// भैरा कका //*
***************************************
लाम पहार के धरी म एकठन गाँव बिसारटेंवना हावे। गाँव ओतका जादा बड़का नि हे फेर सुम्मत के नांव दूरिहा-दूरिहा ले सोर बगरे हावे। गाँव के छेदहा म पीपर रुख के तरी चरखी के घरर-घरर अऊ हथौड़ी ले लोहा कुचे के ठिनींग-ठानंग सोर दुरिहा ले रोजेच बारो महीना सुनावत रहिथे। उही जघा छोटकून एकठन घर म झिटकू नांव के भैरा कका ओकर गोसाईंन पंवारा ओमन के दू लइका एक झन बाबू अऊ दूसर नोनी सुग्घर नानचूक परिवार रहय।
झिटकू कका भैरा जरुर रहिस फेर गजब के कारीगरी करय। ओहर भारी मिहनती अऊ ईमानदारी के संगे-संग सुवाभिमानी घलो रहिस। कका गरीब रहिस फेर ईमानदारी ओकर रग-रग म समाय रहिस। ओहर *सही काम के सही दाम* लेवय अऊ जांगर ओतहा नि रहिस। ओकर ईमानदारी के सोर दूरिहा-दूरिहा ले बगरे रहय।
ओहर लोहा-लंगड़ के गजब के जिनीस बनावय अऊ ओमा सुग्घर छपेरी घलो करय। नांगर लोहा , जेरु , हंसिया , कुदारी , कलारी , गैंती , रांपा , टांगी , तावा , लोहाटी तारा-कुंची अऊ आनी-बानी के सुग्घर जिनीस बनावे। जिनीस के संगे-संग टांगी , बउसला , हंसिया , परसुल , कुदारी अऊ कतको अकन जिनीस मन ल धार घलो करय।लोहा-लंगड़ के बनाय जिनीस ल बेच-भांज के अपन परिवार अऊ लोग लइका मन के भरन-पोसन करत जिनगी जियत रहिस।
झिटकू कका भैरा रहिस ते पाय के धीरे गोठ ल नि सुने त कभू-कभू आने जिनीस बनाय बर कहे त आने कर देवय त गोठ सुने बर पर जाय फेर भैरा ल कतको गोठियाव कि गारी देवौ ओला तो कोनों किसिम के फरक नि परे। ओला इशारा म बतावंय अऊ इशारा ले समझ के करय। भैरा मनखे मन के जिनगी जीए के अलगेच ढंग रहिथे।
काम बुता म ओकर गोसाईंन पंवारा घलो संग देवै। कभू चरखी ल किंदारे लागे त कभू भट्ठी म कोइला डारे के बुता करय। अऊ काहीं कुछू काम ल मदद करे लागे। लोहा म पानी देहे के अलगेच ढंग रहिस ते पाय के ओकर बनाय धार झटकून भोथवा नि होवय। भैरा कका के बनाय जिनीस के दूरिहा-दूरिहा ले सोर बगरे रहिस। कुछू जिनीस बनवाय बर मनखे मन पन्दराही ले आघू कहे रहंय तभे बन पावय।
गाँव पहार धरी म रहे के सेथी जंगल म आनी-बानी के रुखराई के संगे-संग मउंहा , बगरंडा , अंडी , कोसम , लीम अऊ करंज के रुख जादा रहिस। खेत-खार म अरसी , सेरसों , तील अऊ सूरुजमुखी घलो उपजावंय। बीज ल पेर के तेल निकाले बर लकरी के बने तिरही अऊ घानी ल जादा बउरें। झिटकू कका तारा कुंची बनाबेच करे ते पाय के ओकर दिमाग म तेल पेरे बर भाप ले चलइया मशीन बनाय के उदीम घेरी-बेरी मन म आवत रहिस।
कका के दिमाग म मशीन बनाय के धुन सवार होगे रहिस ते पाय के ओकर सबो काम धीरे-धीरे छूटे लागिस। मनखे मन घलो हंसिया , कुदारी , टांगा , गैंती अऊ रांपा के काम करवाय आय बर धीरे-धीरे बंद होगिस, काबर के ओकर चेत काम कोती जादा नि रहे भलुक मशीन बनाय कोती जादा रहिस। काम छूटे ले पइसा कमतियाय के शुरु होगिस।जेकर ले परिवार के खरचा चलाना मुसकुल होगे।
' घर के हालत देखत हौ अऊ मशीन बनाय के धुन म येती सबो काम बुता छुटगे। घर के हालत खराब होवत जावत हे '.... पंवारा गुस्सा म कहिस ! ' थोरिक दिन अऊ रुक जा सब ठीक हो जाही '.....कका कहिस ! ' पाँच साल तो होगिस मशीन बनावत अऊ कतेक दिन लगही ' ?..... भरे गला ले पंवारा कहिस ! ' कमानी अऊ दांता बनावत हौं तहं ले मशीन बन जाही '.....धीरज धरावत कका कहिस ! ' *कब बबा मरही त कब बरा खाबो* हाना कस लागत हे तुहंर गोठ ह '.......पंवारा फेरेच कहिस। ' आज ले अपन मुहूँ नि खोले रहेंव फेर अब मजबूर होगे हौं अइसन म घर नि चल सके '.....रोवत पंवारा कहिस। ' पूरा समें पाछू कोती नि देखत रहें,कभू अवइया समे ल देखना चाही '.....कका बीच म टोंकत कहिस। ' सियान मन कहें हावें जेन अतीत डहर ले सबक हासिल नि करे ओहर वर्तमान म अंधवा अऊ भविष्य म अंधवा बने रहिथे '......पंवारा गुस्सा म कहिस।
' पाँच साल म जतका पइसा कौड़ी रहिस तेन सिरा गिस अऊ जतका गहना रहिस तेनो बेचा गिस अब तो कुछू नि बाचिंस '.... सुसकत पंवारा कहिस। ' मशीन एदे चालू होवत हे '....देखावत कका कहिस ! ' एसो के जाड़ा बिना कंबल के लइका मन जाड़ काटिन हे '......आंसू पोछत पंवारा कहिस। 'आज एकझन बड़का इंजीनियर देखे अवइया हे '.....बात ल बीच म काटत कका कहिस ! ' हा अऊ सुन न जी! गंवटिया ल कहे रहेंव काहीं-कुछू मदद करे बर ओहर दिही '.....पंवारा ल भेजत कका कहिस।
थोरिक बेरा म इंजीनियर साहेब आइस । ' राम-राम कका '..... जोहारत इंजीनियर कहिस ! ' राम-राम साहेब आवौ ' .... कका बइठे बर इशारा करत कहिस। ' तोर मशीन बनाय के सोर सुनावत रहिथे थोरिक जानकारी बतावौ '......इंजीनियर पूछिस ! ' एदे भट्ठी म आगी बरही जेकर ले लोहा के चद्दर ले बने ड्राम म पानी गरम होही। ड्राम म लगे मीटर म भाप के रिडींग दिखाही। एकर भाप ह कंप्रेशर पाइप ले भीतरे-भीतर जाही अऊ मोटर ल घुमाही अऊ लीवर ह खाल्हे ऊपर होही। मोटर म लगे पट्टा के सहारा ले खाल्हे ऊपर लगे दूनों चरखी चलही अऊ चरखी म पेरावत तेल नलकी ले बाहिर निकलही अऊ एकर पाछू कोती ओकर खरी अलग निकलही। '......समझावत कका कहिस ।
' वाह ! गजब सुग्घर कका जी '.......पीठ थपथपावत कहिस। ' कब ले मशीन बन के तियार हो जाही ' ?....इंजिनियर पूछिस ! ' बने बर तो बन गे हावे फेर थोरिक रुक जावत हे एला सुधार करे बर परही '....... बतावत कका कहिस। मशीन के कमानी अऊ लीवर ल देखते-देखत म ठीक करिस अऊ मशीन बनके तियार होगिस। अब भैरा कका के जीव म जीव आइस।
भैरा कका लोहा के सोज्झे काम करइया के दिमाग म भाप ले चलइया तेल पेरे के मशीन बनाय के सपना अऊ अपन जिनगी के जादा समे खपा देथे। गरीबी अऊ पारिवारिक तनाव ले जूझत किसिम-किसिम के विषम परिस्थिति ल झेलत सरलग पाँच बछर के ठोसहा मिहनत के पाछू बिसारटेंवना गाँव म भाप ले चलइया तेल पेरे के मशीन लगाय के सपना ल पूरा करथे।
चिभिक अऊ मिहनत ले भैरा कका के मशीन बनके तियार होगिस। तीर-तखार के गाँव म सोर होगे कि भैरा कका भाप ले चलइया तेल पेरे के मशीन बनाए हावे। इंजीनियर मन आवत गिन अऊ कका के बनाय मशीन ल चला के देखत जावंय अऊ मशीन के बनइया कका ल सहरावंय । सरकार ओ मशीन ल मुहूँमांगा खरीद लिस अऊ भैरा कका ल अइसने अऊ मशीन बनाए बर आडर मिलिस। कका के नवाचारी खोज के सेथी सरकार डहर ले पुरस्कृत करे गिस। कहे गे हावे - " समे आय म घुरवा के घलो भाग बदल जाथे "। भैरा कका अऊ ओकर परिवार के जिनगी म नवा अँजोर बगरगे।
✍️ *डोरेलाल कैवर्त " हरसिंगार "*
*तिलकेजा, कोरबा( छ.ग.)*
****************************************
No comments:
Post a Comment