(लघुकथा)
मिलावटी
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"डाक्टर साहब जी"।
"हाँ बोलिये।"
"आपके दवा ला खावत दू महिना ले जादा होगे।एको कनी काम नइ करत ये तइसे लागथे।"
"ठीक है मैं दवा बदल देता हूँ किंतु मैंने दवाई तो ठीक ही लिखा था।जहाँ से खरीदे हो वहीं से वह नकली या मिलावटी मिला हो "--अपन माथा ला छूवत डाक्टर कहिस।
हम तो सुनके अवाक रहिगेन।राशन ला मिलावटी सुने रहेन अब दवाई हा घलो मिलावटी।मुँह ले बरबस निकलगे-" हे भगवान पइसा के लालच मा मनखे के नियत घलो मिलावटी होगे।"
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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