Friday, 6 June 2025

अपन बेरा के आरो देवत संग्रह: ये कलजुग के गोठ*


 

*अपन बेरा के आरो देवत संग्रह: ये कलजुग के गोठ*

        अजय अमृतांशु समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य आकाश के कोनो अनजान तारा नोहय। समाचार-पत्र मन म समीक्षात्मक लेख अउ साहित्यिक मंच के संचालन बर उन ल छत्तीसगढ़ के साहित्य बिरादरी के लोगन जानथें पहिचानथें। उन अपन समय के नवा-जुन्ना (नवोदित अउ स्थापित) दूनो साहित्यकार मन के कृति ऊपर सम्यक रूप ले लेखनी चलाथें। उन कृति मन के पुनः प्रकाशन करथें। पुनः प्रकाशन ए सेती लिखे हॅंव कि सुधि साहित्य प्रेमी मन के चर्चा ले ही कोनो कृति डहर आम पाठक मन के चेत जाथे। 

      अजय अमृतांशु छत्तीसगढ़ी पद्य म छंदबद्ध लेखन के पक्षधर रचनाकार आवॅंय। छंद के बढ़िया जानकार हें। कुण्डलिया छंद उॅंकर पसंदीदा छंद हे। एकर प्रमाण उॅंकर एक मात्र प्रकाशित कृति 'ये कलजुग के गोठ' आय, जेन म १५१ कुण्डलिया संग्रहित हें। जेकर भूमिका श्री अरुण कुमार निगम जी लिखें हवॅंय। जेमा उन मन कुण्डलिया के शिल्प के बात के संग ओकर तब ले अब तक के इतिहास के कुछ जानबा ल सूत्र रूप म समाहित करे के सुग्घर उदिम करे हें। 

      ए संग्रह म अजय अमृतांशु के सामाजिक, पर्यावरणीय अउ वैज्ञानिक दृष्टि म पगाय चिंतन साफ नजर आथे। संग्रह के नाम 'ये कलजुग के गोठ' अपन आप म एक संदेश देवत हुए उॅंकर गहन चिंतन अउ सूक्ष्म दृष्टि ल रेखांकित घलो करथे। लोक म एक कहावत चलथे कि हे भगवान...घोर कलजुग आगे, शायद इहें ले अमृतांशु ल समाज अउ व्यवस्था म व्याप्त विसंगति ल अभिव्यक्ति दे के प्रेरणा मिलिस। 'ये कलजुग के गोठ' म वर्तमान समय के विसंगति अउ लोक जीवन के सुग्घर चित्रण हावे। जीवन दर्शन, तीज-तिहार, परम्परा, मौसम, खान-पान, झिल्ली, दान-धर्म, नारी शक्ति, राजनीति अउ चुनावी एजेंडा, मोबाइल, महंगाई, घूसखोरी, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, विश्वव्यापी त्रासदी कोरोना, जल-जंगल-जमीन, आडंबर, विज्ञान, नशा, किसान अउ आम आदमी के पीरा जइसन कतको विषय वस्तु के विविधता अउ विस्तार ए संग्रह म हावय। विषय वस्तु के विस्तार ले ही अजय अमृतांशु शब्द भंडार के मामला म कतेक धनी हें, अनुमान लगाय जा सकत हे। बावजूद छत्तीसगढ़ी म उपयुक्त शब्द के रहिते, कुछ-कुछ हिंदी के शब्द मन ल बउरना, विचारणीय हे।

      मौसम संबंधी उँकर कुण्डलिया मन ल पढ़ के अइसे लगथे कि उन प्रकृति अउ ऋतु परिवर्तन ऊपर अपन दृष्टि जमा के रखथें। तभे ठंडी, गरमी अउ बरसात सबो के चित्रण जीवंत हो सके हे। संग्रह म मौसम संबंधी कुण्डलिया अतेक अकन हे, कि पाठक ल कहूॅं-कहूॅं भाव के दुहराव जनाही। 

      छत्तीसगढ़ के दर्जन भर ले आगर नदिया मन ल लेके लिखे गे कुण्डलिया अनुपम हे। पाठक के मन ल भाही, उहें उॅंकर सामान्य ज्ञान म बढ़ोतरी करही।

      लोक अध्यात्म ले एक ऊर्जा अर्जित करथे। थके-हारे जिनगी म अपन ईष्ट के ध्यान धरथे। जिनगी के भाग-दउड़ म जतका अध्यात्म के जरुरत हे, ओ अनुपात म ए संग्रह म एकर पुट पाठक ल मिलही। अमृतांशु जी खुद कबीर के अनुयायी आँय। उनकर लेखन म उॅंकर छाप दिखथे।

      *आडंबर ला छोड़ के, कर लव प्रभु के ध्यान।*

      *हिरदे ले आवाज दव, मिल जाही भगवान।।*

        लेखन के शुरुआती दौर ले अमृतांशु हास्य-व्यंग्य के कवि के रूप म कवि सम्मेलन म भाग लेवॅंय। एकर प्रभाव उनकर कुण्डलिया म घलव दिखथे। कहूॅं-कहूॅं मेर लोक म प्रचलित शब्द मन के प्रयोग बड़ सुग्घर हे। समासिक अउ युगल शब्द मन के बीच योजक चिह्न के कमी घलव खलत हे।

        भूमिका म कुण्डलिया के बताय गे शिल्प म जम्मो कुण्डलिया सोला आना खरा उतरथे। छंद-बद्ध रचना म जेन तुकांत, यति, गति अउ लय/प्रवाह होना चाही, वो सब पाठक ल ए संग्रह म मिलही।

      चूंकि एक कुण्डलिया, एक दोहा अउ एक रोला ले मिल के पूरा होथे। एमा एक शर्त यहू हे कि दोहा अउ रोला दूनो मिला के एक भाव ल पूरा-पूरा समोखय, स्पष्ट करय। शिल्प अउ भाव दूनो ल साधना मुश्किल तो हे, फेर नामुमकिन नइ हे। देखे जाथे कि दोहा के चौथा चरण रोला के पहला चरण बनाय के बाद रोला के संग समरस भाव ले जोड़ पाना कठिन होथे। अमृतांशु जी के ये संग्रह म कोनो-कोनो जघा तीसर अउ चौथा डाॅंड़ के बीच भाव के दृष्टि ले जुड़ाव मोला कमजोर /कमसल नजर आइस। उहें कुछ जघा वचन संबंधी चूक हे, जउन प्रूफ रीडिंग के चूक हो सकत हे।

      *झिल्ली कभू सरय नहीं, फेंकव झन मैदान।*

      लोक हित म उनकर अइसन कई पंक्ति हें, जेन अमृतांशु ल सामाजिक सरोकार अउ पर्यावरण हित के पक्ष म खड़े कवि साबित करथें।

      एक रचनाकार हमेशा सृजनात्मकता के पक्षधर होथे। उनकर भीतर विश्व कल्याण के भाव होथे। सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया: के भाव ले लिखथे। आज जब पूरा विश्व बारुद के ढेर म खड़े नजर आथे, अइसे म अजय अमृतांशु भला अपन दायित्व ल निभाय म कइसे अछूता रही। उन ये कुण्डलिया लिखके अपन जिम्मेदारी ल पूरा करे हें -

    एटम बम मा बइठ के, अड़बड़ हव इतरात।

    पल भर मा मेटा जहू, का हावय औकात।।

    का हावय औकात, प्रलय हा कब हो जाही।

    मनखे ला दे छोड़, धरा तक नइ बच पाही।।

    हो जाहू सब ख़ाक, गरजथव काकर दम मा।

   जादा झन इतराव, बइठ के एटम बम मा।।

    अजय अमृतांशु के ये संग्रह अपन बेरा के आरो देवत अपन शीर्षक ये कलजुग के गोठ ल सार्थक करथे। कव्हरपेज शीर्षक के मूल भाव के प्रतिनिधित्व करत हुए आकर्षक हे। भीतरी पन्ना के छपाई अउ क्वालिटी बढ़िया हे। पाठक बर संग्रह के कुण्डलिया मन के भाव ल रखे के मोर कोशिश भर आय। या कहन कि रचनाकार अउ पाठक के बीच के पुल (सेतु) आँव। दू-चार ठन कुण्डलिया ल छांट-निमार के परोसई ह, आने कुण्डलिया मन ल कमतर अँकई हो जही। भेद करई होही। बेहतर होही पाठक किताब बिसा के कुण्डलिया मन ल पढ़ॅंय अउ आनंद लेवॅंय।

   सुघ्घर संग्रह के प्रकाशन बर अजय अमृतांशु जी ल बधाई अउ शुभ कामना पठोवत हँव।


 संग्रह: ये कलजुग के गोठ  

रचनाकार: अजय अमृतांशु

प्रकाशक: सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली-रायपुर

प्रकाशन वर्ष: 2025

पृष्ठ संख्या: 86मूल्य: 200/-

सर्वाधिकार: लेखकाधीन

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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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